बी एड - एम एड >> वाणिज्य शिक्षण वाणिज्य शिक्षणरामपाल सिंहपृथ्वी सिंह
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बी.एड.-1 वाणिज्य शिक्षण हेतु पाठ्य पुस्तक
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वाणिज्य-शिक्षण के उपागम
(APPROACHES OF COMMERCE TEACHING)
प्रत्येक विषय के शिक्षण की एक प्रणाली तथा व्यवस्था होती है। इतना ही नहीं
प्रत्येक शिक्षक का एक प्रारम्भिक बिन्दु या आधार भी होता है जहाँ से हम
शिक्षण प्रारम्भ करते हैं अथवा उस आधार को लेकर हम आगे बढ़ते हैं। उदाहरण के
लिए हम अंग्रेजी भाषा के शिक्षण को लें, तो पाते हैं कि कुछ शिक्षक अंग्रेजी
भाषा के शब्दों के अर्थ बताकर अंग्रेजी भाषा का ज्ञान कराते हैं, तो कुछ
अंग्रेजी के वाक्यों को आधार बनाकर चलते हैं। आधुनिक समय में अंग्रेजी शिक्षण
में संरचना उपागम (Structural Approach)को अधिक मान्यता मिली हुई है। ठीक इसी
प्रकार वाणिज्य-शिक्षण के भी कुछ आधार या उपागम हैं, जिनको लेकर अलग-अलग
शिक्षक वाणिज्य का अध्यापन कराते हैं। वाणिज्यशिक्षण के क्षेत्र में इस
प्रकार के सामान्यतः नीचे लिखे उपागमों का प्रयोग किया जाता है।
(1) जर्नल उपागम (Joumal Approach)
(2) लेजर उपागम (Ledger Approach)
(3) कैश-बुक उपागम (Cash-Book Approach)
(4) बैलेन्स शीट या समीकरण उपागम (Balance Sheetor Equation Approach)।
इन उपागमों के अनुसार कुछ शिक्षक छात्रों को सबसे पहले जर्नल का ज्ञान-कराकर
पुस्तपालन का कराना पसन्द करते हैं तो कुछ दूसरे अध्यापक लेजर कोप्रारम्भिक
अवस्था में आधार बनाकर शिक्षण प्रारम्भ करते हैं। इसी प्रकार कुछ अन्यअध्यापक
रोकड़-बही (Cash-Book) को तो कुछ अन्तिम खातों को लेकर वाणिज्य का शिक्षण
प्रारम्भ करते हैं। नीचे इन्हीं चार उपागमों का परिचय दिया गया है-।
1. जर्नल उपागम
(JOURNAL APPROACH)शिक्षण-उपागम विषय-वस्तु को छात्रों के सम्मुख प्रस्तुत
करने की एकव्यवस्था है। इसे हम वह विधि भी कह सकते हैं जिसको आधार बनाकर किसी
विषयका शिक्षण प्रारम्भ किया जाता है। इसे किसी शिक्षण-परिस्थिति में विषय
वस्तु काप्रारम्भिक व्यवस्थापन भी कहा जा सकता है। इस अर्थ में, जर्नल उपागम
से तात्पर्य हैवाणिज्य की विषय-वस्तु का जर्नल के माध्यम से प्रारम्भिक
अवस्था में प्रस्तुतीकरण .करना। जर्नल उपागम से जब शिक्षण प्रारम्भ किया जाता
है तब शिक्षक वाणिज्य शिक्षण की प्रारम्भिक स्थिति में शिक्षक जर्नल का अर्थ,
प्रारूप, प्रविष्टि के नियम आदि तथ्यों काछात्रों को ज्ञान कराता है। दूसरे,
शब्दों में, वह वाणिज्य का शिक्षण जर्नल बहियों सेप्रारम्भ करता है। यहीं पर
शिक्षक दोहरा-लेखा पद्धति (Double Entry.System) का भीज्ञान छात्रों को कराता
है। यह उल्लेखनीय है, कि आजकल भारतीय विद्यालयों मेंसामान्यतः इसी उपागम का
व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है।
