बी एड - एम एड >> वाणिज्य शिक्षण वाणिज्य शिक्षणरामपाल सिंहपृथ्वी सिंह
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बी.एड.-1 वाणिज्य शिक्षण हेतु पाठ्य पुस्तक
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व्यापार-पद्धति शिक्षण
(TEACHING OF COMMERCIAL PRACTICE)
व्यापार-पद्धति के अन्तर्गत मोटे तौर पर हम व्यावसायिक कार्यक्रम के
संचालनक्रय-विक्रय, समय एवं श्रम बचत, यन्त्रों के प्रयोग, पत्रादि की
सुरक्षा एवं रखरखाव,कार्य-बंटन, पत्र-व्यवहार आदि तत्वों से सम्बन्धित तथ्यों
को सम्मिलित करते हैंकार्यालय किसी भी व्यवसाय का हृदय होता है जहाँ से
व्यवसाय से सम्बन्धित सभीक्रियायें संचालित होती हैं। यहीं से बैंक, बीमा तथा
सरकारी संस्थानों के साथ सम्पर्कस्थापित किये जाते हैं। ये सभी तत्व
व्यापार-पद्धति के अन्तर्गत आते हैं। व्यापार-पद्धति के अन्तर्गत ही हम बैंक,
बीमा तथा अन्य सरकारी संस्थानों के सम्बन्ध में अध्ययन करतेहैं। फाइलिंग,
पत्र-व्यवहार, श्रम-विभाजन, क्रय-विक्रय, बाजार आदि व्यापार-पद्धति के ही
अन्तर्गत आते हैं। अतः व्यापार-पद्धति शिक्षण के द्वारा छात्रों को इन्हीं
समस्त प्रकार के तत्वों का ज्ञान कराया जाता है।
भारतवर्ष में व्यापार-पद्धति विषय को विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसे
लिपिकीय पद्धति, कार्यालय पद्धति, सचिवीय पद्धति आदि-आदि। इस विषय का नाम कुछ
भी हो विषय-वस्तु सब की एक जैसी है। भारतवर्ष के विभिन्न राज्यों में शिक्षा
व्यवस्था तथा शिक्षा-प्रणालियाँ पृथक-पृथक हैं। इस कारण इस विषय का शिक्षण
कहीं नवीं कक्षासे प्रारम्भ होता है तो कहीं ग्यारहवीं कक्षा से प्रारम्भ
किया जाता है। कुछ राज्यों में कक्षाआठवीं से ही वाणिज्य-विषय के सामान्य
शिक्षण की व्यवस्था है, जहाँ पुस्तपालन तथा-कार्यालय पद्धति का प्रारम्भिक
ज्ञान छात्रों को प्रदान किया जाता है।
वाणिज्य के क्षेत्र में व्यापार-पद्धति ज्ञान का बड़ा ही महत्व है।
व्यापार-पद्धति के ज्ञान से छात्रों में किसी भी कार्यालय के संचालन तथा उसके
दिन-प्रतिदिन के कार्यों के सम्पादन में कुशलता आती है। विकासमान भारत
तीव्रगति से औद्योगिक तथाव्यावसायिक प्रगति कर रहा है। प्रगति की इस राह में
नये-नये व्यावसायिक कार्यालयस्थापित हो रहे हैं। इन कार्यालयों के सफल संचालन
हेतु योग्य एवं कुशल कर्मचारियोंकी बड़ी मात्रा में आवश्यकता है। इतनी बड़ी
मात्रा में कुशल एवं दक्ष कर्मचारियों कीशिक्षा के लिए व्यावसायिक शिक्षा
विशेषकर व्यापार पद्धति ज्ञान की शिक्षा परमावश्यकहै। व्यापार-पद्धति ज्ञान
की बढ़ती हुई माँग को देखते हुए ही आज अधिक से अधिकविद्यालयों में वाणिज्य
शिक्षा दी जा रही है. तथा वाणिज्य शिक्षा के लिए नये-नयेविद्यालय स्थापित
