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बी एड - एम एड >> वाणिज्य शिक्षण

वाणिज्य शिक्षण

रामपाल सिंह

पृथ्वी सिंह

प्रकाशक : अग्रवाल पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2532
आईएसबीएन :9788189994303

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बी.एड.-1 वाणिज्य शिक्षण हेतु पाठ्य पुस्तक


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वाणिज्य-शिक्षण में मूल्यांकन
(EVALUATION IN COMMERCE TEACHING)

1. मूल्यांकन का अर्थ

"मूल्यांकन वह पद्धति है, जिसके द्वारा हम पूर्व-निर्धारित उद्देश्यों, ध्येयों तथा लक्ष्यों की प्राप्ति की मात्रा को निर्धारित करते हैं। मूल्यांकन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा शिक्षण के मूल्यों तथा उद्देश्यों के मध्य तुलना की जाती है। मूल्यांकन वह पद्धति है जिसके द्वारा अर्जित मूल्यों की जाँच पूर्व निर्धारित उद्देश्यों के प्रकाश में की जाती है। पूर्व-निर्धारित उद्देश्यों तथा प्राप्त मूल्यों के अभाव में वास्तविक मूल्यांकन नहीं हो सकता है। यदि मूल्यांकन का सम्बन्ध पूर्व निर्धारित उद्देश्यों तथा प्राप्त मूल्यों से स्थापित नहीं किया जाता है तो ऐसा मूल्यांकन निरर्थक होता है। पूर्व निर्धारित उद्देश्यों को शिक्षण द्वारा प्राप्त करने की चेष्टा की जाती है। इस चेष्टा के फलस्वरूप मूल्यों की प्राप्ति होती है। इन अर्जित मूल्यों को ज्ञात करने के लिए मूल्यांकन किया जाता है। इसलिए उद्देश्य तथ शिक्षण पद्धतियाँ मूल्यांकन के साथ घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित होती हैं. मूल्यांकन के लिए उद्देश्यों तथा शिक्षण पद्धतियों का ज्ञान आवश्यक है। हमें यह जानना आवश्यक हो जाता है कि कहाँ तक उद्देश्यों की प्राप्ति हुई तथा कहाँ तक शिक्षण पद्धतियाँ सफल हुई यह जानने के लिए हम मूल्यांकन का सहारा लेते हैं, इस प्रकार उद्देश्य, शिक्षण पद्धतियाँ तथा मूल्यांकन में घनिष्ट सम्बन्ध है। इस त्रिकोणात्मक सम्बद्धता को निम्नांकित रूप में अंकित कर सकते हैं-

उद्देश्य
मूल्यांकन    शिक्षण पद्धतियाँ

2. मूल्यांकन एवं मापन

बाह्य रूप से मूल्यांकन एवं मापन में कोई अन्तर दिखलायी नहीं देता है, पर वास्तव में इन दोनों में अन्तर है, यह अन्तर कार्यगत न होकर विशेषतागत है। मापन एक स्थिति का वर्णन करता है, मूल्यांकन उस स्थिति की विशेषता बतलाता है। उदाहरण के लिए यदि कोई छात्र किसी परीक्षा में 80 अंक प्राप्त करता है तो यह मापन है पर यह मापन परीक्षा स्तर के सम्बन्ध में पूरा-पूरा ज्ञान प्रदान नहीं करता है। हम इस अंक से यह पता नहीं लगा सकते हैं कि-81 अंक प्राप्त करने वाला छात्र उत्तम है या सामान्य। यह हमें नहीं बतलाता कि छात्र से अधिक अंक पाने वाले तथा कम अंक पाने वाले छात्र कितने हैं। इन बातों का ज्ञान हमें मूल्यांकन कराता है। मूल्यांकन छात्र के व्यवहार में हुए परिवर्तनों से सम्बन्धित समस्त सूचनाएँ एकत्रित करने तथा उनकी विवेचना करने की पद्धति है। इस प्रकार मापन का क्षेत्र सीमित होता है जबकि मूल्यांकन का क्षेत्र व्यापक होता है। वास्तव में मापन मूल्यांकन का ही एक अंग है।

