बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञान बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञान
प्रश्न- प्रारंभिक वयस्कावस्था के मानसिक लक्षणों पर प्रकाश डालिये।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. व्यस्कावस्था में शैक्षिक विकास।
उत्तर -
प्रारंभिक वयस्कावस्था में व्यक्ति एक बिल्कुल ही नया व्यक्ति मालूम पड़ने लगता हैं। कवियों ने इस अवस्था में युवक, युवतियों के मानसिक परिवर्तन का अच्छा चित्र खींचा है। सामान्य रूप से प्रारम्भिक वयस्कावस्था में निम्नलिखित लक्षण देखे जा सकते हैं-
(1) मानसिक योग्यताओं में विकास - प्रारंभिक वयस्कावस्था में व्यक्ति का स्नायु मण्डल अधिक पुष्ट हो जाता है। इसलिए उसकी मानसिक प्रवृत्तियाँ भी कुछ अधिक निश्चित दिखायी देती हैं। उसमें सोचने-समझने, अंतर करने, समस्या को सुलझाने तथा विचार करने आदि की योग्यतायें देखी जा सकती हैं।
(2) यौनिक विकास- मनोवैज्ञानिक दृष्टि से प्रारम्भिक वयस्कावस्था का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण लक्षण यौनिक (Sexual) विकास है। डॉ० जोन्स के अनुसार, प्रारंभिक वयस्कावस्था में शैशवकाल का दमित यौन आवेग, जोकि बाल्यावस्था में सुप्त अवस्था में था, फिर से जाग्रत हो जाता है और व्यक्ति यौनिक विकास की भिन्न-भिन्न स्थितियों से गुजरता है। सच तो यह है कि काम प्रवृत्ति, प्रारंभिक व्यस्कावस्था की यदि सबकुछ नहीं तो सबसे अधिक स्थायी प्रवृत्ति अवश्य है। अतः इसकी अवहेलना सबसे अधिक हानिकारक है। इस दशा में विकास इतना अधिक तीव्र होता है कि किशोर का संपूर्ण व्यक्तित्व मानो उसी से रंगा दिखाई पड़ता है। प्रारंभिक वयस्कावस्था का यौनिक विकास शैशवावस्था के समान माता-पिता की ओर नहीं बल्कि अजनबी की ओर अभिव्यक्त होता है। यौनिक विकास के कारण व्यक्ति में बेचैनी, हाथ के नाखून कुतरना, पेंसिल मुँह में देना अथवा बार-बार आँचल को उँगलियों से लपेटना आदि देखे जा सकते हैं। इस आयु में शारीरिक और मानसिक सभी प्रकार के शिक्षण में काम प्रवृत्ति को एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। सामान्य रूप से प्रारम्भिक वयस्कावस्था में यौन प्रवृत्ति का विकास निम्नलिखित तीन स्थितियों से गुजरता है-
(i) आत्म प्रेम (Auto Emoticism ) – प्रारंभिक वयस्कावस्था के प्रारंभ में यौन प्रवृत्ति आत्म प्रेम के रूप में दिखाई पड़ती है। यह प्रवृत्ति शैशवावस्था के आत्म प्रेम से भिन्न है। शैशवावस्था में शिशु अपने शरीर के विभिन्न अंगों को छूकर शारीरिक सुख प्राप्त करता है, परन्तु प्रारंभिक वयस्कावस्था में आत्म प्रेम की दशा में व्यक्ति अपने को सजाता, शीशे में बार-बार अपना मुख देखता और यथासंभव अपने को अधिक से अधिक सुंदर बनाने का प्रयास करता है। बहुत-से लड़के-लड़कियाँ इस आयु में शीशे में अपने को निहारते हुए गुनगुनाते देखे जा सकते हैं। वे अपने में ही मस्त रहते हैं और अपने से ही प्रेम करते हैं। अभी कोई दूसरा उनकी निगाह में नहीं चढ़ता। इस आयु में हस्तमैथुन (Masturbation) जैसी बुरी आदत पड़ना बहुत सामान्य बात है। अमेरिकन मनोवैज्ञानिक किन्से (Kinsey) ने