बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरणसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण
प्रश्न- महाकवि भट्ट नारायण का परिचय देकर वेणी संहार नाटक की समीक्षा कीजिए।
उत्तर -
महाकवि भट्टनारायण की कीर्तिकौमुदी का विस्तारक उनका एकमात्र नाटकरत्न 'वेणीसंहार' है। 'वेणीसंहार' नाटक के रचयिता भट्ट नारायण पहले कन्नौज के निवासी थे। किन्तु बाद में परिस्थितिवश बंगाल में जाकर बस गये। उन्होंने गौड़ ब्राह्मण परिवार का प्रवर्तन किया था। 'भट्ट' और 'मृगराजोट इनकी दो उपाधियाँ थी। इनकी उपाधियों से इनकी जाति का ठीक-ठाक पता नहीं चलता क्योंकि जहाँ भट्ट ब्रह्मणत्व का सूचक है वहीं पर 'मृगराज' क्षत्रिय जाति का द्योतक है। ये बंगाल के राजा के आश्रम में रहते थे। बंगाल के राजा आदिसूर ने इन्हें वैदिक धर्म का प्रचार करने के लिए कन्नौज से बुलवाया था। आदिसूर का स्थितिकाल सातवीं शताब्दी का उत्तरार्ध माना जा सकता है।
इनका एकमात्र नाटक वेणिसंहार ही उपलब्ध है। दंडी के अनुसार भट्ट नारायण ने रचना तो तीन ग्रन्थों की है परन्तु इनके द्वारा रचित अन्य दो ग्रन्थ उपलब्ध ही नहीं है। 'वेणीसंहार' नाटक का कथानक महाभारत से संग्रहीत किया गया है। इस नाटक में कुछ छः अङ्क है। भट् नारायण ने इसमें कुछ परिवर्तन भी किया है।
'वेणीसंहार' नाटक की संक्षिप्त कथा इस प्रकार है- 'नाटक के प्रथम अङ्क में भीम यह प्रतिज्ञा करते हैं कि मैं दुःशासन का रक्तपान करके और दुर्योधन का वध करके उस रक्त से रंगे हुए हाथों से महारानी द्रौपदी की वोटी बाँधूगा इसी अंग के अन्त में युद्ध की सूचना भी दे दी जाती है।
नाटक के दूसरे अंक में दुर्योधन और भानुपाती की श्रृंगारिक चेष्टाओं का वर्णन है। तृतीय अंक में. द्रोण के वध के पश्चात अश्वत्थामा और कर्ण में कहासुनी हो जाती है। चतुर्थ अंक में दुःशासन और कर्णपुत्र का वध हुआ है। पञ्चम अंक में गान्धारी और धृतराष्ट्र दुर्योधन से सन्धि प्रस्ताव के लिए कहते हैं परन्तु वह अस्वीकार कर देता है। षष्ठ अंक में चार्वाक राक्षस युधिष्ठिर को यह झूठा सन्देश सुनाता है कि द्रोपदी प्राण परित्याग के लिए तैयार हो जाते हैं। इसी बीच दुर्योधन का वध करके भीम लौट आते हैं और अपने रक्तरंजित करों से द्रोपदी के खुले हुए बालों को बांधते हैं।
वेणीसंहार के नायक के रूप में कुछ लोग भीमसेन को। किन्तु भीम को नायक मानना उचित नहीं है क्योंकि वे रंगमंच पर केवल प्रथम अंक में पांचवें अंक के अन्त में ही उपस्थित रहते हैं। कुछ विद्वान दुर्योधन और कुछ अर्जुन को नायक मानते हैं। वास्तव में भारतीय शास्त्रीय नियमों के अनुसार इसको फलभोक्ता होने के कारण नायक के रूप में युधिष्ठिर ही ठहरते हैं।
चरित्र-चित्रण में भी भट्ट नारायण एक सफल नाटककार है इन्होंने अपने नाटक के पात्रों का चरित्र-चित्रण अत्यन्त सफलतापूर्वक किया है। इनके द्वारा किया गया चरित्र-चित्रण अत्यन्त सजीव मार्मिक एवं स्वाभाविक है।
श्रेणीसंहार नाटक का अङ्गीरस वीर है। श्रृंगार, करुण, भयानक, शान्त आदि रस नाटक के अङ्ग रूप में विद्यमान है। वीर रस प्रधान इस नाटक के प्रथम अंक से ही वीर रस की धारा प्रवाहित होने लगती है। प्रथम अंक में भीम का दर्प पूर्ण कथन वीर रस का द्योतक है -
रूमुगलस्य सुयोधनस्भ।
स्त्यानावनरूद्धधनरोणितशोणपाणिहतंसभिष्यति
कचांस्तव देवि भीमः।
हे देवि ! यह भीम शीघ्र ही फड़कती हुई भुजाओं से फेंकी गई प्रचण्ड गदा के प्रहार से दुर्योधन की जांघों को चूर्ण करके उसमें गाढ़े रुधिर से रंगे हुए हाथों के द्वारा तुम्हारे बालों को संभालेगा।
शान्त रस की अभिव्यक्ति में कवि ने दार्शनिकता का सुन्दर पुट प्रस्तुत करता है -
ज्ञानौद्रेकाद्विधाटिटतमो ग्रन्थमः सत्वनिष्ठाः।
यं वीक्षन्ते कमवि तमसां ज्योतिषां वा परस्तात्।
तं मोहान्धः कथममसु बेतु देवं पुराणम्।
आत्मा में ही रमण करने वाले निर्विकल्पक समाधि में प्रीति रखने वाले ज्ञान के प्राचुर्य से अज्ञान की ग्रन्थियों को नष्ट कर देने वाले सतोगुण से युक्त योगी लोग अन्धकार और प्रकाश से परे जिसे कुछ अनिर्वचनीय तत्व के रूप में देखते हैं। उस पुरातन पुरुष को यह मोहान्ध दुर्योधन कैसे पहचान सकता है?
