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शैक्षिक तकनीकी एवं कम्प्यूटर अनुदेशन

जे सी अग्रवाल

एस पी कुलश्रेष्ठ

प्रकाशक : अग्रवाल पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2019
पृष्ठ :424
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2534
आईएसबीएन :9789385079665

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चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ, महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ एवं डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद के दो वर्षीय बी. एड. के नवीनतम् पाठ्यक्रमानुसार


शैक्षिक तकनीकी के प्रकार
Forms of Education Technology

शैक्षिक तकनीकी, कठोर शिल्प तथा कोमल शिल्प तकनीकियों के मध्य अनवरत अन्तःक्रिया विश्लेषण की विधि का नाम है। यह एक प्रकार का व्यावहारिक विज्ञान है, जिसके माध्यम से शिक्षण समस्याओं का समाधान किया जाता है। शिक्षण तथा अधिगम की विधियों में सुधार लाने का प्रयास किया जाता है, जिससे कि छात्रों के ज्ञानार्जन के स्तर में वांछित सुधार किया जाय। ज्ञान के संचय, प्रसार तथा विकास से सम्बन्धित इस शैक्षिक तकनीकी की विषय-वस्तु अत्यधिक व्यापक है। विषय-वस्तु की प्रकृति के अनुसार शैक्षिक तकनीकी को। विभिन्न विद्वानों ने निम्नांकित भागों में विभाजित किया है—

शैक्षिक तकनीकी के रूप (FORMS OF EDUCATIONAL TECHNOLOGY)
 
(1) शिक्षण तकनीकी
(2) अनुदेशन तकनीकी
(3) व्यवहार तकनीकी
(4) अनुदेशन प्रारूप
 
(Teaching Technology
(Instructional Technology
(Behavioural Technology)
(Instructional Designs)

1. शिक्षण तकनीकी
(TEACHING TECHNOLOGY)

 शिक्षण तकनीकी दो शब्दों से मिलकर बना है-शिक्षण + तकनीकी (Teaching + Technology)| शिक्षण का अर्थ है-शिक्षा देना, पढ़ाना अथवा प्रशिक्षण देना। अतः शिक्षण तकनीकी, वह विषय-वस्तु है जिसमें शिक्षक अपने शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए तकनीकी का प्रयोग करता है। शिक्षण तकनीकी को अंग्रेजी भाषा में Teaching Technology या Technology of Teaching कहा जाता है। स्किनर (Skinner, 1968) के अनुसार, "शिक्षण-तकनीकी वह शास्त्र है जो शिक्षक की प्रभावशीलता बढ़ाता है और शिक्षण-प्रक्रिया को और अधिक समृद्ध करता है। यदि हमें आज के विज्ञान और तकनीकी की खोजों और वैज्ञानिक आविष्कारों का प्रयोग कर शिक्षण को सुव्यवस्थित बनाना है तो शिक्षण तकनीकी को आगे बढ़ाना होगा। यह ठीक ही कहा गया है कि—
 
"In order to make the best use of our resources, it is essential that all persons cngaged in the teaching profession understand the mechanics and dynamics of teach ing technology and provide best possible education to students."

ऑलीवर (Oliver, 1969), ब्राह्म (Braham, 1972) तथा Mitchell (1972) ने इसी शिक्षण तकनीकी की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा है कि आज के युग में ऐसी शिक्षण तकनीकी की आवश्यकता है जो शिक्षण प्रक्रिया को दिन-प्रतिदिन अधिक व्यवस्थित एवं संगठित बनाती जाय। बदलते हुए परिवेश में यह तकनीकी शिक्षक को उसके उत्तरदायित्व को निभाने में शिक्षा एवं शिक्षण को अधिक उपादेय तथा प्रभावशाली बनाने में मदद करने के लिए एक प्रमुख आधार स्तम्भ की भाँति कार्य करती है। डेविस (Davies,1971) ने एक स्थान पर लिखा है कि

".. For the new set up, education and-training require a new conceptual frame work against which decisions involving change and innovations can be made."

जब मनोविज्ञान के सिद्धान्त (कैसे पढ़ाया जाये), समाजशास्त्र के सिद्धान्त (क्या पढ़ाया जाये) तथा दर्शनशास्त्र के सिद्धान्त (क्यों पढ़ाया जाये) मिल कर यह निर्धारित करते हैं कि प्रभावशाली शिक्षण कैसे किया जाये तभी शिक्षण तकनीकी का जन्म होता है।

डा० आर० ए० शर्मा (R.A.Sharma, 1980) ने शिक्षण तकनीकी के विषय में लिखा है कि "यह शिक्षण की दार्शनिक सामाजिक तथा वैज्ञानिक ज्ञान का वास्तविक उपयोग करने वाली विचारधारा है।

"It is the application of philosophical, sociological and scientific knowledge to teach ing for achieving some specific learning objectives."

एस० पी० कुलश्रेष्ठ के अनुसार, "शिक्षण तकनीकी एक ऐसी विचारधारा है जो शिक्षण कला को अधिक स्पष्ट, सरल, वस्तुनिष्ठ तथा वैज्ञानिक बनाती हुई छात्रों और शिक्षकों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करती है, साथ ही यह शिक्षण की प्रक्रिया को अधिक प्रभावशाली, मनोवैज्ञानिक, व्यावहारिक तथा प्रयोगात्मक बनाती है जिससे छात्र, शिक्षक और समाज सभी लाभान्वित होते हैं।"

शिक्षण तकनीकी की आधारभूत मान्यताएँ
(BASIC ASSUMPTIONS OF TEACHING TECHNOLOGY)

 शिक्षण तकनीकी की विषय-वस्तु प्रमुख रूप से निम्नांकित मान्यताओं पर आधारित है

(1) शिक्षण एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में दो तत्त्व प्रमुख होते हैं

1. पाठ्य-वस्तु (Content), तथा
2. कक्षा सम्प्रेषण (Class Communication)|

(2) उपयुक्त शिक्षण परिस्थितियाँ उत्पन्न करके सीखने की प्रक्रिया में वांछित अनुभव प्रदान किये जाते हैं। इस प्रक्रिया में पाठ्य-वस्तु के उद्देश्यों की पूर्ति का पूरा ख्याल रखा जाता है।

(3) सीखने और सिखाने की विधियों में एक प्रकार का निकट साहचर्य (Close Association) स्थापित किया जा सकता है। अतः शिक्षक और छात्र दोनों सक्रिय रहकर एक-दूसरे के प्रति अपना व्यवहार ठीक रखें और परस्पर आदान-प्रदान करते रहें तो शिक्षण अधिक प्रभावशाली बनता रहेगा।

 (4) शिक्षण प्रक्रियाओं में परिवर्तन लाया जा सकता है और उनमें सुधार किया जा सकता है।

(5) शिक्षण प्रक्रियाओं द्वारा सीखने के अनुभव प्रदान कर सीखने के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है।

(6) शिक्षण में विभिन्न उपागमों के माध्यम से शिक्षण कौशल विकसित किये जा सकते हैं।
(7) शिक्षण छात्र-प्रधान (Student Centred) प्रक्रिया है।
(8) शिक्षक कक्षा में एक व्यवस्थापक के रूप में कार्य करता है।
(9) शिक्षण का एक क्रिया (Phenomenon) के रूप में अध्ययन किया जा सकता है क्योंकि इसमें विभिन्न प्रकार के चर (Variables) होते हैं।
(10) शिक्षण द्वारा सृजनात्मक (Creative) शिक्षक बनाये जा सकते हैं।

शिक्षण तकनीकी की विशेषताएँ
(CHARACTERISTICS OF TEACHING TECHNOLOGY)