अपनी प्रसिद्ध रिपोर्ट में इस आयु के बालक-बालिकाओं के अपने यौन संबंधी अनुभवों से तरह-तरह के आनन्द लेने की क्रियाओं की चर्चा की है। कभी-कभी इस तरह की आदतों से उत्पन्न होने वाली अपराधी भावना से किशोर बालक-बालिकाओं में मानसिक ग्रंथियाँ बन जाती हैं जोकि उनके मानसिक विकास के लिये हानिकारक होती हैं। इनसे बचने के लिये एकमात्र उपाय यौन शिक्षा ( Sex Education) है। शिक्षकों और माता-पिता को इस संबंध में किशोर बालक बालिकाओं को यौन प्रवृत्ति के प्रति सही दृष्टिकोण देने के लिए सब बातें स्पष्ट रूप से बता देनी चाहियें जिससे कि वे इस ओर स्वस्थ दृष्टिकोण ग्रहण करके भावी जीवन में अच्छे स्त्री- पुरुष बन सकें।
(ii) समलिंगीय कामुकता (Homosexuality ) - आत्म प्रेम की स्थिति से निकलकर प्रारंभिक वयस्कावस्था में बालक-बालिकायें अपने समलिंगीय साथियों के प्रति आकर्षित होते हैं। इस आयु में लड़के-लड़के और लड़की लड़की के परस्पर प्रेम में बड़ी तीव्रता, बेचैनी और घनिष्ठता देखी जा सकती है, जो कि बाद में भिन्न लिंगीय प्रेम में दिखाई पड़ती है। वे साथ-साथ घूमने, खाने, घंटों बातचीत करने से लेकर साथ - साथ सोने, लिपटने चिपटने, एक दूसरे के रूप की प्रशंसा करने और थपथपाने, चुंबन करने आदि की क्रियायें करते भी देखे जा सकते हैं। कुछ लड़कियों में परस्पर एक-दूसरे की गुप्तेन्द्रियों को उत्तेजित करने की आदत भी पड़ जाती है। इसी तरह कुछ लड़कों में गुदा मैथुन (Sodomy) की बुरी आदत देखी जा सकती है। इन बातों के लिये किशोर को झिड़कने और डाँटने से उसमें अपराधी भावना और भी बढ़ जायेगी। इन बुरी आदतों को छुड़ाने के लिए शिक्षकों और अभिभावकों को बड़ी समझदारी से बालक-बालिकाओं को यौन शिक्षा देनी चाहिये। इस आयु में किशोर व्यक्ति की देखभाल रखना अच्छा है, परन्तु उसे सब बातें प्रेमपूर्वक समझानी चाहिये।
(iii) विषमलिंगीय कामुकता (Heterosexuality) - समलिंगीय कामुकता की स्थिति के बाद यौन प्रवृत्ति की परिपक्व अवस्था आती है। यह स्त्री-पुरुष के परस्पर यौन संबंध की प्राकृतिक और सरल तथा स्वाभाविक स्थिति है। इस आयु में लड़के-लड़कियाँ एक दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं, मिलते-जुलते, परस्पर घंटो बातें करते, एक-दूसरे को रिझाने के लिये तरह-तरह से सजते-संवरते, नये-नये फैशन ग्रहण करते और घनिष्ठ संबंध हो जाने पर साथ घूमते, सिनेमा देखते, आलिंगन करते, चुंबन करते और यदि यहीं न रुके तो यौन प्रसंग तक करते देखे जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप कभी-कभी अल्प आयु में विवाह के पूर्व बालिका के माँ बन जाने की नौबत आ पहुँचती है। यौन प्रवृत्ति के इस आवेग को न तो रोका जा सकता है और न इस पर कठोर नियंत्रण करना किसी प्रकार से वांछनीय ही है। विद्यालयों में लड़के-लड़कियों के मिलने-जुलने पर अत्यधिक रोक-टोक होने पर अनुशासनहीनता और उद्दण्डता बढ़ती है। अतः बहुत से शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने उनको अधिक से अधिक मिलने-जुलने का अवसर देने की राय दी है। दूसरी ओर प्राचीन भारत में इस स्थिति में लड़कियों को बिल्कुल ही