बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञान बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 |
बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञान
प्रश्न- वैवाहिक समायोजन से क्या तात्पर्य है? विवाह के पश्चात् स्त्री एवं पुरुष को कौन-कौन से मुख्य समायोजन करने पड़ते हैं?
अथवा
वैवाहिक समायोजन पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
अथवा
निम्न वैवाहिक समायोजनों को संक्षेप में समझाइए -
(1) जीवन साथी के साथ समायोजन।
(2) यौन सम्बन्धी समायोजन।
(3) जनकता अभिभावकत्व से समायोजन।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. वैवाहिक समायोजन का अर्थ बताइये।
2. यौन सम्बन्धी समायोजन से क्या तात्पर्य है।
3. एकांकी जनकता पर टिप्पणी लिखो।
उत्तर -
स्त्री-पुरुष एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, अर्थात् गृहस्थ रूपी गाड़ी के दो पहिये हैं। एक के भी न होने पर गाड़ी रुक जाती है। उसी प्रकार स्त्री-पुरुष में से एक के भी न होने पर वैवाहिक जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। अतः वैवाहिक जीवन चलाने के लिए स्त्री-पुरुष दोनों का ही होना अनिवार्य है।
स्त्री-पुरुष विवाह के पश्चात् गृहस्थ जीवन का निर्वाह करते हैं, अपने बच्चों का लालन-पालन करते हैं तथा सुख-दुःख में एक-दूसरे के साथी होते हैं। दोनों में प्रेम, त्याग तथा सहानुभूति की भावना होती है। एक-दूसरे के प्रति ये भाव होते हैं तभी पारिवारिक जीवन सुखी हो सकता है और पूरी जिन्दगी दोनों पति-पत्नी साथ-साथ रहकर व्यतीत कर सकते हैं। सुखी - शान्तिपूर्ण जीवन ही वैवाहिक जीवन का सार है।
वैवाहिक समायोजन का अर्थ
(Meaning of Marriage Adjustment)
वैवाहिक समायोजन का अर्थ है कि विवाह के बाद पति-पत्नी एक-दूसरे की रुचि, स्वभाव को जानकर उसके अनुरूप ही कार्य करें और सम्बन्धों को प्रेमपूर्ण बनाये रखें। एक-दूसरे के लिए त्याग व सहयोग की भावना का विकास हो। इसे ही वैवाहिक जीवन कहते हैं। यदि वैवाहिक जीवन अनुकूल नहीं होता तो दोनों का जीना दूभर हो जाता है, आपस में संघर्ष बना रहता है, हमेशा एक-दूसरे की बात काटते रहते हैं, किन्तु यदि वैवाहिक जीवन अनुकूल है तो दोनों का जीवन सुखी शान्तिपूर्ण बीतता है।
वैवाहिक समायोजन सर्वाधिक कठिन समायोजन होता है, जो नव-दम्पत्ति को करना पड़ता है।
यद्यपि विवाह के बाद अनेक समायोजन सम्बन्धी समस्याएँ होती हैं, किन्तु इनमें से निम्नलिखित समायोजन महत्वपूर्ण हैं-
(1) जीवन साथी के साथ समायोजन - वैवाहिक जीवन में सबसे बड़ी समायोजन की समस्या 'जीवन साथी के साथ समायोजन' की होती है। पारस्परिक सम्बन्ध विवाह में उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जितना कि मित्रता में तथा व्यावसायिक सम्बन्धों में। फिर भी विवाह के मामले में पारस्परिक सम्बन्धों में समायोजन अधिक कठिन होता है, जबकि सामाजिक या व्यावसायिक जीवन में इतना कठिन नहीं होता।
पुरुष तथा स्त्री दोनों के ही पूर्व के जितने अधिक पारस्परिक सम्बन्धों के अनुभव होते हैं, उतनी ही अधिक उनकी सामाजिक अन्तर्दृष्टि विकसित होगी तथा दूसरों के साथ जितनी अधिक सहयोग करने की भावना तथा इच्छा होगी, उतना ही अधिक अच्छा समायोजन वे एक-दूसरे के साथ करने के योग्य होते हैं।
वे पति तथा पत्नियाँ जिनमें स्नेह या प्यार को अभिव्यक्त न करने की आदत होती है विवाह के बाद ऊष्ण तथा घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित करने में कठिनाई अनुभव करते हैं, क्योंकि दोनों में से प्रत्येक अपने साथी के व्यवहार को परवाह न करने वाला समझता है।