 उपर्युक्त विवेचन के आधार पर शिक्षण तकनीकी की निम्नांकित विशेषताएँ इस विषय को समझने में काफी मदद करेंगी—
 
(1) शिक्षण तकनीकी के माध्यम से ज्ञानात्मक, प्रभावात्मक तथा मनोगत्यात्मक (Cognitive. Affective and Psychomotor) पक्षों का अध्ययन किया जाता है।
(2) शिक्षण तकनीकी के माध्यम से शिक्षण के दो प्रमुख तत्वों पाठ्य-वस्तु तथा कक्षा-सम्प्रेषण में सम्बन्ध स्थापित किया जाता है।
(3) शिक्षण-प्रक्रिया को उन्नतशील बनाने के लिए शिक्षण तकनीकी के माध्यम से सामाजिक, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक तथा वैज्ञानिक ज्ञान का व्यावहारिक उपयोग किया जाता है।
(4) शिक्षण तकनीकी, कक्षा व्यवहार के निरीक्षण, विश्लेषण, व्याख्या, मूल्यांकन एवं सुधार के लिए पूर्ण प्रयास करती है।
(5) शिक्षण तकनीकी हमें नवीन तथा अधिक उपादेय एवं सुगठित शिक्षण सिद्धान्तों (Teaching Theories) तथा शिक्षण प्रतिमानों (Teaching Models) के निर्माण हेतु प्रेरित करती है।
(6) शिक्षण तकनीकी, शिक्षण के नियोजन, व्यवस्था, मार्गदर्शन तथा नियन्त्रण में तारतम्य स्थापित करती है।
(7) शिक्षण तकनीकी शिक्षण को अधिक व्यावहारिक तथा प्रयोगात्मक विषय बनाने के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करती है।
(8) शिक्षण तकनीकी के माध्यम से शिक्षण की प्रक्रिया को (स्मृति स्तर से लेकर चिन्तन स्तर तक) अधिक प्रभावशाली बनाया जाता है।
शिक्षण तकनीकी, शिक्षक को उचित शिक्षण नीतियाँ, शिक्षण विधियाँ तथा शिक्षण युक्तियाँ अपनाने के लिए प्रेरित करती है।
(10) यह शिक्षकों को अपने छात्रों के व्यवहारों को नियंत्रित करना सिखाती है साथ ही उन्हें आवश्यकतानुसार परिमार्जित भी करती है।

उपर्युक्त विशेषताओं के आधार पर शिक्षण तकनीकी के स्वरूप की व्याख्या करते हुए कुलश्रेष्ठ (1980) ने निष्कर्ष निकाला है

"Teaching Technology is systematic application of scientific knowledge. laws. prin ciples and recent developments of technology to the process of teaching with a vicw to improve the effectiveness of teaching and training."

शिक्षण तकनीकी की विषय-वस्तु (CONTENTS OF TEACHING TECHNOLOGY) डेविस (Devies) तथा रॉबर्ट ग्लेसर (Robert Glaser. 1962) ने शिक्षण तकनीकी की पाठ्य-वस्तु को निम्नांकित चार भागों में विभाजित किया है

(1) शिक्षण का नियोजन (Planning)-इसके अन्तर्गत शिक्षण पाठ्य-वस्तु का विश्लेषण, शिक्षण बिन्दु खोजना, उद्देश्यों को पहचानना तथा उन्हें उपयुक्त विधियों से लिखना सम्मिलित है।
(2) शिक्षण की व्यवस्था (Organization)-इसके अन्तर्गत शिक्षण विधियों तथा युक्तियों एवं प्रविधियों तथा शिक्षण सहायक सामग्री के चयन तथा प्रयोग से सम्बन्धित विषय-सामग्री आती है।
(3) शिक्षण का मार्गदर्शन (Leading)-इस विषय के माध्यम से शिक्षक को यह बताया जाता है कि कक्षा के अन्दर किस प्रकार से सीखने के लिए छात्रों में प्रेरणा उत्पन्न की जाये और कैसे उनकी रुचि को शिक्षण के प्रति पूरे कालांश (Period) तक बनाये रखा जाये।
(4) शिक्षण का नियंत्रण (Controlling) शिक्षण तकनीकी का यह वर्ग, यह देखता है कि सीखने के उद्देश्यों को किस सीमा तक प्राप्त किया गया है। अतः इस भाग के अन्तर्गत मापन एवं मूल्यांकन विषय का अध्ययन किया जाता है। मूल्यांकन के आधार पर शिक्षण सोपानों में वांछित परिवर्तन भी किया जाता है।
एक विद्वान के अनुसार—

Technology of teaching involves to know how to use the teaching process under specific conditions. It includes the mechanism of teaching process in the classroom situations, levels of teaching, principal operations and establishing relations between learning theories and teaching operations."

शर्मा, कुलश्रेष्ठ तथा मिश्रा (1980) शिक्षण तकनीकी के अन्तर्गत निम्नांकित विषय-वस्तु को समावेशित करते हैं

(1) शिक्षण नियोजन,
(2) शिक्षण व्यवस्था,
(3) शिक्षण मार्गदर्शन,
(4) शिक्षण नियन्त्रण,
(5) शिक्षण प्रतिमान तथा सिद्धान्त,
(6) शिक्षण उपागम, युक्तियों, प्रविधियाँ
(7) शिक्षण में नवीन धारणाएँ
(8) सीखने के सिद्धान्त.
(9) शिक्षण प्रक्रिया तथा शिक्षण-छात्र सम्बन्ध,
(10) स्मृति स्तर से चिन्तन स्तर तक का शिक्षण,
(11) अन्तःक्रिया विश्लेषण (Interaction Analysis)
(12) शिक्षक व्यवहार परिमार्जन (Inmproving Teacher Behaviour)
(13) शिक्षण-प्रयोग (Experimental Projects).
(14) पाठ-योजनाओं का निर्माण।

2. अनुदेशन तकनीकी
(INSTRUCTIONAL TECHNOLOGY)

शिक्षण तकनीकी की भाँति अनुदेशन तकनीकी भी शैक्षिक तकनीकी से पृथक नहीं है। सामान्यतया शिक्षण तथा अनुदेशन तकनीकी में कोई अन्तर नहीं किया जाता है। 'अनुदेशन तकनीकी' दो शब्दों से मिलकर बना है-

(1) अनुदेशन (Instruction) तथा
(2) तकनीकी (Technology)|

अनुदेशन का मतलब है सूचनाएँ प्रदान करना। अतः अनुदेशन तकनीकी एक ऐसा विषय है 'जो उपलब्ध साधनों के सन्दर्भ में स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति करता है तथा छात्रों में विशेष व्यवहार परिमार्जन (Behaviour Modification) करता है। यह शैक्षिक तकनीकी की कक्षागत या सीखने की परिस्थितियों में प्रयुक्त एक नयी शिक्षण व्यवस्था है जो अभ्यासजनित परिस्थितियों के द्वारा शिक्षा सिद्धान्तों की पुष्टि करता है।

अनुदेशन तकनीकी ने शिक्षा क्षेत्र को अभिक्रमित अध्ययन (Programmed Instruction) का एक बहुत बड़ा उपहार प्रदान किया है, जिसके माध्यम से छात्र अपनी व्यक्तिगत विभिन्नताओं के आधार पर सीखते हैं। शर्मा (1980) के अनुसार—

"Instructional technology means a network of techniques or devices employed to accomplish certain defined set of learning objectives."

