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बी एड - एम एड >> वाणिज्य शिक्षण

वाणिज्य शिक्षण

रामपाल सिंह

पृथ्वी सिंह

प्रकाशक : अग्रवाल पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2532
आईएसबीएन :9788189994303

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बी.एड.-1 वाणिज्य शिक्षण हेतु पाठ्य पुस्तक


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वाणिज्य-शिक्षण हेतु नियोजन
(PLANNING FOR COMMERCE TEACHING)

शिक्षण या अध्यापन एक सचेष्ट औपचारिक तथा कष्टसाध्य कार्य है। यदि अध्यापक इस कार्य को सफलतापूर्वक करना चाहता है तो उसे अन्य कार्यों के समान ही शिक्षण कार्य की सुनिश्चित योजना शिक्षण कार्य करने से पूर्व ही बना लेनी चाहिये। हम जानते हैं कि कोई भी समस्यात्मक कार्य सुनिश्चित पूर्व योजना के अभाव में सफलतापूर्वक सम्पन्न नहीं किया जा सकता है। यही तथ्य शिक्षण कार्य के सम्बन्ध में लागू होता है। वास्तव में प्रत्येक कार्य तभी समुचित तथा व्यवस्थित रूप से पूरा किया जा सकता है जब उसे पूरा करने के लिए एक सुनिश्चित तथा विस्तृत योजना बना ली जाय और फिर उस योजना के अनुसार ही कार्य सम्पादित किया जाय। इस सिद्धान्त के अनुसार शिक्षक को भी अपने शिक्षण-कार्य से सम्बन्धित विस्तृत योजना बनाकर शिक्षण कार्य करना चाहिये। शिक्षक को चाहिए कि वह शिक्षण से सम्बन्धित वार्षिक, मासिक, साप्ताहिक तथा दैनिक योजनायें बनाये और तदोपरान्त उन योजनाओं के अनुसार ही शिक्षण कार्य सम्पादित करे और साथ ही साथ विषय-वस्तु के सन्दर्भ में भी पाठ योजनाओं का निर्माण करना चाहिये। वह विषय-वस्तु सन्दर्भ में दैनिक तथा इकाई-पाठ योजनायें बना सकता है। प्रस्तुत अध्याय में दैनिक इकाई तथा वार्षिक-पाठ योजनाओं के सम्बन्ध में चर्चा की जा रही है।

शिक्षण-योजना एवं अन्य सामान्य योजना

नियोजन कार्य अथवा योजना निर्माण केवल शिक्षण कार्य के लिए आवश्यक हो ऐसा नहीं है अपितु प्रत्येक समस्यात्मक कार्य के लिए योजना या नियोजन आवश्यक होता है। हम बाँध बनाने, भवन निर्माण करने, आर्थिक साधन जुटाने, फसल उगाने. कारखाना चलाने आदि सभी कार्यों के लिए योजना बनाते हैं। उसे शिक्षण योजनायें कहते हैं। शिक्षण तथा सामान्य योजना-दोनों का ही उद्देश्य कार्य को सफलतापूर्वक योजनाबद्ध तरीके से सम्पादित करना है। दोनों प्रकार की योजनाओं में उद्देश्यों की समानता होते हुये भी कुछ आधारभूत अन्तर होते हैं। इन अन्तरों को निम्न प्रकार से उल्लिखित कर सकते है-

आधारभूत प्रशिक्षण प्रायोजनायें

(1) शिक्षण योजनाओं के द्वारा जीवित प्राणियों को शिक्षित किया जाता है। जब सामान्य योजनाओं की विषय-वस्तु अमूर्त होती है। जीवित तथा मूर्त विषयों से सम्बन्धित योजनायें अधिक कठिन व.जटिल होती हैं।

(2)-शिक्षण योजना ऐसे जीवित प्राणियों से सम्बन्धित होती है जिनमें परिवर्तन की पर्याप्त सम्भावना रहती है। जबकि सामान्य योजना की विषय-वस्तु अजीवित होने के कारण प्रायः अपरिवर्तित रहती है। इसलिए शिक्षण योजनाओं में परिवर्तन की अधिक व्यवस्था करनी पड़ती है। दूसरे शब्दों में शिक्षण योजनायें अधिक लोचदार बनाई जाती हैं।

(3) सामान्य योजनाओं के फलस्वरूप जो कुछ भी निर्माण या उत्पादन कार्य किया जाता है वह सामान्यतया दृश्य होता है जबकि-शिक्षण योजनाओं के फलस्वरूप प्राप्त परिणाम अदृश्य होते हैं।

(4) सामान्य योजनाओं के क्रियान्वयन के फलस्वरूप उत्पादित तत्त्वों को सरलता से मापा जा सकता है। जबकि शिक्षण योजनाओं के कार्यों को सफलता से मापा नहीं सकता है।

(5) शैक्षिक उद्देश्य अप्राप्त्यनीय होते हैं। अतः शिक्षण के द्वारा इन उद्देश्यों को कभी भी प्राप्त नहीं किया जा सकता है। किन्तु सामान्य कार्यों को प्राप्त किया जा सकता है। उदाहरण के लिए बाँध बनाने की योजना, बाँध बन जाने पर समाप्त कर दी जाती है किन्तु शिक्षण योजना सदैव-सदैव चलती रहती है।

