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सैला  : पुं० [सं० शल्य] [स्त्री० अल्पा० सैली] १. लकड़ी की वह गुल्ली या पच्चड़ जो किसी छेद या संधि में ठोका जाय। किसी छेद मे डालने या फँसाने का टुकड़ा। मेख। २. लकड़ी की बड़ी मेख। खूँटा। ३. नाव की पतवार की मुठिया। ४. लकड़ी की वह खूँटी जो बैलगाड़ी में कंधावार के पास दोनो ओर लगी होती हैं और जिसके कारण बैल अपनी गरदन इधर—उधर नहीं कर सकता। ५. यह मुँगरी जिससे कटी हुई फसल के डंठल दाना झाड़ने के लिए पीटते हैं। ६. जलाने की लकड़ी का छोटा टुकड़ा। चैला। पुं० [फा० सैर] मध्य प्रदेश के गोड़ों और भीलों का एक प्रकार का नृत्य।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सैलात्मजा  : स्त्री० [सं० शैलात्मजा] पार्वती।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सैलानी  : वि० [हिं० सैल (=सैर)+आनी (प्रत्य०)] १. जो बहुत अधिक सैर करता हो। २. इधर-उधर घूमता फिरता रहनेवाला।
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सैलाब  : पुं० [फा०] नदियों आदि की बाढ़।
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सैलाबा  : पुं० [फा० सैलाब] वह फसल जो पानी में डूब गई हो।
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सैलाबी  : [फा०] १. सैलाब संबंधी। सैलाब या बाढ़ का। जैसे–सैलाबी पानी। २. (जमीन जिसकी सिंचाई सैलाब या बाढ़ के पानी से होती हो। स्त्री० =सीड़ (सील)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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