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बीएससी सेमेस्टर-1 जन्तु विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2657
आईएसबीएन :0

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बीएससी सेमेस्टर-1 जन्तु विज्ञान

प्रश्न- गुणसूत्रों की रचना एवं प्रकार का वर्णन कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. लैम्पब्रश कोमोसोम्स क्या होते हैं?
2. गुणसूत्रों के घटक कौन-कौन से हैं?
3. पोलीटीन क्रोमोसोम्स पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
4. संक्षेप में लैम्पब्रुश गुणसूत्रों की संरचना एवं महत्व का वर्णन कीजिए।
5. विभिन्न प्रकार के गुणसूत्रों की व्याख्या कीजिए।
6. सेन्ट्रोमियर्स की स्थिति के आधार पर गुणसूत्रों के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
7. पॉलीटीन और लैंपब्रुश क्रोमोसोम के चित्र बनाइए।
8. न्यूक्लिओलस को संयोजित करने वाला भाग पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर -

गुणसूत्र (Chromosomes)

गुणसूत्र गहरे अभिरंजित जीवद्रव्यकाय है जो केन्द्रक में स्थिति होते हैं। ये कोशिका विभाजन की मध्यावस्था (metaphase) के समय स्पष्ट रचनाओं के समान प्रतीत होते हैं। अन्तरावस्था में ये क्रोमेटिन के महीन धागों के गुंथे हुए जाल के समान प्रतीत होते हैं। गुणसूत्रों में स्वतः द्विगुणन की क्षमता होती है और अनेक विभाजनों के बाद भी ये अपनी आकारिक एवं क्रियात्मक विशिष्टतायें बनाये रखते हैं।

कोशिका विभाजन के समय क्रोमेटिन रेटीकुलम के ये धागे छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में संघनित या स्पष्ट होकर समान रचनाओं के रूप में अलग हो जाते हैं और गहरा स्टेन लेते हैं। सन् 1888 में डब्ल्यू वाल्डेयर (W. Waldeyer) ने कोशिका विभाजन के समय, केन्द्रक में पायी जाने वाली और गहरा स्टेन लेने वाली इन्हीं धागों या छड़ों के समान रचनाओं को क्रोमोसोम्स का नाम दिया। इनमें स्वतः द्विगुणन (self-duplication) की क्षमता होती है तथा अनेक विभाजनों के बाद भी ये अपनी आकारिक तथा क्रियात्मक विशिष्टताएँ बनाये रखते हैं। क्रोमोसोम्स जीन्स वाहक रचनाएँ हैं जो आनुवंशिक लक्षणों (hereditary characters) को एक पीढ़ी (generation) से दूसरी पीढ़ी में ले जाते हैं। इसीलिये इन्हें हेडिटरी वैहिकिल्स (hereditary vehicles) कहते हैं।

परिमाण एवं आकृति (Size and Shape) : क्रोमोसोम्स की औसतन लम्बाई 0.5 से 30 तथा व्यास में ये 0.2 से 3 तक होते हैं। ट्राइटुरस - विरिडिसैन्स (Triturus viridiscens) के ऊसाइट्स (oocytes) में क्रोमोसोम्स की लम्बाई 350 से 800 तक होती है। कोशिका विभाजन के समय मेटाफेज तथा एनाफेज में इन्हें स्पष्ट देखा जा सकता है। ये आकृति में शलाकाकार, कुण्डलित या सर्पिल या तन्तुमय होते हैं।

संख्या (Number) :उच्च श्रेणी के जन्तुओं तथा पौधों की सोमेटिक कोशिकाओं में उपस्थित क्रोमोसोम्स को द्विगुणित या सोमेटिक (diploid or somatic) जबकि इनके अण्डाणुओं और शुक्राणुओं (eggs and sperms) में उपस्थित क्रोमोसोम्स को गैमीटिक या अगुणित (gametic or haploid) सैट को 2N तथा अगुणित सैट को N से निरूपित करते हैं। क्रोमोसोम्स के अगुणित सैट को जीनोम (genome) कहते हैं। इस प्रकार द्विगुणित सैट (2N) में दो जीनोम होते हैं। अतः युग्मनज में एक जीनोम अण्डाणु के द्वारा मादा से तथा दूसरा जीनोम शुक्राणु के द्वारा नर से आता है।