विभिन्न उपागमों में वाणिज्य की विषय वस्तु प्रस्तुत करने की एक
निश्चितव्यवस्था तथा क्रम होता है। जर्नले उपागम में भी वाणिज्य की विषय
वस्तु प्रस्तुत करनेका एक निश्चित क्रम या व्यवस्था होती है। जर्नल उपागम से
शिक्षक विषय-वस्तु प्रस्तुतकरने के लिए सामान्यतः नीचे लिखा क्रम अपनाता है-
(1) दोहरा लेखा प्रणाली का अर्थ स्पष्ट करना तथा तत् सम्बन्धित शब्दों
कीव्याख्या करना।
(2) डेबिट तथा क्रेडिट का अर्थ बताना।
((3) विभिन्न प्रकार के सौदों का अर्थ बताकर उनका वर्गीकरण करना सिखाना।
(4) विभिन्न प्रकार के सौदों के डेबिट तथा क्रेडिट पक्षों को स्पष्ट करना।
(5) सौदों की जर्नल में प्रविष्टियाँ करना तथा उनका विवरण लिखना सिखाना।
(6) सौदों की लेजर-बुक में प्रविष्टियों करना सिखाना।
(7) लेजर बहियों का जोड़ करके शेष निकालना सिखाना।
(8) तलपट बनाना सिखाना।(9) अन्तिम खाते बनाना सिखाना।
(10) समापन प्रविष्टियाँ (Closing Entries)
(11) प्रारम्भिक प्रविष्टियों (Opening Entries) का ज्ञान कराना।
उक्त क्रम से यह स्पष्ट होता है कि शिक्षक सर्वप्रथम पुस्तपालन विज्ञान की
दोहरालेखा प्रणाली के सामान्य ज्ञान से प्रारम्भ करके सभी प्रकार के अन्य
खातों का ज्ञानकराता हुआ अन्तिम खातों पर पहुँचता है। इस उपागम में यह ध्यान
रखा जाता है किजिस प्रकार किसी कार्यालय में पहले जर्नल बही में सौदों की
प्रविष्टियाँ होती हैं, फिर लेजर बहियों में प्रवृष्टियाँ होती हैं, फिर तलपट
बनाया जाता है और अन्त में अन्तिमवार्षिक खाते बनाये जाते हैं, ठीक उसी
प्रकार कक्षा में भी इसी क्रम में छात्रों को बताया जाता है।जर्नल उपागम की
विशेषतायें
जर्नल उपागम एक सरल तथा व्यावहारिक रूप से क्रमिक व्यवस्था में, छात्रों
केसम्मुख विषय वस्तु के प्रस्तुतीकरण की विधि है। भारतीय विद्यालय में यह
विधि बहुतप्रचलित है। इसका प्रमुख कारण इस उपागम की सरलता तथा इसके कतिपय
अन्यगुण हैं। इस उपागम में प्रायः निम्नांकित गुण पाये जाते हैं-।
(1) जर्नल उपागम विषय-वस्तु प्रस्तुत करने की बड़ी ही सरल प्रणाली है।
(2) जर्नल उपागम में बहीखाता-चक्र (Book-keeping to Cycle) का ठीक उसीक्रम
में ज्ञान कराया जाता है जिस क्रम में कोई व्यावसायिक कार्यालय अपने सौदों का
सजा अपना पुस्तकाम करता है, इस दृष्टिकोण स यह उपागम तक-सगत तथा अधिक
व्यावहारिक प्रतीत होता है।
(3) जर्नल उपागम विषय के चरण के अनुसार है।
(4) जर्नल उपागम में पहले दोहरा लेखा प्रणाली के आधारभूत सिद्धान्तों को
स्पष्टकरके जर्नल में प्रविष्ट करना सिखाया जाता है जो छात्रों को पर्याप्त
सरल लगता है।
उपरोक्त गुणों तथा विशेषताओं के होते हुए भी यह कहा जा सकता है कि जर्नल
उपागम शिक्षण की दृष्टिकोण से मनोवैज्ञानिक नहीं है, क्योंकि जर्नल उपागम
शिक्षण के मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित नहीं है। जर्नल उपागम में