रॉबर्ट ए० कौक्स इस तकनीकी को 'Subordinate Term of Educational Technology' कहते हैं।

मैकमरिन (McMurin) के अनुसार, "अनुदेशन तकनीकी का प्रयोग कोमल एवं कठोर शिल्प के लिए ही नहीं वरन इन विधियों के मूल में निहित सिद्धान्तों की व्यवस्था के लिए भी किया जाता है। अतः इसमें अनुदेशन सिद्धान्त तथा अनुदेशन तकनीकी दोनों ही गुम्फित रूप में प्रदर्शित होते हैं।

अतः कहा जा सकता है कि अनुदेशन तकनीकी, शैक्षिक तकनीकी की वह शाखा है जो हमें शिक्षण सामग्री तथा अन्य दृश्य-श्रव्य सामग्री के सही उपयोगों के विषय में सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक, दोनों प्रकार की ही सूचनाएँ प्रदान करती है। (कुलश्रेष्ठ 1987) शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में, जब मनोवैज्ञानिक तथा वैज्ञानिक सिद्धान्तों का समावेशन हो जाता है तब वह अनुदेशन तकनीकी कहलाने लगती है।

अनुदेशन तकनीकी की मान्यताएँ

(ASSUMPTIONS OF INSTRUCTIONAL TECHNOLOGY)

1. अनुदेशन में कुछ सूचनाएँ दी जानी आवश्यक हैं।
2. किसी भी विषय-वस्तु को छोटे-छोटे तत्वों में विभाजित किया जा सकता है और उन तत्वों को स्वतन्त्र रूप से प्रस्तुत किया जा सकता है।
3. इन तत्वों को इस प्रकार से तार्किक क्रम (Logical ATTangement) में बाँधा जा सकता है. जिससे कि वांछित सीखने की बाह्य परिस्थितियाँ उत्त्पन्न हो सके।
4. मानवीय विकास के लिए पृष्ठपोषण (Cybernatic) का सिद्धान्त अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
5. मानव का प्रत्येक व्यवहार संगठित प्रणाली के अंगों के रूप में कार्य करता है।
6. छात्रों को उनकी आवश्यकता और गति के अनुसार पढ़ने का अधिकार है।
7. शिक्षण की प्रक्रिया शिक्षक के बिना भी सम्पादित की जा सकती है।
8. शिक्षण की प्रक्रिया में सीखने के व्यवहारों को नियन्त्रित तथा परिमार्जित किया जा सकता है।

अनुदेशन तकनीकी की विशेषताएँ
(CHARACTERISTICS OF INSTRUCTIONAL TECHNOLOGY)

1. अनुदेशन तकनीकी का प्रमुख कार्य है सूचनाएँ प्रदान करना।
2. अनुदेशन तकनीकी के माध्यम से ज्ञानात्मक (Cognitive) उद्देश्यों को अधिक प्रभावशाली विधि से प्राप्त किया जा सकता है।
3. छात्रों को इस तकनीकी के प्रयोग से अपनी गति के अनुसार सीखने के अवसर मिलते हैं।
4. अनुदेशन तकनीकी में सही उत्तरों का पुनर्बलन होता है।
5. अनुदेशन तकनीकी, मनोविज्ञान, दर्शन तथा विज्ञान के सिद्धान्तों तथा आविष्कारों का उपयोग करती है।
6. इसके माध्यम से अनुदेशन सिद्धान्तों का निर्माण किया जाता है।
7. यह तकनीकी पाठ्य-वस्तु का विश्लेषण कर विषय के विभिन्न प्रकरणों में तारतम्य बनाये रखती है।
8. यह कक्षागत परिस्थितियों में Terminal Bchaviour का मूल्यांकन करती है।
9. यह शिक्षकों के अभाव में भी शिक्षण प्रक्रिया जारी रखती है।
10. यह पाठ्य-वस्तु तथा इसके तत्वों के तार्किक क्रम पर बहुत ध्यान देती है।
11. वह शिक्षण व सीखने की प्रक्रिया को प्रेरित करने में सहायक है।
12. इसके द्वारा उद्देश्यों की प्राप्ति का मूल्यांकन करके शिक्षण प्रक्रिया को आवश्यकतानुसार सुधारा जा सकता है।
13. शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए शिक्षण तकनीकी मानवीय तथा अमानवीय दोनों साधनों का उपयोग करती है।

मैकमरिन (McMurin, 1970) ने अनुदेशन तकनीकी की व्याख्या करते हुए लिखा है

"Instructional Technology is a systematic way of designing, carrying out and evaluating the total process of learning and teaching in terms of specific objective based on research, on human learning and communication and employing a combination of human and nonhuman resources to bring about more effective instructions."
 
अनुदेशन तकनीकी की विषय-वस्तु
(Content of Instructional Technology)

1. अनुदेशन तकनीकी का अर्थ एवं स्वरूप।
2. अभिक्रमित अनुदेशन (Programmed Instruction) की उत्पत्ति तथा विकास।
3. अभिक्रमित अनुदेशन के प्रकार, उनकी विशेषताएँ, सिद्धान्त, संरचनाएँ तथा आधारभूत मान्यताएँ एवं उपयोग।
 4. अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री निर्माण करने के विभिन्न सोपान तथा उनका वर्णन।
 5. अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री निर्माण।
6. अभिक्रमित अनुदेशन के क्षेत्र में शोध एवं प्रयोग तथा नवीन विचारधाराएँ

अनुदेशन तकनीकी के सोपान
(Steps of Instructional Technology)

1. अनुदेशन सामग्री का चयन करना (उद्देश्यों के अनुसार)।
2. विभिन्न विधियों, प्रविधियों, युक्तियों तथा श्रव्य-दृश्य का प्रयोग करके पाठ को प्रस्तुत करना।
3. मूल्यांकन करना।
4. सुधार के लिए सुझाव प्रदान करना।

3. व्यवहार तकनीकी
(BEHAVIOURAL TECHNOLOGY)

व्यवहार तकनीकी इस बात पर जोर देती है कि किस प्रकार से सीखने और सिखाने के मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रयोग किया जाये, जिससे कि छात्रों में अपेक्षित परिवर्तन आ जाये। दूसरे शब्दों में व्यवहार तकनीकी हमें यह बताती है कि—

1. छात्रों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन कैसे किया जाये।
2. शिक्षकों के कक्षा सम्बन्धी व्यवहार में कैसे सुधार लाया जाये।

'व्यवहार तकनीकी' भी दो शब्दों से मिलकर बनी है-(1) व्यवहार (Behaviour) तथा (2) तकनीकी (Technology)| व्यवहार प्राणी की गति को कहा जाता है। यह मनुष्य का आचरण या जीवन प्रणाली भी कहलाता है। स्किनर (Skinner) के अनुसार व्यवहार मानव की गति या किसी सन्दर्भ संरचना में उसका अंश है जिसे प्राणी बाह्य उद्देश्यों या शक्ति क्षेत्रों से प्राप्त करता है।

अतः व्यवहार तकनीकी वह विज्ञान है जो शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षकों के व्यवहारों का वैज्ञानिक विधियों द्वारा अध्ययन करता है और आवश्यकतानुसार उनके व्यवहारों का परिमार्जन करता है।

व्यवहार तकनीकी के क्षेत्र में सर्वाधिक कार्य अमीडन, फ्लैण्डर्स, स्किनर, ओबर तथा एण्डरसन (Amidon, Flanders, Skinner, Ober and Anderson) ने किया है।

व्यवहार तकनीकी का प्रमुख उद्देश्य सीखने की प्रक्रिया का परिमार्जन करना है जिससे कि छात्रों में सरलता से वांछित उद्देश्यों के अनुकूल व्यवहार परिवर्तन किया जा सके। यह तकनीकी शाब्दिक तथा अशाब्दिक (Verbal and Non-Verbal) दोनों प्रकार के व्यवहारों का अध्ययन तथा परिमार्जन करती है।
यह विषय पूर्ण रूप से मनोविज्ञान का उपयोग करता है। कहा भी गया है कि

"Psychology is the science of behaviour, and learning is the modification of behaviour through activities & experiences. In the field of Education, Behaviour Tech nology is the application of scientific principles in the nodification of 'Teacher Behaviour'. It is based on the theory of Skinner that behaviour is controlled by its consequences."

