बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 |
बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य : सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- कहानी साहित्य के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
हिन्दी कहानी के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
हिन्दी कहानी के उद्भव और विकास पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
अथवा
हिन्दी कहानी की विकासयात्रा पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
उत्तर -
हिन्दी कहानी का उद्भव एवं विकास
आधुनिक हिन्दी कहानी का आरम्भ बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ से होता है। सन् 1903 ई0 में 'सरस्वती' मासिक पत्रिका के प्रकाशन से आधुनिक कहानी का आरम्भ हुआ। कहानी बहुत कुछ जीवन के समीप आ गयी। उसमें से अलौकिकता दैवीसंयोग अथवा आश्चर्यजनक घटनाओं की कमी होने लगी। कहानियों में सांकेतिकता और संक्षीप्तता आने लगी। अब कहानी का उद्देश्य उपदेश, मनोरंजन, कौतूहल अथवा घटना वैचित्र्य का चित्रण मात्र न रहकर मानव जीवन को स्वाभाविक अभिव्यक्ति रह गया। कहानी में विषय और शिल्प विधान दोनों ही दृष्टियों में नवीनता आ गई।
हिन्दी कहानी का विकास - हिन्दी कहानी का विकास निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है -
(1) पृष्ठभूमि काल (सन् 1900 से पहले) - इस काल की कहानियों का महत्व इसलिए है कि इन्होंने पाठकों में कहानी पढ़ने की रुचि जागृत की देवकीनन्दन खत्री की जासूसी कथाओं के पढ़ने के लिए बहुत से लोगों ने हिन्दी सीखी। उनकी 'चन्द्रकान्ता सन्तति' अपनी-अपनी अद्भुत कल्पना शक्ति और कला विन्यास के कारण आज भी पाठकों को आकर्षित करती है। इसी समय किशोरलाल गोस्वामी ने कई कहानियाँ लिखीं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल इन्हीं को हिन्दी का प्रथम कहानीकार मानते हैं। तीसरे प्रमुख कथाकार श्री गोपालराम गहमरी ने भी अपनी जासूसी कथाओं से हिन्दी पाठकों की रुचि को आकर्षित किया। आपके द्वारा प्रकाशित 'जासूस' पत्र में मौलिक आख्यायिकाएँ भी प्रकाशित होती थीं।
इस प्रकार छोटी कहानियाँ, गल्प आख्यायिकाएँ पहले पहल हिन्दी में बंगला से आई। इससे कुछ पहले श्री राधाचरण गोस्वामी 'सौदामिनी' नामक छोटी-सी कहानी बंगला से अनूदित कर प्रस्तुत कर चुके थे।
इस युग की कहानियों का हिन्दी कहानी का न तो कोई विकास हुआ और न कोई उसका भाग ही बना, किन्तु इतना अवश्य है कि इन कहानियों ने हिन्दी कहानी की पृष्ठभूमि तैयार की।
(2) प्रथम उत्थान काल (सन् 1900 से 1910 तक) - सन् 1902 में 'सरस्वती' के प्रकाशन से ही हिन्दी कहानी का श्री गणेश होता है। सरस्वती के प्रथम वर्ष से ही छोटी-छोटी कहानियाँ प्रकाशित होने लगीं। इनमें से अधिकांश बंग्ला कहानियों की अनुवाद थीं। अनुवादकों के पार्वतीनन्दन भट्टाचार्य, गिरिजा कुमार घोष, श्रीमती बंग महिला नाम के नाम से उल्लेखनीय हैं।
इन अनुवादों के साथ में मौलिक कहानियां भी प्रकाशित होने लगीं। सन् 1900 से किशोरीलाल गोस्वामी को मौलिक कहानी 'इन्दुमति' प्रकाशित हुई। इसको 'हिन्दी का सर्वप्रथम कहानी होने का श्रेय प्राप्त है। इस कहानी पर 'टेमपेस्ट' की छाप है सन् 1903 में श्री रामचंद्र शुक्ल की 'ग्यारह वर्ष का समय कहानी प्रकाशित हुई। यह कहानी के ढर्रे पर कही गई है। इसके पश्चात् गिरिजादत्त वाजपेयी की पंड्इत और पण्डितानी कहानी सामने आई. इस पर अंग्रेजी का प्रभाव है। इस काल में सर्वश्रेष्ठ समझी जाने वाली कहानी 'दुलाई वाली' सामने आई। इसकी लेखिका श्रीमती बंग महिला थी। प्रसंगानुकूलता, कथोपकथन स्वाभाविकता और मार्मिकता की दृष्टि से इसे सफल कहानी कहा जा सकता है।