जन्तुओं और पौधों की प्रत्येक जाति (species) में क्रोमोसोम्स की संख्या निश्चित होती है अर्थात् एक ही जाति के जन्तुओं की सोमेटिक कोशिकाओं में द्विगुणित क्रोमोसोम्स तथा उनके युग्मकों में अगुणित क्रोमोसोम्स की संख्या एक ही होगी। लेकिन इनकी संख्या अलग-अलग जातियों के जन्तुओं में अलग-अलग होगी। क्रोमोसोम्स की सबसे कम संख्या ऐस्केरिस मैगेलोसिफेला (Ascaris megalocephala) में पायी जाती है जिसकी प्रत्येक सोमेटिक कोशिका में द्विगुणित (2N) क्रोमोसोम्स की संख्या दो (एक जोड़ी) तथा गैमीटिक कोशा में अगुणित (N) संख्या एक होती है। बीलर (Belar, 1926) के अनुसार क्रोमोसोम्स की सबसे अधिक संख्या प्रोटोजोअन रेडियोलेरियन - ओलौकेन्था (Aulocantha) में पायी जाती है जिसमें क्रोमोसोम्स की संख्या 1600 होती है। मनुष्य की प्रत्येक सोमेटिक कोशिका में क्रोमोसोम्स की 2N संख्या 46 तथा गैमीटिक कोशिका में N संख्या 23 होती है। कोशिका के न्यूक्लियस में उपस्थित क्रोमोसोम्स की सम्पूर्ण संख्या को सम्मिलित रूप से क्रोमोसोम कॉम्पलीमैण्ट या कैरियोटाइप (chromosome complement or karyotype) कहते हैं।

संरचना (Structure) : कोशिका विभाजन की मेटाफेज अवस्था में क्रोमोसोम्स न्यूक्लियस में अधिक स्पष्ट दिखाई देते हैं। इस अवस्था में प्रत्येक क्रोमोसोम्स लम्बी आकृति का दिखाई देता है। इसमें पाये जाने वाले प्रमुख भाग निम्नलिखित हैं :

1. पैलिकिल तथा मैट्रिक्स (Pallicle and Matrix) : प्रत्येक क्रोमोसोम एक श्यान तथा रंगहीन (viscous and achromatic) द्रव पदार्थ से घिरा हुआ रहता है जिसे मैट्रिक्स कहते हैं। मैट्रिक्स बाहर से एक पतली झिल्ली से घिरी रहती है जिसे पैलिकिल कहते हैं। यह दोनों ही नॉन-जेनेटिक पदार्थ (non-genetic material) से बने होते हैं। कोशिका विभाजन में क्रोमोसोम्स के चारों ओर यह इन्सुलेटिंग शीथ (insulating sheath) की तरह कार्य करती हैं।

2. क्रोमेटिड्स (Chromatids) : प्रत्येक क्रोमोसोम्स दो समान सर्पिलाकार कुण्डलित क्रोमेटिड्स या अर्द्ध- क्रोमोसोम से मिलकर बना होता है। क्रोमोसोम के ये दोनों क्रोमेटिड्स एक बिन्दु पर जुड़े रहते हैं, जिसे सेण्ट्रोमीयर या काइनेटोकोर या प्राइमरी कॉन्सट्रिक्शन (centromere = kinetochore = primary constriction) कहते हैं। यह क्रोमोसोम को दो भागों या भुजाओं (limbs) में विभाजित करता है। क्रोमोसोम का प्रत्येक क्रोमेटिड दो पतले क्रोमेटिन के धागों से मिलकर बनता है जिन्हें क्रोमोनिमेटा (chromonemata ring chromonema) कहते हैं। जो एक-दूसरे के बिल्कुल पास-पास सटे रहते हैं। प्रत्येक क्रोमोनिमेटा के ऊपर सम्पूर्ण लम्बाई में छोटे-छोटे लम्प्स (lumps) स्थित होते हैं जिन्हें क्रोमोमियर्स (chromomeres) या जीन बियरिंग (gene bearing) भाग कहते हैं।