व्यवहार तकनीकी की मान्यताएँ
(Assumptions of Behavioural Technology)

1. व्यवहार का निरीक्षण किया जा सकता है।
2. व्यवहार का मापन किया जा सकता है।
3. व्यवहार Quantifiable होता है।
4. व्यवहार के सामाजिक, मनोवैज्ञानिक एवं दार्शनिक आधार होते हैं।
5. व्यवहार में परिमार्जन किया जा सकता है।
6. व्यवहार सुधार के लिए दण्ड तथा पुरस्कार दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं।

व्यवहार तकनीकी की प्रक्रिया
(Process of Behavioural Technology)

व्यवहार तकनीकी की प्रक्रिया को निम्नांकित प्रकार से प्रदर्शित किया जा सकता है

पुनर्बलित अभ्यास | (Reinforced Practice)
सीखना (Learning)
व्यवहार में सापेक्षिक स्थायी परिवर्तन |
(Relatively Permanent Behaviour)

व्यवहार तकनीकी की विशेषताएँ
(CHARACTERISTICS OF BEHAVIOUR TECHNOLOGY)

1. व्यवहार तकनीकी शाब्दिक एवं अशाब्दिक दोनों प्रकार के कक्षा में व्यवहारों का अध्ययन करती है।
2. व्यवहार तकनीकी का ध्येय कक्षा में व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाना है।
3. यह मनोविज्ञान केन्द्रित विचारधारा है।
4. यह शिक्षण के सिद्धान्तों के विकास में सहायक है।
5. शिक्षण का वैज्ञानिक ढंग से मूल्यांकन करती है।
6. यह मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का शिक्षण और प्रशिक्षण के क्षेत्रों में प्रयोग करती है।
7. यह ज्ञानात्मक तथा क्रियात्मक (दोनों ही तरह के) उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक है।
8. यह सीखने के आपरेण्ट कण्डीशनिंग तथा पुनर्बलन आदि विभिन्न सिद्धान्तों पर आधारित है।
9. यह व्यक्तिगत विभिन्नताओं पर ध्यान देती है।

व्यवहार तकनीकी की विषय-वस्तु
(CONTENT OF BEHAVIOURAL TECHNOLOGY)

व्यवहार तकनीकी के अन्तर्गत निम्नांकित प्रकरणों का अध्ययन किया जाता है

1. शिक्षण तथा शिक्षक व्यवहार का अर्थ तथा स्वरूप।
2. व्यवहार के सिद्धान्त तथा मान्यताएँ।
3. कक्षा अन्तःप्रक्रिया अध्ययन विधियाँ।
4. विभिन्न कक्षागत व्यवहारों का अध्ययन, व्याख्या तथा मूल्यांकन एवं मापन।
5. माइक्राटीचिंग तथा मिनीटीचिंग।
6. सीमुलेटेड शिक्षण।
7. टीम समूह प्रशिक्षण।
8. टीम टीचिंग।
9. शिक्षक व्यवहार प्रतिमान।

शिक्षण तकनीकी, अनुदेशन तकनीकी तथा व्यवहार तकनीकी
का तुलनात्मक अध्ययन
(COMPARATIVE STUDY OF TEACHING TECHNOLOGY, INSTRUCTIONAL TECHNOLOGY AND BEHAVIOURAL TECHNOLOGY)

उपर्युक्त तीनों प्रकार की तकनीकियों का अध्ययन करने के लिए अगले पृष्ठों पर एक तालिका प्रस्तुत की जा रही है।

4. अनुदेशन प्रारूप
(INSTRUCTIONAL DESIGNS)

शैक्षिक तकनीकी का चतुर्थ वर्ग अनुदेशन प्रारूप कहलाता है। शिक्षण प्रक्रिया में अनुदेशन प्रारूप का अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है। अनुदेशन दो शब्दों से मिलकर बना है-

(1) अनुदेशन तथा
(2) प्रारूप (Instruction + Designs)|

अनुदेशन का अर्थ है सूचनाएँ देना तथा प्रारूप का अभिप्राय "वैज्ञानिक विधियों से जाँच किये गये सिद्धान्तों से है। सारा शोध-संसार कुछ धारणाओं के आधार पर कार्य करता है और उनका मूल्यांकन कर निश्चित निष्कर्षों पर पहुँचने से मदद देता है। दूसरे शब्दों में प्रत्येक शोध का अपना प्रारूप होता है। इसी प्रकार शिक्षण के क्षेत्र में जिन प्रारूपों पर कार्य किया जाता है उन्हें अनुदेशन प्रारूप कहते हैं।

छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए सीखने के सिद्धान्तों के साथ-साथ शिक्षण की परिस्थितियों, कार्यों, विधियों और उपागमों के सम्मिलित रूप को अनुदेशन प्रारूप कहा जाता है।

डेविड मैरिल (David Marrill) के अनुसार

"Instructional design is the process of specifying and producing particular envi ronmental situations which cause the learner to interact in such a way that a specified change occurs in his behaviour."

डेरिक अनविन (Derick Unmwin) ने इसका अर्थ बताते हुए स्पष्ट किया है कि "अनुदेशक प्रारूप आधुनिक कौशल, प्रविधियों तथा युक्तियों का शिक्षा और प्रशिक्षण में प्रयोग है। अनुदेशन प्रारूप, इन कौशलों , प्रविधियों तथा युक्तियों आदि के माध्यम से शैक्षिक वातावरण को नियन्त्रित करते हैं और कक्षा में सीखने तथा सिखाने के कार्य को सरल, सुगम तथा उपादेय बनाने में सहायता करते हैं।"

अनविन (Unwin) के शब्दों में

"Instructional design is concerned application of modern skills & techniques of requirement of education & training. This includes the facilitation of learning by manipulation of media and methods and the control of environment is so far as this reflects on leaming."

सारणी-विभिन्न प्रकार की शैक्षिक तकनीकियों का तुलनात्मक अध्ययन
तुलनात्मक शिक्षण तकनीकी अनुदेशन तकनीकी
व्यवहार तकनीकी
बिन्दु (Teaching Technology)
(Instructional Technology)
(Behavioural Technology) 1. जन्मदाता | मौरीसन, हर्बर्ट, डेवीज, हंट आदि। | ब्रूनर, ग्लेजर, आसुबेल, स्किनर आदि। स्किनर, एमीडन, फ्लेंडर, ओवर आदि।
(Exponent) 2. उद्देश्य | ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा क्रियात्मक | केवल ज्ञानात्मक उद्देश्य
क्रियात्मक उद्देश्यों के साथ ही ज्ञानात्मक
(Objectives) | उद्देश्यों का विकास।
एवं भावात्मक उद्देश्यों का विकास।
3. प्रणाली | पाठ्य-वस्तु एवं सम्प्रेषण (Content& मशीन (Physical)|
व्यवहार (Behaviour)|
(Approach) | Communication)|
पाठ्य-वस्तु एवं सम्प्रेषण तथा शिक्षक पाठ्य-वस्तु की संरचना तथा संगठन एवं सम्प्रेषण, छात्र एव शिक्षकों के बीच सक्रिय (Components) एवं छात्र सभी प्रमुख तत्त्व हैं। प्रस्तुतीकरण। (छात्र अधिक सक्रिय तत्त्व हैं) | अन्तःक्रिया, विश्लेषण प्रमुख तत्त्व हैं। 5. आधार मनोविज्ञान, समाजशास्त्र तथा दार्शनिक मनोवैज्ञानिक तथा वैज्ञानिक आधार। | मनोविज्ञान एवं Cybernaties के सिद्धान्त।
(Foundation)/ एवं वैज्ञानिक आधार।। 6. व्यवस्था | शिक्षक एवं छात्र दोनों के मध्य। | दृश्य-श्रव्य, अन्य युक्तियों और व्यक्तियों द्वारा || शिक्षक द्वारा।
(Organization) 7. प्रमुख लक्षण | सूचना देना।
अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन।
प्रभावशाली शिक्षण।
 