दूसरा दोष यह है कि इस उपागम के अन्तर्गत छात्र को बिनाअपनी वर्तमान स्थिति
को समझे, प्रारम्भ से लेकर अन्त का बहुत ही बड़ा तथा लम्बारास्ता तय करना
पड़ता है। इस लम्बाई के कारण छात्र को यह बात भी स्पष्ट नहीं हो पाती है कि
वह कहाँ तथा किस दिशा से बढ़ रहा है तथा उसका अन्तिम लक्ष्य क्या है।
2. लेजर उपागम
(LEDGER APPROACH)कुछ शिक्षक बहीखाता शिक्षण के लिए लेजर उपागम का प्रयोग
करते हैं। इसउपागम में वे लेजर को आधार मानकर शिक्षण प्रारम्भ करते हैं। इस
स्थिति में वे सर्वप्रथम दोहरा लेखा प्रणाली का परिचय देकर सीधे लेजर का
अभ्यास अपने छात्रों को कराते हैं। तत्पश्चात् जर्नल का ज्ञान अपने छात्रों
को कराते हैं। इस प्रकार, वे शिक्षण की व्यवस्था नीचे लिखे क्रम में अपनाते
हैं-
(1) दोहरा लेखा प्रणाली का अर्थ एवं तत्वों का ज्ञान कराना।
(2) डेबिट एवं क्रेडिट पक्षों का ज्ञान कराना।
(३) लेजर बहियों का परिचय एवं उनके प्रारूप का ज्ञान देना।
(4) लेजर बहियों में सौदों की प्रविष्टि सिखाना।
(5) लेजर खातों के शेष निकालना सिखाना।
(6) लेजर खातों के शेष के आधार पर तलपट बनाना।
(7) जर्नल का ज्ञान देना।
(8) जर्नल में प्रविष्टयाँ करना सिखाना।
(9) जर्नल की प्रविष्टियों में विवरण लिखना सिखाना।
(10) अन्तिम खातों का निर्माण करना।
(11) अन्तिम प्रविष्टियाँ करना सिखाना।
(12) प्रारम्भिक प्रविष्टियों (Opening entries) करना सिखाना।
इस प्रकार हम देखते हैं कि लेजर उपागम व्यवस्था के अन्तर्गत शिक्षक सर्वप्रथम
लेजर खातों का बनाना सिखाता है। लेजर खातों का अभ्यास कराने के बाद वह जर्नल
में प्रविष्टियाँ करना सिखाता है। दूसरे शब्दों में शिक्षक सर्वप्रथम गौण
प्रविष्टियों(Secondary entries) की बहियों का ज्ञान अपने छात्रों को कराता
है। इस उपागम केआगे लिखे लाभ हैं-
(1) यह उपागम अपेक्षाकृत अधिक तर्कसंगत है।
(2) यह छात्रों को प्रारम्भ में ही उपयोगी तथा सार्थक ज्ञान प्रदान करते हैं
जिससेछात्र सभी प्रविष्टियों के 'क्यों' तथा 'कैसे' जैसे महत्वपूर्ण उत्तरों
को समझ जाते हैं।
(3) छात्र डेबिट तथा क्रेडिट पक्षों के अर्थ भी सार्थक रूप में समझ लेते हैं।
(4) छात्र विभिन्न प्रकार के खातों का शेष निकालना सरलता से सीख जाते हैं।
(5) जर्नल उपागम की तुलना में यह उपागम अधिक सारगर्भित तथा व्यावहारिक
('शिक्षण प्रदान करती है।
इस उपागम में उपरोक्त गुणों तथा विशेषताओं के होते हुए भी इसके कुछ दोषतथा
कमियाँ हैं। जैसे-
(1) यह उपागम खाता चक्र (Cycle) का शिक्षण प्रारम्भ से न करके बीच से करताहै
तथा बीच से चलकर फिर प्रारम्भ में पहुँचता है। इससे छात्रों के सम्मुख
अस्पष्टता (Confusion) की स्थिति पैदा होती है। हम जानते हैं कि बहीखाता चक्र
जर्नल से(प्रारम्भ होकर लेजर को पार करता हुआ अन्तिम खातों तक पहुँचता है।
