| शब्द का अर्थ | 
					
				| सठ					 : | पुं०=शठ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| सठई					 : | स्त्री०=शठता।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| सठमति					 : | वि० [सं० शठ+मति] दुष्ट प्रकृतिवाला। दुष्ट। उदाहरण—तजतु अठान न हठ परयौ सठमति आठौ जाम।—बिहारी। | 
			
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				| सठियाना					 : | अ० [हि० साठ= ६॰] [भाव० सठियाव] १. साठ वर्ष का बुड्ढा होना। २. मनुष्य का ६॰ वर्ष या इससे अधिक का हो जाने पर मानसिक शक्तियों के क्षीण हो जाने के कारण ठीक तरह से काम-धंधा करने या सोचने-समझने के योग्य न रह जाना। मुहावरा—सठिया जाना=ऐसी अवस्था में पहुँचना जबकि बुद्धि ठीक से काम करना छोड़ देती है। | 
			
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				| सठियाव					 : | पुं० [हि० सठियाना+आव (प्रत्यय)] सठिया जाने या सठियाने हुए होने की अवस्था या भाव। वह अवस्था जिसमें मनुष्य ६॰ वर्ष या अधिक का हो जाने पर ठीक तरह से काम-धंधा करने या सोचने-समझने के योग्य नहीं रह जाता। (सेनिलिटी) | 
			
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				| सठुरी					 : | स्त्री० [हि० सीठी या साँठी] गेहूँ,जौ आदि के डंठलों का वह गठीला अंश जिसका भूसा नहीं होता और जो ओसाकार अलग कर दिया जाता है। गठुरी। कूँटा। कूँटी। | 
			
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				| सठेरा					 : | पुं० [हि० साँठा] सन का वह डंठल जो सन निकाल लेने पर बच रहता है। संठा। सरई। सलई। | 
			
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				| सठोरना					 : | स० [हि० बटोरना का अनु० बटोरना-सठोरना] एकत्र या संचित करना। | 
			
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				| सठोरा					 : | पुं०=सोंठौरा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| सठ्ठो					 : | पुं० [?] ऊँट (राज०)। | 
			
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