यह कहानी काल हिन्दी कहानी का प्रयोग काल था। इसी समय श्री वृन्दावनलाल वर्मा ने ऐतिहासिक कहानी की परम्परा चलाई। उनकी राखी बन्द भाई कहानी प्रकाशित हुई। मैथिलीशरण गुप्त ने सन् 1910 में निन्यानवे का फेर कहानी लिखी।
प्रथम उत्थान काल की कहानियों की विशेषताएँ
यह निम्न प्रकार है -
(1) इस काल की सभी कहानियाँ कथानक प्रधान है।
(2) कथानक में इतिवृत्तात्मकता, दैवी संयोग, आकस्मिकता तथा आश्चर्यजनक तत्व अधिक मिलते हैं।
(3) चरित्र चित्रण और चरित्र विकास गौण है।
(4) अधिकांश कहानियाँ संस्कृत नाटकों, शेक्सपीयर के नाटकों और बंगला नाटकों से प्रभावित है।
(3) द्वितीय उत्थान काल (सन् 1911 से 1929 तक) - कहानी के द्वितीय उत्थान का प्रारम्भ 'इन्दु' पत्रिका के प्रकाशन से होता है। इसमें प्रसाद जी की सबसे पहली कहानी 'ग्राम' सन् 1911 में प्रकाशित हुई। चार कहानियाँ और निकलीं, जिनका संग्रह 'छाया' नाम से सन् 1912 में प्रकाशित हुआ। प्रसाद जी की कहानियाँ सर्वथा मौलिक थीं। किन्तु उनकी भाषा के अलंकरण और वस्तु विन्यास पर बंगला का प्रभाव स्पष्ट है। इस काल में हिन्दी के अनेक प्रमुख कहानीकार हुए। 1911 में जी0 पी0 श्रीवास्तव ने हास्य रस की कहानियाँ लिखीं। सन् 1912 में श्री विश्वरम्भरनाथ जिज्जा की 'परदेशी' कहानी प्रकाशित हुई। सन् 1913 में राधिकारमण सिंह की 'कानों में कँगना' सामने आई। इसी वर्ष कौशिक जी की 'रक्षाबन्धन' कहानी निकली। सन् 1914 में चतुरसेन शास्त्री की 'गृहलक्ष्मी सन् 1915 में गुलेरी जी की प्रसिद्ध 'उसने कहा था तथा सन् 1916 में प्रेमचन्द की 'पंच परमेश्वर कहानी प्रकाशित हुई। इनमें गोविन्दवल्लभ पन्त (सन् 1919 ) सुदर्शन (1920). रायकृष्णदास (1917) पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी (1917) बालकृष्ण शर्मा नवीन (1918), चण्डी प्रसाद हृदयेश (1919). भगवतीचरण वर्मा (1921), निराला (1927) भगवती प्रसाद वाजपेयी (1924) विनोद शंकर व्यास (1927) वाचस्पति पाठक (1927) आदि प्रमुख हैं।
हिन्दी कहानी का यह द्वितीय उत्थान बहुत महत्वपूर्ण है। इस काल में बहुत-सी मौलिक कहानियाँ सामने आई हैं जो हिन्दी साहित्य की स्थायी निधि बन गई। इस युग में भावमूलक और यथार्थवादी दो प्रकार की कहानियाँ लिखी गई। भाव-मूलक कहानियाँ में जनक प्रसाद जी उनके कथोपकथन कवित्वमय और हृदय को चुभने वाले हैं। उनमें प्राचीन समय की संस्कृति और वातावरण का सफल चित्रण हुआ है। प्रसाद जी की कहानियों का शिल्प विधान सर्वथा मौलिक है। उनका प्रारम्भ इतना मनोवैज्ञानिक तथा नाटकीय होता है कि पाठक को वे स्वतः ही आकर्षित कर लेती है। उनका अन्त भी इतना प्रभावशाली और अप्रत्याशित होता है कि पाठक का मन झकझोर उठता है और वह एक समस्या पुनः सुलझाने लगता है। प्रसाद जी कहानियों ने हिन्दी को एक नई दिशा प्रदान की और इस प्रकार की कहानियों की एक नवीन धारा ही प्रवाहित हो चली, जिसके कहानीकारों में रायकृष्णदास, वाचस्पति पाठक आदि प्रमुख हैं।
