बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छतासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता
भोजन का अर्थ व परिभाषा
भोजन को मानव जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक माना गया है। भोजन को शब्दों में परिभाषित करना अत्यन्त कंठिन कार्य है। 'चैम्बर्स ट्वेण्टीएथ सैन्चुरी डिक्शनरी' में भोजन का अर्थ कुछ इस प्रकार से दिया गया है-
"भोजन वह है जो व्यक्ति खाता है, जो पचाया जा सके तथा जो शारीरिक वृद्धि में सहायता करता है।"
उपर्युक्त जानकारियों के आधार पर भोजन या आहार को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है, “शरीर द्वारा ग्रहण किए जा सकने तथा पचाने योग्य वे सभी पदार्थ भोजन की श्रेणी में आते हैं, जो व्यक्ति की शारीरिक वृद्धि एवं विकास की प्रगति में सहायक होते हैं।"
यद्यपि भोजन हमारे शरीर को पोषित करता है, तथापि प्रत्येक भोज्य पदार्थ भिन्न-भिन्न पोषक योग्यता एवं क्षमता वाला होता है। एक ही पदार्थ विभिन्न जीवों के लिए ग्रहणीय अथवा अग्रहणीय हो सकता है। कोई भी वह पदार्थ जो निम्नलिखित में से कोई एक अथवा एक से अधिक गुण रखता हो, उसे भोज्य पदार्थ की संज्ञा दी जा सकती है-
1. भोज्य पदार्थ के तत्त्व पाचक एन्जाइम्स द्वारा विखण्डित होने की क्षमता रखते हों।
2. भोज्य पदार्थ शरीर को पोषित करने की योग्यता रखते हों।
3. भोज्य पदार्थ के तत्त्व पाचक रसों में घुलकर रक्त प्रवाह में मिलने की योग्यता एवं क्षमता रखते हों।
एक ही भोज्य पदार्थ में उपर्युक्त सभी गुण विद्यमान हों, यह जरूरी नहीं है; जैसे-- सैकेरीन पाचक रसों द्वारा घुलकर रक्त प्रवाह में पहुँच जाती है, किन्तु शरीर के पोषण कार्य में उसका कोई योगदान नहीं होता।
भोजन की उपयुक्त परिभाषा - वे पदार्थ जो शरीर में ग्रहण किए जाने के पश्चात् ऊर्जा उत्पन्न करते हों, पुराने तथा टूटे-फूटे ऊतकों की मरम्मत तथा नए तन्तुओं का निर्माण करते हों, शारीरिक क्रियाओं पर नियन्त्रण रखने तथा शरीर के लिए जरूरी यौगिकों के बनाने में सहयोग प्रदान करते हों, भोजन कहलाते हैं।
भोजन के कार्य
के कार्यों को हम निम्नलिखित तीन भागों में बाँट सकते हैं-
1. शारीरिक कार्य -भोजन के शारीरिक कार्यों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
(i) ऊर्जा प्रदान करना।
(ii) शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करना।
(iii) तन्तुओं की टूट-फूट की मरम्मत करना व नये तन्तुओं का निर्माण करना।
2. सामाजिक कार्य - मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जिस प्रकार एक परिवार की संरचना कुछ सदस्यों के जरिये होती है उसी प्रकार समाज की रचना परिवारों व कुटुम्बों के जरिये होती है। व्यक्ति आपस में भावनाओं का आदान-प्रदान करके अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को बनाए रखते हैं। भावनाओं के आदान-प्रदान का एक माध्यम भोजन भी है जिसके जरिये व्यक्ति प्रेम, मित्रता, सहयोग, भाईचारा आदि भावनाओं को प्रदर्शित करता है।
व्यक्ति समाज में विवाह, ईद, दीपावली, होली व अन्य त्योहारों जैसे कुछ विशेष अवसरों पर हर्ष को प्रदर्शित करने के लिए भी भोजन को ही माध्यम बनाता है। इसके अतिरिक्त कुछ दुःखद अवसरों पर भी दान-दक्षिणा व ब्राह्मण भोज कराने की प्रथा प्राचीनकाल से प्रचलित है। वास्तव में भोजन का सामाजिक कार्यों के रूप में अन्तिम पहलू सामाजिक स्थिति का प्रदर्शन भी है। किसी एक विशेष सामाजिक स्थिति के परिवार के द्वारा लिया जानेवाला भोजन दूसरे परिवार से भिन्न होगा। अतः स्पष्ट है कि भोजन सामाजिक स्थिति का दर्पण भी है।
3. मनोवैज्ञानिक कार्य - आज के मनोवैज्ञानिकों ने अनेक अनुसन्धानों के आधार पर यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि भोजन सिर्फ क्षुधा (भूख) शान्त करने तथा शरीर को पोषण प्रदान करने का ही कार्य नहीं करता बल्कि यह व्यक्ति की अनुभूतियों को व्यक्त करने का भी एक उत्तम साधन है। किसी व्यक्ति को भोजन के लिए आमन्त्रित करने में उस व्यक्ति के प्रति आत्मीयता एवं मित्रता की अनुभूति होती है। इसी प्रकार किसी व्यक्ति को परोसा गया भोजन व्यक्ति के मानसिक तनाव को कम करता है।
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