बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरणसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण
प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् को लक्ष्यकर महाकवि कालिदास की शैली का निरूपण कीजिए।
अथवा
'भावों का चित्रण करने में महाकवि कालिदास की शैली को यदि अद्वितीय कहा जाये तो उपयुक्त होगा। इस कथन की पुष्टि कीजिए।
अथवा
संस्कृत काव्यों में कालिदास के काव्य वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।
अथवा
'कविकुलगुरुः कालिदासो विलासः' की सम्यक् मीमांसा कीजिए।
अथवा
अभिज्ञानशाकुन्तलम् के आधार पर महाकवि कालिदास की काव्य प्रतिभा पर प्रकाश डालिए।
अथवा
'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' के आधार पर महाकवि कालिदास की नाट्य शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
'कविकुलगुरु महाकवि कालिदास संस्कृत साहित्याकाश के देदीप्यमान नक्षत्र हैं। उनकी कविताकामिनी कला और भाव दोनों पक्षों में समलंकृत है। यदि एक ओर उनके विविध अवयव, अलंकार, छन्द, सुमधुर शब्द विन्यास से विलसित हैं तो दूसरी ओर रस, भाव एवं व्यञ्जना से उनका हृदय आप्लावित होकर सम्यक् विलास से उल्लासित हो रहा है। यही कारण है कि कविता के सच्चे पारखी सहृदय जयदेव कहते हैं कि-
केषां नैषा कथय कविताकामिनी कौतुकाय।।
महाकवि कालिदास की भाषा शैली सरस, सरल, प्रांजल परिष्कृत एवं प्रसादपूर्ण है। महाकवि कालिदास ने अपनी भाषा में पाण्डित्य प्रदर्शन की कृत्रिम रीति को आश्रय नहीं दिया है। कहीं-कहीं तो मुहावरेदार भाषा का मधुर प्रयोग किया गया है। जिससे कवि कालिदास की भाषा सुन्दरी की मन्द मुस्कराहट में स्फूर्ति आ गई है। अतएव वह अपने चरमोत्कर्ष के विकास द्वार पर आ जाती है और अपने सहज सौन्दर्य से पाठकों को आकृष्ट करने में सक्षम होती है। उदाहरणार्थ -
को नाम इदानीमुष्णोदकेन नवमालिकां सिञ्चति
भाषा पर उनका असाधारण अधिकार है। वे जहाँ जिस भाव को प्रस्तुत करना चाहते हैं मानो भाषा वहाँ उसी रूप में आकर प्रस्तुत हो जाती है। उनका कथोपकथन छोटे सरस एवं चटकीले हैं जिन्हें. सुनकर पाठकों का मन तरंगित हो उठता है।
उनके वर्णनों में स्वाभाविकता एवं सजीवता है। किसी वर्णन को पढ़कर पाठक उसके वास्तविक स्वरूप तक अनायास ही पहुँच जाता है। यथा-
तेजोद्वयस्य युगपद्व्यसनोदभ्यां लोको नियम्यत इवात्मदशान्तरेषु॥
कवि ने व्यंजनावृत्ति को अत्यधिक महत्व दिया है अतएव थोड़े से शब्दों के द्वारा बहुत कुछ कहने की प्रवृत्ति है। प्रियंवदा तथा अनसूया कुछ ही शब्दों में शकुन्तला के वियोग को अभिव्यक्त करती है। कितना मार्मिक कथन है -
"अयं जनः कस्य हस्ते समर्पितः। "
महाकवि कालिदास की कविता सुन्दरी कला और भाव दोनों रूपों में पूर्णरूपेण अलंकृत है। महाकवि कालिदास की शैली की यह एक असाधारण विशेषता है कि वे भाव के अनुरूप ही भाषा का प्रयोग करते हैं। वस्तुतः कविता का मुख्य पक्ष तो हृदयपक्ष ही है। कलापक्ष तो उसी पक्ष को अपने कलात्मक सृजन के द्वारा परिपुष्ट करता है। कालिदास की काव्य शैली की यह विशेषता है कि उनकी कृतियों में भावपक्ष की संसृष्टि रचनाओं की लोकप्रियता का प्रधान कारण यह है कि उनमें प्रसाद गुण युक्त ललित एवं परिष्कृत शैली का प्रयोग हुआ है। वैदर्भी रीति के वे सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। यही कारण है कि उन्हें वैदर्भी रीति का सर्वश्रेष्ठ कवि कहा गया हैं -
"वैदर्भीरीतिसंदर्भे कालिदासो विशिष्यते।"
कवि कालिदास सुकुमार कोमल श्रृंगारिक एवं कारुविक भावों के चित्रण में अद्वितीय शिल्पी हैं। उनके भक्त भावों को पढ़ने से भावपक्ष के गम्भीर्य का यर्थाथ ज्ञान हो जाता है। केवल श्रृंगारिक भाव का उदाहरण दृष्टव्य है
कुसुममिवलोभनोयं यौवनमंगेषु सुन्नद्धम्॥
अर्थात शकुन्तला का अधर किसलय के समान लाल है, भुजयुगल कोमल विटप के सदृश है और यौवन से परिपूर्ण उसका शरीर कमनीय एवं आकर्षक है।
यहाँ कोमल श्रृंगारिक भावों की व्यंजना की गई है। कोमल कारुणिक भाव का वर्णन अलोकनीय है