शिक्षण कार्य हेतु योजना

उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है शिक्षण कार्य के लिए नियोजन अथवा योजना निर्माण अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण है तथा लाभप्रद होता है शिक्षण के लिए योजना निर्माण करने से निम्नांकित लाभ हैं-

(1) शिक्षण की योजना बना लेने से शिक्षण कार्य योजनाबद्ध तरीके से समय एवं विषय-वस्तु के सन्दर्भ में सम्पन्न किया जा सकता है।
(2) योजना निर्माण के द्वारा विषय-वस्तु के सभी खण्डों, प्रकरणों तथा इकाइयों की उपयुक्त एवं आवश्यक महत्त्व किया जा सकता है।
(3) नियोजित शिक्षा से उद्देश्यनिष्ठ या उद्देश्य पर शिक्षण सम्भव है। दूसरे शब्दों में या योजनानुसार शिक्षण से पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति अपेक्षाकृत अधिक सरल एवं सम्भव हो जाता है।
(4) योजना बनाकर . शिक्षण करने से शिक्षण के सभी बिन्दुओं को समय विषय-वस्तु व्यवहार परिवर्तन तथा पूर्व निर्धारित उद्देश्यों के सन्दर्भ में भार प्रदान किया जा सकता है।
(5) योजना बनाकर शिक्षण करने से शिक्षक को शिक्षण प्रारम्भ करने से यह ज्ञात हो जाता है कि उसे शिक्षण के समय किन-किन सुविधाओं तथा सहायक सामग्री की आवश्यकता पड़ेगी। इन सबकी उसे पहले से ही व्यवस्था करने में सहूलियत रहती है। इतना ही नहीं पूर्व में ही इनका ज्ञान हो जाने से वह इनका कक्षा में प्रयोग भी भली प्रकार कर सकता है।
(6) प्रत्येक सफल अध्यापक किसी न किसी प्रकार की योजना बनाकर पढ़ाते हैं। उनका शिक्षण सदैव नियोजित होता है। यह बात दूसरी है कि उनकी शिक्षण योजना उनके मस्तिष्क में रहती है अथवा वे लिखकर योजना बनाते हैं। सफल एवं प्रभावी शिक्षण के लिए भी योजना बनाकर पढ़ाना आवश्यक है।
(7) योजना बनाकर पढ़ाने से समय की न केवल बचत होती है, उसका सदुपयोग भी होता है। शिक्षक की सभी क्रियाओं में समन्वय स्थापित होता है तथा छात्रों की विविध शैक्षिक आवश्यकताओं को सन्तोष प्रदान किया जा सकता है।

शिक्षण योजना के प्रकार

शिक्षण कार्य की योजना जब काल के सन्दर्भ में बनाई जाती है। तब हम उसके सामान्यतः दो रूप देखते हैं-

(1) दीर्घकालीन योजना-1. समीप योजना. 2. मासिक योजना।
(2) अल्पकालीन योजनायें-1. साप्ताहिक योजना, 2. इकाई. 3. दैनिक योजना।

अत्यधिक शिक्षण कार्य भार के कारण अध्यापक के लिए इतनी शिक्षण योजनायें बनाना कठिन हो जाता है। अतः उसे वार्षिक, दैनिक तथा इकाई योजना बनाकर ही काम चला लेना चाहिए। प्रारम्भिक अवस्था में उसे विस्तृत दैनिक योजना बनाकर शिक्षण कार्य करना चाहिए और कालान्तर में दक्षता प्राप्त होने पर उसे दैनिक पाठ योजनाओं के संक्षिप्त लघु रूप से ही काम चलाना चाहिए। वास्तव में देखा जाय तो एक व्यस्त शिक्षक के लिए दैमिक पाठ योजनाओं का लघु रूप ही व्यावहारिक है। क्योंकि वह पाँच-छ: कालांशों के लिए प्रतिदिन विस्तृत दैनिक योजनायें नहीं बना सकता है। प्रस्तुत पाठ के आगामी भाग में वार्षिक, इकाई तथा नैतिक पाठ योजनाओं की चर्चा की गई है।

इकाई योजना

इकाई शब्द को शिक्षा जगत में लाने का श्रेय भी हरबर्ट को जाता है। किन्तु इसका व्यापक प्रयोग सन् 1920 के बाद ही हुआ। अब प्रश्न है कि इकाई क्या है। इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए इकाई की नीचे कई एक परिभाषाएँ प्रस्तुत हैं- रिस्क के अनुसार-इकाई किसी समस्या या योजना से सम्बन्धित सीखने वाली क्रियाओं की समग्रता या एकता को बनाती है।

वासिंग के अनुसार-इकाई अर्थपूर्ण परस्पर सम्बन्धित क्रियाओं की व्यापक श्रृंखला है जो विकसित होकर बालकों के उद्देश्यों की पूर्ति करती है। जिससे बालक महत्वपूर्ण शैक्षिक अनुभव प्राप्त कर सकें और अपने व्यवहारों में वांछित परिवर्तन ला सकें। हैरप के अनुसार-इकाई किसी विषय का एक बड़ा उपभाग होता है जिसका कोई मूलभूत प्रकरण या सिद्धान्त होता है। इस सिद्धान्त या प्रकरण के अनुसार ही छात्र क्रियाओं का इस प्रकार नियोजन किया जाता है कि उन्हें (छात्रों को) महत्त्वपूर्ण अनुभव प्राप्त हो सके। इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि इकाई-योजना सीखने के या अनुभव प्राप्त करने का यह एकीकृत रूप है। जिसे किसी एक शिक्षण क्रिया द्वारा प्रदान किया जाता है। यह सीखने की वह योजना है जो सीखने के किसी एक महत्त्वपूर्ण बिन्दु पर केन्द्रित होती हैं।