प्रेमचन्द जी की कहानियों ने चरित्र-चित्रण को समुचित स्थान दिया गया। वे वस्तुवादी कलाकार थे। इसलिए उनकी कहानियाँ हमारे साधारण जीवन की एक झांकी प्रस्तुत करती है। प्रसाद जी की कहानियों की तरह इनमें भावना का आधार नहीं लिया गया है। प्रेमचन्द जी ने जो कुछ भी अपने समय में देखा, उसी को उन्होंने कहानी का रूप दिया। प्रेमचन्द जी की कहानियों में राष्ट्रीय भावना दलितों-ग्रामीणों के प्रति गहरी सहानुभूति, अत्याचारों के विरुद्ध ऊंची आवाज आदि भावनाएँ ओत-प्रोत हैं। उनकी शैली यथार्थ और नाटकीय है।
हिन्दी कहानी के द्वितीय उत्थान की विशेषताएँ
(1) प्रेमचन्द की कहानी कला का अनेक कहानीकारों ने अनुसरण किया। इनमें सुदर्शन,विश्वम्भरनाथ शर्मा 'कौशिक ज्वालादत्त शर्मा आदि प्रमुख हैं।
(2) इस युग की सर्वश्रेष्ठ कहानी उसने कहा था है जो सन् 1915 में प्रकाशित हुई।
(3) प्रसाद जी कहानियों ने कहानी को एक नई दिशा दी उनकी कहानियों में वैयक्तिकता अधिक है।
(4) प्रेमचन्द जी इस युग के सबसे अधिक लोकप्रिय कलाकार है।
(5) इस युग में प्रसाद और प्रेमचन्द एक-दूसरे के पूरक हैं।
(6) इस युग में कुछ प्रकृतिवादी कहानियाँ भी लिखी गई। इनके लेखक 'उग्र' जी हैं।
(7) इस युग की कहानियों में कथानक के साथ चरित्र के विकास का विशेष ध्यान दिया गया।
कहानियों के कथानक में दैवी संयोग, आकस्मिक घटना अथवा आश्चर्यजनक तत्वों का समावेश न करके जीवन की स्वाभाविकता को लाया गया है।
हिन्दी कहानी के विकास में प्रसाद और प्रेमचन्द का महत्वपूर्ण योगदान है। परवर्ती सभी कहानीकारों ने प्रसाद या प्रेमचन्द का अनुसरण किया। प्रसाद जी की अधिकांश कहानियां भावमूलक हैं। इनमें अतीत और वर्तमान की विशद रसमयी परिस्थितियों में पात्रों और घटनाओं का चित्रण हुआ है। वातावरण की सजीवता प्रसाद जी की कहानियों में प्रमुख विशेषता है। प्रसाद जी की कहानियों में सर्वत्र नाटकीय तत्व मिलते हैं। प्रसाद जी का अनुसरण रायकृष्णदास, वाचस्पतिपाठक, विनोद शंकर व्यास, चंडीप्रसाद हृदयेश, कमलाकान्त वर्मा आदि की कहानियों में मिलता है। भाव प्रवणता अतिरंजना और वातावरण की प्रमुखता के कारण चतुरसेन शास्त्री, ऋषभचरण जैन, बेचन शर्मा 'उग्र' आदि को भी प्रसाद को श्रेणी में लिया जा सकता है।
हिन्दी कथा साहित्य में प्रेमचन्द का आगमन महत्वपूर्ण घटना है। प्रेमचन्द जी ने विविध परिस्थितियों में पड़े हुए मनुष्य का चित्रण तथा समाज के प्रत्येक स्तर के विवेचन को कहानी में स्थान दिया। हिन्दी की प्रगतिशील कहानियाँ प्रेमचन्द जी की परम्परा का ही बहुत कुछ विकास कही जा सकती हैं। विश्वम्भरनाथ शर्मा लिखा, जे0 पी0 श्रीवास्तव, राजा राधिकारमण सिंह, विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक, पंडित ज्वालादत्त शर्मा, गोविन्द बल्लभ पंत, सुदर्शन, वृन्दावनलाल वर्मा और भगवती प्रसाद वाजपेयी को प्रेमचन्द जी की ही श्रेणी में रख सकते हैं। बीसवीं शताब्दी के द्वितीय और तृतीय दशकों में हिन्दी कहानी की समस्त प्रवृत्तियाँ और शिल्प विधियाँ प्रेमचन्द और प्रसाद जी से प्रभावित और अनुप्राणित रहीं।
(4) तृतीय उत्थान काल (सन् 1930 से अब तक) - सन् 1930 के पश्चात् कहानी कला में परिवर्तन हुआ। वह अपने चरम विकास पर पहुंच गई। विषय की विविधता, भाव की गहनता, जीवन की मार्मिकता तथा शिल्प की नवीनता की दृष्टि से कहानी साहित्य उन्नत हुआ।