अलग रखा जाता था। आधुनिक काल में प्राचीन भारत की परंपरा की ओर लौटना संभव नहीं है और न किसी तरह से उचित ही कहा जा सकता है। अनियंत्रित मिलने-जुलने से होने वाले भयंकर परिणाम, आत्म हत्याओं, विवाह पूर्व किशोर माताओं और समाज में व्यभिचार आदि के रूप में देखे जा सकते हैं। अतः आवश्यक यह है कि किशोर युवक-युवतियों को यौन शिक्षा देकर उन्हें इस दिशा में स्वस्थ दृष्टिकोण से परिचित कराया जाये। इससे आगे चलकर वे भिन्नलिंगीय यौन संबंधों को व्यवस्थित रखकर अच्छे माता-पिता बन सकते हैं। यौन शिक्षा के अतिरिक्त काम वासना की समस्याओं को सुलझाने का एक अन्य उपाय किशोर युवक-युवतियों को तरह-तरह के खेलों और नृत्य, गान, चित्रकला आदि की सांस्कृतिक दिशा में प्रेरित करना है। यह बड़े ही दुख की बात है कि आजकल सभ्य समाजों में, विशेषतया भारतवर्ष में 99 प्रतिशत अभिभावक और शिक्षक किशोर युवक-युवतियों से काम वासना के विषय में कोई भी बात करते शर्माते हैं। परिणाम यह होता है कि किशोर व्यक्ति अश्लील साहित्य तथा बुरे लोगों के “साथ से यौन संबंधी बातों को भ्रष्ट रूप में सीखता है। जब वह देखता है कि उसके अभिभावक और शिक्षक इस संबंध में सभी बातें छिपाते हैं तो उसके मन में यौन वासना के प्रति रहस्य और अपराध की भावना बन जाती है। विकास की स्वाभाविक स्थिति के कारण वह इस भावना के वेग को रोक नहीं सकता। शिक्षकों और अभिभावकों से उसे कोई सहायता * मिलती नहीं। अतः या तो वह इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए अपनी तमाम शक्ति खर्च करता रहता है और न पढ़ाई-लिखाई कर पाता है न अन्य कुछ काम, या फिर वह बुरी आदतों में पड़ जाता है, अथवा अत्यधिक दमन के कारण उसे मानसिक रोग हो जाते हैं। अतः शिक्षकों और अभिभावकों को यौन शिक्षा के द्वारा किशोर युवक-युवतियों की काम वासना का नियंत्रण, रूपांतर और मार्गान्तरीकरण करने में सहायता करनी चाहिये।
(3) वीर पूजा (Hero worship ) – सामान्य रूप से प्रारंभिक व्यस्कावस्था में वीर पूजा की प्रवृत्ति देखी जाती है। वीरता की कसौटी सभी बालक-बालिकाओं के लिए एक सी नहीं होती। जिसे जो गुण सबसे अधिक आकर्षित करता है वह उसी गुण को रखने वाले स्त्री-पुरुष को वीर और आदर्श मान लेता है। उदाहरण के लिये, कोई किसी पहलवान को वीर मानता है तो कोई किसी विद्वान को किसी का आदर्श कोई फिल्म अभिनेत्री या कोई अभिनेता होता है तो किसी का आदर्श देश का कोई नेता। स्कूल-कॉलिजों में अध्यापक अध्यापिकाओं में से जो किशोर व्यक्ति के मन पर चढ़ जाते हैं वह उनकी पूजा करने लगता और उन्हीं का अनुकरण करता है। यहाँ पर यह बात ध्यान रखने की है कि किशोर व्यक्ति को गुण आकर्षित नहीं करते बल्कि गुणवान व्यक्ति आकर्षित करता है। वह अपने आदर्श व्यक्ति से तादात्म्य कर लेता है, उसको देखकर प्रसन्न होता, उसको देखकर प्रसन्न होता, उसकी प्रशंसा करते नहीं थकता और प्रत्येक बात में उसका अनुकरण करने लगता है। कभी-कभी तो यह प्रवृत्ति वीर पूजा का रूप धारण कर लेती है। बहुत समय पश्चात् किशोर व्यक्ति का ध्यान अपने वीर के गुणों की ओर जाता है और वह उन गुणों की सराहना करता है। वीर पूजा की प्रवृत्ति का लाभ उठाकर किशोर व्यक्ति में चरित्र निर्माण किया जा सकता है। इसके लिये यह आवश्यक है कि शिक्षक उसके सामने ऊँचे आदर्श रखें क्योंकि अक्सर किशोर व्यक्ति का आदर्श कोई न कोई शिक्षक ही होता है।
