बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरणसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण
प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् की मूलकथा वस्तु के स्रोत पर प्रकाश डालते हुए उसमें कवि के द्वारा किये गये परिवर्तनों की समीक्षा कीजिए।
उत्तर -
कविकुलगुरू कालिदास रचित अभिज्ञानशाकुन्तलम् लोक प्रख्यात है। इस नाटक में दुष्यन्त और शकुन्तला की कथा वर्णित है। इस कथा का आधार हमें महाभारत के आदिपर्व में 67 से 74 अध्याय तक प्राप्त होता है। परन्तु वहाँ यह कथा अत्यन्त ही सामान्य ढंग से प्रस्तुत हुई है। पद्मपुराण के स्वर्ग खण्ड में भी यह कथा प्राप्त होती है। परन्तु पद्मपुराण की कथा महाभारत और अभिज्ञानशाकुन्तलम् की कथा से अत्यधिक प्रभावित प्रतीत होती है। इसलिए पद्मपुराण को अभिज्ञानशाकुन्तलम् की कथा का मूल नहीं माना जा सकता। पद्मपुराण के अध्ययन से हम निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि भाषा संरचना आदि की दृष्टि से पद्मपुराण की रचना अभिज्ञानशाकुन्तलम् के पश्चात् हुई होगी।
महाभारत में वर्णित शकुन्तला की कथा - पुरुवंश में उत्पन्न राजा दुष्यन्त एक दिन शिकार करने के लिए अपनी विशाल सेना, पुरोहित और मंत्री आदि के सहित वन की ओर चले गये। कुछ समय के बाद आखेट से विरक्त होकर तथा अपनी सेना को बाहर ही रुकने के लिए कहकर वे साधारण परिधान में महर्षि कण्व के आश्रम में जाते हैं। उस समय महर्षि कण्व अपने आश्रम में नहीं थे। वे आवश्यक काम से बाहर गये थे। इसलिए महर्षि कण्व की धर्मपुत्री शकुन्तला पिता के उपस्थित न होने पर राजा का आदर- सत्कार करती है। राजा शकुन्तला के सुन्दर रूप को देखकर उस पर आसक्त हो जाता है। शकुन्तला अपने जन्म वृत्तान्त के बारे में दुष्यन्त द्वारा पूछने पर बताती है कि वह मेनका अप्सरा की पुत्री है। शकुन्तला के क्षत्रिय कन्या होने के बारे में जब राजा दुष्यन्त को पता चलता है तो वह उसके समक्ष प्रणय भाव को प्रस्तुत कर उसके समक्ष गान्धर्व विवाह का प्रस्ताव रखता है। शकुन्तला राजा से कहती कि पिता महर्षि कण्व के बाहर से वापस आने पर तथा उनकी आज्ञा से ही हम दोनों प्रणयसूत्र में बंध सकेंगे। लेकिन राजा ने कहा कि क्षत्रियों के लिए गन्धर्व विवाह मान्य है। इसलिए तुम अपनी इच्छा से भी प्रणयबन्धन में बंधने योग्य हो। शकुन्तला राजा के विभिन्न प्रकार के क्रिया-कलापों से उनकी ओर आकृष्ट हो गयी। शकुन्तला ने विवाह से पूर्व राजा से शर्त रखी कि राजा के परलोक गमन करने पर उसका पुत्र. ही राज्यभार संभालेगा व गद्दी पर बैठेगा। राजा द्वारा यह शर्त मानने पर दोनों का गान्धर्व विवाह हो गया। कुछ समय तक वहाँ रहने के पश्चात् राजा अपने राज्य लौट आये। लौटने से पूर्व उसने शकुन्तला से कहा कि तुम्हें राजधानी बुलाने के लिए विशाल सेना भेजूंगा। राज्य में वापस आते समय राजा सोचने लगा कि उसने महर्षि कण्व की आज्ञा के बिना ही शकुन्तला से गाधव विवाह किया है। कहीं महर्षि कण्व क्रोधित न हों अतः राजा ने अपने राज्य में पहुंचकर शकुन्तला को लाने के लिए अपनी सेना को नहीं भेजा।