प्रगतिशील कहानियों में प्रेमचन्द जी की परम्परा को ही अनुसरण हुआ है, परन्तु प्रवृत्ति की दृष्टि से पर्याप्त अन्तर आ गया है।
प्रगतिवादी कहानियों में सामाजिक समस्याओं का एक विशेष भौतिकवादी दृष्टि से चित्रण किया गया है समाज की प्रगतिशील शक्तियों का स्पष्ट रूप से संकेत रहता है। बहुत-सी प्रगतिशील कहानियाँ अत्यन्त मार्मिक है।
इस युग की कहानी साहित्य गाँधीवाद, साम्यवाद, फ्रायड के यौनवाद आदि से प्रभावित है। इन नई कहानियों में जहाँ बुद्धि का अतिरेक है, वहाँ व्यक्ति को लेकर विद्रोह, विस्फोट और चिन्तन की प्रवृत्ति भी मिलती है। आज का कहानीकार बाह्य जीवन से हटकर अन्तर्गत और अवचेतन की ओर मुड़ गया है।
आज की नई कहानियों बुद्धिधर्मी, सिद्धान्तग्रस्त और प्रयोगवादी हैं। उनमें जीवन की गहराई और व्यापकता की कुछ कमी है। इतने पर भी असंख्य नवीन सम्भावनाओं के जन्म के कारण कहानी का भविष्य उज्जवल दिखाई दे रहा है। नये कहानीकारों में अज्ञेय, जैनेन्द्र कुमार, सियारामशरण गुप्त इलाचन्द्र, यशपाल पहाड़ी उपेन्द्रनाथ अश्क धर्मवीर भारती, अमृतलाल नागर, कमलेश्वर रेणु, हरिशंकर परसाई, विष्णु प्रभाकर, रमेश बख्शी, राजेन्द्र यादव, निर्मल वर्मा, ज्ञानरंजन आदि प्रमुख हैं। स्त्री कहानीकारों में सुभद्राकुमारी चौहान, होमवती, ऊशादेवी मित्र, महादेवी वर्मा, चन्द्रकिरण सौनरिक्सा, ऊषा प्रियवंदा, कृष्ण सोवती, मन्नू भंडारी आदि प्रमुख हैं। इनकी कहानियों में पारिवारिक जीवन और नारी जीवन की समस्याओं का विवेचन हुआ है।
मनोवैज्ञानिक कहानियाँ कहानी का एक नया रूप है। इस प्रकार की कहानियों का प्रारम्भ जैनेन्द्र जी से हुआ। इन कहानियों में किसी मनोवैज्ञानिक तथ्य का विश्लेषण और विवेचन होता है। जैनेन्द्र जी का कहानियों में मानव मन के रहस्यों, उनके मन की विविध प्रक्रियाओं का मार्मिक चित्रण मिलता है। जैनेन्द्र जी की ये कहानियाँ हिन्दी के कहानी साहित्य का गौरव बढ़ाने वाली है। अज्ञेय जी दूसरे मनोवैज्ञानिक कहानीकार है। इलाचन्द्र जोशी भी इसी क्षेत्र में आते हैं। मनोवैज्ञानिक कहानियाँ ऐतिहासिक कहानियों से पहले आती हैं।
सामाजिक यथार्थवादी कहानियों में श्रेणी के कहानीकारों में उपेन्द्रनाथ अश्क, चन्द्रगुप्त विद्यालंकार और रामप्रसाद पहाड़ी आदि कहानीकार उल्लेखनीय हैं। इन कहानीकारों ने समाज की विभिन्न स्थितियों और समस्याओं का चित्रण किया है। श्री जी0 पी0 श्रीवास्तव द्वारा चलाई गई हास्य रस की कहानियों की परम्परा में अन्य उल्लेखनीय कहानीकारों के नाम हैं बेढ़व, बनारसी, हरिशंकर शर्मा, कृष्ण प्रसाद गौड़, अजीम वेग चुगताई, अन्नपूर्णानन्द, बरसाने लाल चतुर्वेदी, रघुकुल तिलक आदि।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् हिन्दी के नये कहानीकारों ने अपनी कहानियो के साथ नई 'अ' सचेतन आदि विशेषताएँ लगाये हैं श्री राजेन्द्र यादव, मोहन राकेश, कमलेश्वर, रघुवीर सहाय निर्मल वर्मा, रमेश बक्शी, नरेश मेहता की गणना नये कहानीकारों में की जाती है, तो भीष्म साहनी, अमरकान्त, डॉ0 महीपसिंह, मनहर, चौहान, सुखबीर, कुलभूषण और वेद राही आदि कहानीकार स्वयं के सचेतन कहानीकार कहलाना पसन्द करते हैं। कुछ नये कहानीकार अपनी काहनियों में 'अकहानी' की संज्ञा देते हुए प्रसिद्धि प्राप्त करने की चेष्टा कर रहे हैं। कुछ अन्य कहानीकार जो इस अखाड़े बाजी से मुक्त हैं, उनके नाम हैं- धर्मवीर भारती, लक्ष्मी नारायण लाल, सुदर्शन चोपड़ा, शैलेश मटियानी, फणीश्वरनाथ रेणु कृष्णा सेवती, शिवानी मन्नू भंडारी, नरेन्द्र कोहली, ऊषा प्रियम्वदा, शान्ति मेहरोत्रा आदि।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि कहानी आजकल की प्रमुख साहित्यिक विधा हैं और हिन्दी कहानी के भंडार की अभिवृद्धि होती जा रही है। वह हिन्दी साहित्य की एक अत्यन्त समृद्ध विधा का स्थान ग्रहण कर चुकी है।