इकाई योजना के प्रकार

सामान्यतः इकाई योजनायें दो प्रकार की होती हैं-

(1) विषय-वस्तु की इकाई योजना।
(2) अनुभव की इकाई योजना।

विषय-वस्तु की इकाई योजनायें पुनः तीन प्रकार की होती हैं-
(i) पाठ पर आधारित इकाई योजना।
(ii) सूत्र या सिद्धान्त पर आधारित इकाई योजना।
(iii) मॉरीसन इकाई योजना।

मॉरीसन इकाई योजना का विकास मॉरीसन ने किया था। यह योजना वातावरण या संस्कृति के किसी एक पहलू या क्षेत्र से सम्बन्धित होती है। इस प्रकार की इकाई योजनाएँ कला विज्ञान संस्कृति या सामाजिक भौतिक वातावरण के किसी एक तथ्य को लेकर बनाई जाती है।

अनुभव की इकाई योजनायें भी तीन प्रकार की होती हैं-
(1) उद्देश्य पर आधारित।
(2) रुचि पर आधारित।
(3) आवश्यकता पर आधारित।

इकाई योजना के सोपान

इकाई योजना में कौन-कौन से पद या सोपान रखे जायें इस सम्बन्ध में अलग-अलग मत हैं फिर भी निम्नांकित दो प्रणालियाँ अधिक प्रचलित हैं-

पारस के.सोपान-ग्राम्ब्स तथा आईवर्सन ने इकाई योजना के लिए निम्न सोपान प्रसारित किये हैं-

(1) प्रस्तावना, (2) नियोजन, (3) अनुसंधान, (4) अवबोध ।

रिस्क ने इकाई योजना के निम्नांकित पदों की चर्चा की है-
1. उद्देश्यों का चयन।
2. इकाई खण्डों का विभाजन।
3. इकाई खण्डों का विकास ।
4. प्रस्तावना।
5. व्यक्तिगत आवश्यकताओं की व्यवस्था।
6. मूल्यांकन।
7. सम्बन्धित पुस्तकों की सूची।

जिस प्रकार से हम किसी एक पाठ के किसी एक खण्ड को किसी एक दिन पढ़ाने के लिए दैनिक योजना बनाते हैं। ठीक उसी प्रकार पूरे पाठ की योजना बनाई जाती है कि पूरे पाठ पढ़ाने के लिए किस-किस दिन या क्या-क्या पढ़ाना है ? कैसे पढ़ाना है ? पढ़ाने के लिए किन-किन उपकरणों की आवश्यकता होगी? छात्र क्या-क्या क्रियायें करेंगे, अध्यापक क्या-क्या क्रिया करेगा, छात्रों का मूल्यांकन किस प्रकार होगा आदि सभी बातों का इसमें उल्लेख किया जाता है।

इकाई योजना के लाभ

(1) इकाई योजना के द्वारा अधिक प्रभावशाली ढंग से ज्ञान प्राप्त होता है क्योंकि यह बालकों की रुचियों तथा अभिवृत्तियों को प्रमाणित करती है।
(2) इकाई योजना के द्वारा-विषय-वस्तु का संगठन अच्छी प्रकार से होता है।
(3) इकाई योजना बनाने से शिक्षण की रूपरेखा अच्छी प्रकार बन जाती है। इससे नियोजित शिक्षण सम्भव है।
(4) इकाई योजना ज्ञान को पूर्ण इकाई मानकर चलती है।
(5) इकाई योजना द्वारा अध्यापक तथा छात्रों की क्रियायें पहले ही सुनिश्चित कर दी जाती हैं।
(6) इकाई योजनाओं के अनुसार पढ़ाने से बालक वातावरण के साथ समायोजन स्थापित करने की क्षमता) योग्यता का विकास कर लेते हैं क्योंकि इसमें वातावरण को महत्त्व दिया जाता है।

इकाई योजना के दोष

(1) इकाई योजना तैयार करना एक कठिन कार्य है।
2) इकाई योजना के अनुसार पढ़ाने से शिक्षण यन्त्रवत् हो जाता है
(3) इकाई योजना में सहायक सामग्री तथा अन्य उपकरणों के प्रयोग पर बल दिया जाता है। अतः इसमें अधिक धन की आवश्यकता पड़ती है।

वार्षिक योजना

अध्यापक अपने कार्य का सफल नियोजन उसी समय कर सकता है। जब वह अपने कार्य की व्यवस्थित योजना बना ले। वार्षिक कार्य योजना उसे बताती है कि उसे कब क्या कार्य करना है तथा कौन-कौन से कार्य कब तक समाप्त कर देने हैं। वार्षिक कार्य योजना अध्यापक को निर्देशन देती है तथा अध्यापक का पथ प्रदर्शन करती हैं। उद्देश्यपूर्ण शिक्षण अध्यापक की सफल योजना पर ही निर्भर है। योजना जितनी अच्छी होगी. अध्यापक उतनी ही सफलता के साथ शिक्षण कार्य कर सकेगा। एक अच्छी योजना में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-