जिस प्रकार प्यार को प्रदर्शित या अभिव्यक्त करने की योग्यता तथा इच्छा का होना आवश्यक है, उसी प्रकार बातचीत अथवा सम्प्रेषण की योग्यता एवं इच्छा का होना भी आवश्यक है। बाल्यावस्था तथा किशोरावस्था के दौरान जो अपने साथियों एवं मित्रों से बातचीत करते हैं, सम्प्रेषण करते हैं, उनकी तुलना में अधिक लोकप्रिय होते हैं, जो अपने में ही सीमित रहते हैं। ये वयस्क, जो दूसरों से सम्प्रेषण करना जानते हैं तथा जो ऐसा करने की इच्छा रखते हैं, वे वैवाहिक समायोजन में आने वाली अनेक जटिल गलतफहमियों को हटा देते हैं।
(2) यौन सम्बन्धी समायोजन – वैवाहिक जीवन में दूसरी मुख्य समायोजन की समस्या है— यौन सम्बन्धी समायोजन निर्विवाद रूप से विवाह में सर्वाधिक कठिन समायोजन होता है तथा यह वैवाहिक कलह या अनबन तथा दुख का कारण भी बन जाता है, यदि यौन सम्बन्ध सुख सन्तुष्टिदायक ढंग से प्राप्त न हो सके तो आमतौर पर विवाहित युगल को इस समायोजन से सम्बन्धित प्राथमिक अनुभव अन्य समायोजनों की तुलना में बहुत कम होते हैं एवं वे यह समायोजन बिना संवेगात्मक तनाव के करने में असमर्थ हो जाते हैं।
भारत जैसे देशों में जहाँ विवाह के पूर्व यौन सम्बन्धों को कोई मान्यता प्राप्त नहीं है तथा संस्कार वान परिवार के लड़के-लड़कियाँ इस प्रकार के सम्बन्ध विवाह पूर्व स्थापित भी नहीं करते हैं, फलस्वरूप विवाह के बाद 'यौन सम्बन्धी समायोजन' अधिक कठिन होता है। इसके विपरीत पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति में Dating Pattern' के एक भाग के रूप में किशोर लड़के-लड़कियाँ यौन सम्बन्ध भी स्थापित कर लेते हैं। अतः ऐसे किशोरों को विवाह के बाद इस प्रकार के समायोजन करने में आसानी होती है।
यौन सम्बन्धी समायोजन को प्रभावित करने वाले अनेक तत्व होते हैं ये तत्व उन पुरुष एवं महिलाओं पर अधिक प्रभाव डालते हैं, जिनके विवाह पूर्व यौन सम्बन्धी अनुभव नहीं है।
(3) जनकता या अभिभावकत्व से समायोजन (Adjustment to Parenthood) - कहा जाता है कि किसी वयस्क व्यक्ति के उत्तरदायित्व तथा परिपक्वता की महत्वपूर्ण कसौटी उसकी जनकता अथवा मातृत्व या पितृत्व होता है अर्थात् जब एक मनुष्य माता अथवा पिता की भूमिका को निभाता है तभी उसके अन्दर उत्तरदायित्व की भावना तथा परिपक्वता का विकास होता है। यह निर्विवाद सत्य है कि मातृत्व अथवा पितृत्व, सन्तुष्टिदायक भावनाओं या तृप्ति को साथ लेकर आता है, किन्तु इसको जीवन का एक संकटकाल भी कहा जा सकता है, क्योंकि यह व्यक्ति की अभिवृत्तियों, मूल्यों तथा भूमिकाओं में बहुत महत्वपूर्ण परिवर्तन कर देता है।
परिवार में नये बालक के जन्म लेते ही परिवार अस्थायी तौर पर अस्त-व्यस्त हो जाता है तथा परिवार के सभी सदस्य अलग-अलग स्तर पर तनाव तथा दबाव में रहते हैं। यद्यपि परिवार में बच्चों का जन्म खुशियाँ लेकर आता है किन्तु प्रत्येक बच्चे के जन्म के साथ ही कुछ कठिन समय या संकट भी आ जाता है, विशेष रूप से जब परिवार में प्रथम शिशु का जन्म होता है, क्योंकि माता-पिता दोनों ही अपनी इस नई भूमिका के लिए स्वयं को अपर्याप्त समझते हैं। कभी-कभी दोनों ही जनकता से सम्बन्धित बहुत रूमानी धारणा रखते हैं एवं सामाजिक तथा आर्थिक सुख-सुविधाओं का अभाव बच्चे के जन्म लेने पर उन्हें घेरने लगता हैं, साथ ही कभी - कभी कुछ पति-पत्नी के जीवन में बच्चा आने जाने पर उसका प्यार एवं निकटता कम हो जाती है, आदि कुछ ऐसे कारण हैं जो शिशु के जन्म लेने पर पति-पत्नी को विक्षिप्त कर देते हैं।