8. पाठ्य-वस्तु | शिक्षण प्रतिमान व सिद्धान्त, शिक्षण | कार्य-विश्लेषण, उद्देश्य, पुनर्बलन युक्तियाँ तथा शिक्षक व्यवहार के सिद्धान्त, व्यवहार (Content) | युक्तियों व नीतियों, शिक्षण का नियोजन | परीक्षण।
निरीक्षण प्रविधि, विश्लेषण एवं शिक्षक
व्यवस्था मार्ग-दर्शन तथा नियन्त्रण।
व्यवहार में सुधार।
9. शिक्षण स्तर स्मृति, बोध एवं चिन्तन।
स्मृति।
स्मृति तथा बोध।
(Levels of
Teaching)
बिन्दु
तुलनात्मक शिक्षण तकनीकी अनुदेशन तकनीकी
व्यवहार तकनीकी
(Teaching Technology) (Instructional Technology)
(Behavioural Technology)
10. शिक्षक का प्रबन्धक (Manager)|
सहायक।
स्थान (Place
of Teacher)
11. सिद्धान्त शिक्षण-कला व सीखने के सिद्धान्त। लागत प्रक्रिया उत्पादन सिद्धान्त। सीखने के सिद्धान्त-ऑपरेण्ट कण्डीश (Principle)
निंग पुनर्बलन एवं पृष्ठ-पोषण आदि।
12. उदाहरण | स्मृति, बोध तथा चिन्तन स्तर पर . स्वतः शिक्षा, लीनियर तथा ब्रान्चिंग अभिक्रमित माइक्रोटीचिंग तथा मिनीटीचिंग, सीमु (Examples) | शिक्षण, शिक्षण-व्यवस्था (Manage- | अध्ययन, मैथेटिक्स (Mathetics). पत्राचार लेटेड-सामाजिक कौशल शिक्षण अन्तः ment of Teaching)|
पाठ्यक्रम तथा ओपिन यूनीवर्सिटी (Corres- | क्रिया विश्लेषण,टी० समूह प्रशिक्षण, pondence Courses and Open University . टीम टीचिंग आदि।
System)
13. महत्व | शिक्षण को अधिक प्रभावशाली तथा (1) अनुदेशन सिद्धान्त का विकास करती है। शिक्षक-व्यवहार के सिद्धान्त का विकास (Signi- | उद्देश्यपूर्ण बनाती है।
करती है, व्यवहार में सुधार लाती है।
ficance) (2) शिक्षण सिद्धान्तों का विकास (2) अनुदेशन प्रक्रिया को उसके ध्येयों
के साथ सम्बन्धित करती है।
14. शैक्षिक उपयोग कक्षा शिक्षण को उद्देश्यपूर्ण तथा स्वतः शिक्षा, दूरवर्ती एवं पत्राचार पाठ्यक्रम | यह प्रभावशाली शिक्षक बनाने में अत्यन्त (Educational | प्रभावशाली बनाती है।
तथा Remedial Teaching में उपयोगी है।
 उपयोगी है।
Implication)
 
अनुदेशन प्रारूप की मान्यताएँ
(ASSUMPTIONS OF INSTRUCTIONAL DESIGNS)

 1. अनुदेशन प्रारूप, शिक्षण सिद्धान्तों पर आधारित होता है।
 2. यह परिकल्पनात्मक तथ्यों को सहज रूप में परीक्षण के लिए स्वीकार करता है।
 3. अनुदेशन प्रारूप, भौतिक, संगणक तथा गणितीय प्रारूपों की सहायता लेता है।
4. अनुदेशन प्रारूप में अधिगम के मापन के लिए प्रतिमानों (Pattern) का होना आवश्यक है। व्यवहार को उसके परिणामों के सन्दर्भ में नियन्त्रित किया जाता है।
5. नियम. सिद्धान्त तथा रचना. ये सभी अनुदेशन प्रारूप के लिए आवश्यक है।
6. शिक्षण कला एवं विज्ञान दोनों है। 7. शिक्षक को प्रभावशाली प्रशिक्षण के माध्यम से बनाया जा सकता है।
8. अनुदेशन प्रारूप में अधिगम संरचनाएँ. शिक्षण सिद्धान्त तथा पाठ्य-वस्तु की संरचना-ये सभी पक्ष महत्त्वपूर्ण हैं।

अनदेशन प्रारूप के प्रकार
(TYPES OF INSTRUCTIONAL DESIGNS)

 शिक्षा की समस्याओं को सुलझाने के लिए अनेक उपागम शिक्षा के क्षेत्र में आये हैं। इन नवीन उपागमों (Approaches) के क्षेत्र में अनुदेशन प्रारूप के निम्नांकित तीन उपागम सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। ये चार्ट द्वारा प्रदर्शित किये गये हैं।
 
अनुदेशन प्रारूप के प्रकार
(Types of Instructional Designs)

प्रशिक्षण मनोविज्ञान प्रारूप सम्प्रेषण नियन्त्रण प्रारूप प्रणाली उपागम
(Training Psychology Design (Cybernatic Design)(Systems Approach)

ये तीनों प्रारूप एक-दूसरे के सहभागी अथवा (Supplementary) पूरक प्रारूप हैं। ये शैक्षिक तकनीकी के अदा, प्रदा तथा प्रक्रिया (Input, Output and Process) पक्षों से घनिष्ठ सम्बन्ध रखते हैं।

प्रशिक्षण मनोविज्ञान प्रारूप
(TRAINING PSYCHOLOGY DESIGN)

प्रशिक्षण मनोविज्ञान प्रारूप, कार्य-विश्लेषण (Task Analysis) तथा सम्बन्धित प्रशिक्षण अवयवों पर विशेष ध्यान देता है। ये शैक्षिक तकनीकी के अदा (Input) पक्ष से सम्बन्धित हैं। इसकी उत्पत्ति सैनिक आवश्यकताओं की अनुक्रिया के फलस्वरूप हुई थी। सेना में बम वर्षकों के प्रशिक्षण में सर्वप्रथम इस विधि का प्रयोग किया गया। इस प्रारूप में एक सीधी विश्लेषण विधि का सहारा लिया जाता है जिसमें प्रशिक्षण अंगों का विकास किया जाता है। रॉबर्ट गैने (Robert Gagne) तथा ग्लेजर (Glazer) आदि ने इस प्रारूप पर विशेष रूप से प्रकाश डाला है।

 प्रशिक्षण मनोविज्ञान प्रारूप उद्देश्यों या कार्यों पर बल देता है और उन्हें विभिन्न तत्वों में विभाजित करता है। इस प्रारूप में निम्नांकित सोपान हैं
 
1. कार्य तत्वों (Component Tasks) को पहचानना।
2. उनकी प्राप्ति के सम्बन्ध में विचार करना
3. सीखने की पूर्ण परिस्थिति को एक व्यवस्थित क्रम (Sequence) प्रदान करना।