(1) अच्छी योजना पूरी तरह से लचीली होती है।
(2) अच्छी योजना व्यापक तथा विस्तृत होती है।
(3) अच्छी योजना सभी कक्षाओं से सम्बन्धित सभी क्रियाओं को सम्मिलित करती है।
(4) अच्छी योजना कक्षा तथा विद्यालय के पास उपलब्ध साधनों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है।
(5) अच्छी वार्षिक कार्य-योजना अध्यापक की योग्यता और क्षमता के अनुसार होती है।
(6) अच्छी पाठ-योजना छात्रों के मानसिक व शारीरिक स्तर के अनुकूल होती है।
(7) इनमें व्यक्तिगत विभिन्नताओं का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाता है।
(8) ये योजनाएँ अन्य शिक्षकों की योजनाओं के साथ समन्वय रखती हैं।

योजना निर्माण

वार्षिक योजना में शिक्षक वर्ष भर में एक विषय के शिक्षण तथा उससे सम्बन्धित अन्य करणीय कार्यों की रूपरेखा का निर्माण करता है। इस रूपरेखा के बनाते समय अध्यापक को अनलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए-

(1) योजना वास्तविक तथा व्यावहारिक हो इसमें केवल उन्हीं तथ्यों व कार्यों का उल्लेख किया जाये जिन्हें अध्यापक एक वर्ष में पूरा कर सकता है। इस सम्बन्ध में उसे, अधिक महत्वाकांक्षी होने की आवश्यकता होती है।

(2) उसे अपनी योग्यताओं तथा क्षमताओं के साथ ही साथ छात्रों की क्षमताओं तथा उनकी शारीरिक व मानसिक योग्यताओं को भी ध्यान में रखना चाहिये।

(3) योजना बनाते समय गत वर्ष की योजनाओं का अवलोकन किया जाये। अच्छा रहे यदि वर्तमान योजना पर अपने साथियों के साथ विचार-विमर्श कर लिया जाये।

(4) योजना यथासम्भव लचीली बनाई जाये, जिससे आवश्यकता होने पर उसमें आसानी से परिवर्तन या संशोधन किये जा सकें।

(5) वर्ष की योजना महीनों में बाँटकर बनाई जाय, इससे अध्यापक को ध्यान रहेगा कि किस-किस माह में उसे कौन-कौन से कार्य पूरे करने हैं।

(6) योजना बनाते समय विभागीय नियमों को पूरी तरह से ध्यान में रखा जाये।

उदाहरण के लिए, राजस्थान में पूरे शिक्षा-वर्ष को 3 उप-सत्रों में बाँटा गया है-

(i) 1 जुलाई से 31 अक्टूबर,
(ii) 1 नवम्बर से 28 फरवरी तथा
(iii) 1 मार्च से 16 मई

अध्यापक को वार्षिक योजना बनाते समय, विभागीय सत्रीय कार्यक्रमों का भी ध्यान रखना चाहिये जैसे विभाग की ओर से कब प्रथम, द्वितीय, तृतीय परख परीक्षा होगी. कब अर्द्धवार्षिक परीक्षा होगी तथा कब वार्षिक परीक्षा होगी। राजस्थान में अगस्त, अक्टूबर तथा फरवरी में क्रमशः प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय परख होगी। दिसम्बर में अर्द्धवार्षिक तथा अप्रैल-मई में वार्षिक परीक्षाओं की व्यवस्था की जाती है।

(7) वार्षिक योजना बनाते समय राज्य सरकार के द्वारा अवकाश सूची का भी ध्यान रखना चाहिए, राजस्थान में विभिन्न प्रकार के अवकाश तथा रविवारों को निकालकर करीब 248 कार्य दिवस शिक्षक के पास बचते हैं। इन कार्य दिवसों में से तीनों परख परीक्षाओं अर्द्धवार्षिक तथा वार्षिक परीक्षाओं के लिए तैयारी दिवस निकालकर कुल शिक्षण दिवस ज्ञात किये जा सकते हैं। सामान्यतः विभिन्न परीक्षाओं से सम्बन्धित 30 दिवस होते हैं। इस प्रकार अध्यापक के पास कुल 218 दिवस (240-30) शिक्षण कार्य के लिए बचते हैं। अध्यापक को अपने शिक्षण कार्य भी इन्हीं 218 दिवसों की योजना बनानी चाहिये।

(8) वार्षिक योजना में शिक्षण कार्य तथा अन्य करणीय कार्यों का पृथक्-पृथक तथा स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए। 218 शिक्षक दिवसों में से वार्षिक खेलकूद प्रतियोगिताओं तथा उनके अभ्यास हेतु समय का भी ध्यान रखना चाहिए (आवश्यक है) इन खेलकूद प्रतियोगिताओं के अलावा विद्यालय में कुछ पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं की भी व्यवस्था की जाती है। इन सबके लिए करीब 18 दिन और निकल जाते हैं। इस प्रकार उसके पास करीब 200 दिन पूरे सत्र में शिक्षण कार्य के लिए बचते हैं।