किन्तु लेजरउपागम में हम लेजर →जर्नल → अन्तिम खातों का चक्र अपनाते हैं जबकि
व्यवहार में जर्नल लेजर + अन्तिम खाते के रूप में चक्र होता है। चक्र के इस
टूटे क्रम केकारण छात्रों को विषय-वस्तु को समझने में कठिनाई अनुभव करते हैं।
(2) यह उपागम भी मनोवैज्ञानिक रूप से विषय-वस्तु छात्रों के सम्मुख प्रस्तुत
नहीं- करता है।
3. रोकड़ बही उपागम
(CASH-BOOK APPROACH)
कुछ शिक्षक पुस्तपालन का शिक्षण रोकड़-बही के शिक्षण से प्रारम्भ करते हैं।
इनका मत है कि छात्र रोकड़-बही में अधिक रुचि लेते हैं इसलिये वे इसको अधिक
लगन के साथ सीखते हैं। किन्तु वास्तविक रूप से देखें तो पाते हैं कि लेजर
उपागम तथा रोकड़-बही उपागम में कोई विशेष अन्तर नहीं है क्योंकि दोनों
उपागमों के समस्तचरण एक जैसे हैं। उनका मत है कि रोकड़ बही भी एक प्रकार का
लेजर खाता है इसलिए शिक्षक पुस्तपालन शिक्षण के आगे बढ़ता है और बही-खाता
चक्र के एक जैसे क्रम को ही अपनाता है-
(1) दोहरा लेखा प्रणाली को स्पष्ट करना।
(2) डेबिट तथा क्रेडिट पक्षों पर प्रकाश डालना।
(3) रोकड़-बही का अर्थ एवं आशय स्पष्ट करना।
(4) रोकड़िया सौदों का सांदा रोकड़-बही में प्रविष्ट करना सिखाना।
(5) एक खाना, दो खाने तथा तीन खाने वाली रोकड़-बहीं को समझाना।
(6) अन्य लेजर खातों में प्रविष्ट करना सिखाना।
(7) उनके शेष निकालने की विधि स्पष्ट करना।
(8) जर्नल में प्रविष्ट करने की विधि स्पष्ट करना।
(9) तलपट बनाना सिखाना।
(10) अन्तिम खाते बनाना सिखाना।
(11)अन्तिम प्रविष्टियों को स्पष्ट करना।
(12) प्रारम्भिक प्रविष्टियाँ करने की विधि समझाना।
रोकड वहीं के गुण तथा दोषों के सम्बन्ध में अधिक कुछ नहीं कहा जा सकता
हैक्योंकि रोकड़ बही उपागम से प्रायः वही गुण एवं दोष हैं जो लेजर उपागम में
पाये जाते हैं।
4. समीकरण उपागम
(EQUATION APPROACH)
समीकरण उपागम को बैलेन्स शीट उपागम (Balance Approach) के नाम से भी पुकारा
जाता है। बहीखाता शिक्षण के लिये आजकल यह उपागम सर्वोत्तम समझा जाता है। इस
उपागम के अन्तर्गत शिक्षक सर्वप्रथम अपने छात्रों को सम्पत्ति (Assets)
तथादायित्वों (Liabilities) का ज्ञान कराता है इस उद्देश्य की प्राप्ति के
लिए वह छात्रों को उन वस्तुओं का परिचय देता है जो छात्रों के अपने अधिकार
में है तथा जो दूसरों को देती हैं यहीं पर अध्यापक सम्पत्तियों तथा दायित्वों
का अर्थ एवं आशय स्पष्ट करता है। तत्पश्चात् वह पुस्तपालन की शेष विषय-वस्तु
एक निश्चित क्रम में छात्रों के सम्मुख प्रस्तुत करता है। इस उपागम के
अन्तर्गत शिक्षण पुस्तपालन शिक्षण के लिये नीचे लिखेक्रम में छात्रों के
सम्मुख विषय-वस्तु प्रस्तुत करता है-
(1) बैलेन्स शीट का अर्थ, आशय एवं महत्त्व स्पष्ट करना।
(2) यह समझाना कि सम्पत्ति सदैव दायित्व पूँजी के योग के बराबर (Assets
=Liabilities +Capital) होती है।