अतः कहा जा सकता है कि इस प्रारूप के तीन प्रमुख अंग हैं

1. कार्य-विश्लेषण (Task Analysis)
2. अन्तःकार्य-अन्तरण (Intra-Task-Transfer) तथा
3. व्यवस्थित क्रम (Proper Sequencing)|

शिक्षा के क्षेत्र में इस प्रारूप का क्षेत्र काफी विस्तृत है और इसमें शोध के लिए अनेक आयाम एवं समस्याएँ हैं। शिक्षण-प्रशिक्षण के क्षेत्र में उद्देश्यों के निर्धारण, उद्देश्यों को विशिष्ट व्यावहारिक पदों में लिखने तथा अध्यापकों में कौशल विकसित करने के लिए यह प्रारूप हमारे लिए बहुत उपादेय है। इसके माध्यम से शिक्षण प्रक्रियाओं तथा शिक्षण-कौशलों का विश्लेषण किया जा सकता है और पाठ योजना बनाने में तथा पाठ्यक्रम निर्माण हेतु यह वैधानिक आधार प्रदान करता है।

सन् 1960 के दशक में इस प्रारूप और अनेक शैक्षिक प्रतिमान (Teaching.Models) से प्रमुख प्रतिमान निम्नांकित हैं

1. जोर्जिया शैक्षिक प्रतिमान
2. विसकोनसिन विश्वविद्यालय प्रतिमान,
3. शैक्षणिक प्रतिमान निर्देशन
4. फ्लोरिडा मॉडल (Florida Model)
5. मिशीगन स्टेट मॉडल (Michigun State Model)
6. सिराक्यूज मॉडल (Syracuse Model)
7. शिक्षक कॉलेज मॉडल
६. रीजनल लैबोरेटरी मॉडल
9. टीचर्स फार दी रीयल वर्ल्ड मॉडल (Teachers for the Real World Model);

प्रशिक्षण मनोविज्ञान प्रारूप की उपयोगिता
(Utility of Training Psychology Design)

1. शिक्षक प्रशिक्षण प्रतिमान विकसित करने में यह अत्यन्त उपयोगी है।
2. अनुदेशन (Instructions) विकसित करने में सहायक है।
3. शिक्षक को कार्य-विश्लेषण कर तत्वों में विभाजित कर उन्हें उचित क्रम प्रदान करती
4. ब्रांचिंग अभिक्रमित अध्ययन इसी के सिद्धान्तों का परिणाम है।
5. शिक्षक प्रशिक्षण की प्रयोगात्मक समस्याओं का समाधान करती है।
6. वर्तमान प्रशिक्षण कार्यक्रमों में सुधार लाने में प्रयत्नशील है।
7. प्रशिक्षण के उद्देश्यों के निर्धारण करने में मदद देती है और वास्तविक शैक्षिक प्रशिक्षण के कार्यक्रमों को आयोजित करने की योजनाएँ तैयार करती है।
8. छात्रों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं का ध्यान रखते हुए उन्हें सहायता प्रदान करती है।
9. यह प्रारूप Remedial instructions, development of curriculum तथा Instructional Material तैयार करने में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।
10. शिक्षण तथा प्रशिक्षण को यह प्रभावशाली बनाती है।

सम्प्रेषण नियंत्रण प्रारूप
(CYBERNETICS DESIGN)

सम्प्रेषण नियन्त्रण शब्द Cybernetics का हिन्दी पर्याय है| cybernetics ग्रीक भाषा के Kybernets से निकला है, जिसका अर्थ है पायलट (Pilot) या प्रशासक (Governor)| Kybornem शब्द का अभिप्राय शासन करने से है। अत: कहा जा सकता है कि सम्प्रेषण नियन्त्रण, प्रशासन करने की एक व्यवस्था अथवा प्रारूप है। Itisa Science of Communication and Control. इसमें नियन्त्रण आधारभूत तत्व है। नियन्त्रण से अभिप्राय यहाँ पर 'परस्पर सम्बद्ध रहने से है। यह प्रारूप "गतिशीलता तथा स्वचालन (Self-regulation) को लक्ष्य मानता हुआ इस बात पर जोर देता है कि सम्प्रेषण नियन्त्रण प्रक्रिया की समस्त विधियाँ छात्रों के व्यवहार को नियन्त्रित करके उनके व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लायें।"

आधारभूत तत्व
(Basic Elements)

सम्प्रेषण नियन्त्रण की प्रक्रिया में तीन आधारभूत तत्व होते हैं—

(1) अदा या लागत (Input) यह सम्पूर्ण प्रक्रिया में प्रथम आवश्यक अदा, या शिक्षण सामग्री का प्रस्तुतीकरण है। उदाहरणार्थ, पुस्तकालय अदा के अन्तर्गत लिखित-मुद्रित सामग्री, दृश्य-श्रव्य सामग्री, डायग्राम तथा चार्ट आदि आते हैं। अतः यह वह इकाई है जिससे हमें प्रक्रिया का बोध होता है और जिसके द्वारा हमें पाठन सामग्री या सूचनाएँ प्राप्त होती हैं।
दूसरी महत्त्वपूर्ण अदा 'अनुदेशन व्यवस्था का वस्तुनिष्ठ होना है, जिसकी पुष्टि यह प्रारूप करता है। तीसरी अदा 'छात्रों की निजी विशेषताओं के अनुदेशन व्यवस्था में स्थान दिलाती है और अन्तिम अदा 'अनुक्रिया के रूप में छात्रों का अनुशीलन है।
(2) प्रदा (Output) अनुदेशन व्यवस्था में छात्रों के सामने प्रदर्शन करना एक प्रदा कहलाती है। यह इकाई क्रम की प्रक्रिया का परिणाम है, जो लिखित भी हो सकती है और अलिखित भी। इसका उद्देश्य कुछ अनुक्रियाओं को उत्पन्न करना होता है।
(3) यन्त्र/संसाधक (Processor)-इसके माध्यम से सूचनाओं में अथवा सामग्री में संशोधन तथा परिमार्जन किया जाता है। संसाधक का अभिप्राय उस यन्त्र से भी होता है जो तथ्यों को किसी रेखीय विधि से क्रमशः प्रदर्शित करता है। छात्र कक्षा में जो भी अनुक्रियाएँ करते हैं, संसाधक उनमें संशोधन कर उन्हें क्रमबद्ध बनाता है।
सम्प्रेषण नियन्त्रण प्रक्रिया में सम्प्रेषण व्यवस्था दो प्रकार की होती है
(1) मुक्त पाश व्यवस्था या खुली कड़ी क्रम (Open Loop System)-मुक्त पाश क्रम में प्राप्त उपलब्धि का प्रभाव उसके भविष्य के किसी कार्य पर नहीं पड़ता है। इससे न तो अदा (Input) प्रभावित होती है और न ही प्रदा (Output) प्रभावित होती है।
(2) आवृत पाश व्यवस्था (Closed Loop System) --आवृत पाश व्यवस्था को 'बन्द कड़ी क्रम भी कहा जाता है। इस क्रम में परिणाम या Output प्रणाली के अंग बन जाते हैं और भविष्य के प्रयोगों, परिणामों तथा उपलब्धि पर प्रभाव डालते हैं। इस प्रकार की व्यवस्था को ही सम्प्रेषण नियन्त्रण व्यवस्था कहा जाता है।
 इस प्रारूप के अनुसार शिक्षक और छात्र मशीन की भाँति काम करते हैं और शिक्षण प्रक्रिया में सम्प्रेषण तथा नियन्त्रण जैसी प्रक्रियाएँ चलती रहती हैं। शिक्षक छात्रों को विभिन्न विधियों से पढ़ाते हैं उन्हें सीखने के योग्य बनाते हैं और नवीन ज्ञान प्रदान करते हैं।
 