महर्षि कण्व कुछ समय के पश्चात् जब आश्रम में वापस आये तो शकुन्तला उनके पास नहीं गयी। लेकिन तपस्वी महर्षि कण्व ने अपने चक्षुज्ञान से जब सब कुछ जान लिया और शकुन्तला के पास जाकर कहा कि हे पुत्री ! तुमने मेरी आज्ञा लिए बिना जो गान्धर्व विवाह किया उससे तुम्हारा धर्म नष्ट नहीं हुआ क्योंकि क्षत्रियों के लिए गान्धर्व विवाह ही अति उत्तम माना गया है। तुम्हारे द्वारा उत्पन्न पराक्रमी पुत्र ही संपूर्ण भूमंडल का राजा बनेगा। इसके बाद महर्षि कण्व ने शकुन्तला से कहा कि हे वर वर्णिनि मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ, तुम जो भी वर मांगना चाहो, मांग लो। शकुन्तला ने राजा के हित के लिए पिता महर्षि कण्व से अक्षय राज्य मांगा। महर्षि कण्व ने एवमस्तु (ऐसा ही हो) कहा। अपने उचित समय पर शकुन्तला ने चक्रवर्ती पुत्र को जन्म दिया। जातकर्म आदि संस्कार महर्षि कण्व के द्वारा ही संपन्न हुए। अल्पायु में ही वह अत्यनत पराक्रमी हो गया। वह आश्रम के पास विचरने वाले सिंह, व्याघ्र, वाराह और गजों को वृक्षों में बांध देता था। उसके इसी प्रकार के पराक्रम को देखकर महर्षि कण्व उसे सर्वदमन कहकर सम्बोधित करते थे -
सर्वदमोनामकुमारः समपद्यत।
विवाह के पश्चात् शकुन्तला को अधिक समय तक अपने समीप रखना उचित नहीं है, ऐसा सोचकर शकुन्तला के पति के घर भेजने के लिए शिष्यों को आदेश दिया और कहा कि पुत्र सहित शकुन्तला को उसके पति के घर पहुंचा आओं महर्षि कण्व की आज्ञानुसार शिष्य शकुन्तला को लेकर महाराज दुष्यन्त के पास पहुंचे वहां दुष्यन्त से वार्तालाप करने के बाद शिष्यजन वापस आ गये। राजा ने शकुन्तला को देखकर कहा कि मैं तो तुम्हें जानता तक नहीं और न ही मैने तुम्हारे साथ गान्धर्व विवाह किया है। तुम चाहो तो अपनी इच्छा से रुक सकती हो या फिर चली जाओ। ऐसा सुनकर शकुन्तला लज्जित हुई और दुःख से पीड़ित होकर मूर्छित हो गयी। शकुन्तला ने शपथपूर्वक राजा से कहा कि हे राजन् ! आप सब कुछ जानने के उपरान्त भी साधारण पुरुष के समान "मैं नही जानता हूँ" ऐसा क्यों बोल रहे हैं? पूर्वजन्म मैं मैंने ऐसा कौन सा पाप किया जिसके कारण मेरे माता-पिता ने बाल्यावस्था में ही मेरा परित्याग कर दिया और अब आपके द्वारा छोड़ी जा रही हूँ। शकुन्तला के इस प्रकार के वचनों को स्मरण कर दुष्यन्त कहते हैं कि हे शकुन्तला ! मैं तुम्हारे द्वारा इस पुत्र को भी नहीं जानता हूँ। झूठ बोलना तो स्त्रियों का स्वभाव है। तुम्हारे द्वारा कहे गये ये वचन विश्वास करने वाले नहीं हैं। यह सब कहने से पूर्व तुम्हें तनिक भी लज्जा नहीं आयी। अपमानित होने पर शकुन्तला जैसे ही वहाँ से प्रस्थान करती है कि आकाशवाणी होती है- हे दुष्यन्त ! यह बालक तुम्हारा ही पुत्र है और शकुन्तला तुम्हारी पत्नी है। इसलिए इन्हें स्वीकार करो। इस आकाशवाणी को सुनकर राजा दुष्यन्त कहते हैं कि मंत्री व पुरोहित आपने भी इस देववाणी को सुना। यदि इस बालक को मैं पहले ही अपना लेता तो तुम सभी के द्वारा संदेह किया जाता कि यह बालक जन्म से शुद्ध है अथवा अशुद्ध। इसके बाद महाराज दुष्यन्त शकुन्तला की ओर मुख करके कहते हैं कि हे शकुन्तले ! यदि मैं तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार न करता तो यही सब लोग कहते कि मैंने काम के वशीभूत होकर तुम्हें स्वीकार किया है। क्रोध में तुम्हारे द्वारा कहे गये वचनों के लिए मैं तुम्हें क्षमा करता हूँ।