3. मूल्यांकन के उद्देश्य

मूल्यांकन निम्नांकित उद्देश्यों की पूर्ति करता है-
(1) मूल्यांकन परीक्षा प्रणाली में सुधार करता है।
(2) मूल्यांकन शिक्षण पद्धति में सुधार करता है।
(3) मूल्यांकन उत्तम पाठ्यक्रम पर बल देता है।
(4) मूल्यांकन विद्यालय व्यवस्था की जाँच करता है
(5) मूल्यांकन छात्रों की कठिनाइयों का पता लगाता है।
(6) मूल्यांकन उपचारात्मक शिक्षण पर बल देता है।
(7) मूल्यांकन व्यक्तिगत छात्रों का निर्देशन करता है।
(8) मूल्यांकन शिक्षण पद्धतियों की सफलता का पता लगाता है।
(9) मूल्यांकन विद्यालय की समस्त क्रियाओं की सफलता को आँकता है।
(10) मूल्यांकन शिक्षक की योग्यता को मापता है।

4. वाणिज्यशास्त्र में मूल्यांकन की आवश्यकता

वाणिज्यशास्त्र शिक्षण के कुछ निश्चित उद्देश्य होते हैं। इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए पाठ्यक्रम की संरचना की जाती है। अतः पाठ्यक्रम व उसकी शिक्षण विधियों की वास्तविक जाँच के लिए मूल्यांकन की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही साथ विषय का अध्यापक भी यह जानना चाहता है कि उसका शिक्षण किस सीमा तक सफल रहा है। छात्रों ने उसके द्वारा प्रदान की गई शिक्षा को आत्मसात् किया है इसकी जाँच हेतु परीक्षा का उपयोग किया जाता है। इसके साथ ही साथ वाणिज्य विषय का छात्र भी यह जानना चाहता है कि उसे कितना ज्ञानार्जन हुआ है, वह विषय का ज्ञान प्राप्त करने में कहाँ तक सफल हुआ है। बालकों के अभिभावक भी यह जानने को उत्सुक रहते हैं कि उनके बच्चों की योग्यता सीमा क्या रही है। इस प्रकार मूल्यांकन शिक्षक, छात्र व अभिभावक तीनों के लिए महत्त्वपूर्ण है। वाणिज्य विषय में हम बालकों के व्यक्तित्व, बुद्धि, ज्ञानोपार्जन, रुचि आदि का माप करते हैं। हम इसमें यह पता लगाते हैं कि वाणिज्य-विषय के छात्रों का व्यक्तित्व कैसा है, उनमें कितनी बुद्धि क्षमता है, विषय के प्रति उनकी रुचि कितनी है, इनके लिए वाणिज्य विषय में अनेक परीक्षाओं का उपयोग किया जाता है।

5. वाणिज्य शिक्षण में मूल्यांकन के क्षेत्र
(1) शैक्षिक अभिरुचि,
(2) शैक्षिक उपलब्धि.
(3) वैयक्तिक रुचियाँ
(4) रचनात्मकता,
(5) विशिष्ट योग्यताएँ।
6. वाणिज्यशास्त्र में मूल्यांकन के साधन

आधुनिक विचारधाराओं के अनुसार छात्र का सही मूल्यांकन केवल विद्यालय विषयों में परीक्षा के परिणामों से ही नहीं हो सकता है। वास्तव में ये परीक्षाएँ तो मूल्यांकन का एक अंग मात्र हैं। वाणिज्य विषय में छात्रों का सही मूल्यांकन करने के लिए साधारणतया निम्न परीक्षाओं एवं रीतियों का प्रयोग आवश्यक होता है-

परीक्षाएँ
(1) निष्पत्ति परीक्षाएँ (Achievement Tests),
(2) बुद्धि परीक्षाएँ (Intelligence Tests),
(3) व्यक्तित्व परीक्षाएँ (Personality Tests)।

रीतियाँ
(1) आकस्मिक निरीक्षण अभिलेख (Anecd-tal Records),
(2) आत्म-कथा (Autobiography),
(3) निर्धारण (Rating), ,
(4) व्यक्ति अध्ययन (Case Study),
(5) समाजमिति (Sociogram),
(6) प्रश्नावली (Questionnaire),
(7) साक्षात्कार (Interview),
(8) निरीक्षण (Observation),
(9) संचयी अभिलेख-पत्र (Cumulative Record Card)।