(9) इन 200 शिक्षण दिवसों को निम्न कार्यों में आवंटित करना चाहिये-
(i) विकासात्मक शिक्षण-इसमें अध्यापक पढ़ायेगा।
(ii) मौखिक कार्य.
(iii) लिखित कार्य,
(iv) श्रुति लेख,
(v) द्रुत पाठ,
(vi) व्याकरण.
(vii) रचना (भाषा के लिए केवल).
(viii) अभ्यास कार्य,
(ix) कमजोरी निराकरण आदि।

इन विभिन्न कार्यों में सर्वाधिक समय प्रथम बिन्दु विकासात्मक शिक्षण के लिए देना है और इसमें भी उसे यह निश्चित करना पड़ेगा कि कितना समय वह ज्ञानात्मक उद्देश्य की पूर्ति हेतु पढ़ाये और वह कितना समय अवयोधात्मक कौशलात्मक या रागात्मक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए दे।

प्रत्येक कार्य को सुचारू रूप से सम्पादित करने के लिए योजना की आवश्यकता पडती है।

कक्षा में पढ़ाने के लिए भी योजना की आवश्यकता पड़ती है। सफल शिक्षण के लिए पाठ योजना नितान्त आवश्यक है। विश्व के सभी सफल शिक्षक योजनाबद्ध रूप से शिक्षण कार्य तथा विषय-वस्तु का प्रस्तुतीकरण करते हैं। प्रत्येक सफल शिक्षक के पास योजना होती है। यह बात दूसरी है कि वे अपनी शिक्षण योजनाएँ कागजों पर न लिखकर अपने मनःपटल पर ही अंकित कर लेते हैं। वे अपनी शिक्षण योजनायें अवश्य रखते हैं। वे जानते हैं या यह उनकी आदत बन गई है कि वे विषय-वस्तु का प्रस्तुतीकरण बड़े योजनाबद्ध ढंग से करते हैं। उनका प्रस्तुतीकरण, प्रश्न पूछने का ढंग, व्याख्या, स्पष्टीकरण, शिक्षण क्रियायें आदि सुनिश्चित कार्यक्रम के अनुसार होती है। वे अपने मस्तिष्क में शिक्षण क्रियाओं की एक सुनिश्चित योजना अपने मस्तिष्क में रखते हैं। जहाँ तक प्रारम्भिक विषयों का प्रश्न है। उन्हें अनिवार्य रूप से लिखित पाठ योजना बनानी चाहिये। उसके लिए यह आवश्यक है कि वह सचेतन मन से पाठ-योजना का निर्माण करे, उसका गहन अध्ययन करे तथा उसका अनुसरण करे। उसे अपनी समस्त कक्षा-क्रियाएँ पाठ-योजना के अनुसार संचालित करनी चाहिये। यहाँ यह अवरोध प्रकट किया जाता है कि विद्यालय में जहाँ अध्यापक को एक दिन में सात-सात कालांश शिक्षण कार्य करना पड़ता है। वहाँ इसके लिये यह असम्भव हो जाता है कि वह इतने सारे कालांश के लिये लिखित में दैनिक पाठ योजना निर्मित करे। उसका यह अन्तर दिया जा सकता है कि प्रारम्भ में वह आठ तक दिन तक तो लिखित रूप में विस्तृत पाठ-योजना बनाये, फिर आठ दस दिन तक संक्षिप्त पाठ-योजना बनाये, तदोपरान्त वह एक कागज के टुकड़े पर शिक्षण बिन्दु या अन्य मुख्य क्रियाएँ लिखे यदि उसे यह विश्वास हो जाये कि वह बिना बिन्दुओं के लिखे भी योजनाबद्ध रूप से पढ़ा सकता है तो वह मन में भी पाठ-योजना बना सकता है। जहाँ तक छात्राध्यापकों का प्रश्न है उन्हें तो पाठ-योजना का निर्माण अवश्य ही करना चाहिये। उन्हें पाठ-योजना बनाने की अनेक सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। उन्हें तो निर्देशित करने वाले सुयोग्य प्राध्यापक होते हैं। सहायक-सामग्री उपलब्ध होती है। सन्दर्भ के लिये पुरानी पाठ-योजना होती है। छात्राध्यापकों के सम्बन्ध में एक बात और आवश्यक है कि छात्राध्यापकों को शिक्षण कार्य करते समय पाठ योजनाएँ अपने पास रखनी चाहिये। परम्परा यह है कि छात्राध्यापक कक्षा में पढ़ाते समय पाठ योजना निरीक्षक को देते हैं। यह प्रथा अत्यन्त दोषपूर्ण है। यह ठीक ऐसा ही है जैसे एक इंजीनियर भवन निर्माण का मानचित्र अपने उच्च अधिकारियों को दे दे तथा अपनी स्मृति के (अनुसार) आधार पर ही भवन उसके दरवाजे, खिड़कियाँ आदि बनवाये यदि निरीक्षक पाठ योजना की जाँच पहले ही कर लेता है तो उसे कक्षा में पुनः पाठ योजना देखने की आवश्यकता क्या है। निश्चय रूप से पाठ योजनाएँ कक्षा में छात्राध्यापक के पास ही रहनी चाहिये किन्तु छात्राध्यापक को कक्षा में शिक्षण कार्य करते समय हर समय ही पाठ योजना का सहारा नहीं लेना चाहिए, ऐसा न हो कि वह बिना पाठ-योजना के एक कदम भी पाठ का विकास न कर वास्तव में कक्षा में तो उसे पाठ-योजना का प्रयोग, तथ्य, आँकड़े, सन्दर्भ, रेखाकृतियाँ आदि छात्रों को बताने के लिए करना चाहिए। कभी-कभी विभिन्न कारणों से शिक्षण कार्य में विघ्न पड़ जाता है। जैसे प्रधानाध्यापक से कोई सूचना आ जाय तो शिक्षण-कार्य की श्रृंखला टूट जाती है। इस स्थिति में छात्राध्यापक पाठ-योजना देख सकता है।