तदुपरान्त महाराज दुष्यन्त अपने पुत्र को सादर स्वीकार कर उसका आलिंगन करते हैं। सबके मतानुसार उसने शकुन्तला को महारांनी और पुत्र सर्वदमन को युवराज बनाने की घोषणा की। उन्होंने अपने पुत्र सर्वदमन का नाम भरत रखा।
पद्मपुराण में वर्णित शकुन्तला की कथा
पुरुवंश में उत्पन्न हुए राजा दुष्यन्त आखेट के लिए वन में प्रस्थान करते हैं। वे जिस मृग का वध करने को उधृत होते हैं। वह मृग महर्षि कण्व ऋषि के आश्रम का है। इसलिए उनके शिष्य मृग का वध करने से रोकते हैं। राजा दुष्यन्त मृग का वध नहीं करते हैं। तत्पश्चात् वह जल पीने की इच्छा से आश्रम जाते हैं। वहाँ पर शकुन्तला को अपनी सखियों के साथ जल से वृक्षों को सींचते हुए देखते हैं। शकुन्तला को देखकर राजा उस पर आशक्त हो जाते हैं और उसके जन्म वृत्तान्त को जानने के लिए उत्सुक होते हैं। शकुन्तला की सखी प्रियवंदा द्वारा राजा को शकुन्तला के जन्म के बारे में ज्ञात होता। राजा दुष्यन्त शकुन्तला के समक्ष गान्धर्व विवाह का प्रस्ताव रखते हैं शकुन्तला अपने पुत्र को युवराज व राज्याधिकारी बनाने की शर्त रखती है जिसे राजा स्वीकार कर शकुन्तला से गान्धर्व विवाह करता है। राजा शकुन्तला को अपनी स्मृति के रूप में एक मुद्रिका देकर कहता है कि वह उसे जल्दी ही राजधानी बुला लेगा। ऐसा कहकर वापस राजधानी लौट आते हैं। आश्रम से बाहर वन में फल लाने के लिये गये महर्षि कण्व लौट कर आते हैं तथा वे अपने अन्तर्मन से शकुन्तला के विवाह को जान लेते हैं और वे उस विवाह को स्वीकार कर लेते है। एक बार दुर्वासा ऋषि आश्रम में आते है। वहाँ शकुन्तला दुष्यन्त की चिन्ता में डूबी उन्हें पहचान नहीं पाती है जिससे कुपित होकर वह शकुन्तला को शाप देते हैं कि "जिस प्रकार तुम मुझे नही पहचान पायी उसी प्रकार दुष्यन्त भी तुम्हें नहीं पहचान पायेगा।' प्रियंवदा द्वारा शकुन्तला के इस दुष्कृत्य को क्षमा करने के लिए कहकर उसके शाप को अवश्य कम करवा देती है। दुर्वासा मुनि उसके मनाये जाने पर कहते हैं कि पहचान की वस्तु दिखाने पर ही शकुन्तला का शाप समाप्त होगा। इसके बाद महर्षि कण्व गर्भवती शकुन्तला को दुष्यन्त के समीप भेजने के लिए कहते हैं। शार्ङ्गर्रव शारद्वत, गौतमी और प्रियंवदा भी शकुन्तला के साथ जाती हैं। मार्ग में एक सरोवर पड़ने पर शकुन्तला उसमें स्नान करती है तथा स्मृति के रूप में दुष्यन्त द्वारा दी गयी मुद्रिका को प्रियम्वदा के हाथ में दे देती है लेकिन दुर्भाग्यवश वह मुद्रिका प्रियंवदा के हाथ से गिर जाती है प्रियंवदा इस बात को शकुन्तला से छिपा जाती है। दुष्यन्त के समीप जाने पर दुर्वासा ऋषि के शाप का प्रभाव होने पर महाराज दुष्यन्त शकुन्तला को पहचान नहीं पाता है। शकुन्तला दुष्यन्त को स्मरण कराने हेतु उस मुद्रिका को प्रियम्वदा से मांगती है। प्रियंवदा द्वारा ज्ञात होता है कि वह मुद्रिका तो सरोवर में गिर गयी है। ऐसा सुनकर पुरोहित कहता है कि शकुन्तला को चक्रवर्ती पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी इसलिए मेरी इच्छा है कि पुत्र प्राप्ति तक