(4) धार्मिक भावना – अनेक व्यक्ति इस आयु में अत्यधिक धार्मिक हो जाते हैं। वे "ईश्वर की किसी न किसी प्रतिमा से प्रेम करते, उससे बातें करते, उसके प्रति आत्मसमर्पण करते हैं और उसकी पूजा करते देखे जाते हैं। भारतवर्ष में इस प्रकार के व्यक्ति अधिक मिल सकते हैं क्योंकि एक तो यहाँ धार्मिक प्रवृत्ति अधिक है और दूसरे भारतीय समाज में बालक बालिकाओ का वयस्क वीर पुरुषों, नेताओं आदि से मिलना-जुलना अधिक नहीं हो पाता। धार्मिक प्रवृत्ति से जहाँ व्यक्ति अनेक दुर्गुणों से बचा रहता है वहीं कभी-कभी उसमें कुछ अव्यवहारिकता भी आ जाती है। शिक्षकों की सहायता से इस दिशा में स्वस्थ दृष्टिकोण बनाया जा सकता है।
(5) समूह प्रवृत्ति - इस अवस्था में बालक-बालिकाओं में अपने संगी-साथियों के साथ रहने, उनकी प्रशंसा करने और उनसे संबंध बढ़ाने की तीव्र इच्छा होती है। बहुधा उनके समूह बने रहते हैं जिनमें प्रत्येक व्यक्ति का अपना विशिष्ट स्थान (Status) और उसी के अनुरूप विशेष कार्य (Roles) होते है। इस स्थिति और कार्य का उसके वयस्क जीवन की स्थिति और कार्य को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण हाथ होता है।
(6) बहिर्मुखी - इस आयु में व्यक्ति फिर से बहिर्मुखी हो जाता है। वह अपने चारों ओर के लोगों, क्रियाओं और हंगामों में रुचि लेता है। स्कूल में भी वह तरह-तरह के कार्यक्रमों में भाग लेना चाहता है। बहुधा वह अपना अधिकांश समय अपने साथियों में व्यतीत करना चाहता है। अनेक लोग तरह-तरह के समाज सेवा के कार्यक्रमों में लग जाते हैं। इस तरह व्यक्ति वास्तविक संसार में रुचि लेता है। इस प्रवृत्ति का लाभ उठाकर उसमें आत्म-निर्भरता, आत्म-निर्णय, सहयोग, अनुशासन, ईमानदारी तथा दूसरों से अच्छे संबंध बनाये रखने के गुण विकसित किये जा सकते है। इस आयु में उसमें एक आदर्श नागरिक, बनने की नींव डाली जा सकती है।
( 7 ) स्थायित्व (Stability) और व्यवस्थापन (Adjustment) का अभाव- जैसा कि पहले कहा जा चुका है, इस अवस्था में व्यक्ति अपने वयस्क जीवन की दहलीज पर खड़ा होता है, यद्यपि अभी कोई उसको वयस्कों में नहीं गिनता। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से वह अपने को बालक नहीं समझता और वयस्कों में अपनी गिनती करना चाहता है। स्पष्ट है कि उसमें बेचैनी और अस्थायित्व देखा जा सकता है। छोटी-छोटी शारीरिक कमियाँ, उदाहरण के लिये, मुंह पर अत्यधिक मुँहासे निकल आने तक से उसका अनुकूलन बिगड़ जाता है और वह परेशान हो जाता है। वास्तव में यह एक ऐसी स्थिति है जबकि वह सभी दिशाओं में वयस्क जीवन को ग्रहण करना सीखता है। अतः समस्यायें आना स्वाभाविक ही हैं। बड़ों की सहायता से ये समस्यायें हल की जा सकती हैं।