यद्यपि शिशु के जन्म लेने पर पति तथा पत्नी दोनों की समायोजन करने की आवश्यकता होती है क्योंकि अब उनकी भूमिका तथा जीवन शैली में अत्यधिक परिवर्तन आ जाता है, किन्तु माता को अधिक समायोजन करना पड़ता है, क्योंकि शिशु की सम्पूर्ण देखभाल तथा शौच कराने आदि की जिम्मेदारी माता को ही पूर्ण करनी होती है। शिशु, अक्सर दिन में सोते हैं और रात्रि में रोते हैं, तब वही अपने बच्चे को सम्भालती है, इस प्रकार उसकी दिनचर्या भी बदल जाती हैं, इस नई दिनचर्या की नई भूमिका में स्त्री को बहुत अधिक समायोजन करना पड़ता है। उसकी इस भूमिका (मातृत्व) में उसे परिवार के अन्य सदस्यों का सहयोग प्रायः नहीं के बराबर ही मिलता है।
जबकि पुरुष अपनी भूमिका में, पिता बनने पर आमूल परिवर्तन नहीं करते हैं, अनेक पति अपनी पत्नी के प्रति बहुत कम Sexually responsiars' होकर अपनी भूमिका के प्रति मोहभंग को प्रदर्शित करते हैं। साथ ही उन्हें आर्थिक दबाव की चिन्ता रहती है तथा उनमें माता शिशु के सम्बन्धों को लेकर क्रोध की भावना भी रहती है। इस प्रकार की प्रतिकूल अभिवृत्तियाँ, पुरुष के अभिभावकत्व की अभिवृत्ति के लिए तथा वैवाहिक सहयोग के लिए विनाशकारी होती है।
ऐच्छिक सन्तानहीनता
यह एक परम्परागत मान्यता है कि प्रत्येक स्त्री को 'माँ' होना चाहिए तथा बहुत अधिक संख्या में बच्चों का होना एक पुरुष के 'पौरुष' का सहज प्रमाण होता है। भारत में मोक्ष की प्राप्ति के लिए पुत्र का जन्म होना अनिवार्य माना जाता है तथा निःसन्तान दम्पत्ति विशेष रूप से स्त्री को अच्छी तथा सम्मानजनक नजरों से नहीं देखा जाता है। 'बाँझ' होने का दर्द, उस स्त्री से ज्यादा कौन महसूस कर सकता है, जिसकी गोद सूनी है। हमारे देश में तो सन्तान प्राप्ति हेतु दूसरा विवाह भी कर लिया जाता है, किन्तु विदेशों में आजकल ऐसे दम्पत्तियों की संख्या बढ़ती जा रही है, जो अपनी इच्छा से सन्तानहीन हैं। यह तथ्य सभी सामाजिक आर्थिक स्तर पर सत्य है किन्तु उच्च शिक्षित लोगों के समूह के सन्दर्भ में यह बात विशेष रूप से सत्य है।
पति-पत्नी द्वारा सन्तान उत्पन्न न करने के अनेक कारण हो सकते हैं किन्तु सबसे मुख्य कारण उन लोगों को उभरता हुआ रोचक कैरियर होता है जिससे वे समझते हैं कि बच्चे के आ जाने से वह अवरुद्ध हो जाएगा। साथ ही दम्पत्तियों ने जो अपने लिए जीवने शैली स्थापित की है तथा अपने बच्चों को वे अच्छा जीवन दे सकने की अनिच्छा, अन्तर्जातीय अथवा अन्तर्वर्ण विवाह तथा कम आमदनी का भय, उन्हें बच्चों को जन्म देने से रोकता है।
कुछ दम्पत्ति स्वेच्छा से अपने परिवार के सदस्यों की संख्या को सीमित कर देते हैं। अनेक दम्पत्तियों का यह अनुभव होता है कि इकलौता बालक परिवार की व्यवस्थाओं को ज्यादा भंग नहीं करता है, जबकि दो या अधिक सन्तानें परिवार को छिन्न-भिन्न या अस्त-व्यस्त कर देती हैं। अतः आजकल एक ही बच्चे की अवधारणा ने जन्म ले लिया है। कभी-कभी स्त्रियाँ अपनी नौकरी या व्यवसाय को छोड़ना नहीं चाहती हैं तथा अपनी व्यक्तिगत एवं सामाजिक रुचियों को भी बनाए रखना चाहती हैं, फलस्वरूप वे अपने परिवार को और अधिक नहीं बढ़ाना चाहती हैं। उन्हें एक ही सन्तान से भी तो अभिभावकत्व (Parenthood) का सुख एवं सन्तुष्टि प्राप्त हो जाती है।
एकाकी जनकता
ऐसे अनेक परिवार देखे जाते हैं जिनमें बच्चों की देखभाल तथा पालन-पोषण हेतु केवल एक अभिभावक होता है क्योंकि दोनों में से किसी एक ही मृत्यु हो जाती है। आजकल एक अभिभावक परिवारों की संख्या बढ़ती जा रही है, इसके लिए दो कारण उत्तरदायी हैं— प्रथम जो यह कि अधिकांश One Parent Families का कारण विवाह विच्छेद होना है। बजाए किसी एक अभिभावक की मृत्यु के तथा द्वितीय यह है कि आजकल अवैध सन्तानों को भी जन्म दिया जाता है एवं माता द्वारा उसका पालन-पोषण किया जाता है। अविवाहित लड़कियों में माता बनने का साहस उत्पन्न हो गया है, यद्यपि भारत जैसे देशों में ऐसे प्रकरणों की संख्या बहुत कम है।