|
- प्रश्न- आदिकाल के हिन्दी गद्य साहित्य का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी की विधाओं का उल्लेख करते हुए सभी विधाओं पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी नाटक के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कहानी साहित्य के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी निबन्ध के विकास पर विकास यात्रा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'आत्मकथा' की चार विशेषतायें लिखिये।
- प्रश्न- लघु कथा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- हिन्दी गद्य की पाँच नवीन विधाओं के नाम लिखकर उनका अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- आख्यायिका एवं कथा पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- सम्पादकीय लेखन का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ब्लॉग का अर्थ बताइये।
- प्रश्न- रेडियो रूपक एवं पटकथा लेखन पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- हिन्दी कहानी के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- प्रेमचंद पूर्व हिन्दी कहानी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- नई कहानी आन्दोलन का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- हिन्दी उपन्यास के उद्भव एवं विकास पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- उपन्यास और कहानी में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए ?
- प्रश्न- हिन्दी एकांकी के विकास में रामकुमार वर्मा के योगदान पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी एकांकी का विकास बताते हुए हिन्दी के प्रमुख एकांकीकारों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि डा. रामकुमार वर्मा आधुनिक एकांकी के जन्मदाता हैं।
- प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का योगदान बताइये।
- प्रश्न- निबन्ध साहित्य पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के आधार पर जीवनी और संस्मरण का अन्तर स्पष्ट कीजिए, साथ ही उनकी मूलभूत विशेषताओं की भी विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'रिपोर्ताज' का आशय स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आत्मकथा और जीवनी में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- हिन्दी की हास्य-व्यंग्य विधा से आप क्या समझते हैं ? इसके विकास का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- कहानी के उद्भव और विकास पर क्रमिक प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सचेतन कहानी आंदोलन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जनवादी कहानी आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
- प्रश्न- समांतर कहानी आंदोलन के मुख्य आग्रह क्या थे ?