3. सेण्ट्रोमीयर (Centromere) : सेण्ट्रोमीयर क्रोमोसोम का अत्यन्त महत्वपूर्ण भाग होता है जो क्रोमोसोम की आकृति को निर्धारित करता है। यह क्रोमोसोम का वह स्थान है जहाँ पर मेटाफेज अवस्था के समय कुछ फाइबर जिन्हें स्पिण्डिल फाइबर्स (spindle fibres) कहते हैं, जुड़ते हैं। मेटाफेज के अन्त में सेण्ट्रोमीयर दो भागों में विभाजित हो जाता है। अतः मेटाफेज में एक क्रोमोसोम में दो क्रोमेटिड्स होते हैं परन्तु एनाफेज में एक क्रोमोसोम में केवल एक ही क्रोमेटिड होता है। यह क्रोमोसोम में उस स्थान पर स्थित होता है जहाँ क्रोमोसोम की दोनों भुजाएँ एक-दूसरे से मिलती हैं। सामान्य दशा में यह क्रोमोसोम में दिखाई नहीं देता है। लेकिन इसकी स्थिति क्रोमोसोम में उपस्थित कॉन्सट्रिक्शन के द्वारा ज्ञात हो जाती है। क्रोमोसोम के इस कान्सिट्रक्शन को जो सेण्ट्रोमीयर के चारों ओर होता है, प्राइमरी कॉन्सट्रिक्सन कहते हैं।

सेण्ट्रोमीयर की रचना अत्यधिक जटिल होती है। यह तीन क्षेत्रों (zones) बाहरी, मध्य तथा भीतरी (outer, middle and inner) से मिलकर बना होता है जो डुप्लीकेट संख्या में होते हैं। कोशिका विभाजन में क्रोमोसोम्स का स्पिण्डिल (spindle) से सम्बन्ध मध्य जोन के द्वारा होता है। सेण्ट्रोमीयर में DNA की मात्रा कम पायी जाती है। सेण्ट्रोमीयर की संख्या तथा इसकी स्थिति विभिन्न क्रोमोसोम्स में भिन्न-भिन्न होती है, किन्तु एक ही जाति के जन्तुओं की कोशिकाओं के क्रोमोसोम्स में इसकी स्थिति तथा संख्या. निश्चित होती है। सेण्ट्रोमीयर की संख्या के आधार पर क्रोमोसोम्स को निम्न प्रकार से विभाजित किया जा सकता है-

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A व B माइटोसिस के एनाफेज पर कठिन सोमेटिक गुणसूत्र की संरचना C. गुणसूत्र संरचना का स्कीमेटिक रेखाचित्र

(i) मोनोसेण्ट्रिक (Monocentric) : क्रोमोसोम्स में एक सेण्ट्रोमीयर होने पर वहु मोनोसेण्ट्रिक कहलाता है।

(ii) डाइसेण्ट्रिक (Dicentric) : इस प्रकार क्रोमोसोम्स में दो सेण्ट्रोमीयर्स होते हैं। (iii) पॉलीसेण्ट्रिक (Polycentric) : क्रोमोसोम में जब दो से अधिक सेण्ट्रोमीयर्स पाये जाते हैं तो वे पॉलीसेण्ट्रिक कहलाते हैं, जैसे- ऐस्केरिस मैगेलोसिफेला के क्रोमोसोम्स |

(iv) डिफ्यूज्ड या नॉन-लोकेटेड (Diffused or Non-located) : इस प्रकार के सेण्ट्रोमियर्स क्रोमोसोम्स की पूरी लम्बाई में अस्पष्ट रूप से फैले रहते हैं।

सेण्ट्रोमीयर की स्थिति के आधार पर क्रोमोसोम्स निम्न प्रकार के होते हैं -

(i) टीलोसेण्ट्रिक (Telocentric) : इस प्रकार के क्रोमोसोम्स में सेण्ट्रोमीयर सिरे पर स्थित होता है। अतः यह क्रोमोसोम केवल एक भुजा वाला होता है।

(ii) एक्रोसेण्ट्रिक (Acrocentric) : इनमें सेण्ट्रोमीयर क्रोमोसोम के सिरे के समीप स्थित होता है इन क्रोमोसोम में एक भुजा छोटी व एक बड़ी होती है।