परीक्षा के रूप

मूल्यांकन सामान्यतया दो रूपों में किया जाता है
अ-निबन्धात्मक परीक्षा के द्वारा।
ब-वस्तुनिष्ठ परीक्षा के द्वारा।

(अ) निबन्धात्मक परीक्षाएँ-न केवल भारत में ही वरन् विश्व के अनेक राष्ट्रों में बड़े लम्बे समय से निबन्धात्मक परीक्षाओं का प्रभुत्व रहा। विश्व के कुछ प्रगतिशील कहे जाने वाले देशों में इन परीक्षाओं को अपना महत्त्व खोना पड़ा है। इस प्रकार की परीक्षाओं में पाठ्यक्रम के कुछ अंशों पर ही प्रश्न दे दिए जाते हैं, छात्र उन प्रश्नों का उत्तर निर्धारित समय में अपनी स्वतन्त्र भाषा में इच्छानुसार रूप में लिखते हैं।

निबन्धात्मक परीक्षा के गुण

निबन्धात्मक परीक्षा में निम्नांकित गुण पाये जाते हैं-
(1) इन परीक्षाओं से छात्रों की भावव्यक्त क्षमता का बोध होता है।
(2) इन परीक्षाओं के प्रश्नपत्र सरलता से बनाये जा सकते हैं।
(3) छात्र इन्हें सरलता से समझ सकते हैं।
(4) परीक्षाएँ छात्रों को पर्याप्त स्वतन्त्रता प्रदान करती हैं।
(5) निर्माण, समय तथा धन की दृष्टि से प्रश्नपत्र मितव्ययी होते हैं।
(6) ये परीक्षाएँ समूह परीक्षण के लिए उत्तम होती हैं।
(7) ये परीक्षाएँ रचनात्मक चिन्तन को प्रोत्साहित करती हैं।
(8) छात्रों को इन परीक्षाओं के लिए सरलतापूर्वक प्रशिक्षित किया जा सकता है। वेस्ले और रॉन्सकी ने पुस्तक में निबन्धात्मक परीक्षाओं के कई लाभ बतलाये हैं।

निबन्धात्मक परीक्षा के दोष

निबन्धात्मक परीक्षा में कई दोष पाये जाते हैं-
(1) निबन्धात्मक परीक्षाओं में विश्वसनीयता नहीं होती है।
(2) निबन्धात्मक परीक्षाओं में वैषयिकता नहीं होती है।
(3) इन परीक्षाओं की जाँच काफी श्रम एवं समय चाहती है
(4) इस प्रकार की परीक्षा में प्रश्न-पत्र पाठ्यक्रम के थोड़े अंश तक ही फैले होते हैं।
(5) सही उत्तर न जानते हुए भी छात्र अन्दाज से उत्तर लिख सकते हैं।

दोष दूर करने के उपाय

निबन्धात्मक परीक्षाओं में व्याप्त दोषों को अध्यापक अपनी सावधानी से काफी मात्रा में दूर कर सकता है। अध्यापक को इन दोषों को दूर करने हेतु निम्नांकित सुझावों को ध्यान में रखना चाहिए---

(1) प्रश्नों का निर्माण बड़ी सावधानी से किया जाय। ऐसे प्रश्नों की रचना की जाय कि छात्र उत्तर देते समय किसी प्रकार का धोखा न दे पायें।
(2) प्रश्न सम्पूर्ण पाठ्यक्रम पर समान रूप से वितरित किये जायें।
(3) सम्भवतः प्रश्नपत्र निर्माता एवं मूल्यांकनकर्ता एक ही व्यक्ति रखा जाय।
(4) छात्रों द्वारा प्रदत्त उत्तरों पर अंक प्रदान करने का कार्य अनुभवी व्यक्तियों द्वारा किया जाय।
(5) सभी छात्रों के उत्तरों को अंक प्रदान करने का एक निश्चित मान तथा विधि अपनाई जाय।