- प्रश्न- हिन्दी डायरी लेखन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- यात्रा सहित्य की विशेषतायें बताइये।
- अध्याय - 3 : झाँसी की रानी - वृन्दावनलाल वर्मा (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा के जीवन वृत्त एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- झाँसी की रानी उपन्यास में वर्मा जी ने सामाजिक चेतना को जगाने का पूरा प्रयास किया है। इस कथन को समझाइये।
- प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास में रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- झाँसी की रानी के सन्दर्भ में मुख्य पुरुष पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास के पात्र खुदाबख्श और गुलाम गौस खाँ के चरित्र की तुलना करते हुए बताईये कि आपको इन दोनों पात्रों में से किसने अधिक प्रभावित किया और क्यों?
- प्रश्न- पेशवा बाजीराव द्वितीय का चरित्र-चित्रण कीजिए।
- अध्याय - 4 : पंच परमेश्वर - प्रेमचन्द (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'पंच परमेश्वर' कहानी का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की शिक्षा, योग्यता और मान-सम्मान की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- “अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है।" इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
- अध्याय - 5 : पाजेब - जैनेन्द्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- श्री जैनेन्द्र जैन द्वारा रचित कहानी 'पाजेब' का सारांश अपने शब्दों में लिखिये।
- प्रश्न- 'पाजेब' कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'पाजेब' कहानी की भाषा एवं शैली की विवेचना कीजिए।
- अध्याय - 6 : गैंग्रीन - अज्ञेय (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर अज्ञेय द्वारा रचित 'गैंग्रीन' कहानी का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- कहानी 'गैंग्रीन' में अज्ञेय जी मालती की घुटन को किस प्रकार चित्रित करते हैं?
- प्रश्न- अज्ञेय द्वारा रचित कहानी 'गैंग्रीन' की भाषा पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 7 : परदा - यशपाल (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परदा' कहानी की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'परदा' कहानी का खान किस वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, तर्क सहित इस कथन की पुष्टि कीजिये।
- प्रश्न- यशपाल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- अध्याय - 8 : तीसरी कसम - फणीश्वरनाथ रेणु (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हीराबाई का चरित्र चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'तीसरी कसम' उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
- प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है ?
- प्रश्न- हीरामन की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए?
- अध्याय - 9 : पिता - ज्ञान रंजन (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
- अध्याय - 10 : ध्रुवस्वामिनी - जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक का कथासार अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- नाटक के तत्वों के आधार पर ध्रुवस्वामिनी नाटक की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त के चरित्र की विशेषतायें बताइए।
- प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी नाटक में इतिहास और कल्पना का सुन्दर सामंजस्य हुआ है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- ऐतिहासिक दृष्टि से ध्रुवस्वामिनी की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'धुवस्वामिनी' नाटक के अन्तर्द्वन्द्व किस रूप में सामने आया है ?
- प्रश्न- क्या ध्रुवस्वामिनी एक प्रसादान्त नाटक है ?
- प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' में प्रयुक्त किसी 'गीत' पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- प्रसाद के नाटक 'ध्रुवस्वामिनी' की भाषा सम्बन्धी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- अध्याय - 11 : दीपदान - डॉ. राजकुमार वर्मा (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- " अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है।" 'दीपदान' एकांकी में पन्ना धाय के इस कथन के आधार पर उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का कथासार लिखिए।
- प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का उद्देश्य लिखिए।
- प्रश्न- "बनवीर की महत्त्वाकांक्षा ने उसे हत्यारा बनवीर बना दिया। " " दीपदान' एकांकी के आधार पर इस कथन के आलोक में बनवीर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
- अध्याय - 12 : लक्ष्मी का स्वागत - उपेन्द्रनाथ अश्क (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी की कथावस्तु लिखिए।
- प्रश्न- प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की उपयुक्तता बताइए।
- प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी के एकमात्र स्त्री पात्र रौशन की माँ का चरित्रांकन कीजिए।
- अध्याय - 13 : भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?' निबन्ध का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- लेखक ने "हमारे हिन्दुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं।" वाक्य क्यों कहा?
- प्रश्न- "परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत रखो।" कथन से क्या तात्पर्य है?