(iii) सब-मेटासेण्ट्रिक (Sub-metacentric) : इसमें सेण्ट्रोमीयर क्रोमोसोम के मध्य से कुछ हटकर स्थित होता है। इन क्रोमोसोम में दोनों भुजाओं की लम्बाई असमान होती है।

(iv) मेटासेण्ट्रिक (Metacentric) : इनमें सेण्ट्रोमीयर क्रोमोसोम के मध्य स्थित होता है। क्रोमोसोम्स 'V' के आकार के होते हैं तथा इनमें दोनों भुजाएँ लम्बाई में समान होती हैं।

4. सैकण्डरी कॉन्सट्रिक्शन न्यूक्लिओलर ऑर्गेनाइजर (Secondary Constriction or Nucleolar Organizer) : कभी-कभी कुछ गुणसूत्रों में प्राथमिक संकीर्णन के अतिरिक्त एक और संकीर्णन पाया जाता है इसे द्वितीयक संकीर्णन कहते हैं। यह गुणसूत्र में उपान्तस्थ (sub- terminal) स्थिति पर होता है। यह प्राथमिक संकीर्णन से रचना में भिन्न होता है। इसी भाग से केन्द्रिका का निर्माण होता है। अतः इस स्थान को केन्द्रिक संगठन क्षेत्र (nucleolar organizing region) कहते हैं तथा ऐसे गुणसूत्र को केन्द्रिक संगठन गुणसूत्र कहते हैं।

 

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गुणसूत्र के मॉरफोलोजिक प्रकार
A. टीलोसेन्ट्रिक B. एक्रोसेन्ट्रिक C. सब-मेटासेन्ट्रिक D. मेटासेन्ट्रिक

5. सेटेलाइट (Satellites) : कुछ क्रोमोसोम्स में सेकेण्डरी कॉन्सट्रिक्शन क्रोमोसोम्स की भुजाओं के सिरे की ओर एक स्पष्ट गोलाकार खण्ड का निर्माण करते हैं जिन्हें सेटेलाइट या सेटेलाइट- बॉडीज (satellite bodies) कहते हैं। जिन क्रोमोसोम्स में सेटेलाइट होता है, उन्हें SAT - क्रोमोसोम्स कहते हैं।

6. टीलोमीयर्स (Telomeres) : मुलर (Muller, 1939) के अनुसार क्रोमोसोम के विशिष्ट टर्मिनल सिरे (terminal ends) टीलोमीयर्स कहलाते हैं। टीलोमीयर्स में विशिष्ट प्रकार के गुण पाये जाते हैं क्योंकि ये सिरे क्रियात्मक भिन्नता एवं ध्रुवता प्रदर्शित करते हैं। ये क्रोमोसोम्स को स्थिरता प्रदान करते हैं।

क्रोमोसोम्स की सूक्ष्म संरचना (Fine Structure of Chromosome) : मेटाफेज अवस्था में क्रोमोसोम प्रकाश सूक्ष्मदर्शी में देखने पर एक ठोस धागे की तरह रचना के रूप में दिखाई देता है जिसमें केवल सेण्ट्रोमीयर, कॉन्सट्रिक्शन तथा सेटेलाइट आदि दिखाई देते हैं। परन्तु इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी में देखने पर इसकी सभी सूक्ष्म रचनाओं का ज्ञान हो जाता है। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी में देखने पर प्रत्येक क्रोमोसोम मेटाफेज अवस्था में पूरी लम्बाई में एक कुण्डलित (coiled) फिलामेण्ट की तरह लगता है जिसको वैज्डोव्स्की (Vejdovsky) ने 1912 में क्रोमोनिमा या क्रोमैटिड्स का नाम दिया। कॉफमैन (Kaufman, 1948) तथा स्क्रेडर (Schrader, 1949) के अनुसार, प्रत्येक क्रोमोसोम में कोशिका- विभाजन के प्रारम्भ में क्रोमोनिमा की संख्या एक तथा विभाजन की आगे की अवस्थाओं में क्रोमोसोम में इसकी संख्या दो या दो से अधिक हो सकती है। क्रोमोसोम में ये क्रोमोसोमल फिलामेण्ट्स दो प्रकार से कोइलिंग बनाते हैं :