(8) तीव्र भावुकता - व्यक्ति अत्यन्त भावुक होता है यद्यपि इस आयु में उसमें बुद्धि का काफी विकास हो चुका होता है। उसमें आत्म सम्मान और दूसरों की प्रशंसा प्राप्त करने की भावनायें बड़ी तीव्र होती हैं और उनको चोट लगने से वह कुंठित और कभी-कभी विद्रोही भी हो जाता है। भावुकता का लाभ उठाकर उसमें साँस्कृतिक गुण विकसित किये जा सकते हैं। अभिनय, संगीत, चित्रकला, नृत्य आदि में भाग लेने से संवेगात्मक जीवन पुष्ट होता है।
(9) विशेष रुचियाँ—व्यक्ति का तन मन विकसित होने के साथ उसकी रुचियाँ बदल जाती हैं। क्रमशः लड़के-लड़कियों में वयस्क पुरुष - स्त्रियों की रुचियाँ विकसित होने लगती हैं। लड़कियों में तरह-तरह से श्रृंगार करने, सुंदर बनने की कोशिश करने, प्रेम और रोमांस संबंधी उपन्यास, कहानियाँ, नाटक, कवितायें पढ़ने में रुचि लेने, संगीत, कला और अभिनय आदि में भाग लेने की प्रवृत्तियाँ देखी जा सकती हैं। लड़कों में तरह-तरह के खेल खेलने, परिश्रम करने, साहस के कार्य करने और भावी जीवन के व्यवसाय विकसित करने में रुचि देखी जा सकती है। लड़के-लड़कियाँ दोनों ही भिन्न लिंगीय व्यक्ति से बातें करने, मित्रता बढ़ाने, पत्र लिखने और रोमान्स बढ़ाने आदि में रुचि रखते हैं।
(10) मस्तिष्क का विकास - इस अवस्था में मस्तिष्क का तीव्रता से विकास होता है। स्नायुमण्डल के कोष तेजी से बढ़ते और नाड़ियों की रासायनिक रचना में भी परिवर्तन होता है। इस तरह स्नायुमण्डल और मस्तिष्क क्रमशः प्रौढ़ बनते जाते हैं। इस आयु में शारीरिक विकास और मानसिक विकास के साथ-साथ अभ्यास में भी मानसिक योग्यतायें बढ़ती जाती हैं। क्रमशः भाषा संबंधी योग्यताओं का भी विकास होता है। किशोरावस्था में व्यक्ति का शब्दकोष बढ़ता है। इसमें अभ्यास का भी विकास होता है। शब्दकोष से व्यक्ति की सामान्य बुद्धि ज्ञात होती है। बुद्धि का विकास भी किशोरावस्था में अपनी सीमा तक पहुँच जाता है। मानसिक परिपक्वता के विषय में व्यक्तिगत अंतर होते हुये भी सामान्य रूप से यह कहा जाता है कि उसकी चरम स्थिति 20 वर्ष की आयु में पहुँच जाती है। इसमें अभ्यास का महत्वपूर्ण योगदान है। सामान्य रूप से व्यक्ति में बौद्धिक स्तर लगभग एक-सा चलता है, अर्थात् भिन्न-भिन्न आयु में उसकी बुद्धि लब्धि एक हो स्तर पर देखी जा सकती है। अनेक अध्ययनों से यह ज्ञात हुआ है कि पहले पाँच वर्ष की आयु में अगले पाँच वर्षों को आयु से अधिक मानसिक विकास होता है। इसी प्रकार पाँच और दस वर्ष की आयु में 10 और 15 "वर्ष की आयु की अपेक्षा अधिक तीव्र विकास होता है। इसी तरह 10 और 15 वर्ष की आयु में 15 और 20 वर्ष की आयु की अपेक्षा अधिक तीव्र गति से विकास होता है। दस वर्ष की आयु में मानसिक विकास सबसे अधिक तीव्र गति से होता है। इसके बाद परिपक्वता की स्थिति पर पहुँचने तक उसकी गति क्रमशः धीमी होती चली जाती है। शैशव अवस्था में * बालक उत्तेजनाओं का केवल संकेत मात्र करता है। तीन वर्ष की अवस्था में वह वस्तु, पशु और मनुष्य में अंतर कर सकता है। 6 वर्ष की आयु में वह देखे हुये चित्र का वर्णन (Description) कर सकता है परंतु किशोरावस्था में वह केवल वर्णन मात्र ही नहीं करता बल्कि देखे हुये चित्र की व्याख्या (Interpretation) भी कर सकता है। इस तरह उत्तेजना के प्रति मानसिक अनुक्रिया में क्रमशः विकास देखा जा सकता है। सामान्य रूप से स्मृति की परीक्षा इस बात से की जा सकती है कि कोई व्यक्ति एक बार बोले जाने पर कितने अंकों को दोहरा सकता है। अंकों को दोहराने की यह योग्यता किशोरावस्था में आयु के साथ बढ़ती है और स्मृति 20 वर्ष की आयु तक अपनी चरमावस्था में पहुँच जाती है।
