| शब्द का अर्थ | 
					
				| सहांश					 : | पुं० [सं० शह+अंश] किसी और के सात रहने या होने पर मिलने वाला अंश या भाग। | 
			
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				| सहांशी					 : | पुं० [सं० सह+अंशी] वह जो किसी के साथ किसी प्रकार के लाभ या संपत्ति में अपना भी अंश या हिस्सा पाने का अधिकारी हो। साझीदार (कोशेयरर)। | 
			
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				| सहा					 : | स्त्री० [सं०√सह् (सहन करना)+अच्—टाप] १. घी-कुआरा। ग्वारपाठा। २. बनमूँग। ३. दंडोत्पल। ४. सफेद कट सरैया। ५. कंघी या ककही नामक वृक्ष। ६. सर्पिणी। ७. रासना। ८. सत्यानाशी। ९. सेवती। १॰. हेमंत ऋतु। ११. अगहन मास। १२. मषवन। १३. देवताड़ का वृक्ष। १४. मेंहदी। | 
			
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				| सहाई					 : | स्त्री०=सहयता। वि०=सहायक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| सहाई					 : | वि० [सं० सहाय्य] सहयक। मददगार। उदा०—नैन सहाई पलक ज्यों देह सहाई हाथ। स्त्री०=सहायता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| सहाउ					 : | वि०, पुं०=सहाय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| सहाध्यायी (यिन्)					 : | वि० [सं० सह-आ-अधि√ई (पढ़ना)+णिनि] जिसमें किसी के साथ अध्ययन किया हो। सहपाठी। पुं० साथ-साथ अध्ययन करने वाले शिक्षार्थी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| सहाना					 : | स० [सं० सहना का स०] ऐसा काम करना जिससे किसी को कुछ सहना पड़े। पुं०=शहाना (राग)। | 
			
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				| सहानी					 : | वि० स्त्री०=शहानी। | 
			
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				| सहानुगमन					 : | पुं०=सहगमन। (दे०) | 
			
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				| सहानुभूति					 : | स्त्री० [सं० सह-अनु√ भू० (होना)+क्तिन] १. ऐसी अनुभूति जो साथ-साथ दो या अधिक व्यक्तियों को हो। २. वह अवस्था जिसमें मनुष्य दूसरे की अनुभूति (विशेषतः कष्टपूर्ण अनुभूति) का अनुभव शुद्ध हृदय से करता है ओर उससे उसी प्रकार प्रभावित होता है जिस प्रकार दूसरा व्यक्ति हो रहा हो। (संवेदना। हमदर्दी। (सिम्पेथी) ३. अनुकमपा। दया। | 
			
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				| सहानुसरण					 : | पुं० [सं० सह-अनु√सह् (गत्यादि)+ल्युट्-अन] सहानुगमन (सह-गमन)। | 
			
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				| सहाब					 : | पुं०=शहाब। | 
			
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				| सहाबी					 : | पुं० [सं०] [स्त्री सहाबिया] वो लोग जो मुहम्मद साहब के उपदेश से मुसलमान हो गये थे और मरण पर्यत इस्लाम धर्म को मानते रहे। | 
			
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				| सहाय					 : | वि० [सं०] सहयता करने वाला। पुं० १. वह जो दूसरों की सहयता करता हो। और उसके कष्ट दुख दूर करता हो। २. साथी। अनुयायी। ४. सहायता। ५. आश्रय। सहायता ६. एक प्रकार का हंस। ७. एक प्रकार की वनस्पति। | 
			
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				| सहायक					 : | वि० [सं०] १. किसी की सहायता करने वाला। जैसे—दुःखसुख में अपने ही सहायक होते हैं। २. कार्य, प्रयोजन आदि के संपादन या सिद्धि में योग देने वाला। जैसे पढ़ने में आँखे ही सहयक होंगी। ३. (वह अधिकारी या कर्मचारी) जो किसी उच्च अधिकारी के आधीन रहकर उसके कार्यों के सपादन में योग देता हो। जैसे—सहायक मंत्री, सहायक संपादन। ४. किसी के साथ मिलकर उसका वृद्धि करने वाला। जैसे—सहायक आजीविका। सहायक नदी। | 
			
