| शब्द का अर्थ | 
					
				| सबंध, सबंधक					 : | वि० [सं०] जिसके लिए या जिसके संबंध में कोई बंध लिखा गया हो या कोई जमानत दी गई हो। | 
			
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				| सब					 : | वि० [सं० सर्व] १. अवधि, मान, मात्रा, विस्तार आदि के विचार से जितना है वह कुल (क) यहाँ सब दिन रोना पड़ा रहता है। (ख) सब खुशियाँ वह अपने साथ लेता गया। (ग) सब सामान उसके पास है। २. अंग, अंश, सगस्यता आदि के विचार से हर एक जैसे—वहाँ सब जा सकते हैं किसी के लिए मनाही नहीं है। ३. जोड़ के विचार से होने वाला। पद—सब मिलाकर√गिनती में कितना जोड़ हुआ है उसके विचार से। जैसे—सब मिलाकर उन्होने १॰॰॰॰) विवाह में खर्च किये हैं। सर्व० कुल व्यक्ति। जैसे—सबने वहा मत दिया है। वि० [अ०] १. किसी के आधीन रहकर उसी की तरह काम करने वाला। जैसै०—सब रजिस्ट्रार। २. किसी के अंतर्गत और गौड़ या छोटा। उप—जैसे—सब-डिवीजन। | 
			
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				| सबक					 : | पुं० १. फा० सबक] १. अध्ययन के समय उतना अंश जितना एक बार में पढ़ाया जाय। पाठ। २. नसीहत। शिक्षा। क्रि० प्र०—मिलना। सीखना। | 
			
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				| सबकत					 : | स्त्री० [अ० सबकत] किसी विषय में औरों की उपेक्षा आगे बढ़ जाना। विशिष्टता प्राप्त करना। | 
			
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				| सबज					 : | वि=सब्ज।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| सबद					 : | पुं० [सं० शब्द] १. शब्द। आवाज। २. किसी महात्मा की वाणी या भजन। जैसे—कबीर जी के सबद, दादू दयाल के सबद। | 
			
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				| सबदी					 : | वि० [हिं० सबद] किसी साधु महात्मा के सबद (वचन या आज्ञा) पर विश्वास रखने वाला। | 
			
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				| सबब					 : | पुं० [अ०] १. कारण। वजह। हेतु। २. किसी काम की क्रिया का द्वार या साधन। जैसे-कोई सबद निकालो तो यह काम हो। | 
			
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				| सबर					 : | पुं०=सब्र।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| सबरा					 : | पुं० [?] वह औजार जिससे कसेरे टाँका लगाते हैं। बरतन में जोर लगाने का औजार। वि०=सब (पूरा या सारा)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| सबल					 : | वि० [सं० अव्य० स०] [भाव० सबलता] १. जिसमें बहुत बल हो। बलवान। बलशाली। ताकतवर। २. जिसकी सेना या सैनिक सबल हों। | 
			
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				| सबा					 : | स्त्री० [अ०] १. रास्ता। मार्ग। २. पूरब की ओर से आने वाली अच्छी और ठंडी हवा जो प्रिय लगती है। | 
			
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				| सबात					 : | स्त्री० [अ०] १. स्थिरता। स्थाइत्व। २. दृढ़ता। मजबूती। | 
			
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				| सबार					 : | अव्य० [हिं० सबेरा] उचित समय से कुछ पहले ही।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| सबील					 : | स्त्री० [अ०] १. द्वार। साधन। २. उपाय। युक्ति। क्रि० प्र० निकालना। ३. वह स्थान जहाँ लोगों को धर्माथ जल या शरबत पिलाया जाता हो। पौसरा। प्याऊ। क्रि० प्र०—बैठना।—लगाना। | 
			
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				| सबीह					 : | स्त्री०=शबीह।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| सबुज					 : | वि०=सब्ज (हरा)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| सबुनाना					 : | स० [हि० सबुन] साबुन लगाना। | 
			
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				| सबू					 : | पुं० [फा० सुबू] १. मिट्टी का घड़ा। मटका। गगरी। २. शराब रखने का पात्र। | 
			
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				| सबूत					 : | पुं० [अ० सुबूत] वह चीज या बात जिससे कोई और बात सबित अर्थात प्रमाणित होती हो। प्रमाण। वि०=साबूत (पूरा या सारा)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| सबूरा					 : | पुं० [अ० सब्र] [स्त्री० अल्पा० सबूरी] काठ, कपड़े, चमड़े, आदि का बना हुआ एक प्रकार का लंबा खंड जिससे कुँआरी, विधवा, या पतिहीना स्त्रियाँ अपनी काम वासना तृप्त करती हैं। (मुसल० स्त्रियाँ)। | 
			