ही हमारे घर में निवास करे। यदि शकुन्तला से उत्पन्न पुत्र चक्रवर्ती है तो आप इसे ग्रहण करें अन्यथा स्वीकार कर दें। ऐसा कहकर पुरोहित शकुन्तला को अपने घर ले जाते हैं। उसी समय शकुन्तला के करुण क्रन्दन को सुनकर मेनका उसे वहाँ से ले जाती है कुछ समय पश्चात् प्रियंवदा द्वारा खोई हुई मुद्रिका एक धीवर को प्राप्त हो जाती है। उस धीवर को राजा के समक्ष उपस्थित किया जाता है। उस धीवर के पास मुद्रिका को देखकर राजा को सहसा शकुन्तला का स्मरण हो जाता है। वह मुद्रिका को मिल जाने पर अत्यन्त दुःखित होता है। इसी बीच समुद्र में एक नौका डूब जाने से धनमित्र नामक वैश्य की मृत्यु हो जाती है और उसकी संपत्ति उसकी गर्भिणी स्त्री को दे दी जाती है। राजा पुत्र के शोक में डूब जाता है। इसी बीच राजा को इन्द्र का संदेश मिलता है कि राक्षसों के विनाश हेतु मातलि के साथ स्वर्ग में प्रविष्ट हो। राजा स्वर्ग में राक्षसों का विनाश करने के पश्चात् लौटते हुए मासच के आश्रम में आते हैं वहाँ पर वे एक बालक को देखते हैं। महर्षि मारीच द्वारा राजा को यह पता चलता है कि यह वीर बालक आपका ही बेटा है तथा इसका नाम सर्वदमन है जो बाद में भरत के नाम से प्रसिद्ध होगा। दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण शकुन्तला को न पहचानने के कारण मेनका द्वारा इसे यहाँ लाया गया था। इसके पश्चात् शकुन्तला राजा के समक्ष उपस्थित होती है। दोनों का प्रसन्नतापूर्वक मिलन होता है। अन्त में राजा दुष्यन्त पत्नी शकुन्तला और पुत्र भरत के साथ अपनी राजधानी जाने के लिए प्रस्थान करते हैं।
अन्त में अवलोकन के बाद यह निष्कर्ष निकलता है कि "अभिज्ञानशाकुन्तलम्" की मूलकथा के रूप में 'महाभारत' एवं 'पदमपुराण' दोनों ही हैं। अभिज्ञानशाकुन्तलम् एवं पदमपुराण दोनों कथायें एक- दूसरे को पूर्ण रूप से प्रभावित करती हैं। कुछ विद्वान ऐसा मानते हैं कि पदमपुराण की कथा महाभारत एवं कालिदास द्वारा रचित अभिज्ञानशाकुन्तलम् की कथाओं के सार को लेकर बनायी गयी मालूम होती है। उसके अन्त का भाग "अभिज्ञानशाकुन्तलम्" का सार मात्र प्रतीत होता है। कुछ विद्वानों का यह अभिमत है कि 'पदमपुराण' के अधिकतर भाग शाकुन्तल के बाद ही बने होगें। कालिदास अपने नाटक के लिए दुष्यन्त और शकुन्तला की कथा को महाभारत से ग्रहण किया होगा। इस प्रकार कहा जा सकता है कि अभिज्ञानशाकुन्तलम् की कथा का मूल आधार महाभारत ही है।
1. महाभारत में इस कथा का वर्णन इस प्रकार है कि राजा दुष्यन्त शिकार खेलते हुए अपनी सेना सहित महर्षि कण्व के आश्रम में आते हैं वहाँ वह अपनी सेना को बाहर ठहरने का आदेश देकर अकेले ही आश्रम में प्रवेश करते हैं। किन्तु इसके विपरीत अभिज्ञानशाकुन्तलम् के अनुसार मृगया क्रीडा करते हुए उनकी (राजा की) सेना के पीछे ही रह जाती है। आश्रम में राजा सूत के साथ प्रवेश करता है। वह हिरण को मारने का प्रयत्न करता है, लेकिन संयोग से आये हुए तपस्वियों के द्वारा उस हिरण का वध होने से रुक जाता है।
2. महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार राजा दुष्यन्त स्वयं ही ऋषि कण्व के आश्रम में प्रवेश करते हैं। उस समय महर्षि कण्व को फल लाने के लिए वन जाना दिखलाया गया है। उनकी अनुपस्थिति में पुत्री शकुन्तला ही महाराज दुष्यन्त का आदर-सत्कार करती है। शकुन्तला विश्वामित्र व अप्सरा मेनका से अपनी उत्पत्ति की कथा राजा दुष्यन्त को सुनाती है। जिसे सुनकर राजा उसके समक्ष गान्धर्व विवाह का प्रस्ताव रखते हैं। शकुन्तला पिता कण्व ऋषि के वन में वापस आ जाने तक रुकने के लिए कहती है। परन्तु राजा शीघ्र ही विवाह के लिए उत्साहित होते हैं। इस पर शकुन्तला एक शर्त रखती है। कि आप के बाद मेरा पुत्र ही राज्य का उत्तराधिकारी होगा।
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- प्रश्न- भास का काल निर्धारण कीजिये।
- प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- अश्वघोष के जीवन परिचय का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अश्वघोष के व्यक्तित्व एवं शास्त्रीय ज्ञान की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि अश्वघोष की कृतियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के काव्य की काव्यगत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भवभूति का परिचय लिखिए।
- प्रश्न- महाकवि भवभूति की नाट्य कला की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- "कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते" इस कथन की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भट्ट नारायण का परिचय देकर वेणी संहार नाटक की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भट्टनारायण की नाट्यशास्त्रीय समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भट्टनारायण की शैली पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त के जीवन काल की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भास के नाटकों के नाम बताइए।
- प्रश्न- भास को अग्नि का मित्र क्यों कहते हैं?
- प्रश्न- 'भासो हास:' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- भास संस्कृत में प्रथम एकांकी नाटक लेखक हैं?
- प्रश्न- क्या भास ने 'पताका-स्थानक' का सुन्दर प्रयोग किया है?
- प्रश्न- भास के द्वारा रचित नाटकों में, रचनाकार के रूप में क्या मतभेद है?
- प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के चित्रण में पुण्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- अश्वघोष की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अश्वघोष के स्थितिकाल की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अश्वघोष महावैयाकरण थे - उनके काव्य के आधार पर सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- 'अश्वघोष की रचनाओं में काव्य और दर्शन का समन्वय है' इस कथन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- भवभूति की रचनाओं के नाम बताइए।
- प्रश्न- भवभूति का सबसे प्रिय छन्द कौन-सा है?
- प्रश्न- उत्तररामचरित के रचयिता का नाम भवभूति क्यों पड़ा?
- प्रश्न- 'उत्तरेरामचरिते भवभूतिर्विशिष्यते' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
- प्रश्न- महाकवि भवभूति के प्रकृति-चित्रण पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वेणीसंहार नाटक के रचयिता कौन हैं?