(आ) वस्तुनिष्ठ परीक्षा-वस्तुनिष्ठ परीक्षाएँ वस्तुस्थिति पर आधारित होती हैं। इनमें उत्तर देने की छात्रों को स्वतन्त्रता नहीं होती है। छात्र अपनी इच्छा से चाहे जो कुछ, चाहे जिस प्रकार उत्तर नहीं दे सकते हैं। प्रत्येक प्रश्न का एक विशिष्ट उत्तर होता है। छात्र से वही विशिष्ट उत्तर देने की आशा की जाती है। यदि छात्र का उत्तर उस विशिष्ट उत्तर से भिन्न होता है तो वह गलत समझा जाता है। इस कारण इन्हें विशिष्टोत्तरात्मक परीक्षाएँ भी कहते हैं। इनकी दूसरी विशेषता होती है इनके उत्तर अत्यन्त संक्षिप्त प्रायः एक शब्द में होते हैं।

वस्तुनिष्ठ परीक्षा के गुण

वस्तुनिष्ठ परीक्षा में निम्नांकित गुण होते हैं-

(1) यह सम्पूर्ण पाठ्यक्रम पर फैली होती है।
(2) छात्र अध्यापक को धोखा नहीं दे सकते हैं।
(3) उत्तर देना सरल होता है।
(4) उत्तरों पर अंक प्रदान करना सरल होता है।
(5) पक्षपातहीन रूप में अंक प्रदान किए जाते हैं।
(6) अधिक विश्वसनीय होती है।
(7) इनमें छात्रों के ज्ञान के साथ तर्क एवं निर्णय शक्ति का पता चलता है।

वस्तुनिष्ठ परीक्षा के दोष

(1) प्रश्नपत्र निर्माण में बहुत समय व श्रम लगता है।
(2) इनमें अन्दाज से उत्तर देने की सम्भावना बहुत होती है।
(3) भाषा शक्ति और भाव व्यक्त करने की क्षमता का इनसे पता नहीं चलता।
(4) इनमें नकल करने के अवसर बढ़ जाते हैं।
(5) इनमें समय तत्त्व का बड़ा ध्यान रखना पड़ता है।

वस्तुनिष्ठ परीक्षा के प्रकार

वस्तुनिष्ठ परीक्षा के प्रश्न मुख्यतया निम्न प्रकार के होते हैं-

(1) मिलान पद प्रश्न (Matching Type Questions)-इस प्रकार के प्रश्न उस समय अत्यन्त सहायक होते हैं जब हम किसी विशिष्ट सूचना की परीक्षा लेना चाहते हैं और जहाँ पर पूर्ण पुनःस्मरण की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इनके द्वारा दो तथ्यों में सम्बन्ध स्थापित करने की योग्यता तथा तथ्यों का वर्गीकरण करने की योग्यता की जाँच भी भली प्रकार हो सकती है।

इन प्रश्नों में कुछ सम्बन्धित तथ्यों को दो समूहों में रखा जाता है। एक समूह ज्यों का त्यों रहने दिया जाता है जबकि दूसरा समूह व्यवस्थित कर दिया जाता है। छात्रों से इस अव्यवस्थित समूह को व्यवस्थित करने को कहा जाता है। नीचे एक उदाहरण प्रस्तुत है-

निर्देश-नीचे कुछ स्थानों के नाम दिये गये हैं। इनके सामने अव्यवस्थित रूप में उन स्थानों पर प्रसिद्ध कारखानों के नाम दिये गये हैं। प्रत्येक स्थान पर सम्बद्ध कारखाने का नाम व्यवस्थित रूप में लिखिए-

अ-चौलपुर        सीमेंट
ब-चित्तौड़गढ़        चीनी
स-जयपुर        काँच
द-कोटा        खाद
य-भोपाल, सागर    सूती कपड़ा

(2) रिक्त स्थान की पूर्ति प्रश्न-इस प्रकार के प्रश्नों के द्वारा एक विशिष्ट सूचना  सम्बन्धी जाँच की जाती है और प्रमुख रूप से किसी विशिष्ट नाम, तारीख, संख्या या स्थान का नाम इन प्रश्नों के द्वारा पूछा जाता है। नीचे इस प्रकार के प्रश्न का उदाहरण प्रस्तुत है।

निर्देश-नीचे दिये गये वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति उचित शब्द लिख कर करो-

(1) बिल्टी (R/R)...... प्रसंविदा है जो माल भेजने वाले के बीच होता है।
(2) बैंकों का राष्ट्रीयकरण' ..........में हुआ था।
(3) जर्नल की प्रविष्टि को खाते में हस्तान्तरण करने की क्रिया को .............'कहते है।
(4) निकृष्ट मुद्रा परिचलन नियम को" ........""ने प्रतिपादित किया था।
(5) भारत के वाणिज्य मन्त्री...." हैं।

