बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 गृहविज्ञान
प्रश्न- वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
बालक के विकास को अनेक कारक प्रभावित करते हैं। इनमें से कुछ कारक स्वतन्त्र रूप से बालक के शारीरिक विकास को प्रभावित करते हैं तथा कुछ कारकों की पारस्परिक अन्तः क्रियाएँ बालकों के शारीरिक विकास को प्रभावित करती हैं। इसी प्रकार से कुछ कारक स्वतन्त्र रूप से बालक के मानसिक विकास को प्रभावित करते हैं तथा कुछ कारकों की पारस्परिक अन्तःक्रियाएँ बालकों के मानसिक विकास को प्रभावित करती हैं।
वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले कारक
(Factors Affecting Growth & Development)
बालक के वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले अनेक कारक हैं। इनमें से कुछ कारक तो स्वतंत्र रूप से बालक के शारीरिक एवं मानसिक विकास को प्रभावित करते हैं जबकि कुछ कारक परस्पर अंतः क्रियाओं (interrelationship) द्वारा विकास को प्रभावित करते हैं। शरीर के प्रत्येक अंग में आगामी वृद्धि एवं विकास की प्रक्रिया विगत प्रक्रिया पर आधारित होती है। उदाहरणार्थ-यदि गर्भकालीन अवस्था में माता के पोषण एवं स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान नहीं दिया जाए तो समय पूर्व अल्प वजन के शिशु का जन्म होता है। ऐसे शिशु के जन्म के बाद जीवन जीने की संभावना भी नगण्य हो जाती है। इसी प्रकार यदि गर्भकालीन अवस्था में माता को एड्स रोग है तो शिशु में भी एड्स रोग का स्थानांतरण स्वतः ही हो जाता है जिसका दुष्प्रभाव शिशु के जन्म के बाद देखने को मिलता है। इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि वृद्धि एवं विकास कई कारकों द्वारा प्रभावित होती है। वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले कुछ कारक निम्नलिखित हैं-
(1) वंशानुक्रम (Heredity) वंशानुक्रम वे कारक हैं जो बालक को जन्म से ही माता-पिता के द्वारा उपहारस्वरूप प्राप्त होते हैं। माता के अंडाणु एवं पिता के शुक्राणु में वंशानुक्रम के वाहक 'जीन्स' (Genes) उपस्थित होते हैं। ये जीन्स ही गर्भाधान के समय भिन्न-भिन्न रूप से संयुक्त होते हैं। इसी कारण बालक की शारीरिक रचना, गठन, डील-डौल, लम्बाई, चौड़ाई, मोटाई आदि अपने माता-पिता से मिलती-जुलती हैं। बालक की आँखें, त्वचा का रंग, चेहरे का आकार, नाक-नक्श, बोलने चालने का ढंग, आदि अपने माता-पिता (दादा-दादी या नाना-नानी) से काफी हद तक मिलता-जुलता है जिसे देखकर अनजान व्यक्ति भी यह अंदाज लगा लेता है कि उनके माता-पिता कौन हैं? बुद्धि-शक्ति, तर्क शक्ति, स्मरण शक्ति एवं अन्य मानसिक योग्यताओं का निर्धारण भी वंशानुक्रम के द्वारा होता है। वंशानुक्रम के माध्यम से बालक को ये सारी विशेषताएँ बिना प्रयत्न ही प्राप्त होती हैं। इसी कारण गोरे माँ-पिता की संतान गोरी एवं काले माता-पिता की संतान काली उत्पन्न होता है।
वंशानुक्रम के वाहक जीन्स होते हैं। गर्भाधारण के समय जीन्स का हस्तांतरण होता है और ये जीन्स भिन्न-भिन्न प्रकार से संयुक्त होते हैं। इसी कारण एक ही माता-पिता की संतानों में भिन्नता दिखाई देती है। इसे ही “भिन्नता का नियम' (Law of Variation) कहते हैं। कई बार लम्बे माता-पिता की संतान नाटे कद की हो जाती हैं। इसी प्रकार बुद्धिमान एवं प्रतिभाशाली माता-पिता की संतान दुर्बल एवं मंद बुद्धि की हो जाती हैं। कई बार ऐसा भी देखने को मिलता है कि माता-पिता में से किसी एक के गोरे एवं दूसरे के सांवले होने पर सभी बालक गोरे ही उत्पन्न होते हैं। ऐसा “प्रतिगमन के नियम" (Law of Regression) के कारण होता है।
वंशानुक्रम का प्रभाव बीमारियों के सम्बन्ध में भी देखा गया है। मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, दमा, गठिया, एड्स आदि कुछ ऐसे रोग हैं जो वंशानुक्रम द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्वतः ही हस्तांतरित होते रहते हैं। अतः "वंशानुक्रम को व्यक्ति की संरचना और क्रियात्मकता से सम्बन्धित सम्पत्ति, उपहार या ॠण समझना चाहिए क्योंकि इन्हीं के माध्यम से व्यक्ति अपने विकास की जन्मजात एवं अर्जित क्षमताओं का उपयोग कर पाता है।"