(i) पैरानैमिक कोइल्स (Paranemic Coils) : इस प्रकार के कोइल्स में क्रोमोसोम के क्रोमोनिमल फिलामेण्ट्स को आसानी से अलगकर सकते हैं।
(ii) प्लैक्टोनैमिक कोइल्स (Plectonemic Coils) : इसमें क्रोमोनिमल फिलामेण्ट्स कसकर कोइल्ड (coiled) रहते हैं तथा इनको आसानी से अलग नहीं किया जा सकता।

क्रोमोमीयर (Chromomeres) : कोशिका विभाजन की मेटाफेज अवस्था के अन्तर्गत क्रोमोसोम के क्रोमोनिमेटा एक नैक्लेस या माला की तरह दिखाई देते हैं अर्थात् इनके ऊपर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर कुछ फूले या दाने की तरह तथा सँकरे क्षेत्र स्थित होते हैं जिनका आकार तथा स्थिति निश्चित होती है। क्रोमोनिमेटा के इन फूले या दानेदार क्षेत्रों को क्रोमोमीयर्स तथा सँकरें क्षेत्रों को इण्टर क्रोमोमीयर्स कहते हैं।

कुछ विशेष प्रकार के क्रोमोसोम्स
(Some Special Types of Chromosomes)

1. पॉलीटीन क्रोमोसोम (Polytene Chromosome) : पॉलीटीन क्रोमोसोम आकृति में बड़े होते हैं जो मुख्य रूप से डिप्टेरा कीटों (Diptera insects) के लार्वाओं की लार ग्रन्थियों, आहार नाल तथा मैल्पीघियन नलिकाओं की कोशिकाओं में पाये जाते हैं। इनकी खोज सर्वप्रथम बालबियानी (Balbiani) ने सन् 1881 में की थी, किन्तु इनको पॉलीटीन क्रोमोसोम्स का नाम कोलर (Kollar) ने दिया था।

संरचना (Structure) : ड्रोसोफिला मेलैनोगैस्टर (Drosophila melanogaster) में पाये जाने वाले पॉलीटीन क्रोमोसोम सामान्य सोमेटिक क्रोमोसोम से एक हजार गुना बड़े होते हैं। प्रत्येक पोलीटीन क्रोमोसोम्स एक बहुवलयक रचना है जो बहुत से फाइब्रिल्स से मिलकर बना होती है जिन्हें क्रोमेटिड्स कहते हैं। क्रोमेटिड्स पॉलीटीन क्रोमोसोम में बँटी हुई रस्सी के धागों के समान पड़े रहते हैं। इसीलिये यहाँ प्रत्येक क्रोमेटिड को वलयक क्रोमेटिड कहते हैं। ये इतने महीन होते हैं कि इनको स्पष्ट रूप से देखा नहीं जा सकता। इस क्रोमेटिड्स में 9 या 10 बार क्रमिक रूप से द्विगुणन (duplication) होने से पॉलीटीन क्रोमोसोम्स का निर्माण होता है। इन वलयक क्रोमेटिड्स के द्विगुणन की प्रक्रिया को एण्डोमाइटोसिस (endomitosis) कहते हैं। एक पॉलीटीन क्रोमोसोम में वलयक क्रोमेटिड्स की संख्या 512 से कई हजार तक होती है। ये सभी वलयक क्रोमेटिड्स साथ-साथ पड़े रहते हैं तथा इनके सेण्ट्रोमीयर्स निकट सम्पर्क में स्थित होते हैं।

 

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पॉलीटीन क्रोमोसोम्स के निर्माण की संभावित यांत्रिकी का क्रमिक प्रस्तुतीकरण
बालबियानी रिंग्स को प्रदर्शित करता हुआ ड्रोसोफिला का सेलीवरी ग्लैन्ड का पॉलीटीन क्रोमोसोम