(3) सत्यासत्य प्रश्न-इस प्रकार के प्रश्न सबसे अधिक मात्रा में प्रयोग किये जाते हैं। तकनीकी दृष्टि से इस प्रकार के प्रश्न सर्वोत्तम माने जाते हैं। इस प्रकार के प्रश्नों के अन्तर्गत कुछ सत्य और कुछ असत्य तथ्य दिये होते हैं। तथ्यों के सम्मुख 'सत्य-असत्य लिख दिया जाता है। छात्रों को सत्य के आगे सत्य व असत्य के आगे असत्य लिखना होता है।

निर्देश-नीचे कुछ तथ्य दिये जा रहे हैं उन पर असत्य या सत्य पर निशान लगाइये-

(1) लेजर से तलपट तैयार किया जाता है        सत्य/असत्य
(2) खांता-बही से विभिन्न खातों की स्थिति का पता चलता है।        सत्य/असत्य
(3) बैंक किसी चैक का भुगतान नहीं करता है तो उसे अनादृत चैक कहते हैं।    सत्य/असत्य
(4) मुद्रा छापने का कार्य सरकार करती है।        सत्य/असत्य
(5) फुटकर व्यापारी अनेक वस्तुओं का व्यापार कर सकते हैं।        सत्य/असत्य

(4) अपवर्त्य-चयन प्रश्न (Multiple Choice Tests)-इस प्रकार की परीक्षाओं में कुछ प्रश्न दिये होते हैं तथा उनके सम्मुख ही कई शब्द दिये होते हैं। इन शब्दों में एक शब्द सही उत्तर होता है बाकी गलत। छात्रों से सही उत्तर वाले शब्दों को रेखांकित करने को कहा जाता है। इस प्रकार के कुछ उदाहरण नीचे दिये गये हैं-

निर्देश-नीचे कुछ प्रश्न दिये गये हैं। उनके सामने कुछ उत्तर हैं जिनमें एक सही उत्तर है, बाकी सब गलत हैं। सही उत्तर वाले शब्दों के नीचे रेखा खींच दीजिए-

(1) माल अग्नि से नष्ट हो गया। इसका लेखा किया जायेगा।
(a) विक्रय बहीं में,
(b) मुख्य जर्नल में,
(c) विक्रय वापसी बही में.
(d) क्रय वापसी बही में.
(e) क्रय बही में।

(2) जो वस्तु आती है उसे नाम करो जो जाती है उसे जमा करो' जर्नल प्रविष्टि का नियम है-
(a) व्यक्तिगत खातों के लिए.
(b) अवास्तविक खातों के लिए.
(c) आय व्यय खातों के लिए.
(d) वास्तविक खातों के लिए,
(e) सभी प्रकार के खातों के लिए।

(3) मुख्य जर्नल में प्रारम्भिक प्रविष्टि की जाती है माल के-
(a) उधार क्रय की.
(b) नकद विक्रय की क्रय वासपी की.
(c) अग्नि से क्षतिग्रस्त हो जाने की,
(e) विक्रय वापसी की।

(4) बहीखातों की गणितीय शुद्धता की जाँच करने हेतु बनाया जाता है-
(a) चिट्ठा,
(b) व्यापार खाता,
(c) तलपट,
(d) लाभ-हानि खाता,
(e) उदरत खाता।

(5) सरल स्मरण प्रश्न-इस प्रकार की परीक्षा में ऐसे प्रश्न पूछे जाते हैं जिनका उत्तर अत्यन्त संक्षिप्त साधारणतया एक या दो शब्दों में होता है। नीचे इस प्रकार के प्रश्नों के कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं-

(1) बहीखाते की दोहरी लेखा पद्धति की अन्तिम अवस्था का नाम क्या है ?
(2) चैक कहाँ भुनाया जाता हैं ?
(3) एक व्यापारी जो सहायक बहियों नहीं रखता वह खाते किस पुस्तक से बनायेगा?
(4) अन्तिम खाता बनाने में सुगमता की दृष्टि से तलपट बनाने की उपयुक्त विधि कौन-सी है?
(5) चैक में राशि कितनी बार लिखी जाती है।