किये जा रहे हैं। आज तो व्यापार-पद्धति के ज्ञान की महिलाओं में भी माँग हो
रही है इसीलिए महिला शिक्षा के क्षेत्र में भी आज व्यापार पद्धति ज्ञान
कीबड़ी माँग है ।व्यापार-पद्धति शिक्षण के उद्देश्यशिक्षक को व्यापार पद्धति
विषय का शिक्षण नीचे लिखे शिक्षण-उद्देश्यों को ध्यान मेंरखकर करना उचित
है-1.ज्ञानात्मक
(1) छात्रों को किसी व्यावसायिक कार्यालय के आन्तरिक वातावरण का ज्ञान प्रदान
करना।
(2) कार्यालय की विभिन्न फाइलों, रजिस्टरों तथा अन्य पत्र तथा कागजों की
जानकारी देना।
(3) कार्यालय में समय एवं श्रम बचाने वाले यन्त्रों तथा उपकरणों का ज्ञान
कराना।
4) डाकघर, बैंक, बीमा तथा अन्य सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं का परिचय
देना।
(5) गणित तथा भाषा जैसे आधारभूत विषयों का सामान्य ज्ञान प्रदान करना।
2. अवबोधात्मक उद्देश्य
(1) विभिन्न प्रकार के उपकरणों के मध्य तुलना करना सिखाना।
(2) फाइलिंग, चैक, प्रालेख, प्रामजरी नोट, हुण्डी जैसे महत्वपूर्ण प्रपत्रों
को समझाकर उनके अन्तर को स्पष्ट कराना।
(3) बैंक, बीमा, डाकघर आदि द्वारा प्रयोग किये जाने वाले प्रपत्रों को तुलना
वअन्तर कराना।
(4) विभिन्न प्रकार के पत्रों की तुलना व अन्तर कराना।
(5) तथ्यों व प्रपत्रों का वर्गीकरण तथा श्रेणी विभाजन कराना।
3. कौशलात्मक उद्देश्य
(1) कार्यालय कार्यों को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने का कौशल विकसित करना।(2)
पत्र-व्यवहार करने तथा उन्हें सुरक्षित रखने की दक्षता का विकास करना।
(3) विभिन्न समय तथा श्रम बचाने वाले उपकरणों को प्रयोग करने में कुशलता
काविकास करना।
(4) कार्यालय वातावरण का साथ समायोजन स्थापित कर सकने का कौशलविकसित करना।
4. अभिरुच्यात्मक उद्देश्य
(1) कार्यालय-कार्यों को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने के लिए आवश्यक गुणों
काछात्रों में विकास करना।
(2) छात्रों में कार्यालय कार्यों के प्रति नवीन दृष्टिकोण तथा अभिरुचि का
विकास करना।
(3) समाज, राष्ट्र एवं व्यक्ति स्वयं के जीवन में कार्यालय तथा कार्यालय
प्रणालीके महत्व को समझने में छात्रों की सहायता करना।
व्यापार-पद्धति शिक्षण योजनाये
व्यापार पद्धति का व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करने के लिए आज शिक्षण जगत में कई
शिक्षण योजनायें प्रचलित हैं। इन विभिन्न शिक्षण योजनाओं का प्रयोग विद्यालय
के पास उपलब्ध साधन तथा सुविधाओं को देखकर किया जाता है। किसी विद्यालय के
अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में आधुनिक साधन एवं सुविधायें उपलब्ध होती हैं जबकि
कुछअन्य विद्यालयों के पास इनका अभाव होता है। इन दोनों ही प्रकार के
विद्यालयों मेंपृथक-पृथक प्रकार की शिक्षण-योजनायें चलानी पड़ती हैं। इस समय