सम्प्रेषण नियन्त्रण व्यवस्था की उपयोगिता
(Utility of C+bernetics)
 
1. यह व्यवस्था शिक्षण प्रक्रिया को अधिक व्यवस्थित तथा वैज्ञानिक बनाती है।
2. लीनियर अभिक्रमित अध्ययन के सिद्धान्तों को स्पष्ट करती है।
3. यह शिक्षण का सार्वभौमिक रूप प्रदर्शित करती है।
4. शिक्षण प्रक्रिया का वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत कर इसे उन्नतशील बनाने का प्रयास करती है।
5. शिक्षक को शिक्षण-तन्त्र समझने में सहायता देती है।
6. इससे नियन्त्रण द्वारा अपेक्षित अधिगम व्यवहार की प्राप्ति होती है।
7. पृष्ठपोषण तथा अनुशीलन (Feedback) के माध्यम से छात्रों के सीखने के व्यवहार को नियोजित एवं नियन्त्रित रखती है।
8. नवीन शिक्षण के प्रतिमान तैयार करने में सहायक है।
9. कक्षा-अनुदेशन में उपयोगी है।
10. यह सामूहिक तथा वैयक्तिक दोनों प्रकार के अनुदेशन पर ध्यान देती है।
11. इसके पृष्ठपोषण (Feedback) के सिद्धान्त के फलस्वरूप शिक्षक प्रशिक्षण के क्षेत्र में अनेक नवीन विचारधाराएँ आयी हैं।

उदाहरणार्थ, माइक्रोटीचिंग, मिनीटीचिंग, अभिक्रमिक अध्ययन, अन्तःक्रिया विश्लेषण आदि। ये सभी सम्प्रेषण नियन्त्रग व्यवस्था के पृष्ठपोषण या Feedback के सिद्धान्तों पर आधारित हैं।

अनुदेशन प्रारूपों का तुलनात्मक अध्ययन
(COMPARATIVE STUDY OF INSTRUCTIONAL DESIGNS)

अग्नांकित सारणी के माध्यम से तीनों अनुदेशन प्रारूपों का तुलनात्मक अध्ययन पृष्ठ 76 पर प्रस्तुत किया गया है।

शैक्षिक तकनीकी के लाभ तथा सीमायें
(ADVANTAGES & LIMITATIONS OF EDUCATIONAL TECHNOLOGY)

 शैक्षिक तकनीकी से लाभ
(Advantages of Educational Technology)

1. शैक्षिक तकनीकी, शिक्षक को पाठ प्रस्तुतीकरण को प्रभावशाली बनाने के लिए प्रोत्साहित करती है।
2. शैक्षिक तकनीकी, छोटे तथा बड़े समूह में, एवं व्यक्तिगत स्तर पर भी, शिक्षण एवं अधिगम सम्बन्धी उद्दीपन तथा अनुक्रिया प्रदान करके, शिक्षक की गुणात्मक योग्यता का विस्तार करती है।
3. शैक्षिक तकनीकी, शिक्षण कार्य को उद्देश्य केन्द्रित बनाने में तथा छात्र केन्द्रित रखने में सहायता एवं प्रभावशाली निर्देशन प्रदान करती है।
4. शैक्षिक तकनीकी, शिक्षण-प्रक्रिया को सरल, सुगम तथा रोचक बनाते हुए छात्रों के ज्ञान एवं अनुभव की वृद्धि में सहायक होती है।
5. शैक्षिक तकनीकी. शिक्षण में विविधता लाने के लिए विभिन्न विधाओं एवं साधनों का प्रयोग करती है और छात्रों की कक्षा कार्य में सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करती है।
6. शैक्षिक तकनीकी, शिक्षक को ऐसी प्रक्रियाओं और साधनों का ज्ञान देने का प्रयास करती है जो उपचारात्मक शिक्षण, शोध तथा अन्य सम्बन्धित कार्यों में मदद देती है।
7. स्व-अनुदेशित कार्यक्रमों (Self-Instructional Programmes) के माध्यम से शैक्षिक तकनीकी व्यक्तिगत अनुदेशन (Individual Instruction) के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
8. शैक्षिक तकनीकी. शिक्षण-अधिगम-प्रक्रिया को अधिक जीवन्त, रोचक, प्रेरक तथा सक्रिय बना कर शिक्षण में सुधार लाकर, शिक्षण की गुणवत्ता में वृद्धि करती है।
9. शैक्षिक तकनीकी, जन-संचार के साधनों का उपयोग करते हुये एक साथ बहुत बड़ी जनसंख्या तक (पत्राचार तथा दूरस्थ शिक्षा आदि के द्वारा) शिक्षा पहुँचाने में सहायता देती है।
10. शिक्षार्थियों के आर्थिक, सामाजिक तथा भौगोलिक स्तर पर बिना ध्यान दिये हुये शैक्षिक तकनीकी सभी के लिये समान शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिये एक शक्तिशाली साधन है।
11. टेलीविजन, रेडियो, कैसेट, वीडिओ आदि साधनों के माध्यम से शैक्षिक तकनीकी सेवारत (Inservice) शिक्षकों एवं कर्मचारियों के लिये अनवरत शिक्षा के द्वार खोलती है।

शैक्षिक तकनीकी की सीमायें
(Limitations of Educational Technology)
 
शैक्षिक तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में आज बहुत लोकप्रिय हो रही है, वहाँ इसकी कुछ सीमायें भी हैं। ये सीमायें नीचे बिन्दुवार दी जा रही हैं

1. शैक्षिक तकनीकी ने ज्ञानात्मक पक्ष के विकास में अभूतपूर्व योगदान प्रदान किया है. परन्तु भावात्मक एवं संवेगात्मक क्षेत्र में इसका योगदान अत्यन्त सीमित है। भावात्मक पक्ष का विकास केवल शिक्षकों के द्वारा ही सम्भव है।
2. शैक्षिक तकनीकी के प्रयोग के लिये प्रारम्भ में बड़ी संख्या में धनराशि की आवश्यकता होती है। इसमें अनेक प्रकार की सामग्री खरीदनी पड़ती है, विभिन्न प्रकार के प्रबन्ध करने होते हैं, फलस्वरूप प्रारम्भिक व्यय की धनराशि काफी ज्यादा हो जाती है, जिसके लिये अनेक दिक्कतें आती हैं। यद्यपि बाद में यह सारा व्यय छात्रों की बड़ी संख्या में शिक्षित करने को देखते हुये अपेक्षाकृत कम ही होता है। यह तथ्य अनेक 'मूल्य-विश्लेषण' के अध्ययनों से स्पष्ट है।
3. शैक्षिक तकनीकी के प्रयोग के लिये विशेष प्रकार के प्रशिक्षण की व्यवस्था अति आवश्यक है। इस प्रशिक्षण के बिना शिक्षक कम्प्यूटर, इन्टरनेट आदि का सही ढंग से पूरा लाभ उठा नहीं पाते।
4, शैक्षिक तकनीकी के द्वारा सभी प्रकार की शैक्षिक समस्याओं का समाधान सम्भव नहीं है। शैक्षिक तकनीकी विशेष रूप से शिक्षण एवं अनुदेशन प्रणाली के विकास में ज्यादा उपयोगी है।
5. शैक्षिक तकनीकी हार्डवेयर (कठोर शिल्प) की मशीनों के निर्माण से सम्बन्धित नहीं है। यह तो केवल हार्डवेयर का शिक्षा एवं शिक्षण के क्षेत्र में प्रभावशीलता लाने के लिये 'उपयोग' करती है। शैक्षिक तकनीकी इन्जीनियरिंग की तकनीकी शिक्षा नहीं है।