( 2) वातावरण ( Environment) बालक के वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाला दूसरा महत्वपूर्ण कारक है " वातावरण"। वातावरण के अन्तर्गत वे सभी बाह्य शक्तियाँ, प्रभाव, परिस्थितियाँ आदि सम्मिलित होती हैं जो बालक के व्यवहार, शारीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, बौद्धिक संवेगात्मक आदि विकास को प्रभावित करती हैं। बालक जब जन्म लेता है तो उस समय वह पूर्णतः असहाय एवं निर्बल होता है। यदि उसकी उस समय उचित परवरिश नहीं की जाए तो उसकी मृत्यु निश्चित है। उस समय माता-पिता एवं परिवार के सदस्य नवजात शिशु का पालन-पोषण करते हैं। शिक्षक बालक को शिक्षा-दीक्षा देकर एवं उपयुक्त वातावरण प्रदान कर उसके व्यक्तित्व को संवारते हैं और उसे कर्मनिष्ठ एवं जिम्मेदार नागरिक बनाते हैं। वाटसन ने अपने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया है कि उचित वातावरण प्रदान कर बालक को सुसभ्य एवं सुसंस्कारित नागरिक बनाया जा सकता है। उचित वातावरण न मिल पाने पर बालक अपराधी प्रवृत्ति का भी बन सकता है। अतः वातावरण एक ऐसा ताकतवर कारक है जिसके माध्यम से बालक को जैसा बनाना चाहते हैं, वैसा बना सकते हैं।
(3) घर का वातावरण ( Family Environment) -- बालकों के शारीरिक एवं मानसिक विकास में घर के वातावरण का भी अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है। घर बालक की पहली पाठशाला होती है और माता पहली शिक्षिका। घर के सदस्य उसके संगी-साथी होते हैं। घर में ही बालक का पालन-पोषण किया जाता है और उसकी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती है। घर वह स्थान होता है जहाँ बालकों को प्रेम, दया, करूणा, सहयोग, सहानुभूति, सौहार्द्र, त्याग, बलिदान आदि सकारात्मक गुणों को सीखने का अवसर मिलता है।
अतः घर का वातावरण सुखद, शांत, स्वच्छ, मनोहारी एवं नैसर्गिक होना चाहिए। वैसे घर में पले-बढ़े बालक का विकास उत्तम प्रकार से होता है। इसके विपरीत जिस घर में पति-पत्नी में आपसी तनाव, कलह, परिवार के सदस्यों के साथ लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं, वहाँ बालकों का विकास उचित प्रकार से नहीं हो पाता है। बालक भय से ग्रस्त एवं डरे-सहमे रहते हैं उनमें नकारात्मक गुणों का विकास हो जाता है। बालक हीन भावना से ग्रस्त हो जाते हैं।
अतः बालक आगे चलकर आपराधिक प्रवृत्ति के भी हो जाते हैं। माता-पिता का शिक्षित एवं जागरूक होना भी बालकों के सर्वांगीण वृद्धि एवं विकास के लिए जरूरी है। शिक्षित माता-पिता अपने बालकों के पालन-पोषण पर उचित ध्यान देती है, पढ़ाई-लिखाई में सहयोग करती है। अतः बालक का सभी क्षेत्रों में समुचित विकास होता है।
(4) पोषण (Nutrition) - बालक के विकास में भोजन एवं पोषण का अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है। भोजन के बिना तो जीवन को जीना संभव ही नहीं है। गर्भकालीन अवस्था से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक व्यक्ति को स्वस्थ जीवन जीने के लिए भोजन की जरूरत होती है। गर्भकालीन अवस्था में यदि माता को संतुलित एवं पौष्टिक आहार खाने को नहीं दिया जाता है तो उसका खामियाजा गर्भस्थ शिशु को भुगतना पड़ता है। जन्म के बाद भी ऐसा शिशु रक्तअल्पता रोग से ग्रसित रहता है। अल्प वजन एवं समय पूर्व शिशु (premature child) का जन्म होता है जिसके जीने की संभावना भी कम होती है। शिशु जन्म के बाद से 6 माह तक बालक को माता के दूध पर रहना पड़ता है। अत: इस अवस्था में भी माता का आहार पौष्टिक होना चाहिए। इसलिए गर्भकालीन अवस्था में माता का आहार संतुलित एवं पौष्टिक होना चाहिए।