- अध्याय - 14 : मित्रता - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'मित्रता' पाठ का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- सच्चे मित्र की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की भाषा-शैली पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- अध्याय - 15 : अशोक के फूल - हजारी प्रसाद द्विवेदी (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के नाम की सार्थकता पर विचार करते हुए उसका सार लिखिए तथा उसके द्वारा दिये गये सन्देश पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के आधार पर उनकी निबन्ध-शैली की समीक्षा कीजिए।
- अध्याय - 16 : उत्तरा फाल्गुनी के आसपास - कुबेरनाथ राय (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- निबन्धकार कुबेरनाथ राय का संक्षिप्त जीवन और साहित्य का परिचय देते हुए साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए।
- प्रश्न- कुबेरनाथ राय द्वारा रचित 'उत्तरा फाल्गुनी के आस-पास' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
- प्रश्न- कुबेरनाथ राय के निबन्धों की भाषा लिखिए।
- प्रश्न- उत्तरा फाल्गुनी से लेखक का आशय क्या है?
- अध्याय - 17 : तुम चन्दन हम पानी - डॉ. विद्यानिवास मिश्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- विद्यानिवास मिश्र की निबन्ध शैली का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- "विद्यानिवास मिश्र के निबन्ध उनके स्वच्छ व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति हैं।" उपरोक्त कथन के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- पं. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 18 : रेखाचित्र (गिल्लू) - महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'गिल्लू' नामक रेखाचित्र का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- सोनजूही में लगी पीली कली देखकर लेखिका के मन में किन विचारों ने जन्म लिया?
- प्रश्न- गिल्लू के जाने के बाद वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
- अध्याय - 19 : संस्मरण (तीन बरस का साथी) - रामविलास शर्मा (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- संस्मरण के तत्त्वों के आधार पर 'तीस बरस का साथी : रामविलास शर्मा' संस्मरण की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'तीस बरस का साथी' संस्मरण के आधार पर रामविलास शर्मा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 20 : जीवनी अंश (आवारा मसीहा ) - विष्णु प्रभाकर (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- विष्णु प्रभाकर की कृति आवारा मसीहा में जनसाधारण की भाषा का प्रयोग किया गया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'आवारा मसीहा' अथवा 'पथ के साथी' कृति का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- विष्णु प्रभाकर के 'आवारा मसीहा' का नायक कौन है ? उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में समाज से सम्बन्धित समस्याओं को संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में बंगाली समाज का चित्रण किस प्रकार किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के रचनाकार का वैशिष्ट्य वर्णित कीजिये।
- अध्याय - 21 : रिपोर्ताज (मानुष बने रहो ) - फणीश्वरनाथ 'रेणु' (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- फणीश्वरनाथ 'रेणु' कृत 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में रेणु जी किस समाज की कल्पना करते हैं?
- प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में लेखक रेणु जी ने 'मानुष बने रहो' की क्या परिभाषा दी है?
- अध्याय - 22 : व्यंग्य (भोलाराम का जीव) - हरिशंकर परसाई (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित व्यंग्य ' भोलाराम का जीव' का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- 'भोलाराम का जीव' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हरिशंकर परसाई की रचनाधर्मिता और व्यंग्य के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 23 : यात्रा वृत्तांत (त्रेनम की ओर) - राहुल सांकृत्यायन (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- यात्रावृत्त लेखन कला के तत्त्वों के आधार पर 'त्रेनम की ओर' यात्रावृत्त की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तान्तों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
- अध्याय - 24 : डायरी (एक लेखक की डायरी) - मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित 'एक साहित्यिक की डायरी' कृति के अंश 'तीसरा क्षण' की समीक्षा कीजिए।
- अध्याय - 25 : इण्टरव्यू (मैं इनसे मिला - श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी) - पद्म सिंह शर्मा 'कमलेश' (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- "मैं इनसे मिला" इंटरव्यू का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- पद्मसिंह शर्मा कमलेश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 26 : आत्मकथा (जूठन) - ओमप्रकाश वाल्मीकि (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- ओमप्रकाश वाल्मीकि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए 'जूठन' शीर्षक आत्मकथा की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- आत्मकथा 'जूठन' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
- प्रश्न- दलित साहित्य क्या है? ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की भाषिक-योजना पर प्रकाश डालिए।