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- प्रश्न- आहार आयोजन से आप क्या समझती हैं? आहार आयोजन का महत्व बताइए।
- प्रश्न- आहार आयोजन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें बताइये।
- प्रश्न- आहार आयोजन को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- एक खिलाड़ी के लिए एक दिन के पौष्टिक तत्वों की माँग बताइए व आहार आयोजन कीजिए।
- प्रश्न- एक दस वर्षीय बालक के पौष्टिक तत्वों की मांग बताइए व उसके स्कूल के लिए उपयुक्त टिफिन का आहार आयोजन कीजिए।
- प्रश्न- "आहार आयोजन करते हुए आहार में विभिन्नता का भी ध्यान रखना चाहिए। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आहार आयोजन के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- दैनिक प्रस्तावित मात्राओं के अनुसार एक किशोरी को ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
- प्रश्न- सन्तुलित आहार क्या है? सन्तुलित आहार आयोजित करते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
- प्रश्न- आहार द्वारा कुपोषण की दशा में प्रबन्ध कैसे करेंगी?
- प्रश्न- वृद्धावस्था में आहार को अति संक्षेप में समझाइए।
- प्रश्न- आहार में मेवों का क्या महत्व है?
- प्रश्न- सन्तुलित आहार से आप क्या समझती हैं? इसके उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- वर्जित आहार पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- शैशवावस्था में पोषण पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- शिशु के लिए स्तनपान का क्या महत्व है?
- प्रश्न- शिशु के सम्पूरक आहार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- किन परिस्थितियों में माँ को अपना दूध बच्चे को नहीं पिलाना चाहिए?
- प्रश्न- फार्मूला फीडिंग आयोजन पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- 1-5 वर्ष के बालकों के शारीरिक विकास का वर्णन करते हुए उनके लिए आवश्यक पौष्टिक आहार की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 6 से 12 वर्ष के बालकों की शारीरिक विशेषताओं का वर्णन करते हुए उनके लिए आवश्यक पौष्टिक आहार की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- विभिन्न आयु वर्गों एवं अवस्थाओं के लिए निर्धारित आहार की मात्रा की सूचियाँ बनाइए।
- प्रश्न- एक किशोर लड़की के लिए पोषक तत्वों की माँग बताइए।
- प्रश्न- एक किशोरी का एक दिन का आहार आयोजन कीजिए तथा आहार तालिका बनाइये।
- प्रश्न- एक सुपोषित बच्चे के लक्षण बताइए।
- प्रश्न- वयस्क व्यक्तियों की पोषण सम्बन्धी आवश्यकताओं का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धावस्था की प्रमुख पोषण सम्बन्धी आवश्यकताएँ कौन-कौन-सी हैं?
- प्रश्न- एक वृद्ध के लिए आहार योजना बनाते समय आप किन बातों को ध्यान में रखेंगी?
