| शब्द का अर्थ | 
					
				| श्रेणी					 : | स्त्री० [सं० श्रि√नि+क्विप्,ङीष्] १. अवली। कतार। पंक्ति। २. लगातार चलता रहनेवाला क्रम या सिलसिला। श्रृंखला। ३. एक ही तरह की ऐसी चीजों का बातों का वर्ग जो कुछ दूर तक एक ही रूप में चलता रहे (सीरिज़) ४. प्राचीन भारत में एक ही प्रकार के व्यवसाय करनेवाले व्यापारियों का संघटन। (कार्पोरेशन)। ५. कार्य, योग्यता आदि के विचार से पदार्थों, व्यक्तियों आदि का होनेवाला वर्ग या विभाग। दरजा (क्लास)। ६. जीना। सीढ़ी। ७. दल। समूह। ८. जंजीर। सिकड़ी। ९. किसी चीज का अगला भाग या सिरा। १॰. पानी भरने का डोल। | 
			
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				| श्रेणीकरण					 : | पुं० [सं० ष० त०] [भू० कृ० श्रेणीकृत] १. श्रेणी के रूप में रखने या लाने की क्रिया। वर्गीकरण। २. क्रम से या व्यवस्थित रूप से रखना या लगाना। | 
			
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				| श्रेणी-पाद					 : | पुं० [सं०] प्राचीन भारत में ऐसा राष्ट्र या जनपद जिसमें श्रेणियों या पंचायतों की प्रधानता हो (कौ०)। | 
			
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				| श्रेणी-प्रमाण					 : | पुं० [सं० ब० स०] प्राचीन भारत में वह शिल्पी या व्यापारी जो किसी श्रेणी के अन्तर्गत हो और उसके मंतव्यों के अनुसार काम करता हो (कौ०)। | 
			
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