1. पाठ-योजना के लाभ

पाठ-योजना निर्माण करने के निम्नांकित लाभ हैं-
(1) पाठ-योजना बनाते समय अध्यापक विभिन्न शैक्षिक उद्देश्यों को ध्यान में रखता है।
(2) क्रमबद्ध शिक्षण के लिए पाठ-योजनायें नितान्त आवश्यक होती हैं।
(3) पाठ-योजनाएँ विषय-वस्तु को मनोवैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत करने में सहायक होती हैं।
(4) पाठ-योजनायें छात्र को बताती हैं कि क्या क्रियायें करनी हैं, किस प्रकार करनी हैं तथा क्यों करनी हैं ?
(5) छात्राध्यापक तथा निरीक्षण दोनों ही जान लेते हैं कि क्या विषय-वस्तु किस प्रकार पढ़ानी है?

2. पाठ-योजना के अंग

पाठ-योजना दो स्तरों पर बनाई जाती है। इकाई स्तर तथा दैनिक स्तर पर सबसे पहले छात्राध्यापक को सम्पूर्ण पाठ से सम्बन्धित इकाई-योजना का निर्माण करना पड़ता है। तदोपरान्त दैनिक शिक्षण के लिए दैनिक पाठ योजनाओं का निर्माण करना पड़ता है। इकाई योजना में निम्न तथ्य दिये जाते हैं-

(1) इकाई का नाम. (2) उप-इकाइयाँ, (3) प्रत्येक उप-इकाई के उद्देश्य,
(4) प्रत्येक उप-इकाई के मुख्य विषय बिन्दु, (5) अध्यापक क्रियायें. (6) छात्र क्रियायें. ,
(7) सहायक सामग्री, (8) मूल्यांकन प्रविधियाँ । इकाई योजना की रूपरेखा आगे प्रस्तुत है-

इकाई-योजना
इकाई का नाम.....कक्षा....विभाग
उप-इकाइयाँ....दिनांक...से......तक
विद्यालय...................


उपइकाई का नाम
शैक्षिक | मुख्य
उद्देश्य | बिन्दु
अध्यापक
क्रियाएँ
छात्र
सहायक सा० मूल्यांकन
क्रियाएँ

दैनिक पाठ-योजना में निम्नांकित बातें दी जाती हैं-

(1) पाठ के उद्देश्य, (2) छात्रों का पूर्व ज्ञान, (3) पद्धति, (4) सहायक सामग्री, (5) प्रस्तावना. (6) उद्देश्य कथन, (7) पाठ का विकास या प्रस्तुतीकरण ।

दैनिक पाठ-योजना
विषय
इकाई
पाठ
कक्षा

दिनांक
समय
कालांश


पाठ के उद्देश्य
ज्ञानात्मक
1.
2.
3.
अवबोधात्मक
1.
2.
3.
कौशलात्मक
1.
2.
3.
पूर्वज्ञान पद्धति.
सहायक सामग्री
प्रस्तावना
उद्देश्य कथन
पाठ का विकास

उद्देश्य    मुख्य बिन्दु    अध्यापक    क्रियाएँ    छात्र क्रियाएँ

बोध प्रश्न
श्यामपट पर सारांश
पुनरावृत्ति प्रश्न
गृह कार्य

उद्देश्य-पाठ पढ़ाने के उद्देश्य छात्रों के व्यवहार में होने वाले परिवर्तन से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित होते हैं। अध्यापक छात्रों के व्यवहार में जो परिवर्तन लाना चाहता है उसी के अनुसार अपने उद्देश्यों का निर्धारण करना चाहिए. छात्रों के व्यवहार में कई क्षेत्रों से सम्बन्धित परिवर्तन हो सकता है। जैसे ज्ञानवर्धन, आत्मीकरण, योग्यताएँ. कौशल, अभिवृत्तियाँ, विश्लेषण, शक्ति तथा रुचि सम्बन्धी फलतः छात्राध्यापक के उद्देश्य भी इन्हीं क्षेत्रों से सम्बन्धित हो सकते हैं।

