| शब्द का अर्थ | 
					
				| सेंद					 : | स्त्री० =सेंध।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| सेंदुर					 : | पुं० [सं० सिन्दूर] ईंगुर की बुकनी जो प्रायः सौभाग्यवती स्त्रियाँ माँग में लगाती हैं। सिंदूर। क्रि० प्र०–भरना।–लगाना। मुहा०–सेंदुर चढ़ना=स्त्री का विवाह होना। सेंदुर पहनना=माँग में सिंदूर भरना या लगाना। (किसी की माँग में) सेंदुर देना=किसी स्त्री० की माँग में सिंदूर डालकर उससे विवाह करना या उसे अपनी पत्नी बनाना। | 
			
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				| सेंदुरदानी					 : | स्त्री० [हिं० सेंदुर+फा० दानी] सिंदूर रखने का छोटा डिब्बा। सिंदूर की डिबिया।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| सेंदुरा, सेंदुरिया					 : | वि० , पुं०=सिंदूरिया। | 
			
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				| सेंदुरी					 : | वि० स्त्री० [हिं० सेंदुर+ई (प्रत्य०)] सिंदूरी गाय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| सेंद्रिय					 : | वि० [सं०] १. जिसमें इन्द्रियाँ हों। इन्द्रियोंवाला। जैव। (जीव या जन्तु) (आर्गनिक) २. पुंस्त्व या पौरुष से युक्त। | 
			
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