- प्रश्न- वृद्धों के लिए कौन से आहार सम्बन्धी परिवर्तन करने की आवश्यकता होती है? वृद्धावस्था के लिए एक सन्तुलित आहार तालिका बनाइए।
- प्रश्न- गर्भावस्था में कौन-कौन से पौष्टिक तत्व आवश्यक होते हैं? समझाइए।
- प्रश्न- स्तनपान कराने वाली महिला के आहार में कौन से पौष्टिक तत्वों को विशेष रूप से सम्मिलित करना चाहिए।
- प्रश्न- एक गर्भवती स्त्री के लिए एक दिन का आहार आयोजन करते समय आप किन किन बातों का ध्यान रखेंगी?
- प्रश्न- एक धात्री स्त्री का आहार आयोजन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें बताइये।
- प्रश्न- मध्य बाल्यावस्था क्या है? इसकी विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- मध्य बाल्यावस्था का क्या अर्थ है? मध्यावस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शारीरिक विकास का क्या तात्पर्य है? शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले करकों को समझाइये।
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास का क्या अर्थ है? क्रियात्मक विकास को परिभाषित कीजिए एवं मध्य बाल्यावस्था में होने वाले क्रियात्मक विकास को समझाइये।
- प्रश्न- क्रियात्मक कौशलों के विकास का वर्णन करते हुए शारीरिक कौशलों के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास से आप क्या समझते हैं? सामाजिक विकास के लिए किन मानदण्डों की आवश्यकता होती है? सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समाजीकरण को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- बालक के सामाजिक विकास के निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समाजीकरण से आप क्या समझती हैं? इसकी प्रक्रियाओं की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास से क्या तात्पर्य है? इनकी विशेषताओं का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर बाल्यावस्था में सामाजिक विकास का क्या तात्पर्य है? उत्तर बाल्यावस्था की सामाजिक विकास की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संवेग का क्या अर्थ है? उत्तर बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संवेगात्मक विकास की विशेषताएँ लिखिए एवं बालकों के संवेगों का क्या महत्व है?
- प्रश्न- बालकों के संवेग कितने प्रकार के होते हैं? बालक तथा प्रौढों के संवेगों में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- संवेगात्मक विकास को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बच्चों के भय के क्या कारण हैं? भय के निवारण एवं नियन्त्रण के उपाय लिखिए।
- प्रश्न- संज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा लिखिए। संज्ञान के तत्व एवं संज्ञान की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से क्या तात्पर्य है? इसे प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भाषा से आप क्या समझते हैं? वाणी एवं भाषा का क्या सम्बन्ध है? मानव जीवन के लिए भाषा का क्या महत्व है?
- प्रश्न- भाषा- विकास की विभिन्न अवस्थाओं का विस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भाषा-विकास से आप क्या समझती? भाषा-विकास पर प्रभाव डालने वाले कारक लिखिए।
- प्रश्न- बच्चों में पाये जाने वाले भाषा सम्बन्धी दोष तथा उन्हें दूर करने के उपाय बताइए।
- प्रश्न- भाषा से आप क्या समझती हैं? भाषा के मापदण्ड की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- भाषा से आप क्या समझती हैं? बालक के भाषा विकास के प्रमुख स्तरों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भाषा के दोष के प्रकारों, कारणों एवं दूर करने के उपाय लिखिए।
- प्रश्न- मध्य बाल्यावस्था में भाषा विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक बुद्धि का आशय स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'सामाजीकरण की प्राथमिक प्रक्रियाएँ' पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बच्चों में भय पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- बाह्य शारीरिक परिवर्तन, संवेगात्मक अवस्थाओं को समझाइए।
- प्रश्न- संवेगात्मक अवस्था में होने वाले परिवर्तन क्या हैं?