उद्देश्य लिखते समय कक्षाध्यापक को बड़ी सावधानी रखने की आवश्यकता होती है। जो भी उद्देश्य लिखे जायें अत्यन्त स्पष्ट तथा सुनिश्चित भाषा में होने चाहिए। छात्रों का मानसिक विकास करना या छात्रों के अस्तित्व को विकसित करना अत्यन्त ही अस्पष्ट है एवं अनिश्चित उद्देश्य है। छात्रों को मानसूनी वनों की विशेषताएँ बताना एक स्पष्ट तथा सुनिश्चित उद्देश्य है। अध्यापक को इसी प्रकार से उद्देश्यों का स्पष्टीकरण करना चाहिए। उद्देश्य दो प्रकार से लिखे जा सकते हैं। प्रथम तो शिक्षक की भाषा में और द्वितीय छात्र की भाषा में उत्पत्ति के नियमों का ज्ञान प्राप्त करना छात्रों की भाषा में है। पाठ योजना में उद्देश्यों को छात्रों की भाषा में लिखना सदैव अच्छा रहता है। इससे कई लाभ हैं, प्रथम तो इससे अध्यापक शिक्षा श्रम तथा पाठ्यक्रम दोनों को ही छात्रों के स्तर से देखता है। द्वितीय छात्र के उद्देश्य विशिष्ट विधि तथा रीतियों एवं प्रविधियों को अपनाने को कहते हैं और अन्त में इस प्रकार लिखे गये उद्देश्य कथन के साथ तारतम्यता स्थापित करते हैं। नीचे उद्देश्य कथन तथा छात्र के उद्देश्यों का एक नमूना प्रस्तुत है-

1. शिक्षक के उद्देश्य तथा उद्देश्य कथन
(अ) उद्देश्य छात्रों को भूमि की विशेषताओं से अवगत कराना।
उद्देश्य कथन-आज हम भूमि की विशेषताओं का अध्ययन करेंगे।

2. छात्र के उद्देश्य तथा उद्देश्य कथन
उद्देश्य-भूमि की विशेषताओं का अध्ययन करना।

उद्देश्य कथन-आज हम भूमि की विशेषताओं का अध्ययन करेंगे।

प्रथम उदाहरण में उद्देश्य के अन्तर्गत अध्यापक छात्रों को कुछ बतलाने का प्रयास करता है। जबकि उद्देश्य कथन के अन्तर्गत (अध्यापक छात्रों को) वह छात्रों के साथ मिलकर अध्यापन करने की घोषणा करता है। उद्देश्य सम्पूर्ण विषय से सम्बन्धित होते है-सामान्य तथा विशिष्ट-सामान्य उद्देश्य सम्पूर्ण विषय से सम्बन्धित होते हैं तथा अपने स्वभाव में अत्यन्त व्यापक होते हैं निशिष्ट उद्देश्य पाठ के उद्देश्य होते हैं तथा स्वभाव में विशिष्ट संकुचित निश्चित होते हैं। इस प्रकार पृथक-पृथक् पाठ के पृथक-पृथक् उद्देश्य होते हैं।

(1) पूर्व ज्ञान-नवीन ज्ञान को छात्रों के पूर्व ज्ञान या पूर्वानुभवों में से सम्बन्धित कर देना चाहिए। छात्रों के पूर्व ज्ञान को जाने बिना न तो पाठ योजना ही बन सकती है और न सफलतापूर्वक शिक्षण कार्य ही सम्पादित किया जा सकता है। जिस प्रकार बिना नींव के ज्ञान के शेष भवन खड़ा नहीं किया जा सकता है। ठीक उसी प्रकार बिना पूर्व ज्ञान के ज्ञान पाठ का आगे विकास नहीं किया जा सकता है। किन्हीं-किन्हीं अवस्थाओं में यह सम्भव है कि पाठ या विषय से सम्बन्धित ज्ञान छात्रों को हो ही न, इस स्थिति में नवीन ज्ञान को छात्रों के जीवन से सम्बन्धित कर देना चाहिए।

(2) प्रस्तावना-पाठ योजना में प्रस्तावना का बड़ा महत्त्व है। प्रस्तावना द्वारा अध्यापक निम्न तीनों उद्देश्यों की पूर्ति करता है-

1. छात्रों के पूर्व ज्ञान का पता लगाना।
2. छात्रों के पूर्व ज्ञान तथा नवीन ज्ञान के मध्य सम्बन्ध स्थापित करना।
3. नवीन ज्ञान प्राप्त करने हेतु प्रेरणात्मक तथा प्रभावोत्पादक वातावरण निर्मित करना।

जब नया कालांश प्रारम्भ होता है तो छात्रों के मनःपटल पर उससे पूर्व वाले कालांश में पढ़ाये विषय की घटनायें छायी रहती हैं। प्रस्तावना द्वारा उन घटनाओं को हटाकर छात्रों को नवीन विषयों के ज्ञान को ग्रहण करने हेतु तत्पर किया जाता । प्रस्तावना प्रश्न, कथन कहानी, चित्र, घटना आदि के वर्णन से जितनी अधिक सम्बन्धित होती है वह उतनी अधिक अच्छी होती है।

(3) उद्देश्य-कथन-प्रस्तावना के उपरान्त उद्देश्य-कथन होता है। उद्देश्य-कथन अत्यन्त ही प्रजातांत्रिक भाषा में करना चाहिये। साधारण तथा उद्देश्य कथन 'हमें शब्द से प्रारम्भ करना चाहिये, उद्देश्य कथन आदेशात्मक तथा अधिनायक स्वभाव का नहीं होना चाहिये "मैं तुम्हें राष्ट्रपति के अधिकार पढ़ाऊँगा। एक त्रुटिपूर्ण उद्देश्य कथन है। इसके स्थान पर कहना चाहिये आज हम राष्ट्रपति के अधिकारों का अध्ययन करेंगे।