| उटजद्धारविरूंढनीवारबलिंविलोकतः।
अर्थात् अयि पुत्रि ! तुम्हारे द्वारा पहले पूजा के रूप में डाले गये और अब कुटी के द्वारा पर उगे हुऐ नीवारों को देखकर मेरा यह शोक किस प्रकार शान्त होगा? अर्थात् किसी भी प्रकार शान्त नहीं होगा। यहाँ अपूर्व कोमल कारुणिक भावों की अभिव्जना की गई है। महर्षि कण्व का कथन है कि जब- जब तुम्हारे द्वारा उगाये गये नीवार को देखेंगे तब-तब मेरे हृदय में शोक रूपी वृक्ष उगेगा। इस प्रकार शोक कभी समाप्त नहीं होगा अपितु बढ़ता ही जायेगा।
महाकवि कालिदास की शैली में यद्यपि प्रसाद तथा माधुर्य गुणों की ही प्रधानता है परन्तु कहीं- कहीं यथास्थान ओज के भी दर्शन होते हैं।
महाकवि कालिदास ने अपनी कविताकामिनी को यथावसर विविध अलंकारों के द्वारा अलंकृत किया है। उन्होंने स्वाभाविकता के साथ विभिन्न अलंकारों से सजाया-संवारा है जिससे वे उसके अंग सदृश बनकर रह गये हैं। उनके अलंकार प्रयोग में कहीं भी कृत्रिमता के दर्शन नहीं होते हैं। उन्होंने शब्द तथा अर्थ दोनों ही प्रकार के अलंकारों का समुचित प्रयोग किया है।
महाकवि कालिदास रससिद्ध कवि हैं। उन्होंने शाकुन्तल में ललित श्रृंगार रस की संयोजना की है। अभिज्ञानशाकुन्तलम् में शृंगार के दोनों ही पक्षों की कलात्मक ढंग से अभिव्यक्ति हुई है। सहायक रस के रूप में करुण, वीर रस आदि आते हैं।
इस प्रकार हम स्पष्ट रूप से कह सकते हैं कि महाकवि कालिदास की कविता भाव एवं कला दोनों की संजीव मूर्ति है। दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं तथा मुख्य लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक हैं। इस प्रकार यह कहना सर्वथा उचित है कि -
"कविकुलगुरुः कालिदासोविलासः।"
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- प्रश्न- भास का काल निर्धारण कीजिये।
- प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- अश्वघोष के जीवन परिचय का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अश्वघोष के व्यक्तित्व एवं शास्त्रीय ज्ञान की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि अश्वघोष की कृतियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के काव्य की काव्यगत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भवभूति का परिचय लिखिए।
- प्रश्न- महाकवि भवभूति की नाट्य कला की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- "कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते" इस कथन की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भट्ट नारायण का परिचय देकर वेणी संहार नाटक की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भट्टनारायण की नाट्यशास्त्रीय समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भट्टनारायण की शैली पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त के जीवन काल की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भास के नाटकों के नाम बताइए।
- प्रश्न- भास को अग्नि का मित्र क्यों कहते हैं?
- प्रश्न- 'भासो हास:' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- भास संस्कृत में प्रथम एकांकी नाटक लेखक हैं?
- प्रश्न- क्या भास ने 'पताका-स्थानक' का सुन्दर प्रयोग किया है?
- प्रश्न- भास के द्वारा रचित नाटकों में, रचनाकार के रूप में क्या मतभेद है?
- प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के चित्रण में पुण्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- अश्वघोष की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अश्वघोष के स्थितिकाल की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अश्वघोष महावैयाकरण थे - उनके काव्य के आधार पर सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- 'अश्वघोष की रचनाओं में काव्य और दर्शन का समन्वय है' इस कथन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- भवभूति की रचनाओं के नाम बताइए।
- प्रश्न- भवभूति का सबसे प्रिय छन्द कौन-सा है?