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				| सहायक नदी					 : | स्त्री० [सं०] भूगोल में किसी बड़ी नदी मे आकर मिलने वाली कोई छोटी नदी। (ट्रिब्यूटरी) | 
			
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				| सहायता					 : | स्त्री० [सं०] १. सहाय होने की अवस्था या भाव २. उद्योग या प्रयत्न जो दूसरे का काम संपादित करने या सहज बनाने के निमित्त किया जाता है। जैसा—उसने उन्हे पुस्तक लिखने में सहायता दी। ३. अभावग्रस्त का आभाव दूर करने के लिए उसे दिया जाने वाला धन या अनुदान। जैसे—सरकारी सहायता से यह उद्योग चल रहा है। ४. अनाथों, निर्धनों आदि को निर्वाह या भरण पोषण के लिए दिया जाने वाला धन या वस्तुएँ। | 
			
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				| सहायन					 : | पुं० [सं० सह√अच् (गत्यादि)+ल्युट्—अन√ इण (गत्यादि)+ल्युट्-अन वा] १. साथ चलना या जाना। २. साथ देना। ३. सहायता करना। | 
			
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				| सहायी					 : | वि०=सहायक। स्त्री०=सहायता।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| सहार					 : | पुं० [सं० सह√ऋ (गमनादि)+अच् त० त० वा] १. आम का पेड़। सहकार। २. महा प्रलय। स्त्री० [हिं० सहारना] १. सहारने की क्रिया या भाव २. सहनशील-लता। जैसे—अब उनमे कष्ट सहने की सहार नहीं रह गई। | 
			
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				| सहारना					 : | स० [सं० सहन या हिं० सहारा] १. सहन करना। २. बरदाश्त करना। सहना। ३. किसी प्रकार का भार अपने ऊपर लेकर उसे सँभाले रहना। ४. त्पात, कष्ट आदि होने पर उसकी ओर ध्यान न देना। गवारा करना। | 
			
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				| सहारा					 : | पुं० [हिं० सहारना] १. कोई ऐसा तत्व या बात जिससे कष्ट आदि सहन करने या कोई बड़ा काम करने में सहायता मिलती हो या कष्ट की अनुभूति कम होती है। २. ऐसी वस्तु या व्यक्ति जिसपर किसी प्रकार का भार सहज में रखा जा सके और जो भार सह सके। ऐसा कोई तत्व या बात जिससे किसी प्रकार का आश्वासन मिलता हो। क्रि० प्र०—देना।—पाना।—मिलना। | 
			
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				| सहारिया					 : | वि०, पुं०=सहराई। उदा०—गाँव क्या था सहारियों की पर्ण-कुटीरों का समूह।—वृंदावनलाल वर्मा। | 
			
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				| सहार्थ					 : | वि० [सं०] १. समान अर्थ रखने वाले। २. समान उद्देश्य रखने वाले। पुं० १. आनुषंगिक विषय। २. सहयोग। | 
			
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				| सहार्द					 : | वि० [सं० तृ० त०] स्नेहयुक्त। | 
			
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				| सहार्ह					 : | वि० [सं० सह (न)+अर्ह] जो सहन किया जा सके। योग्य। | 
			
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				| सहालग					 : | पुं० [सं० सह+लग] १. वह वर्ष जो हिंदुओं ज्योतिषियों के मत से शुभ माना जाता हो। २. फलित ज्योतिष के अनुसार वे दिन जिनमें विवाहल आदि शुभ कृत्य किये जा सकते हों। | 
			
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				| सहावल					 : | पुं०=साहुल (सीध नापने का उपकरण)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| सहासन					 : | वि० [स० सह+आसन] १. किसी के साथ उसके बराबर के आसन पर बैठने वाला। २. साथ बैठने वाला। पुं० १. बराबरी का हिस्से दार। उदाःसहासन का भाग छीनकर दो मत निर्जन मत बन को।—दिनकर। | 
			
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