बैण्ड्रस तथा इण्टरबैण्ड्स (Bandsand Interbands) : पॉलीटीन क्रोमोसोम्स पर अनुप्रस्थ रूप से विन्यसित गहरे रंग की बैण्ड्स तथा हल्के रंग की इण्टरबैण्ड्स फ्यूलजेन - निगेटिव (fulgen-negative) होती हैं। ये बैण्ड्स क्रोमेटिड्स पर विन्यसित क्रोमोमीयर्स से निर्मित होते हैं और क्रोमोसोम के अक्ष के लम्बवत् स्थित होते हैं। ये बैण्ड्स मोटाई तथा अन्य लक्षणों में एक-दूसरे में भिन्न होते हैं तथा आनुवंशिक रूप से सक्रिय होते हैं। इनमें DNA की मात्रा अधिक होती है। इसके अतिरिक्त इनमें RNA तथा क्षारीय प्रोटीन्स के कुछ अंश पाये जाते हैं।

बालबियानी रिंग्स (Balbiani Rings) : बालबियानी ने सन् 1881 में पॉलीटीन क्रोमोसोम्स में जीन्स एवं क्रोमोसोम्स के परस्पर सम्बन्ध का अध्ययन करते समय देखा कि कुछ स्थानों पर इन बड़े क्रोमोसोम्स की रचना पफों (puffs) अथवा क्रोमेटिड्स के पार्श्व (lateral) विस्तारणों से बने लूपों के कारण बदल गयी है। पॉलीटीन क्रोमोसोम्स में बने इस प्रकार के पफों को बालबियानी रिंग्स या क्रोमोसोमल पफ (balbiani rings or chromosomal puffs) कहते हैं।

ये पफ क्रोमोसोम के चारों ओर बड़े-बड़े लूप या वलय बनाते हैं। इनकी उपस्थिति से क्रोमोसोम की मोटाई में वृद्धि हो जाती है तथा क्रोमोसोम की रचना रोयेंदार प्रतीत होती है। इनका निर्माण विशेष जीन के नियन्त्रण में विशेष समय के अन्तर्गत होता है।
2. लैम्पब्रुश क्रोमोसोम्स (Lampbrush Chromosomes) : लैम्पब्रुश क्रोमोसोम्स एम्फिबियन्स, रेप्टाइल्स, मछलियों तथा पक्षियों आदि कशेरुकियों के ऊसाइट (oocyte) में पाये जाते हैं और आकार में अत्यधिक बड़े होते हैं। इनका आकार इतना अधिक बड़ा होता है कि इनको सामान्य दृष्टि द्वारा भी आसानी से देखा जा सकता है। एम्फिबियन यूरोडेल के ऊसाइट्स में इनकी लम्बाई 5900 तक होती है। लैम्पब्रुश क्रोमोसोम की खोज सर्वप्रथम कर्ट (Ruckert) ने सन् 1892 में की थी।

संरचना (Structure) : प्रत्येक लैम्पब्रुश क्रोमोसोम एक मुख्य अक्ष (main axis) तथा पार्श्व लूप्स (lateral loops) से मिलकर बना होता है। मुख्य अक्ष चार क्रोमेटिड्स या बाइवेलैण्ट क्रोमोसोम्स (bivalent chromosomes) का बना होता है। मुख्य अक्ष के क्रोमेटिड्स से पार्श्व किनारों में अनेक पार्श्व लूप्स निकले होते हैं जिसके कारण यह क्रोमोसोम परखनली साफ करने वाले ब्रुश की तरह लगता है। इसीलिये इसे लैम्पब्रुश क्रोमोसोम कहते हैं।

मुख्य अक्ष DNA तथा प्रोटीन का बना होता है। प्रत्येक पार्श्व लूप के अक्ष के चारों ओर RNA तथा प्रोटीन से निर्मित मैट्रिक्स होती है, जिसके कारण यह रोयेंदार प्रतीत होता है। लूप के आधार पर क्रोमोमीयर्स होते हैं जो गहरा स्टेन लेते हैं, जिनके कारण क्रोमोसोम का अक्ष कुण्डलित प्रतीत होता है। इन बिन्दुओं पर एक सिरे की ओर तो मैट्रिक्स स्थूलित होकर मोटा सन्निवेश (thick insertion) तथा दूसरे सिरे की ओर पतला सन्निवेश (thin insertion) बनाता है। लूप अक्ष अत्यंत लचीला तथा 30 À से 50 À तक मोटा होता है।