जब से बालक ऊपरी आहार का ग्रहण करना प्रारंभ कर देता है, तब से उसका स्वास्थ्य इस बात पर निर्भर करता है कि वह किस प्रकार का आहार ग्रहण कर रहा है। आहार पूर्ण पौष्टिक एवं संतुलित होना चाहिए जिसमें विटामिन, प्रोटीन, खनिज लवण, कार्बोज, वसा एवं जल की भरपूर मात्रा होनी चाहिए। प्रोटीन से बालक का बढ़वार होता है। उसकी मांसपेशियाँ (Muscles) मजबूत बनती हैं। विटामिन एवं खनिज लवण उसे बीमारियों से बचाते हैं तथा निरोग रखने में मदद करते हैं। वसा एवं कार्बोज ऊर्जा प्रदान करते हैं। अतः संतुलित एवं पौष्टिक भोजन बालक के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यावश्यक है।
(5) विद्यालयी वातावरण (School Environment) - बालक के वृद्धि एवं विकास में विद्यालयी वातावरण का सुखद एवं शांतपूर्ण होना भी अनिवार्य है। जब बालक बड़ा हो जाता है, तो वह केवल अपने माता-पिता या परिवार वाले के सम्पर्क में ही नहीं रहता है बल्कि उसका क्षेत्र विस्तृत एवं व्यापक हो जाता है। 4-5 वर्ष का बालक विद्यालय जाने लगता है। वहाँ उसे पढ़ने-लिखने के साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में सीखने का अवसर मिलता है। वह सामाजिक गुणों को सीखता है और उसे अपने जीवन में उतारता है। दूसरे बालकों के साथ समायोजन करना सीखता है। यदि विद्यालय का वातावरण अच्छा है, शिक्षण की समुचित व्यवस्था है, खेलने का मैदान है, योग्य शिक्षक-शिक्षिकाएँ हैं, कक्षाएँ हवादार हैं, तो बालक का सर्वांगीण विकास होता है। इसके विपरीत यदि विद्यालय तंग गलियों में है, कमरे स्वच्छ एवं हवादार नहीं हैं, खेल के मैदान नहीं हैं, बालकों को बैठने की समुचित व्यवस्था नहीं है, दूषित पेयजल है, बालक के संगी-साथी, सहपाठी अच्छे नहीं हैं व निम्न श्रेणी के हैं, तो ऐसी परिस्थिति में बालकों का समुचित विकास नहीं हो पाता है। बालक नकारात्मक गुणों को अधिक सीखता है। गाली-गलौच सीख जाता है।
अतः स्पष्ट है कि बालकों के विकास के लिए विद्यालयी वातावरण का स्वस्थ रहना अत्यावश्यक है।
(6) रोग एवं चोट (Disease and Injury) - रोग एवं चोट का बालक के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। गर्भकालीन अवस्था में यदि माता को गंभीर चोट लगी है अथवा वह कोई लाइलाज / गंभीर बीमारी से ग्रस्त है तो उसका घातक प्रभाव शिशु के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। जन्म के बाद भी यदि शिशु किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त है तो उसका शारीरिक एवं मानसिक विकास प्रभावित होता है। उदाहरणार्थ - यदि बालक जन्म से ही कमजोर एवं रक्तअल्पता का शिकार है तो उसका न तो समुचित शारीरिक विकास हो पाता है और न ही मानसिक। न्यूमोनिया, सर्दी, जुकाम, दस्त, बुखार, उल्टी आदि बीमारियाँ बालक को आए दिन परेशान करती रहती हैं। बालक में रोग रोधक क्षमता कम होती है। अतः बालक का मानसिक विकास अवरूद्ध हो जाता है। बालक क्रोधी एवं चिड़चिड़े स्वभाव का हो जाता है।
इसके ठीक विपरीत जिस बालक का स्वास्थ्य उत्तम रहता है उसके पास बीमारियाँ फटकती तक नहीं है। उसमें रोगरोधक क्षमता अधिक होती है। इस कारण उनका शारीरिक एवं मानसिक विकास सामान्य गति से होता रहता है।
(7) आस-पड़ोस का वातावरण (Neighbourhood Environment) बालकों के विकास में घर एवं विद्यालयी वातावरण के साथ ही आस-पड़ोस का वातावरण का सुखद एवं शांत रहना भी जरूरी है। क्योंकि 4-5 वर्ष के बालक पास-पड़ोस के बच्चों के साथ खेलना अधिक पसंद करते हैं। जैसे-जैसे बालकों की आयु बढ़ती है वे स्व प्रेमी से समूह प्रेमी होते जाते हैं। जब उसे समूह में रहना अच्छा लगता है। यदि आस-पड़ोस के बच्चे अच्छे संस्कारी एवं शिक्षित हैं तो बालक में भी इन गुणों का विकास होगा। इसके विपरीत पास-पड़ोस खराब होने से बालक बुरी संगत में पड़कर बाल अपराधी बन जाते हैं।