One Parent Family का एक कारण है कि हमारे यहाँ प्रायः माता की मृत्यु के पश्चात् पिता अपने बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी या तो स्वयं निभाते हैं अथवा अपनी माता या अन्य महिला सम्बन्धी की सहायता से बच्चों का पालन-पोषण कर लेते हैं। कई बार विधुर पुरुष अपने बच्चों की ही खातिर पुनर्विवाह भी नहीं करते हैं। यदि परिवार में विधुर व्यक्ति की माता या महिला सम्बन्धी नहीं है तो ये पुरुष अपनी नौकरी अथवा व्यवसाय के साथ-साथ बच्चों की देखभाल का उत्तरदायित्व भी पूरा करते हैं।
|
- प्रश्न- आहार आयोजन से आप क्या समझती हैं? आहार आयोजन का महत्व बताइए।
- प्रश्न- आहार आयोजन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें बताइये।
- प्रश्न- आहार आयोजन को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- एक खिलाड़ी के लिए एक दिन के पौष्टिक तत्वों की माँग बताइए व आहार आयोजन कीजिए।
- प्रश्न- एक दस वर्षीय बालक के पौष्टिक तत्वों की मांग बताइए व उसके स्कूल के लिए उपयुक्त टिफिन का आहार आयोजन कीजिए।
- प्रश्न- "आहार आयोजन करते हुए आहार में विभिन्नता का भी ध्यान रखना चाहिए। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आहार आयोजन के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- दैनिक प्रस्तावित मात्राओं के अनुसार एक किशोरी को ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
- प्रश्न- सन्तुलित आहार क्या है? सन्तुलित आहार आयोजित करते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
- प्रश्न- आहार द्वारा कुपोषण की दशा में प्रबन्ध कैसे करेंगी?
- प्रश्न- वृद्धावस्था में आहार को अति संक्षेप में समझाइए।
- प्रश्न- आहार में मेवों का क्या महत्व है?
- प्रश्न- सन्तुलित आहार से आप क्या समझती हैं? इसके उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- वर्जित आहार पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- शैशवावस्था में पोषण पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- शिशु के लिए स्तनपान का क्या महत्व है?
- प्रश्न- शिशु के सम्पूरक आहार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- किन परिस्थितियों में माँ को अपना दूध बच्चे को नहीं पिलाना चाहिए?
- प्रश्न- फार्मूला फीडिंग आयोजन पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- 1-5 वर्ष के बालकों के शारीरिक विकास का वर्णन करते हुए उनके लिए आवश्यक पौष्टिक आहार की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 6 से 12 वर्ष के बालकों की शारीरिक विशेषताओं का वर्णन करते हुए उनके लिए आवश्यक पौष्टिक आहार की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- विभिन्न आयु वर्गों एवं अवस्थाओं के लिए निर्धारित आहार की मात्रा की सूचियाँ बनाइए।
- प्रश्न- एक किशोर लड़की के लिए पोषक तत्वों की माँग बताइए।
- प्रश्न- एक किशोरी का एक दिन का आहार आयोजन कीजिए तथा आहार तालिका बनाइये।
- प्रश्न- एक सुपोषित बच्चे के लक्षण बताइए।
- प्रश्न- वयस्क व्यक्तियों की पोषण सम्बन्धी आवश्यकताओं का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धावस्था की प्रमुख पोषण सम्बन्धी आवश्यकताएँ कौन-कौन-सी हैं?