- प्रश्न- संवेगों को नियन्त्रित करने की विधियाँ बताइए।
- प्रश्न- क्रोध एवं ईर्ष्या में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- बालकों में धनात्मक तथा ऋणात्मक संवेग पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भाषा विकास के अधिगम विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भाषा विकास के मनोभाषिक सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बालक के हकलाने के कारणों को बताएँ।
- प्रश्न- भाषा विकास के निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भाषा दोष पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भाषा विकास के महत्व को समझाइये।
- प्रश्न- वयः सन्धि का क्या अर्थ है? वयः सन्धि अवस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए - (a) वयःसन्धि में लड़के लड़कियों में यौन सम्बन्धी परिपक्वता (b) वयःसन्धि में लैंगिक क्रिया-कलाप (e) वयःसन्धि में नशीले पदार्थों का उपयोग एवं दुरूपयोग (d) वय: सन्धि में आहार सम्बन्धी आवश्यकताएँ।
- प्रश्न- यौन संचारित रोग किसे कहते हैं? भारत के प्रमुख यौन संचारित रोग कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- एच. आई. वी. वायरस क्या है? इससे होने वाला रोग, कारण, लक्षण एवं बचाव बताइये।
- प्रश्न- ड्रग और एल्कोहल एब्यूज डिसआर्डर क्या है? विस्तार से समझाइये।
- प्रश्न- किशोर गर्भावस्था क्या है? किशोर गर्भावस्था के कारण, लक्षण, किशोर गर्भावस्था से बचने के उपाय बताइये।
- प्रश्न- युवाओं में नशीले पदार्थ के सेवन की समस्या क्यों बढ़ रही है? इस आदत को कैसे रोका जा सकता है?
- प्रश्न- किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास, भाषा विकास एवं नैतिक विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सृजनात्मकता का क्या अर्थ है? सृजनात्मकता की परिभाषा लिखिए। किशोरावस्था में सृजनात्मक विकास कैसे होता है? समझाइये।
- प्रश्न- किशोरावस्था की परिभाषा देते हुये उसकी अवस्थाएँ लिखिए।
- प्रश्न- किशोरावस्था की विशेषताओं को विस्तार से समझाइये।
- प्रश्न- किशोरावस्था में यौन शिक्षा पर एक निबन्ध लिखिये।
- प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- किशोरावस्था क्या है? किशोरावस्था में विकास के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- किशोरावस्था को तनाव या तूफान की अवस्था क्यों कहा गया है?
- प्रश्न- प्रारम्भिक वयस्कावस्था में 'आत्म प्रेम' (Auto Emoticism ) को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- किशोरावस्था से क्या आशय है?
- प्रश्न- किशोरावस्था में परिवर्तन से सम्बन्धित सिद्धान्त कौन से हैं?
- प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख सामाजिक समस्याएँ लिखिए।
- प्रश्न- आत्म की मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- शारीरिक छवि की परिभाषा लिखिए।
- प्रश्न- प्राथमिक सेक्स की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- किशोरावस्था के बौद्धिक विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सृजनात्मकता और बुद्धि में क्या सम्बन्ध है?
- प्रश्न- प्रौढ़ावस्था से आप क्या समझते हैं? प्रौढ़ावस्था में विकासात्मक कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रारंभिक वयस्कावस्था के मानसिक लक्षणों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- वैवाहिक समायोजन से क्या तात्पर्य है? विवाह के पश्चात् स्त्री एवं पुरुष को कौन-कौन से मुख्य समायोजन करने पड़ते हैं?
- प्रश्न- प्रारंभिक वयस्कतावस्था में सामाजिक विकास की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर व्यस्कावस्था में कौन-कौन से परिवर्तन होते हैं तथा इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप कौन-कौन सी रुकावटें आती हैं?
- प्रश्न- वृद्धावस्था से क्या आशय है? संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- वृद्धावस्था में संज्ञानात्मक सामर्थ्य एवं बौद्धिक पक्ष पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- पूर्व प्रौढ़ावस्था की प्रमुख विशेषताओं के बारे में लिखिये।
- प्रश्न- युवा प्रौढ़ावस्था शब्द को परिभाषित कीजिए। माता-पिता के रूप में युवा प्रौढ़ों के उत्तरदायित्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धावस्था में रचनात्मक समायोजन पर टिप्पणी लिखिए?
- प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60 वर्ष) में हृदय रोग की समस्याओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धावस्था में समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों को विस्तार से समझाइए।
- प्रश्न- उत्तर-वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।