(8) लिंग भेद ( Sex Differences) – यौन भेद भी बालक के शारीरिक एवं मानसिक विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। प्राय: यह देखा जाता है कि जन्म के समय लड़कियाँ लड़कों की अपेक्षा कम वजन एवं कम लम्बाई की होती हैं। परन्तु बाद की अवस्था में, विशेषकर, वयः संधि (Puberty) के प्रारंभ होते ही लड़कियों की बढ़वार तीव्र गति से होने लगती है। वे लड़कों की तुलना में पहले ही शारीरिक परिपक्वता प्राप्त कर लेती हैं। काम शक्ति का उदय भी इनमें लड़कों की अपेक्षा 1-2 वर्ष पहले ही आ जाता है। 10-11 वर्ष की अवस्था आने तक समान आयु की लड़कियाँ लड़कों की अपेक्षा कुछ अधिक लम्बी होती हैं।
शारीरिक विकास की तरह ही बालिकाओं में बालकों की अपेक्षा मानसिक एवं बौद्धिक विकास भी कुछ पहले पूर्ण हो जाता है। अतः स्पष्ट है कि यौन भेद भी विकास पर अपना प्रभाव डालता है।
(9) प्रजाति (Race) - बाल विकास के क्षेत्र में किये गये अध्ययनों से यह भी सिद्ध हो चुका है कि प्रजाति की भी बालकों के विकास में अहम् भूमिका है। उदाहरणार्थ- नेपाली लोग नाटे कद के, चपटी नाक एवं बड़ी आँखें वाले होते हैं, वहीं अंग्रेज लम्बे, खूब गोरे, भूरे बाल वाले एवं सुन्दर होते हैं। इनका शारीरिक गठन, डील-डौल, त्वचा का रंग, बालों का रंग, मुखाकृति आदि नेपाली लोगों से काफी भिन्न होता है। इसी प्रकार अफ्रीकन काले रंग के एवं घुंघराले बालों वाले होते हैं। प्रजाति का असर न केवल शारीरिक विकास में देखने को मिलता है बल्कि मानसिक विकास में भी होता है, बाल मनोवैज्ञानिकों द्वारा किये गये अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि अंग्रेज लोगों का मानसिक विकास अफ्रीकन लोगों की तुलना में तेज गति से होता है। इन दोनों का मानसिक विकास क्रमश: 100: 80% में रहता है।
(10) सांस्कृतिक वातावरण (Cultural Environment) प्रत्येक परिवार, समाज एवं राष्ट्र की अपनी संस्कृति होती है, अपने मूल्य (values), स्तर (standard) एवं दर्शन (Philosophy) होते हैं जिसके अनुसार बालकों का पालन-पोषण किया जाता है। बालक बड़ा होकर उन्हीं मूल्यों एवं संस्कृतियों को अपनाता है। इस प्रकार संस्कृति स्वयं ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होती रहती है।
(11) अंतःस्त्रावी ग्रन्थियाँ (Endocrine Glands) अंतःस्रावी ग्रंथियों का बालक के शारीरिक एवं मानसिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान है। उदाहरणार्थ- पीयूष ग्रंथि (Pitutary Gland) से सोमैटोट्रॉफिक हारमोन (Somatotrophic Hormone STH) का स्त्रावण होता है जो 'शारीरिक वृद्धि' (Physical Growth) के लिए अत्यावश्यक है। यह थाइमस ग्रंथि को भी उत्तेजित करता है। थायरॉइड ग्रंथि से थायरॉक्सिन हारमोन निकलता है, जो याददाश्त बढ़ाने में तथा केन्द्रीय नाड़ी संस्थान की सामान्य क्रिया के लिए जरूरी है। यह शरीर ताप नियंत्रण में भी मदद करता है। बालकों में थायराइड हारमोन की कमी से 'क्रेटेनिज्म' (Cretinism) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस दशा में शारीरिक वृद्धि रूक जाती है। फलतः बालक बौना हो जाता है। बालक का मानसिक विकास भी अवरूद्ध हो जाता है।
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- प्रश्न- प्रोटीन हीनता के कारण बताइए।
- प्रश्न- क्वाशियोरकर तथा मेरेस्मस के लक्षण बताइए।
- प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भोजन में अनाज के साथ दाल को सम्मिलित करने से प्रोटीन का पोषक मूल्य बढ़ जाता है।-कारण बताइये।
- प्रश्न- शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता और कार्य लिखिए।
- प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत बताइये।
- प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण कीजिए (केवल चार्ट द्वारा)।
- प्रश्न- यौगिक लिपिड के बारे में अतिसंक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- आवश्यक वसीय अम्लों के बारे में बताइए।
- प्रश्न- किन्हीं दो वसा में घुलनशील विटामिन्स के रासायनिक नाम बताइये।
- प्रश्न बेरी-बेरी रोग का कारण, लक्षण एवं उपचार बताइये।
- प्रश्न- विटामिन (K) के के कार्य एवं प्राप्ति के साधन बताइये।
- प्रश्न- विटामिन K की कमी से होने वाले रोगों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- एनीमिया के प्रकारों को बताइए।