व्यापार-पद्धतिशिक्षण की सामान्यतः नीचे लिखी शिक्षण योजनायें प्रचलित हैं।
(1) घूर्णन योजना (Rotation Plan)
(2) अनुबन्धित घूर्णन योजना (Expanded Rotation Plan)
(3) कार्यालय प्रारूप योजना (Office Model Plan)
(4) बैटरी-योजना (Battery Plan)
(5) सहकारी योजना (Co-operative Plan)
नीचे इन सभी योजनाओं का सामान्य परिचय प्रस्तुत है-
(1) घूर्णन योजना (Rotation Plan)
कुछ शिक्षाविद् इस योजना को सरल घूर्णन या सामान्य घूर्णन योजना के नाम से भी
पुकारते हैं। इस योजना के अन्तर्गत शिक्षक अपनी सुविधा, छात्रों की संख्या
तथाविद्यालय के पास उपलब्ध उपकरणों एवं साधन तथा सुविधाओं को ध्यान में रखकर
कक्षाके समस्त छात्रों के छोटे-छोटे समूह बना लेता है। प्रत्येक समूह एक पृथक
उपकरण,यन्त्र या विभाग में कार्य करता है। यह एक समूह उस उपकरण या यन्त्र या
विभाग मेंउस समय तक कार्य करता है जब तक कि समूह के सभी सदस्य उस पर कार्य
करनेकी दक्षता नहीं प्राप्त कर लेते हैं। तत्पश्चात् समूहों का घूर्णन होता
है अर्थात् प्रथमसमूह दूसरे के स्थान पर, दूसरा तीसरे के स्थान पर तथा तीसरा
चौथे के स्थान परतथा चौथा पहले के स्थान पर कार्य करना सीखने लग जाता है। इन
समूहों काआपेक्षित दक्षता प्राप्त कर लेने के बाद पुनः घूर्णन किया जाता है।
यह घूर्णन करने कीप्रक्रिया उस समय तक चलती रहती है जब तक कि छात्रों के सभी
समूह सभीउपकरणों तथा यन्त्रों पर कार्य नहीं कर लेते या सभी कार्यालय-विभागों
का कार्य नहींसीख लेते हैं। इस योजना के अन्तर्गत प्रत्येक बालक को कार्यालय
के हर विभाग केकार्य में व्यावहारिक ज्ञान तथा दक्षता प्राप्त करने का अवसर
प्राप्त हो जाता है।
घूर्णन योजना के लाभ
(1) घूर्णन योजमा में सभी छात्रों को कार्यालय के सभी अंगों तथा विभागों में
कार्यकरने का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
(2) इस योजना में किसी भी प्रकार की जटिलता नहीं है।
(3) इस योजना के लिए जिन उपकरणों या साज-समाज की आवश्यकता होती हैउसे
सरलतापूर्वक प्राप्त किया जा सकता है।
(4) समूहों में कार्य करने से छात्रों में सामूहिकता की भावना विकसित होती
है।
(5) इस योजना में कार्यालय में उपलब्ध सभी उपकरणों का समुचित प्रयोगसम्भव है।
(6) यह कम खर्चीली योजना है क्योंकि इसमें सभी छात्रों के लिए उपकरण नहीं
खरीदने पड़ते हैं। थोड़े से उपकरणों से ही इस योजना में सभी छात्रों को
सिखाया जासकता है।
इस योजना में किसी उपकरण पर कभी कोई समूह तो कभी कोई समूह कार्यकरता है। कोई
भी उपकरण खाली नहीं पड़ा रहता है। इससे उपकरणों का पूरा-पूरा उपयोग संभव है।
घूर्णन योजना की कमियाँ
(1) इसमें सामूहिक शिक्षण की व्यवस्था होती है अतः इसमें व्यक्तिगत
शिक्षणसंभव नहीं है।
(2) इस योजना में विद्यालय के पास एक ही प्रकार के कम से कम इतनेउपकरण होने