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				| सबूरी					 : | स्त्री० [अ० सब्र] १. संतोष। सब्र। उदा०—कहत कबीर सुनौ भाई संतो साहब मिलत सबूरी में।—कबीर। २. किसी के द्वारा पीड़ित होने पर तथा असमर्थ या असहाय होने के कारण चुपचाप बैठकर किया जाने वाला सब्र। मुहा—(किसी की) सबूरी पड़ना=किसी पीड़ित के उक्त प्रकार के फलस्वरूप उत्पीड़क की दैविक गति से दंड मिलना या उसका कोई उपकार होना। | 
			
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				| सबेरा					 : | पुं०=सवेरा। | 
			
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				| सब्ज					 : | वि० [फा० सब्ज] १. कच्चा और ताजा (फल, फूल, आदि) मुहा०—(किसी को) सब्ज बाग दिखलाना=अपना काम निकालने या जाल में फसाँने के लिए भविष्य के संबंध में बड़ी-बड़ी आशाएँ दिखलाना। २. (रंग)। हरा। हरित। भला। शुभ। जैसे—सब्ज-बख्त=भाग्यवान्। | 
			
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				| सब्ज कदम					 : | वि० [फा० सब्ज+अ० कदम] जिसके कहीं पहुँचते ही कोई अशुभ घटना हो। जिसके चरण अशुभ हो। (उपहास और व्यंग्य)। | 
			
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				| सब्ज़ा					 : | पुं० [फा० सब्ज] १. हरी घास और वनस्पति आदि। हरियाली। क्रि० प्र० लहलहाना। २. भंग। भांग। विजया। ३. पन्ना नामक रत्न। ४. कान में पहनने का एक प्रकार का गहना। ५. घोड़े का एक रंग जिससे सफेदी के साथ कुछ काला पन भी मिला होता है। ६. उक्त रंग का घोड़ा। ७. सौ रुपयों का नोट जो प्रायः सब्ज या हरे रंग की स्याही से छपा होता है। (बाजारू) जैसे—एक सब्जा उसके हाथ पर रखी तो काम हो जाय। | 
			
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				| सब्जी					 : | स्त्री० [फा०] १. सब्ज होने की अवस्था या भाव। हरापन। २. हरी घास और वनस्पति आदि। हरियाली। ३. हरी तरकरी। साग-सब्जी। ४. पकाई हुई तरकारी। जैसे—आलू मटर की सब्जी। | 
			
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				| सब्र					 : | पुं० [अ०] १. वह मानसिक स्थिति जिसमें मनुष्य उत्तेजित, उत्पीड़ित, दुखी या संतप्त किये जाना अथवा किसी प्रकार की विपत्ति या विलंब का सामना होने पर भी धीरे या शांति भाव से चुप रहता या सहन करता। जैसे—(क) थोड़ा सब्र करो, समय आने पर उससे समझ लिया जायगा। (ख) अपमानित होने (या मार खाने) पर भी वह सब्र करके बैठ गया। मुहा—सब्र आना=किसी का कुछ अनिष्ठ करके अथवा बदला चुकाकर ही चुप या शांत होना। उदा०—मारा जमीं में गाड़ा, तब उसको सब्र आया। कोई शायर। सब्र कर बैठना या कर लेना=चुपचाप और शांत भाव से सहन करते हुए भी कष्ट हानि आदि का प्रतिकार न करना। (किसी पर किसी का) सब्र पड़ना=उत्पीड़क को उत्पीड़ित के सब्र के फलस्वरूप किसी प्रकार का दुष्परिणाम भोगना पड़ेगा। (किसी का) सब्र समेटना=किसी को पीड़ित करने पर उसके सब्र के भल भोग का भागी बनना। २. जल्दी, हड़बड़ी आदि छोड़कर धैर्य घारण करने वाला। जैसे—सब्र करो गाड़ी छूटी नही जाती। | 
			
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				| सब्रह्माचारी					 : | पुं० [सं० अव्य० स०] वे ब्रह्मचारी जिन्होने एक साथ एक ही गुरु के यहाँ रहकर शिक्षा प्राप्त की हो। | 
			
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