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सेंती  : स्त्री० [सं० संहति=(क) किफायत। २. ढेर या राशि।] ऐसी स्थिति जिसमें या तो (क) पास का कुछ भी व्यय न करना पड़े। (ख) कुछ भी परिश्रम करना पड़े, अथवा (ग) अनायास ही कोई चीज बहुत अधिक मात्रा या संख्या में प्राप्त हो। मुहा०–सेंती या सेंती—मेंती का=(क) जिसके लिए कुछ भी परिश्रम नकरना पडा़ हो। मुफ्त का या मुफ्त में। जैसे–उन्हें बाप—दादा का सेंती का माल मिला है। (ख) जिसके लिए कुछ भी व्यय न करना पडा हो। उदा०–सखा संग लीन्हेंज सेंति के फिरत रैन दिन बन में छाये।–सूर। (ग) जो बहुत अधिक मात्रा या मान में उपस्थित या प्रस्तुत हो। उदा०–दधि मै परी सेंति की चींटी, मो पै सबै कढ़ाई।–सूर। (घ) बिलकुल अकारण या व्यर्थ में। जैसे–इसके लिए कोई सेंती का प्रयत्न क्यों करे। प्रत्य० [प्रा० सुंतो, पंचमी विभक्ति] पुरानी हिन्दी की करण और अपादान की विभक्तिः से। उदा०–राजा सेंति कुंवर सब कहहीं। अस अस मच्छ समुद महँ अहहीं।–जायसी।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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