चाहिये जितने कि एक समूह में छात्र होते हैं।
(3) एक समय में पृथक्-पृथक समूह पृथक-पृथक् स्थानों पर कार्य करते हैं। इससे
एक अध्यापक पृथक-पृथक जगह जाकर छात्रों को आवश्यक निर्देशन तथा सहायता प्रदान
नहीं कर सकता है।
(4) एक समूह में यदि प्रतिभावान, औसत तथा निम्न औसत छात्र हैं तो प्रतिभावान
ही सामान्यतः उपकरणों पर अधिक कार्य करके जल्दी कौशल विकसित कर लेते हैं शेष
छात्र ऐसे ही रह जाते हैं।
(5) यदि योग्यता के आधार पर प्रतिभावान, औसत तथा निम्न-औसत छात्रों के समूह
बनाये गये हैं तो प्रतिभावान छात्रों का समूह शीघ्र ही कौशल विकसित करके आगे
के विभाग में चला जायेगा। इस प्रकार वे सम्पूर्ण चक्र का शीघ्र ही घूर्णन कर
लेंगेजबकि अन्य छात्रों को अपेक्षाकृत अधिक समय लगेगा। इससे सम्पूर्ण कक्षा
समान गति से नहीं चल पाती है।
(6) इस योजना में शिक्षक को केवल असुविधा ही होती है वरन् इसे कठिनाईतथा
परेशानी भी होती है क्योंकि शिक्षण को एक ही समय छात्रों की विभिन्न प्रकार
कीक्रियाओं पर ध्यान देना पड़ता है इससे शिक्षक को बड़ी कठिनाई का सामना करना
पड़ता है।
(7) इस योजना में शिक्षक को यह अवसर नहीं मिलता कि वह छात्रों कोकार्यालय के
विभिन्न उपकरणों या विभागों के सम्बन्ध में कुछ बता सकें और न छात्रों को ही
ऐसा अवसर मिलता है कि किसी उपकरण पर या किसी विभाग में कार्य करने से पूर्व
वे कुछ उसके सम्बन्ध में जान सकें।
(2) अनुबन्धित घूर्णन योजना (Expanded Rotation Plan)
कार्यालय पद्धति शिक्षण योजना के अन्तर्गत घूर्णन-योजना के सुधरे, परिमार्जित
तथा परिवर्द्धित रूप को अनुबन्धित घूर्णन योजना के नाम से जाना जाता है।
घूर्णनयोजना तथा इस योजना में कोई विशेष अन्तर नहीं है। घूर्णन योजना की एक
प्रमुख आलोचना है कि इसमें किसी उपकरण पर कार्य करने से पूर्व छात्रों को उस
उपकरण के सम्बन्ध में कुछ भी स्पष्ट नहीं किया जाता है। घूर्णन योजना की इस
आलोचना को दूर करने के लिए शिक्षण की यह योजना बनाई गई। यह योजना है तो
घूर्णनयोजना जैसी, अन्तर केवल-इतना है कि इस योजना में व्याख्या, वर्णन, कथन
तथा ऐसे ही अन्य साधनों के द्वारा छात्रों को किसी उपकरण तथा कार्यालय विभाग
के सम्बन्ध में पूर्ण-परिचय प्रदान कर दिया जाता है। उपकरण तथा विभाग के
सम्बन्ध में पूर्ण-परिचय प्राप्त कर लेने से उस उपकरण पर अथवा विभाग में
छात्र को कुशलताप्राप्त करने में अधिक कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता है।
अनुबन्धित-घूर्णनयोजना में व्यावहारिक तथा प्रयोगात्मक कार्य पर भी
अपेक्षाकृत अधिक बल दिया जाताहै। इसलिए यह शिक्षण-योजना सामान्य घूर्णन योजना
से कहीं अधिक श्रेष्ठ तथाउत्तम है।
(3) कार्यालय प्रारूप योजना (Office Model Plan)
कार्यालय प्रारूप योजना के अन्तर्गत विद्यालय परिसर में ही एक कार्यालय