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- प्रश्न- आयोडीन की कमी से होने वाला रोग घेंघा के बारे में बताइए।
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- प्रश्न- वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- पूर्व-बाल्यावस्था में बालकों के शारीरिक विकास से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- पूर्व-बाल्या अवस्था में क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- मानव विकास को समझने में शिक्षा की भूमिका बताओ।
- प्रश्न- बाल मनोविज्ञान एवं मानव विकास में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी हैं? समझाइए।
- प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन से है। विस्तार में समझाइए |
- प्रश्न- गर्भाधान तथा निषेचन की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए भ्रूण विकास की प्रमुख अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।.
- प्रश्न- गर्भावस्था के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- प्रसव कितने प्रकार के होते हैं?
- प्रश्न- विकासात्मक अवस्थाओं से क्या आशर्य है? हरलॉक द्वारा दी गयी विकासात्मक अवस्थाओं की सूची बना कर उन्हें समझाइए।
- प्रश्न- "गर्भकालीन टॉक्सीमिया" को समझाइए।
- प्रश्न- विभिन्न प्रसव प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं? किसी एक का वर्णन कीएिज।
- प्रश्न- आर. एच. तत्व को समझाइये।
- प्रश्न- विकासोचित कार्य का अर्थ बताइये। संक्षिप्त में 0-2 वर्ष के बच्चों के विकासोचित कार्य के बारे में बताइये।
- प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
- प्रश्न- नवजात शिशु की पूर्व अन्तर्क्रिया और संवेदी अनुक्रियाओं का वर्णन कीजिए। वह अपने वाह्य वातावरण से अनुकूलन कैसे स्थापित करता है? समझाइए।
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये |
- प्रश्न- शैशवावस्था तथा स्कूल पूर्व बालकों के शारीरिक एवं क्रियात्मक विकास से आपक्या समझते हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्था एवं स्कूल पूर्व बालकों के सामाजिक विकास से आप क्यसमझते हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्थ एवं स्कूल पूर्व बालकों के संवेगात्मक विकास के सन्दर्भ में अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
- प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
- प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएं क्या हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्था में शिशु की शिक्षा के स्वरूप पर टिप्पणी लिखो।
- प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है।
- प्रश्न- शैशवावस्था में मानसिक विकास कैसे होता है?
- प्रश्न- शैशवावस्था में गत्यात्मक विकास क्या है?
- प्रश्न- 1-2 वर्ष के बालकों के संज्ञानात्मक विकास के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- बालक के भाषा विकास पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये।
- प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं समझाइये |
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते है। पियाजे के संज्ञानात्मक विकासात्मक सिद्धान्त को समझाइये।
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- दो से छ: वर्ष के बच्चों का शारीरिक व माँसपेशियों का विकास किस प्रकार होता है? समझाइये।
- प्रश्न- व्यक्तित्व विकास से आपका क्या तात्पर्य है? बच्चे के व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को समझाइए।
- प्रश्न- भाषा पूर्व अभिव्यक्ति के प्रकार बताइये।
- प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
- प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें।
- प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में खेलों के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?