 भारतवर्ष में शैक्षिक तकनीकी का सामाजिक एवं शैक्षिक महत्त्व
 (SOCIO-ACADEMIC RELEVANCE OF EDUCATIONAL TECHNOLOGY IN INDIA)

भारतवर्ष में शैक्षिक तकनीकी का प्रयोग अभी ज्यादा पुराना नहीं है। भारतवर्ष के सामाजिक एवं शैक्षिक सन्दर्भ में यह विषय अब ज्यादा महत्वपूर्ण बनता जा रहा है।

समाज तथा शिक्षा के मध्य प्रतीकात्मक सम्बन्ध स्पष्ट है। सामाजिक विकास के लिये शिक्षा एक साधन है तथा शैक्षिक Excellence के लिये विकसित समाज एक प्रतिबद्धता है। ये दोनों परस्पर प्रभावित होते हैं। शिक्षा समाज का निर्माण करती है और समाज, शैक्षिक व्यवस्था की संरचना करता है। शैक्षिक तकनीकी शिक्षा और समाज दोनों को समृद्ध बनाती है. और दोनों को प्रभावित करती है। शैक्षिक तकनीकी से शिक्षा, सुनियोजित, सुसंगठित तथा सुव्यवस्थित बनती है और समाज में जन संचार के विभिन्न साधन लोगों को परस्पर पास लाते हैं। अतः शैक्षिक तकनीकी समाज तथा शिक्षा दोनों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

भारतवर्ष में हजारों सदियों से चलती आ रही संस्कृति, सामाजिक संस्थायें, परम्परायें, विश्वास तथा मूल्यों पर शिक्षा, समाज तथा शैक्षिक तकनीकी का प्रभाव अब दृष्टिगोचर होने लगा है। भारतीय समाज बदल रहा है, उसके परिवेश में अन्तर आ रहा है, उसकी संस्कृति, परम्पराओं तथा मूल्यों में बदलाव दिखायी दे रहा है। पाश्चात्यीकरण, औद्योगीकरण, शहरीकरण, धर्म निरपेक्षता पर बढ़ता हुआ दबाव, सामाजिक स्थानान्तरण, राजनीतिकरण तथा आधुनिकीकरण परिवर्तन के द्योतक, महत्त्वपूर्ण आयाम हैं। सामाजिक अभिवृत्तियों, व्यवहारों, प्रवृत्तियों, सम्बन्धों में ये सामाजिक परिवर्तन स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। शिक्षा ये सामाजिक परिवर्तन लाने में एक शक्तिशाली साधन के रूप में कार्य कर रही है। शैक्षिक तकनीकी, श्रव्य-दृश्य सामग्री, दूरसंचार तथा जनसंचार के साधन एवं वैज्ञानिक तथा तकनीकी

आविष्कार शिक्षा को एक शक्ति सम्पन्न सम्बल देने में समर्थ सिद्ध हुये हैं।

शैक्षिक तकनीकी का सामाजिक तथा शैक्षिक सन्दर्भ में Relevance जानने में निम्नांकित प्रश्न अधिक उपादेय सिद्ध होते हैं

1. समाज में क्या और कौन से परिवर्तन हो रहे हैं ?
2. शिक्षा में किस प्रकार के बदलाव आ रहे हैं ?
3. शिक्षा और समाज के इन बदलावों का क्या प्रभाव पड़ रहा है?
4. शैक्षिक सन्दर्भ में सामाजिक परिवर्तनों का क्या योगदान रहा है?
5. सामाजिक परिवर्तन शिक्षा को किस प्रकार से प्रभावित कर रहे हैं?
6. विज्ञान एवं तकनीकी के क्षेत्र में क्या-क्या नये आविष्कार हये हैं ?
7. इन आविष्कारों का शैक्षिक तकनीकी किस प्रकार से उपयोग कर रही है?
8. शैक्षिक तकनीकी किस प्रकार से समाज एवं शिक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है?
9. सामाजिक तथा शैक्षिक सन्दर्भ में शैक्षिक तकनीकी किस प्रकार से नेतृत्व कर रही है और उसका यह नेतृत्व इन्हें कहाँ एवं किस दिशा में कैसे ले जा रहा है?

आज के युग में आधुनिक समाज का शिक्षक, शिक्षार्थी तथा शिक्षालय बिना शैक्षिक तकनीकी के जीवित नहीं रह सकता। शैक्षिक तकनीकी तो आज इनकी नस-नस में बसती जा रही है। शैक्षिक तकनीकी अब औपचारिक मात्र न रह कर कार्यात्मक रूप लेती जा रही है।

एरिक एशवी (Eric Ashby) ने 1967 में चार क्रान्तियों का उल्लेख किया। उनके अनुसार प्रथम क्रान्ति समाज में तब आयी जब श्रम-विभाजन का मुद्दा उठाया गया और बच्चों को शिक्षित करने का कार्य माता-पिता एवं घर से शिक्षकों तथा शिक्षालयों पर आ गया।

पहले मौखिक Toral) शिक्षा प्रचलित थी। बाद में शिक्षा उपकरण के रूप में लिखित शब्दों का प्रयोग होने लगा-यह दूसरी क्रान्ति थी, जिसके फलस्वरूप विद्यालयों में मौखिक शिक्षा के साथ लिखित शिक्षा ने भी स्थान बना लिया।

तीसरी क्रान्ति मुद्रण के आविष्कार के साथ आयी, परिणामस्वरूप अब पर्याप्त मात्रा में पढ़ने के लिये पुस्तकें उपलब्ध होने लगीं।

इलैक्ट्रोनिक्स तकनीकी के क्षेत्र में आये विकासशील परिवर्तन चौथी क्रान्ति की सूचना दे रहे हैं। आज विकासशील परिवर्तनों में रेडियो, टेलीविजन, टेपरिकार्डर, कम्प्यूटर, ई० मेल, डिजिटल वीडियो तथा इन्टरनैट एवं सी०डी० रोम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

'अधिगम-दर' को बढ़ाने के लिये आज शैक्षिक तकनीकी शिक्षक के कार्य को हल्का तो कर रही है. परन्तु इसे महत्त्वपूर्ण बनाते हुये समाज में छात्रों को अधिक सीखने के लिये प्रेरित कर रही है।
 
इसके साथ-साथ शैक्षिक तकनीकी, शिक्षकों, शिक्षार्थियों तथा जन-समाज के व्यवहारों को परिमार्जित एवं परिष्कृत करने में भी उपादेय सिद्ध हो रही है। अतः सामाजिक एवं शैक्षिक सन्दर्भ में शैक्षिक तकनीकी को उसके व्यापक परिप्रेक्ष्य में समझा जाना चाहिये, तभी इसके Relevance का सही मूल्यांकन करना सम्भव होगा।

अभ्यास प्रश्न
निबन्धात्मक प्रश्न

1. शिक्षण तकनीकी क्या है ? इसकी विशेषताओं सहित विस्तृत वर्णन कीजिये।
2. अनुदेशन तकनीकी का विस्तृत वर्णन कीजिए।
3. व्यवहार तकनीकी क्या है ? विस्तृत वर्णन कीजिए।
4. अनुदेशन प्रारूप को विस्तारपूर्वक समझाइये।।

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. व्यवहार तकनीकी की अवधारणा को समझाइये।
2. अनुदेशन तकनीकी की विशेषतायें स्पष्ट कीजिए।
3. अनुदेशन तकनीकी की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
4. शिक्षण तकनीकी की मान्यताएँ स्पष्ट कीजिये।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. शिक्षण तकनीकी की प्रक्रिया में कौनसा तत्व प्रमुख है?
(अ) पाठ्य-वस्तु
(ब) कक्षा सम्प्रेषण -
(स) दोनों (अ) व (ब)
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।

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