काप्रारूप (Model) निर्मित किया जाता है। दूसरे शब्दों में विद्यालय में ही
किसी व्यावसायिक संस्था के कार्यालय जैसा एक कार्यालय स्थापित किया जाता है
जिसमें छात्रगण ही विभिन्न पदों पर काल्पनिक रूप से नियुक्त कर दिये जाते
हैं। ये छात्र अपनेकाल्पनिक पदों पर रहकर काल्पनिक कार्यालय के विभिन्न
कार्यों को सम्पादित करतेहै। इस काल्पनिक कार्यालय में काल्पनिक पदों पर
कार्य करते-करते ही छात्र कार्यालयके विभिन्न विभागों तथा उपकरणों का प्रयोग
करने का कौशल प्राप्त कर लेते हैं।
इस योजना के अन्तर्गत छात्रों को कार्यालय के विभिन्न कार्यों का आबंटन
कियाजाता है, उसके कार्यों की रूपरेखा बनाई जाती है, उन्हें कार्य प्रणाली
समझाई जाती है.उनको आवश्यक निर्देशन प्रदान किया जाता है तथा समय-समय पर उनका
एक विभाग से दूसरे विभाग में हस्तान्तरण किया जाता है। अन्तर्विभागीय
हस्तान्तरण की व्यवस्था बड़ी उपयोगी तथा आवश्यक है क्योंकि इससे छात्र
कार्यालय के विभिन्न विभागों के कार्यों को सम्पन्न करने में कुशलता प्राप्त
करता है।
कुछ शिक्षक इस योजना को परिमार्जित तथा उपयोगी रूप में प्रयुक्त करते हैं।
वेइस काल्पनिक कार्यालय में कार्य करने की मासिक या सामयिक रूपरेखा तैयार
करतेहैं जिसके अनुसार छात्रों को प्रतिदिन कार्य का आबंटन किया जाता है।
छात्र अपने कोआबंटित कार्य का सम्पादन करते हैं और वे करके सीखते हैं। इससे
सीखना न केवलव्यावहारिक बन जाता है वरंच वह प्रायोगिक तथा जीवनोपयोगी भी बन
जाता है।
कार्यालय प्रारूप योजना के लाभ
(1) कार्यालय प्रारूप योजना छात्रों को कार्यालय कार्य-पद्धति का वास्तविक
तथाव्यावहारिक ज्ञान प्रदान करती है।
(2) इससे छात्रों में कार्य के प्रति निष्ठा जाग्रत होती है।
(3) इसमें व्यक्तिगत निर्देशन संभव है।
(4) यह योजना छात्रों को व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करती है।
(5) इस योजना में प्रतिदिन एक ही प्रकार का कार्य नहीं करना पड़ता। रोजानाके
कार्य में परिवर्तन होते रहने से कार्य में सरसता तथा रोचकता बनी रहती है।
(6) एक विभाग में कई छात्र काम करते हैं इससे उनमें मिल-जुलकर सामूहिकरूप से
कार्य करने की आदत का विकास होता है।
(7) छात्रों को कार्यालय वातावरण का ज्ञान होता है तथा वे उस वातावरण केसाथ
समायोजित होने की आदत का विकास करते हैं।
कार्यालय प्रारूप योजना के दोष
(1) आर्थिक रूप से कम सम्पत्र विद्यालयों के लिए यह बड़ा कठिन है कि वेअपने
प्रांगण में एक ऐसे व्यावसायिक कार्यालय का प्रारूप बना सकें जिससे सभीआवश्यक
उपकरण तथा साज-सज्जा हो। इस दृष्टिकोण से यह योजना खर्चीली है।
(2) इस योजना के एक ही समय में पृथक्-पृथक् छात्र पृथक्-पृथक् उपकरणों परतथा
विभागों में कार्य करते हैं। इस कारण शिक्षक के लिए यह बड़ा कठिन हो जाता