(3) पूँजी का अर्थ आशय एवं निर्माण को स्पष्ट करना।
(4) 'टी' खाते खोलने की अवधि से छात्रों को अवगत कराना।
(5) बैलेन्स शीट बनाना सिखाना।
(6) डेबिट तथा क्रेडिट का अर्थ स्पष्ट करना।
(7) जर्नल में प्रविष्टियाँ करना तथा उनके विवरण लिखना।
(8) लेजर में खतौनी करना सिखाना।
(9) लेजर खातों के शेष निकालना सिखाना
(10) तलपट बनाना सिखाना।
(11) अन्तिम खाते तथा विवरण बनाना सिखाना।
(12) अन्तिम प्रविष्टियों (Closing Entries) करना बताना।
(13) प्रारम्भिक प्रविष्टियों का ज्ञान कराना।
जहाँ तक इस उपागम के गुण एवं दोषों का प्रश्न है, इस उपागम में नीचे लिखेगुण
एवं दोन पाये जाते हैं-
1. गुण
(1) यह उपागम अधिक तर्क-संगत लगता है क्योंकि इस उपागम में छात्रों कोसबसे
पहले यह स्पष्ट कर दिया जाता है कि उसे अन्त में कहाँ पहुँचना है।
(2) यह उपागम अधिक मनोवैज्ञानिक है क्योंकि छात्रों को सम्पत्ति तथा
दायित्वोंको आसानी से समझाया जा सकता है।
(3) इस उपागम में छात्रों को सरलता से प्रेरणा दी जा सकती है।
2. दोष
समीकरण उपागम में कुछ दोष भी हैं जैसे-
(1) यह विषय-वस्तु का ज्ञान शुरू से न कराकर अन्त से प्रारम्भ करती है।
(2) बहीखाता चक्र को यहाँ उल्टा चलाना पड़ता है जिससे छात्रों को समझने में
कठिनाई होती है।
(3) इस उपागम से सीखने पर व्यावहारिक रूप में कार्य करने में कठिनाई आती है।
(4) इस उपागम से व्यावहारिक शिक्षा नहीं दी जा सकती है।
इन दोषों के बावजूद भी आज के वाणिज्य शिक्षक समीकरण उपागम को अपेक्षाकृत अधिक
उपयोगी तथा वैज्ञानिक समझते हैं इसलिये भारतीय विद्यालयों में इसका प्रयोग
धीरे-धीरे बढ़ रहा है।
अभ्यास-प्रश्न
निबन्धात्मक प्रश्न
1. वाणिज्य-शिक्षण के विभिन्न उपागमों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
2. वाणिज्य-शिक्षण के जर्नल उपागम से आप क्या समझते हैं ? स्पष्ट कीजिये
3. वाणिज्य-शिक्षण के खाता उपागम (Ledger Approach) का परिचय दीजिये।
4. वाणिज्य शिक्षण के समीकरण या बैलेन्स शीट उपागम के विविध पक्षों की चर्चा
कीजिये।
लघु उत्तरात्मक प्रश्न
1.वाणिज्य शिक्षण के उपागमों से आप क्या समझते हैं ?
2. वाणिज्य शिक्षण के रोकड़ बही उपागम का परिचय दीजिये।
3. वाणिज्य-शिक्षण के समीकरण उपागम के गुण-दोषों का विवरण दीजिये।
4. जर्नल उपागम की कुछ प्रमुख विशेषतायें लिखिए।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. जर्नल उपागम में भी ........की विषय-वस्तु प्रस्तुत करने का एक निश्चित
क्रम या व्यवस्था होती है।
2. कुछ शिक्षक बहीखाता शिक्षण के लिए उपागम का प्रयोग करते हैं।
3. बेलेन्स शीट उपागम किस उपागम का दूसरा नाम है ?
(अ) रोकड़ बही उपागम -
(ब) समीकरण उपागम
(स) लेजर उपागम
(द) जर्नल उपागम
उत्तर-1. वाणिज्य। 2. लेजर । 3. (ब) समीकरण उपागम ।
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