बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 गृहविज्ञान
प्रश्न- बाल विकास के अध्ययन की परिभाषा तथा आवश्यकता बताइये।
अथवा
बाल अध्ययन की संकल्पना से आप क्या समझते हैं?
उत्तर -
बाल अध्ययन एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण विषय है। यदि बाल अध्ययन तथा बाल विकास के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो पता चलता है कि 16वीं शताब्दी तक लोग बाल अध्ययन की आवश्यकता को अधिक महत्व नहीं देते थे तथा बालकों के खान-पान, शिक्षण-प्रशिक्षण, पहनावे आदि पर विशेष ध्यान नहीं देते थे। अर्थात् वे बालकों के समुचित विकास के लिए कोई खास उपाय या प्रयास नहीं करते थे।
उनका मुख्य उद्देश्य बालकों के भीतर छिपे हुए गुणों का विकास करना नहीं अपितु उन्हें समाज के अनुरूप बनाना था।
प्राचीन समय के दार्शनिकों के विचारों का अध्ययन किया जाए तो स्पष्ट ज्ञात होता है कि उनका विचार बालकों के समुचित विकास से ही सम्बन्धित था। ग्रीक दार्शनिकों का मानना था कि बाल्यावस्था की घटनाएँ बालक के विकास पर गहरा प्रभाव डालती हैं।
18वीं शताब्दी में जॉन लॉक, थामस हॉब्स, रूसो, पेस्टोलॉजी, फ्रोबेल जैसे महान् दार्शनिकों ने बाल विकास के अध्ययन पर जोर दिया।
सबसे पहले पेस्टोलॉजी ही वह महान बाल मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने सन् 1774 ई. में बाल विकास अध्ययन का प्रस्तुतीकरण वैज्ञानिक ढंग से किया।
बाल अध्ययन की दृष्टि से 20वीं शताब्दी काफी महत्वपर्ण रही है। इस शताब्दी में बाल अध्ययन की विधियों में व्यापक सुधार हुआ। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक बिने ने 1908 में तथा 1911 में बालकों के बुद्धि परीक्षण हेतु मानदंड तैयार किये।
21वीं सदी में बाल अध्ययन के क्षेत्र में काफी परिवर्तन हुए हैं। आज बालकों को राष्ट्र की बहुमूल्य सम्पत्ति माना जाता है। इसलिए इनके बहुमुखी व्यक्तित्व विकास के लिए न केवल माता-पिता व परिवार के सदस्य, समाज तथा राष्ट्र चिन्तित है बल्कि समूचा विश्व चिन्तित है।
बाल्यकाल मानव जीवन की सबसे महत्वपूर्ण अवस्था है। यह अवस्था भावी जीवन की आधारशिला प्रस्तुत करती है। बाल विकास या मानव विकास बालकों के सम्पूर्ण परिवर्तनों का अध्ययन करता है चाहे वह रचनात्मक हों या विनाशात्मक। इसका विस्तार बालक के बीजारोपण से किशोरावस्था तक होता है।
बाल विकास का मुख्य उद्देश्य मानवों का सर्वागीण विकास करने से है।
परिभाषा - हरलॉक "आज बाल विकास में मुख्यता बालक के रूप व्यवहार, रूचियों और लक्ष्यों में होने वाले उन विशिष्ट परिवर्तनों की खोज पर बल दिया जाता है जो उसके एक विकासात्मक अवस्था से दूसरी विकासात्मक अवस्था से में पदार्पण करते समय होते हैं। साथ ही बाल विकास में यह खोज करने का भी प्रयास किया जाता है कि यह परिवर्तन कब होते हैं इसके क्या कारण हैं और यह वैयक्तिक हैं या सार्वभौमिक।
बाल विकास में बालकों के मानसिक क्रियाओं के अध्ययन के साथ ही यह भी अध्ययन किया जाता है कि ये क्रियाएँ किस प्रकार और कैसी होती हैं?
भिन्न-भिन्न आयु स्तरों पर मानव व्यवहार के विभिन्न क्षेत्रों में क्या-क्या और किन कारणों से परिवर्तन होते हैं, इसका भी अध्ययन किया जाता है।
बाल विकास के अध्ययन की आवश्यकता बालक देश की अमूल्य निधि हैं। समाज व राष्ट्र की आधारशिला हैं। कल का भारत कैसा होगा, यह मुख्यता वहाँ के नागरिकों पर निर्भर करता है।
बालक के जीवन के प्रारम्भिक वर्ष काफी महत्वपूर्ण होते हैं। इस समय बालक जो कुछ भी सीखता है वह जीवन पर्यन्त बना रहता है तथा उसकी अमिट छाप उसके व्यक्तित्व में दिखाई देती है।
वर्तमान में, बाल विकास का अध्ययन कई दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण तथा आवश्यक हो गया है।
बाल विकास के अध्ययन की आवश्यकता को हम निम्न बिन्दुओं के द्वारा देख सकते हैं
(1) बालकों के स्वभाव को समझने में आवश्यक - बालकों के स्वभाव, व्यवहार, रुचियों आदतों आदि का अध्ययन करने में बाल विकास की आवश्यकता पड़ती है।
(2) बालकों के विकास को समझने में सहायक प्रत्येक बालक का विकास कुछ विशेष सिद्धान्तों व नियमों पर आधारित है। विकास प्रक्रिया के दौरान प्रत्येक बालक कई विशिष्ट गुणों को प्रदर्शित करता है अतः बाल विकास के अध्ययन की आवश्यकता पड़ती है।
(3) वैयक्तिक भिन्नताओं की जानकारी प्राप्त करने में सहायक इस संसार में किसी भी दो बालक या व्यक्ति में इतनी समानता नहीं होती है कि उन्हें पहचाना ही न जा सके। उनमें अवश्य कुछ-न-कुछ विभिन्नता देखने को मिलती है। अतः बाल विकास के अध्ययन की उपयोगिता इस कारण से भी बढ जाती है।
(4) बालकों के नैतिक व चारित्रिक निर्माण में सहायक उत्तम चरित्र वाले बालक ही मात्रा- पिता समाज, परिवार एवं देश का भला कर सकते हैं। वे ही माता-पिता का नाम रोशन कर सकते हैं। अनैतिक एवं चरित्रहीन बालकों से देश की उन्नति की अपेक्षा नहीं की जा सकती है अतः इस संदर्भ में भी बाल विकास के अध्ययन की आवश्यकता होती है।
(5) अनुशासन के विकास में सहायक अनुशासित बालकों का भविष्य सुंदर बनता है। वे समाज एवं देश के लिए मिसाल होते हैं।
(6- ) बाल निर्देशन में उपयोगी बालकों के सर्वांगीण विकास के लिए सही दिशा-निर्देश दिया जाना जरूरी है। बाल अध्ययन के लिए यह काफी महत्वपूर्ण माना जाता है तथा इसकी आवश्यकता भी पड़ती रहती है।
(7) बालकों के व्यक्तित्व विकास में सहायक बालक विकास का अध्ययन बालकों के व्यक्तित्व विकास में आवश्यक होता है।
बाल विकास के अध्ययन की आवश्यकता सभी के लिए आवश्यक रूप से मानी जाती है। बालकों के उचित विकास के लिए बाल-विकास का अध्ययन आवश्यक माना जाता है।
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- प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
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- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- व्यक्तित्व विकास से आपका क्या तात्पर्य है? बच्चे के व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को समझाइए।
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- प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
- प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें।
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