हैकि यह उन्हें एक ही समय पर सही परामर्श तथा निर्देशन दे सके।
(3) इसमें व्यक्तिगत शिक्षण प्रदान करने में कठिनाई होती है।
(4) आवश्यक नहीं कि प्रारूप कार्यालय ठीक वास्तविक कार्यालय जैसा ही हो इसलिए
मारूप कार्यालय का वातावरण भी वास्तविक कार्यालय से भिन्न हो सकता है।
(5) छात्रों के मन में एक धारणा बन जाती है कि यह तो वास्तविक कार्यालयनहीं
है अतः इसमें वे उस ढंग से कार्य नहीं करते हैं जिस ढंग से किसी
वास्तविककार्यालय में कार्य होता है।
(6) यह योजना पर्याप्त श्रम एवं लगन चाहती है। प्रतिदिन छात्रों को कार्य
काआबंटन करके, उन्हें कार्य, पर भेजना, नया कार्य उन्हें समझाना आदि अनेक ऐसे
कार्यहैं जिनके लिए काफी श्रम एवं समय की आवश्यकता पड़ती है।
(4) बैटरी-योजना (Battery Plan)
सामान्यतः विद्यालयों में टंकण (Type-writing) शिक्षण के लिए शिक्षण
बैटरीयोजना का ही प्रयोग करते हैं। इस योजना के अन्तर्गत यह व्यवस्था की जाती
है किकार्य करने के लिए प्रत्येक छात्र को एक-एक उपकरण उपलब्ध हो जाये। इस
प्रकार सेएक समय में उतने ही छात्र कार्य कर सकते हैं जितने कि विद्यालय के
पास उपकरणउपलब्ध हैं। उदाहरण के लिए फाइलिंग में वर्टीकल फाइल सिस्टम सिखाना
है तोजितने छात्र हैं उतनी ही वर्टीकल फाइलें होनी चाहिए. यदि छात्रों को चैक
लिखने यातारीख डालने की मशीन के सम्बन्ध में बताना है तो जितने छात्र हैं
उतनी ही वे मशीनेंहोनी चाहिए जिससे प्रत्येक छात्र को एक-एक मशीन या यन्त्र
दिया जा सके।
बैटरी योजना में सभी छात्र एक समय में एक ही प्रकार के यन्त्रों पर या विभाग
मेंकार्य करते हैं। यदि वे टंकण का अभ्यास कर रहे हैं तो सभी छात्र एक साथ
टंकण कापृथक-पृथक यन्त्रों पर कार्य करेंगे। इसके लिए आवश्यक है कि विद्यालय
पर्याप्त मात्रामें साधन सम्पन्न हो। उसके पास विभिन्न प्रकार के यन्त्रों
में से प्रत्येक की इतनी संख्या हो जितनी कि छात्रों की है। फिर यन्त्रों को
रखने के लिए आवश्यक एवं सुरक्षित स्थान भी चाहिए।
बैटरी योजना के लाभ
(1) सीखने के लिए प्रत्येक छात्र को एक-एक उपकरण उपलब्ध रहता है इससेसीखने की
प्रक्रिया सहज, सुगम तथा मनोवैज्ञानिक हो जाती है।
(2) इस योजना में क्योंकि एक समय में सभी छात्र एक ही प्रकार की क्रिया
करतेहैं अतः शिक्षक उनको निरीक्षण तथा परामर्श सरलता के साथ दे सकता है।
(3) यह योजना छात्रों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा जाग्रत होती है। इससे छात्रों
में कौशल विकसित करने में सहायता मिलती है।
(4) इस योजना में वाणिज्य शिक्षण की प्रयोगशाला सुविधापूर्वक बनाई जा सकती
है।
(5) छात्रों को अपनी उन्नति तथा प्रगति की साथ ही साथ जानकारी मिलती रहती है।
इससे उन्हें और अधिक कौशल अर्जित करने की प्रेरणा प्राप्त होती है।