उत्तम मूल्यांकन के लक्षण

(1) विश्वसनीयता-कोई भी प्रविधि तभी विश्वसनीय कहलायेगी जबकि उसके लगातार प्रयोग करने पर एक से परिणाम प्रदान करे। प्रविधि की पूर्ण विश्वसनीयता में अनेक बाधाएँ आती हैं, जैसे व्यक्तियों की उनकी योग्यताओं की विभिन्न अवसरों तथा दशाओं की भिन्नतायें हैं।

(2) वस्तुनिष्ठता-वस्तुनिष्ठ प्रविधि वह है जिसके द्वारा प्राप्त निष्पादन सभी निर्णायक देखकर एक ही निर्णय पर पहुँचे। दूसरे शब्दों में छात्र के निष्पादन पर निर्णायक की भावनाओं, विचारों, ईर्ष्या तथा द्वेष का प्रभाव न पड़े।

(3) वैधता-कोई भी प्रविधि अथवा परीक्षण उस सीमा तक वैध है जिस सीमा तक वह उसे मानता है तथा जिसके लिए उसका निर्माण किया है। कोई भी प्रविधि या परीक्षण पूर्ण वैध नहीं होता है क्योंकि यह व्यक्तियों के मानसिक गुणों को उनके व्यवहार के माध्यम से मापता है।

(4) मानक-शिक्षा में मानक का अर्थ तुलना का वह प्रतिमान है जिसके लिए समान समूह के विभिन्न व्यक्ति हों। दूसरे शब्दों में मानक की वर्तमान उपलब्धि क्या है. इसकी ओर संकेत करता है। मूल्यांकन के लिए छात्रों को कक्षा, आयु तथा बुद्धि आदि के आधार पर समूह बनाकर उनकी तुलना की जाती है ताकि सही स्थिति का ज्ञान हो जाये।

(5) विभेदीकरण-विभेदीकरण का प्रयोजन छात्रों की योग्यता तथा अयोग्यता का पता लगाना है। उत्तम मूल्यांकन वही है जो मेधावी, कमजोर तथा औसत छात्रों का पता लगा सके। इसलिए परीक्षा में सभी तरह के प्रश्न पूछे जाते हैं।

(6) व्यापकता-उत्तम मूल्यांकन की व्यापकता का अर्थ है कि उसमें पाठ्यक्रम में सम्मिलित अधिक से अधिक तथ्य शामिल किये जायें। यह केवल आंशिक तथ्यों का प्रतिनिधित्व न करें।

(7) व्यावहारिकता-जब तक मूल्यांकन प्रविधि में व्यावहारिकता सरलता से प्रयोग के योग्य नहीं है तो यह व्यर्थ है। इसको वास्तविक सरल, आकर्षक और रुचिपूर्ण बनाया जाय ताकि इसका प्रयोग सभी कर सकें।

इस प्रकार उत्तम मूल्यांकन के लक्षण हम उपरोक्त प्रकार से बतला सकते हैं।

वाणिज्य-विषय के कार्यक्रमों का मूल्यांकन

विद्यालयों में जिस प्रकार विद्यालय के विभिन्न विषयों व उनके विभिन्न क्रियाकलापों का मूल्यांकन आवश्यक है। ठीक उसी प्रकार आज के युग के महत्त्वपूर्ण विषय वाणिज्य विषय का तथा उसके कार्यक्रमों का मूल्यांकन भी आवश्यक है। विद्यालय में विषय के अन्तर्गत जो भी सिखाया जा रहा है, जो कार्यक्रम क्रियाशील है, वह सफल है, या नहीं, समय. शक्ति व धन का सदुपयोग हो रहा है या नहीं इसकी जाँच के लिए मूल्यांकन आवश्यक प्रक्रिया है। मूल्यांकन से कार्यक्रमों के स्तर की जाँच भी आसानी से की जा सकती है तथा उनकी सफलता व असफलता को उचित रूप से आँका जा सकता है, इसके आधार पर निर्देशन कार्यक्रम संचालित किये जा सकते हैं। इससे छात्रों की रुचि व उनकी माँग में भी समन्वय स्थापित कराया जा सकता है। विषय के कार्यक्रमों के मूल्यांकन के तहत हमें यह भी देखना चाहिए कि जिन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मूल्यांकन किया गया था वे हमें प्राप्त हुए या नहीं। विषय व तत्सम्बन्धी कार्यक्रमों में क्या-क्या कठिनाइयाँ आयीं व क्या-क्या कमियों रहीं तथा उनके क्या कारण थे इससे अध्यापकों को भी यह लाभ होगा कि वे भी कार्यक्रमों की सफलता व असफलता व उनके कारणों से जानकार हो सकेंगे तथा उसके आधार पर आगे चलकर कार्यक्रमों की उचित रूपरेखा बना सकेंगे तथा उस आधार पर निर्देशन सुविधाओं का भी प्रसार कर सकेंगे।

