| शब्द का अर्थ | 
					
				| सूल					 : | पुं० [सं० शूल] १. बरछा। भाला। सांग। २. कोई नुकीली चीज। ३. किसी नुकीली चीज के गड़ने सी की पीड़ा। ४. पेट की शूल नामक पीड़ा या रोग। क्रि० प्र०–उठना। ५. माला के ऊपर का फ़ुँदन। ६.=दे० शूल। वि० =वसूल। (दलालों की बोली)। | 
			
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				| सूलधर, सूलधारी					 : | पुं० =शूलधर (शिव)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| सूलना					 : | स० [हिं० सूल+ना (प्रत्य०)] १. भाले से छेदना। २. नुकीली चीज चुभाना। ३. कष्ट देना। पीड़ित करना। अ० १. कोई नुकीली चीज गड़ना या चुभना। २. कष्ट पाना। पीड़ित होना। | 
			
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				| सूलपानि					 : | पुं०=शलपाणि (शिव)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| सूली					 : | स्त्री० [सं० शूल] १. प्राणदंड की एक प्राचीन प्रणाली जिसमें दंडित मनुष्य एक नुकीले लोहे के डंडे पर बैठा दिया जाता था और उसके सिर पर मुँगरे से आघात किया जाता था। इससे नीचे से ऊपर तक उसका सारा शरीर छिद जाता था और वह मर जाता था। क्रि० प्र०–चढ़ना।–चढ़ाना।–देना।–पाना।–मिलना। २. आज—कल फाँसी नामक प्राणदंड। ३. बहुत अधिक कष्ट या पीड़ा की स्थिति। मुहा०–प्राण सूली पर टँगा रहना=किसी प्रकार की दुबधा में पड़ने के कारण बहुत अधिक मानसिक कष्ट होना। जैसे–जब तक लड़का लौटकर नहीं आया था, तब तक प्राण सूली पर टँगे थे। ३. एक प्रकार का नरम लोहा जिसके छड़ बनाये जाते हैं। (लुहार) ४. दक्षिण दिशा। (लश०) पुं० =शूली (शिव)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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