(4) प्रस्तुतीकरण-पाठ योजना के इस अंग में छात्रों के सम्मुख नवीन ज्ञान प्रस्तुत किया जाता है। प्रस्तुत करते समय अध्यापक सम्पूर्ण विषय-वस्तु को सुविधानुसार दो अन्वितियों में विभक्त कर सकता है। इसी सोपान के अन्तर्गत अध्यापक विभिन्न शिक्षण पद्धतियों तथा प्रविधियों का प्रयोग करता है। यहीं पर विभिन्न प्रकार की श्रव्य-दृश्य सामग्री का प्रयोग किया जाता है।

(5) प्रश्न करना-पाठ योजना में प्रश्नों की रचना करना भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। अध्यापक को अच्छे तथा सार्थक प्रश्नों की रचना करनी चाहिये। अच्छे तथा सार्थक प्रश्नों के सम्बन्ध में हम शिक्षण रीतियाँ नामक अध्ययन में पर्याप्त अध्ययन कर चुके हैं।

(6) समय-तत्त्व-पाठ योजना का निर्माण करते समय अध्यापक को (अ) उपलब्ध समय को भी ध्यान में रखना चाहिये। पाठ योजना में केवल इतनी ही क्रियायें तथा विषय-वस्तु सम्मिलित की जायें जिसे अध्यापक निर्धारित समय में पूरा कर सके इतनी विषय-वस्तु न ली जायें कि (अध्यापक के पास) वह अधूरी ही रह जायें और न इतनी कम ही विषय-वस्तु ली जायें कि अध्यापक के पास समय बचे और उसे विषय-वस्तु के अभाव में कुर्सी पर बैठकर अँगुलियाँ चटकानी पड़ें।

(7) श्यामपट पर कार्य-शिक्षक की पाठ योजना का निर्माण करते समय श्यामपट कार्य को भी ध्यान में रखना चाहिये। अध्यापक को श्यामपट पर सम्पूर्ण सारांश लिख देना चाहिये फिर उसकी नकल छात्रों से करानी चाहिये जब छात्र नकल कर रहे हों तब अध्यापक को उसका निरीक्षण करना चाहिये।

(8) पुनरावृत्ति-इस सोपान के अन्तर्गत छात्रों द्वारा अर्जित ज्ञान का मूल्यांकन किया जाता है। इस मूल्यांकन के लिए विविध प्रकार के प्रश्नों का सहारा लिया जाता है। प्रश्न ऐसे हों जो सम्पूर्ण पाठ से सम्बन्धित हों।

(9) गृह-कार्य-पाठ योजना में गृह-कार्य का बड़ा महत्त्व है। गृह-कार्य से छात्र अर्जित ज्ञान का प्रयोग करना सीखते हैं। गृह-कार्य देते समय अध्यापक को गृह-कार्य की नीचे लिखी विशेषताओं को ध्यान में रखना चाहिये-

1. गृह-कार्य रोचक हो,
2. गृह-कार्य निश्चित हो.
3. गृह-कार्य चुनौती प्रदान करे.
4. गृह-कार्य अन्य विषयों के गृह कार्य को ध्यान में रखकर दिया जाय,
5. गृह-कार्य पाठ के उद्देश्यों से सम्बन्धित हो, 6. गृहकार्य का प्रयोगात्मक पक्ष प्रबल हो।

अभ्यास-प्रश्न

निबन्धात्मक प्रश्न

1. वाणिज्य-शिक्षण में नियोजन की क्या आवश्यकता है? यह नियोजन आप किन-किन स्तरों पर कर सकते हैं ? प्रत्येक स्तर का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
2. इकाई-योजना क्या होती है? यह कब व किस प्रकार बनाई जाती है?
3. बैंक प्रकरण पर चार उपइकाइयों से युक्त एक इकाई योजना बनाइये।
4. पाठ-योजना किसे कहते हैं? यह क्यों तथा कैसे बनाई जाती है?
5. वाणिज्य विषय के किसी एक प्रकरण का चयन कर उसे कक्षा XI में पढ़ाने हेतु 40 मिनट की एक विस्तृत पाठ योजना बनाइये।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

1. दैनिक पाठ योजना के विविध सोपानों का उल्लेख कीजिये।
2. "बैंक के कार्य' प्रकरण पढ़ाने हेतु पाँच प्रस्तावना प्रश्न बनाइये।
3. दैनिक पाठ योजना बनाने के किन्हीं पाँच लाभों का उल्लेख कीजिये।
4. इकाई-योजना के विविध प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
5. वाणिज्य-शिक्षण की वार्षिक योजना क्यों बनाई जाती है?

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. इकाई योजना को शिक्षा जगत में लाने का श्रेय किसको जाता है ?
(अ) हरबर्ट
(ब) रिस्क
(स) वासिंग
(द) हैरप

2. प्रत्येक कार्य को सुचारु रूप से चलाने के लिए योजना की आवश्यकता पड़ती है-
(अ) सत्य (ब) असत्य

उत्तर-1. (अ) हरबर्ट,
2. (अ) सत्य ।

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