मूल्यांकन के निष्कर्ष

विद्यालय के किसी विषय या कार्यक्रम का मूल्यांकन करते समय विद्यालय के कई घटकों का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है, वाणिज्य-शास्त्र के कार्यक्रमों पर भी विद्यालय की निम्न बातों का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है-

(1) विद्यालय का प्रबन्ध,
(2) विद्यालय की आर्थिक स्थिति,
(3) पाठ्यक्रम.
(4) मूल्यांकन,
(5) अध्यापक वर्ग,
(6) पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाएँ।

वाणिज्य-शास्त्र के मूल्यांकन के निष्कर्ष

डॉ. एन. हसन ने अपनी पुस्तक वाणिज्य शिक्षण के अध्याय “माध्यमिक विद्यालयों में वाणिज्य कार्यक्रम का मूल्यांकन में मूल्यांकन के अग्र निष्कर्ष बतलाये हैं-

(1) अध्यापक वर्ग.
(2) भौतिक सुविधाएँ.
(3) अनुदेश कार्यक्रम, पाठ्यक्रम एवं समय तांत्रिक,
(4) अनुदेश क्रियाएँ.
(5) अनुदेश सामग्रियाँ और सुविधायें,
(6) पाठान्तर सहगामी क्रियाएँ,
(1) सामाजिक सम्बन्ध एवं स्रोत,
(8) निर्देशन और नौकरी।

अभ्यास-प्रश्न

निबन्धात्मक प्रश्न

1. मूल्यांकन का अर्थ स्पष्ट कीजिये तथा बताइये यह मापन से किस प्रकार भिन्न है? वाणिज्य में छात्रों की उपस्थिति मापन हेतु कुछ साधनों का परिचय दीजिये।
2. वाणिज्य में मूल्यांकन की क्या आवश्यकता है ? इस हेतु आप कौन-कौन से कथन अपना सकते हैं? संक्षेप में परिचय दीजिये।
3. वाणिज्य विषय की मूल्य उपलब्धि का मूल्यांकन करने हेतु प्रयुक्त किये जाने वाले निबन्धात्मक प्रश्नों के गुण व दोषों का उल्लेख कीजिये तथा बताइये इनके दोषों को किस प्रकार हल किया जा सकता है?
4. वाणिज्य विषय की छात्र-उपलब्धियों के मापन हेतु वस्तुनिष्ठ-प्रश्नों के गुण दोष तथा विधि प्रकारों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिये।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

1. मूल्यांकन का अर्थ बताइये।
2. वाणिज्य विषय के किसी एक शीर्षक का कथन कर उस पर पाँच वस्तुनिष्ठ प्रश्नों की रचना कीजिये।
3. बैंक समाधान विवरण' पर ज्ञानात्मक उद्देश्य के मापन हेतु चार वस्तुनिष्ठ प्रश्न बताइये।
4. वस्तुनिष्ठ परीक्षा के दोष बताइये।
5. विविधि प्रकार के वस्तुनिष्ठ प्रश्नों का परिचय दीजिये।
6. वाणिज्य विषय के कार्यलयों का मूल्यांकन आप किस प्रकार करेंगे? संक्षेप में लिखिये।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. वास्तव में मापन का ही एक अंग है।
2. तकनीकी दृष्टि से किस प्रकार के प्रश्न सर्वोत्तम माने जाते हैं ?
(अ) रिक्त स्थान की पूर्ति प्रश्न
(ब) सत्यासत्य प्रश्न
(स) अपवर्त्य चयन प्रश्न
(द) मिलान पद प्रश्न

उत्तर-1. मूल्यांकन, 2. (ब) सत्यासत्य प्रश्न ।

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