- प्रश्न- उत्तररामचरित के रचयिता का नाम भवभूति क्यों पड़ा?
- प्रश्न- 'उत्तरेरामचरिते भवभूतिर्विशिष्यते' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
- प्रश्न- महाकवि भवभूति के प्रकृति-चित्रण पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वेणीसंहार नाटक के रचयिता कौन हैं?
- प्रश्न- भट्टनारायण कृत वेणीसंहार नाटक का प्रमुख रस कौन-सा है?
- प्रश्न- क्या अभिनय की दृष्टि से वेणीसंहार सफल नाटक है?
- प्रश्न- भट्टनारायण की जाति एवं पाण्डित्य पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भट्टनारायण एवं वेणीसंहार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का रचयिता कौन है?
- प्रश्न- विखाखदत्त के नाटक का नाम 'मुद्राराक्षस' क्यों पड़ा?
- प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का नायक कौन है?
- प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटकीय विधान की दृष्टि से सफल है या नहीं?
- प्रश्न- मुद्राराक्षस में कुल कितने अंक हैं?
- प्रश्न- निम्नलिखित पद्यों का सप्रसंग हिन्दी अनुवाद कीजिए तथा टिप्पणी लिखिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- "वैदर्भी कालिदास की रसपेशलता का प्राण है।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के नाम का स्पष्टीकरण करते हुए उसकी सार्थकता सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- 'उपमा कालिदासस्य की सर्थकता सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् को लक्ष्यकर महाकवि कालिदास की शैली का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि कालिदास के स्थितिकाल पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के नाम की व्युत्पत्ति बतलाइये।
- प्रश्न- 'वैदर्भी रीति सन्दर्भे कालिदासो विशिष्यते। इस कथन की दृष्टि से कालिदास के रचना वैशिष्टय पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 3 अभिज्ञानशाकुन्तलम (अंक 3 से 4) अनुवाद तथा टिप्पणी
- प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए -
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के प्रधान नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- शकुन्तला के चरित्र-चित्रण में महाकवि ने अपनी कल्पना शक्ति का सदुपयोग किया है
- प्रश्न- प्रियम्वदा और अनसूया के चरित्र की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् में चित्रित विदूषक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् की मूलकथा वस्तु के स्रोत पर प्रकाश डालते हुए उसमें कवि के द्वारा किये गये परिवर्तनों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के प्रधान रस की सोदाहरण मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि कालिदास के प्रकृति चित्रण की समीक्षा शाकुन्तलम् के आलोक में कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के चतुर्थ अंक की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शकुन्तला के सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् का कथासार लिखिए।
- प्रश्न- 'काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला' इस उक्ति के अनुसार 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' की रम्यता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 4 स्वप्नवासवदत्तम् (प्रथम अंक) अनुवाद एवं व्याख्या भाग
- प्रश्न- भाषा का काल निर्धारण कीजिये।
- प्रश्न- नाटक किसे कहते हैं? विस्तारपूर्वक बताइये।
- प्रश्न- नाटकों की उत्पत्ति एवं विकास क्रम पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'स्वप्नवासवदत्तम्' नाटक की साहित्यिक समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर भास की भाषा शैली का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के अनुसार प्रकृति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- महाराज उद्यन का चरित्र चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् नाटक की नायिका कौन है?
- प्रश्न- राजा उदयन किस कोटि के नायक हैं?
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर पद्मावती की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के प्रथम अंक का सार संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- यौगन्धरायण का वासवदत्ता को उदयन से छिपाने का क्या कारण था? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'काले-काले छिद्यन्ते रुह्यते च' उक्ति की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- "दुःख न्यासस्य रक्षणम्" का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए : -
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिये (रूपसिद्धि सामान्य परिचय अजन्तप्रकरण) -
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिये।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (अजन्तप्रकरण - स्त्रीलिङ्ग - रमा, सर्वा, मति। नपुंसकलिङ्ग - ज्ञान, वारि।)
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्त प्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - I - पुल्लिंग इदम् राजन्, तद्, अस्मद्, युष्मद्, किम् )।
- प्रश्न- निम्नलिखित रूपों की सिद्धि कीजिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्तप्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - II - स्त्रीलिंग - किम्, अप्, इदम्) ।
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूप सिद्धि कीजिए - (पहले किम् की रूपमाला रखें)