बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छतासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता
प्रोटीन : सामान्य परिचय
प्रोटीन हमारे आहार का एक महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व है। प्रोटीन शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के एक शब्दों प्रोटिआस (Proteas) से हुई है। ग्रीक भाषा में इस शब्द का अर्थ है— सर्वोत्तम खाद्य-पदार्थ। वास्तव में शरीर के निर्माण एवं स्वास्थ्य में सर्वाधिक योगदान प्रोटीन का ही है। प्रोटीन अपने आप में एक कार्बनिक यौगिक है। प्रोटीन में मुख्य रूप से कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन मौजूद होते हैं। इनके अतिरिक्त प्रोटीन में सल्फर तथा फॉस्फोरस की भी अल्प मात्रा पायी जाती है। प्रोटीन में इन अवयवों का प्रतिशत इस प्रकार होता है— कार्बन 50%, हाइड्रोजन 7%, ऑक्सीजन 23%, नाइट्रोजन 16%, सल्फर 0.3% तथा फॉस्फोरस 0.3% प्रोटीन की सरलतम इकाई ऐमीनो अम्ल है। भोजन में प्रोटीन ग्रहण करने के उपरान्त पाचन-क्रिया के परिणामस्वरूप ऐमिनो अम्ल में परिवर्तित हो जाती है। प्रोटीन को नाइट्रोजिनस भोज्य पदार्थ (Nitrogenous food) भी कहा जाता है।
प्रोटीन की प्राप्ति के मुख्य साधन
स्रोत के आधार पर प्रोटीन को दो भागों में बाँटा जा सकता है—
1. वनस्पति जगत से प्राप्त प्रोटीन - इस प्रकार का प्रोटीन अनाज, दालों, मेवों, फलों तथा सब्जियों से प्राप्त होता है। सोयाबीन प्रोटीन प्राप्ति का सर्वोत्तम वनस्पतिजन्य स्रोत है। इस प्रकार के प्रोटीन में सभी जरूरी ऐमीनो अम्ल उपस्थित नहीं रहते।
2. जन्तु जगत से प्राप्त प्रोटीन - प्राणिजगत से प्राप्त होने वाले समस्त भोज्य पदार्थ प्रोटीन प्राप्ति के समृद्ध स्रोत है। जैसे—दूध, मांस, मछली, अण्डे, पनीर, खोया आदि।
प्रोटीन के कार्य
प्रोटीन हमारे शरीर में निम्नलिखित कार्य सम्पन्न करता है—
1. शरीर निर्माणक कार्य
2. शरीर के टूट-फूट के निर्माण हेतु कार्य
3. चोट लगने पर होने वाले रक्त प्रवाह को रोकने में सहायक
4. शरीर की क्रियाओं को नियमित रूप से चलाने में सहायक
5. रोगों से बचाव हेतु प्रतिरोधी पदार्थ का निर्माण
6. बफर की भाँति कार्य करना।
प्रोटीन की कमी से होने वाले प्रभाव
प्रायः शिशुओं व बढ़ती उम्र के बच्चों में प्रोटीन व ऊर्जा की कमी के कारण दो रोग मेरेस्मस एवं क्वाशियोरकॉर हो जाते हैं। भारत में 36 मिलियन बच्चे इस रोग से पीड़ित पाए जाते हैं। लगभग 2-3% ( 1-5 वर्ष की आयु के बीच) 'मेरेस्मस' एवं 'क्वाशियोरकॉर' के अत्यधिक विपरीत प्रभाव से पीड़ित पाए जाते हैं।
प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण से होने वाले रोगों का विवरण निम्नवत् है-
1. बालों पर प्रभाव - बाल पतले, बड़े व कमजोर हो जाते हैं तथा उनका रंग भी परिवर्तित हो जाता है। रंग भूरे लाल चकत्ते के रूप में बदल जाता है। यह नीग्रो बालकों की अपेक्षा एशियन बालकों में अधिक पाया जाता है।
2. मेरेस्मस – मेरेस्मस ग्रीक भाषा का शब्द है, जिसका तात्पर्य है— 'व्यर्थ करना'। अधिकांशतः एक वर्ष के बच्चे इस बीमारी से पीड़ित होते हैं। 6 महीने पश्चात् बच्चे को पौष्टिक तत्त्वों की ज्यादा जरूरत होती है, परन्तु उनको इस आयु में उचित आहार नहीं मिल पाता।
3. शरीर में प्रतिरक्षी कोशिकाओं, एन्जाइम्स एवं हॉर्मोन्स की कमी से चयापचय सम्बन्धी क्रियाओं में बाधा उत्पन्न हो जाती है।
4. क्वाशियोरकॉर—इस रोग की खोज सर्वप्रथम सन् 1933 में डॉ० सिसले विलियम नामक वैज्ञानिक द्वारा की गई थी। क्वाशियोरकॉर का शाब्दिक अर्थ है— दूसरे बच्चे के जन्म से पूर्व बच्चे को बीमारी लगना। यह रोग 1-3 वर्ष तक के बच्चों को ज्यादा प्रभावित करता है। प्रायः यह देखा जाता है कि कोई माता शीघ्र ही दूसरे शिशु को जन्म देती है, तो उस स्थिति में पहले बच्चे को समय से पूर्व माँ का दूध छोड़ना पड़ता है। इससे माँ के दूध से बच्चे को जो रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति मिलती है, उसका बच्चे में अभाव हो जाता है। यदि उसे पशुजन्य दूध दिया जाता है, तो भी उसमें मात्रात्मक व गुणात्मक रूप से ह्रास होता है। यह रोग प्रायः निर्धन व मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चों में ज्यादा देखा जाता है।
प्रोटीन की अधिकता से होने वाले प्रभाव
अगर प्रोटीन की थोड़ी भी ज्यादा मात्रा लेते हैं तो भी ये हमारे लिए नुकसानदायक हो सकता है। स्टडी के अनुसार, प्रोटीन से सिर्फ 10 प्रतिशत कैलोरी लेने वालों की तुलना में कैंसर होने का खतरा तीन गुना ज्यादा होता है।
लम्बे समय तक उच्च प्रोटीनयुक्त चीजों का सेवन, दिल, किडनी व हड्डियों को नुकसान पहुँचा सकता है। प्रोटीन की अधिकता से शरीर में आन्तरिक अंगों की कार्यप्रणाली भी गड़बड़ा जाती है।
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