कवि ने नाटक के द्वितीय अंक में श्रृंगार रस का प्रयोग किया है। समालोचकों ने यहाँ पर अकाण्ड प्रथन दोष माना है। भाषा पर तो कवि भट्ट नारायण का असाधारण अधिकार है। ओजगुण प्रधान होने के कारण इनकी भाषा में प्रसार की मात्रा अधिक है। कवि भट्ट नारायण ने वीर रस के अनुकूल ही भावों को प्रस्तुत किया है। सरलता दुरूहता भी विषय के अनुकूल ही है। जहाँ पर कोई भी पात्र किसी कथन को शीघ्रता से प्रस्तुत करना चाहता है। वहाँ भी कवि की भाषा में शब्दाडम्बर नहीं होने पाता। कौरवों को अत्याचारों से पीड़ित होकर भीम अत्यन्त तेजी से कहते हैं -
दुःशासनस्य रुधिरं न पियाम्बुरस्तः।
सञ्चूर्णमामि गदमा न सुमोधनोरूं-
सन्धि करोतु भवतां नृपीतः पणेनः॥'
इसी प्रकार कुवित अश्वत्थामा के प्रति हृषर्ण की चुभती हुई उक्ति भाषा के प्रसार को सूचित करती है।
"सूतो वा सुत्तपुत्तो वा मो वा लो वा भवाम्यहम्।
देवभतं कुले जन्म मदामत्तं तु पौरुषम्॥"
मैं चाहे सारथी होऊँ या सारथीपुत्र होऊँ अथवा चाहे जो कोई भी होऊँ कुल में जन्म प्राप्त करना भाग्याधीन है मेरे अधीन तो पुरुषार्थ करना है।
कहीं-कहीं तो कवि ने वीर रस को व्यन्जना के लिए गौड़ीरीति का प्रयोग किया है जो नाटक के लिए उचित नहीं है। गौड़ीरीति का प्रयोग इस प्रकार है।
मग्रानां स्यन्दनानामुपरिकृत पदवन्यासविक्रान्तपत्तौ।
स्फीतासृक्पानशोष्ठी रसदशिवशिवास्तर्सनृत्यत्कबन्धे,
संग्रामैकार्णवान्तः पयसि विचरितुं पण्डिताः पाण्डुपुत्राः॥
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- प्रश्न- भास का काल निर्धारण कीजिये।
- प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- अश्वघोष के जीवन परिचय का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अश्वघोष के व्यक्तित्व एवं शास्त्रीय ज्ञान की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि अश्वघोष की कृतियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के काव्य की काव्यगत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भवभूति का परिचय लिखिए।
- प्रश्न- महाकवि भवभूति की नाट्य कला की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- "कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते" इस कथन की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भट्ट नारायण का परिचय देकर वेणी संहार नाटक की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भट्टनारायण की नाट्यशास्त्रीय समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भट्टनारायण की शैली पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त के जीवन काल की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भास के नाटकों के नाम बताइए।
- प्रश्न- भास को अग्नि का मित्र क्यों कहते हैं?
- प्रश्न- 'भासो हास:' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- भास संस्कृत में प्रथम एकांकी नाटक लेखक हैं?
- प्रश्न- क्या भास ने 'पताका-स्थानक' का सुन्दर प्रयोग किया है?
- प्रश्न- भास के द्वारा रचित नाटकों में, रचनाकार के रूप में क्या मतभेद है?
- प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के चित्रण में पुण्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- अश्वघोष की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अश्वघोष के स्थितिकाल की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अश्वघोष महावैयाकरण थे - उनके काव्य के आधार पर सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- 'अश्वघोष की रचनाओं में काव्य और दर्शन का समन्वय है' इस कथन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- भवभूति की रचनाओं के नाम बताइए।
- प्रश्न- भवभूति का सबसे प्रिय छन्द कौन-सा है?
- प्रश्न- उत्तररामचरित के रचयिता का नाम भवभूति क्यों पड़ा?
- प्रश्न- 'उत्तरेरामचरिते भवभूतिर्विशिष्यते' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
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- प्रश्न- वेणीसंहार नाटक के रचयिता कौन हैं?
- प्रश्न- भट्टनारायण कृत वेणीसंहार नाटक का प्रमुख रस कौन-सा है?
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- प्रश्न- निम्नलिखित पद्यों का सप्रसंग हिन्दी अनुवाद कीजिए तथा टिप्पणी लिखिए -
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- प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् को लक्ष्यकर महाकवि कालिदास की शैली का निरूपण कीजिए।
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- प्रश्न- 'वैदर्भी रीति सन्दर्भे कालिदासो विशिष्यते। इस कथन की दृष्टि से कालिदास के रचना वैशिष्टय पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 3 अभिज्ञानशाकुन्तलम (अंक 3 से 4) अनुवाद तथा टिप्पणी
- प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए -
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- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिये।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (अजन्तप्रकरण - स्त्रीलिङ्ग - रमा, सर्वा, मति। नपुंसकलिङ्ग - ज्ञान, वारि।)
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्त प्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - I - पुल्लिंग इदम् राजन्, तद्, अस्मद्, युष्मद्, किम् )।
- प्रश्न- निम्नलिखित रूपों की सिद्धि कीजिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्तप्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - II - स्त्रीलिंग - किम्, अप्, इदम्) ।
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