- प्रश्न- एक वृद्ध के लिए आहार योजना बनाते समय आप किन बातों को ध्यान में रखेंगी?
- प्रश्न- वृद्धों के लिए कौन से आहार सम्बन्धी परिवर्तन करने की आवश्यकता होती है? वृद्धावस्था के लिए एक सन्तुलित आहार तालिका बनाइए।
- प्रश्न- गर्भावस्था में कौन-कौन से पौष्टिक तत्व आवश्यक होते हैं? समझाइए।
- प्रश्न- स्तनपान कराने वाली महिला के आहार में कौन से पौष्टिक तत्वों को विशेष रूप से सम्मिलित करना चाहिए।
- प्रश्न- एक गर्भवती स्त्री के लिए एक दिन का आहार आयोजन करते समय आप किन किन बातों का ध्यान रखेंगी?
- प्रश्न- एक धात्री स्त्री का आहार आयोजन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें बताइये।
- प्रश्न- मध्य बाल्यावस्था क्या है? इसकी विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- मध्य बाल्यावस्था का क्या अर्थ है? मध्यावस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शारीरिक विकास का क्या तात्पर्य है? शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले करकों को समझाइये।
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास का क्या अर्थ है? क्रियात्मक विकास को परिभाषित कीजिए एवं मध्य बाल्यावस्था में होने वाले क्रियात्मक विकास को समझाइये।
- प्रश्न- क्रियात्मक कौशलों के विकास का वर्णन करते हुए शारीरिक कौशलों के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास से आप क्या समझते हैं? सामाजिक विकास के लिए किन मानदण्डों की आवश्यकता होती है? सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समाजीकरण को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- बालक के सामाजिक विकास के निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समाजीकरण से आप क्या समझती हैं? इसकी प्रक्रियाओं की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास से क्या तात्पर्य है? इनकी विशेषताओं का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर बाल्यावस्था में सामाजिक विकास का क्या तात्पर्य है? उत्तर बाल्यावस्था की सामाजिक विकास की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संवेग का क्या अर्थ है? उत्तर बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संवेगात्मक विकास की विशेषताएँ लिखिए एवं बालकों के संवेगों का क्या महत्व है?
- प्रश्न- बालकों के संवेग कितने प्रकार के होते हैं? बालक तथा प्रौढों के संवेगों में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- संवेगात्मक विकास को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बच्चों के भय के क्या कारण हैं? भय के निवारण एवं नियन्त्रण के उपाय लिखिए।
- प्रश्न- संज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा लिखिए। संज्ञान के तत्व एवं संज्ञान की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से क्या तात्पर्य है? इसे प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भाषा से आप क्या समझते हैं? वाणी एवं भाषा का क्या सम्बन्ध है? मानव जीवन के लिए भाषा का क्या महत्व है?
- प्रश्न- भाषा- विकास की विभिन्न अवस्थाओं का विस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भाषा-विकास से आप क्या समझती? भाषा-विकास पर प्रभाव डालने वाले कारक लिखिए।
- प्रश्न- बच्चों में पाये जाने वाले भाषा सम्बन्धी दोष तथा उन्हें दूर करने के उपाय बताइए।
- प्रश्न- भाषा से आप क्या समझती हैं? भाषा के मापदण्ड की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- भाषा से आप क्या समझती हैं? बालक के भाषा विकास के प्रमुख स्तरों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भाषा के दोष के प्रकारों, कारणों एवं दूर करने के उपाय लिखिए।
- प्रश्न- मध्य बाल्यावस्था में भाषा विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक बुद्धि का आशय स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'सामाजीकरण की प्राथमिक प्रक्रियाएँ' पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बच्चों में भय पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- बाह्य शारीरिक परिवर्तन, संवेगात्मक अवस्थाओं को समझाइए।
- प्रश्न- संवेगात्मक अवस्था में होने वाले परिवर्तन क्या हैं?