(6) छात्र लगातार कई दिन तक एक ही उपकरण पर कार्य करते हैं इससे उन्हेंअभ्यास
करने के लिए अधिक समय मिलता है। जब अधिक अभ्यास होता है तो उनमें कौशल का
विकास भी जल्दी हो जाता है।
बैटरी योजना के दोष
(1) यह योजना अत्यन्त खर्चीली है क्योंकि इसमें प्रत्येक छात्र के
लिएपृथक-पृथक् उपकरणों की आवश्यकता होती है अतः इसमें जितने छात्र होते हैं
उतने ही यन्त्रों की आवश्यकता होती है।
(2) छात्र एक समय में एक ही उपकरण पर कार्य करता है परिणामस्वरूप दूसरेउपकरण
बेकार पड़े रहते हैं। यह अपव्यय है।
(3) अत्यधिक आर्थिक भार के कारण सामान्य विद्यालयों के लिए इस योजना कोप्रयोग
में लाना कठिन होता है।
(4) यह योजना छात्रों में व्यक्तिगत गुणों का विकास करने में असफल रहती है।
(5) यह योजना कार्यालय में श्रम एवं समय बचाने वाले उपकरणों के प्रयोग
करनेमें तो कौशल विकसित कर सकती है किन्तु वह कार्यालय के अन्य अनेक कार्यों
कोसम्पन्न करने की विधि का प्रशिक्षण नहीं दे पाती है।
(5) सहकारी योजना (Co-operative Plan)
यह योजना केवल उन स्थानों पर ही लागू की जा सकती है जहाँ पर्याप्त मात्रा
मेंव्यापारिक कार्यालय होते हैं। व्यापारिक कार्यालय अधिकतर नगरों में ही
होते हैं.इसलिए सहकारी योजना भी केवल नगरीय विद्यालयों में सफलतापूर्वक चलाई
जा सकती है। सहकारी योजना में विद्यालय तथा नगर के व्यापारिक कार्यालयों के
परस्पर सहयोग से चलती है। इस योजना में कार्यालय कार्य-विधि का प्रारम्भिक
ज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद छात्र नगर के विभिन्न या किसी एक कार्यालय में
जाते हैं जहाँ वे अन्यनियमित कार्यालय कर्मचारियों की भाँति कार्य करते हैं।
इन कार्यालयों में छात्र कार्यालयों की वास्तविक कार्य-प्रणाली से परिचित
होते हैं। कार्यालय में घूर्णन प्रणाली के द्वारा छात्रकार्यालय के हर विभाग
के कार्यों का वास्तविक तथा व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त कर लेता है। किसी भी
कार्यालय की कार्य-प्रणाली का वास्तविक तथा व्यावहारिक ज्ञान प्राप्तकरने के
लिए यह योजना सर्वोत्तम है क्योंकि इस योजना में छात्र किसी काल्पनिककार्यालय
के स्थान पर एक वास्तविक कार्यालय में कार्य करते हैं। इस योजना कीसफलता बहुत
बड़ी मात्रा में इस बात पर निर्भर करती है कि नगर के व्यापारिककार्यालय
विद्यालयों को किस मात्रा तक अपना सहयोग प्रदान करते हैं।
सहकारी योजना के लाभ
(1) यह योजना छात्रों को कार्यालय कार्य-प्रणाली का वास्तविक ज्ञान देती है।
(2) छात्रों का किसी कार्यालय के वास्तविक वातावरण का ज्ञान होता है।
(3) छात्रों को विभिन्न कार्यों में कौशल विकसित करने का अच्छा अवसर मिलता
है।
(4) छात्र उन व्यक्तियों की देखरेख में कार्य करते हैं जिन्हें कार्यालय में
कार्यकरने की लम्बा अनुभव होता है।