- प्रश्न- भट्टनारायण कृत वेणीसंहार नाटक का प्रमुख रस कौन-सा है?
- प्रश्न- क्या अभिनय की दृष्टि से वेणीसंहार सफल नाटक है?
- प्रश्न- भट्टनारायण की जाति एवं पाण्डित्य पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भट्टनारायण एवं वेणीसंहार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का रचयिता कौन है?
- प्रश्न- विखाखदत्त के नाटक का नाम 'मुद्राराक्षस' क्यों पड़ा?
- प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का नायक कौन है?
- प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटकीय विधान की दृष्टि से सफल है या नहीं?
- प्रश्न- मुद्राराक्षस में कुल कितने अंक हैं?
- प्रश्न- निम्नलिखित पद्यों का सप्रसंग हिन्दी अनुवाद कीजिए तथा टिप्पणी लिखिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- "वैदर्भी कालिदास की रसपेशलता का प्राण है।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के नाम का स्पष्टीकरण करते हुए उसकी सार्थकता सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- 'उपमा कालिदासस्य की सर्थकता सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् को लक्ष्यकर महाकवि कालिदास की शैली का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि कालिदास के स्थितिकाल पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के नाम की व्युत्पत्ति बतलाइये।
- प्रश्न- 'वैदर्भी रीति सन्दर्भे कालिदासो विशिष्यते। इस कथन की दृष्टि से कालिदास के रचना वैशिष्टय पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 3 अभिज्ञानशाकुन्तलम (अंक 3 से 4) अनुवाद तथा टिप्पणी
- प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए -
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के प्रधान नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- शकुन्तला के चरित्र-चित्रण में महाकवि ने अपनी कल्पना शक्ति का सदुपयोग किया है
- प्रश्न- प्रियम्वदा और अनसूया के चरित्र की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् में चित्रित विदूषक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् की मूलकथा वस्तु के स्रोत पर प्रकाश डालते हुए उसमें कवि के द्वारा किये गये परिवर्तनों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के प्रधान रस की सोदाहरण मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि कालिदास के प्रकृति चित्रण की समीक्षा शाकुन्तलम् के आलोक में कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के चतुर्थ अंक की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शकुन्तला के सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् का कथासार लिखिए।
- प्रश्न- 'काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला' इस उक्ति के अनुसार 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' की रम्यता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 4 स्वप्नवासवदत्तम् (प्रथम अंक) अनुवाद एवं व्याख्या भाग
- प्रश्न- भाषा का काल निर्धारण कीजिये।
- प्रश्न- नाटक किसे कहते हैं? विस्तारपूर्वक बताइये।
- प्रश्न- नाटकों की उत्पत्ति एवं विकास क्रम पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'स्वप्नवासवदत्तम्' नाटक की साहित्यिक समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर भास की भाषा शैली का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के अनुसार प्रकृति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- महाराज उद्यन का चरित्र चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् नाटक की नायिका कौन है?
- प्रश्न- राजा उदयन किस कोटि के नायक हैं?
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर पद्मावती की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के प्रथम अंक का सार संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- यौगन्धरायण का वासवदत्ता को उदयन से छिपाने का क्या कारण था? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'काले-काले छिद्यन्ते रुह्यते च' उक्ति की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- "दुःख न्यासस्य रक्षणम्" का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए : -
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिये (रूपसिद्धि सामान्य परिचय अजन्तप्रकरण) -
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिये।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (अजन्तप्रकरण - स्त्रीलिङ्ग - रमा, सर्वा, मति। नपुंसकलिङ्ग - ज्ञान, वारि।)
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्त प्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - I - पुल्लिंग इदम् राजन्, तद्, अस्मद्, युष्मद्, किम् )।
- प्रश्न- निम्नलिखित रूपों की सिद्धि कीजिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्तप्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - II - स्त्रीलिंग - किम्, अप्, इदम्) ।
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूप सिद्धि कीजिए - (पहले किम् की रूपमाला रखें)