- प्रश्न- संवेगों को नियन्त्रित करने की विधियाँ बताइए।
- प्रश्न- क्रोध एवं ईर्ष्या में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- बालकों में धनात्मक तथा ऋणात्मक संवेग पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भाषा विकास के अधिगम विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भाषा विकास के मनोभाषिक सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बालक के हकलाने के कारणों को बताएँ।
- प्रश्न- भाषा विकास के निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भाषा दोष पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भाषा विकास के महत्व को समझाइये।
- प्रश्न- वयः सन्धि का क्या अर्थ है? वयः सन्धि अवस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए - (a) वयःसन्धि में लड़के लड़कियों में यौन सम्बन्धी परिपक्वता (b) वयःसन्धि में लैंगिक क्रिया-कलाप (e) वयःसन्धि में नशीले पदार्थों का उपयोग एवं दुरूपयोग (d) वय: सन्धि में आहार सम्बन्धी आवश्यकताएँ।
- प्रश्न- यौन संचारित रोग किसे कहते हैं? भारत के प्रमुख यौन संचारित रोग कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- एच. आई. वी. वायरस क्या है? इससे होने वाला रोग, कारण, लक्षण एवं बचाव बताइये।
- प्रश्न- ड्रग और एल्कोहल एब्यूज डिसआर्डर क्या है? विस्तार से समझाइये।
- प्रश्न- किशोर गर्भावस्था क्या है? किशोर गर्भावस्था के कारण, लक्षण, किशोर गर्भावस्था से बचने के उपाय बताइये।
- प्रश्न- युवाओं में नशीले पदार्थ के सेवन की समस्या क्यों बढ़ रही है? इस आदत को कैसे रोका जा सकता है?
- प्रश्न- किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास, भाषा विकास एवं नैतिक विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सृजनात्मकता का क्या अर्थ है? सृजनात्मकता की परिभाषा लिखिए। किशोरावस्था में सृजनात्मक विकास कैसे होता है? समझाइये।
- प्रश्न- किशोरावस्था की परिभाषा देते हुये उसकी अवस्थाएँ लिखिए।
- प्रश्न- किशोरावस्था की विशेषताओं को विस्तार से समझाइये।
- प्रश्न- किशोरावस्था में यौन शिक्षा पर एक निबन्ध लिखिये।
- प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- किशोरावस्था क्या है? किशोरावस्था में विकास के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- किशोरावस्था को तनाव या तूफान की अवस्था क्यों कहा गया है?
- प्रश्न- प्रारम्भिक वयस्कावस्था में 'आत्म प्रेम' (Auto Emoticism ) को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- किशोरावस्था से क्या आशय है?
- प्रश्न- किशोरावस्था में परिवर्तन से सम्बन्धित सिद्धान्त कौन से हैं?
- प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख सामाजिक समस्याएँ लिखिए।
- प्रश्न- आत्म की मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- शारीरिक छवि की परिभाषा लिखिए।
- प्रश्न- प्राथमिक सेक्स की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- किशोरावस्था के बौद्धिक विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सृजनात्मकता और बुद्धि में क्या सम्बन्ध है?
- प्रश्न- प्रौढ़ावस्था से आप क्या समझते हैं? प्रौढ़ावस्था में विकासात्मक कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रारंभिक वयस्कावस्था के मानसिक लक्षणों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- वैवाहिक समायोजन से क्या तात्पर्य है? विवाह के पश्चात् स्त्री एवं पुरुष को कौन-कौन से मुख्य समायोजन करने पड़ते हैं?
- प्रश्न- प्रारंभिक वयस्कतावस्था में सामाजिक विकास की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर व्यस्कावस्था में कौन-कौन से परिवर्तन होते हैं तथा इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप कौन-कौन सी रुकावटें आती हैं?
- प्रश्न- वृद्धावस्था से क्या आशय है? संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- वृद्धावस्था में संज्ञानात्मक सामर्थ्य एवं बौद्धिक पक्ष पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- पूर्व प्रौढ़ावस्था की प्रमुख विशेषताओं के बारे में लिखिये।
- प्रश्न- युवा प्रौढ़ावस्था शब्द को परिभाषित कीजिए। माता-पिता के रूप में युवा प्रौढ़ों के उत्तरदायित्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धावस्था में रचनात्मक समायोजन पर टिप्पणी लिखिए?
- प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60 वर्ष) में हृदय रोग की समस्याओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धावस्था में समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों को विस्तार से समझाइए।
- प्रश्न- उत्तर-वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।