(5) इस योजना से कार्यालयों को भी लाभ मिलता है। वे इन छात्रों में
योग्य,होनहार तथा उपयुक्त छात्रों का अपने कार्यालय के लिए चयन कर सकने में
सक्षम होतेहैं। अतः कार्यालयों को उपयुक्त कर्मचारी मिलते हैं।
(6) इस योजना से कार्यालय को निःशुल्क कार्य करने हेतु छात्र के रूप में
कुछसमय के लिए कर्मचारी मिल जाते हैं।
सहकारी योजना के दोष
(1) यह योजना केवल नगरीय विद्यालय ही अपना सकते हैं।
(2) इसमें छात्रों का शोषण सम्भव है। छात्रों पर कार्य भार बढ़ जाता है।
(3) विद्यालय के लिए यह कठिन होता है कि वे व्यापारिक कार्यालयों का बराबरतथा
वांछित मात्रा में सहयोग प्राप्त करते रहें।
(4) छात्र अपनी अपरिपक्वता के कारण कभी-कभी कार्यालयों में अव्यवस्था तथा
अनुशासनहीनता की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं।
(5) यह योजना छात्रों में मानवीय गुणों का विकास करने में अधिक सफल नहीं होती
है।
विद्यालय को चाहिए कि उपरोक्त योजनाओं में से अपने साधन एवं सुविधाओं कोध्यान
में रखते हुए किसी एक योजना का चयन करे। किन्तु जो भी योजना चुनी जाये,
मेंउसके कार्यक्रम सोच-विचार कर बनाये जायें तथा उनका परिश्रम के साथ
क्रियान्वयनहो तभी वांछित उद्देश्य प्राप्त हो सकेंगे।
अभ्यास-प्रश्न
निबन्धात्मक प्रश्न
1. व्यापार पद्धति विषय का परिचय देते हुये व्यापार पद्धति शिक्षण के विशिष्ट
उद्देश्यों का वर्णन कीजिये।
2. व्यापार पद्धति शिक्षण की विभिन्न शिक्षण योजनाओं का संक्षेप में परिचय
दीजिये।
3. व्यापार पद्धति शिक्षण की घूर्णन योजना का विस्तार से वर्णन कीजिये।
4. व्यापार पद्धति शिक्षण की बैटरी योजना से आप क्या समझते हैं? विस्तार से
स्पष्ट कीजिये।
लघु उत्तरात्मक प्रश्न
1. व्यापार पद्धति शिक्षण के किन्हीं चार ज्ञानात्मक उद्देश्यों का उल्लेख
कीजिये ।
2. व्यापार पद्धति की सरकारी योजना का परिचय दीजिये।
3. व्यापार पद्धति शिक्षण के चार अभिरुच्यात्मक उद्देश्यों का लेखन कीजिये।
4. व्यापार पद्धति की घूर्णन योजना के लाभ एवं दोष लिखिये।
5. व्यापार पद्धति शिक्षण की कार्यालय प्रारूप योजना का परिचय दीजिये।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. विभिन्न प्रकार के पत्रों की तुलना व अन्तर कराना किस व्यापार पद्धति
शिक्षण के उद्देश्य के अन्तर्गत आता है ?
(अ) ज्ञानात्मक
(ब) कौशलात्मक
(स) अवबोधात्मक
(द) अभिरुच्यात्मक
2. कार्यालय प्रारूप योजना के अन्तर्गत छात्रों को कार्यालय के विभिन्न
कार्यों का किया जाता है।3. किस.योजना में छात्र एक ही प्रकार के यन्त्र पर
या विभाग में कार्य करते हैं ?
(अ) सहकारी योजना
(ब) बैटरी योजना
(स) कार्यालय प्रारूप योजना
(द) घूर्णन योजना
उत्तर-1. (स) अवबोधात्मक. 2.आबंटन, 3. (ब) बैटरी योजना।
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