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लैम्पब्रुश क्रोमोसोम A. पूर्ण संरचना B. सुन्दर संरचना C. लूप में RNA संश्लेषण

:लैम्पब्रुश क्रोमोसोम के मुख्य कार्य (Main Functions of Lampbrush Chromosomes) : ये अपने पार्श्व लूप्स द्वारा RNA एवं प्रोटीन का संश्लेषण तथा अण्डाणुओं के लिये पीतक (yolk) का निर्माण करते हैं। जब इन पदार्थों का संश्लेषण बंद हो जाता है तो लूप्स सिकुड़कर आकार में छोटे तथा निष्क्रिय हो जाते हैं। अतः लूप क्रोमेटिन पदार्थ है जो केवल लूप अवस्था में ही संश्लेषणात्मक रूप से सक्रिय होते हैं तथा अण्डाणुओं द्वारा पीतक निर्माण में प्रयोग किये जाते हैं।

रासायनिक संघटन (Chemical Composition) : क्रोमोसोम्स मुख्यतः न्यूक्लिक अम्ल तथा न्यूक्लियोप्रोटीन्स के बने होते हैं। न्यूक्लिक अम्ल मुख्य रूप से DNA तथा RNA होते हैं। प्रोटीन्स में मुख्य रूप से कम अणुभार वाली प्रोटीन्स जैसे हिस्टोन (histone) तथा उच्च अणु भार वाली जटिल प्रोटीन होती हैं। क्रोमोसोम के रासायनिक संघटन में निम्नलिखित अवयव भाग लेते है

(A) Deoxyribonucleoprotein - 90%

(i) DNA - 45%
(ii) Histone - 55%

(B) Residual chromosome - 10%

(i) RNA - 14%
(ii) DNA - 2-3%
(iii) Residual protein - 83-86%

गुणसूत्र के कार्य
(Functions of Chromosomes)

गुणसूत्र निम्नलिखित कार्यों में सहायक हो सकते हैं -

1. क्रोमोसोम्स प्राणी के जीवन में विभिन्न शारीरिक क्रियाओं का नियमन करते हैं।
2. प्राणी में उत्पन्न लक्षणों के परिवर्तन का नियमन करते हैं।
3. इनके हेटरोक्रोमेटिक क्षेत्र केन्द्रिका के निर्माण में सहायक होते हैं।
4. क्रोमोसोम्स की संख्या, संरचना एवं परिवर्तन के साथ-साथ ही प्राणी में नये-नये परिवर्तित लक्षण प्रकट होते हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- कोशा कला की सूक्ष्म संरचना जानने के लिए सिंगर और निकोल्सन की तरल मोजैक विचारधारा का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- कोशिका सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं? प्राणि कोशिका का नामांकित चित्र बनाइए तथा पाँच कोशिका उपांगों के मुख्य कार्यों का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- निम्नलिखित वैज्ञानिकों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (i) एन्टोनी वान ल्यूवेन हॉक (ii) श्लीडेन तथा श्वान्स
  4. प्रश्न- अन्तरकोशिकीय संचार या कोशिका कोशिका अन्तर्क्रिया पर टिप्पणी लिखिए।
  5. प्रश्न- कोशिका-एडहेसन का वर्णन कीजिए।
  6. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (i) माइक्रोट्यूब्ल्स (ii) माइक्रोफिलामेन्टस (iii) इन्टरमीडिएट फिलामेन्ट
  7. प्रश्न- माइटोकॉण्ड्रिया की संरचना व कार्यों का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम की संरचना तथा कार्यों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- राइबोसोम की संरचना एवं कार्यों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- परऑक्सीसोम पर टिप्पणी लिखिए।
  11. प्रश्न- वेंकटरमन रामाकृष्णन पर टिप्पणी लिखिए।
  12. प्रश्न- बाह्य प्रोटीन और समाकल प्रोटीन कोशिका कला की पारगम्यता को किस प्रकार प्रभावित करती हैं?
  13. प्रश्न- हरितलवक और माइटोकॉण्ड्रिया में मिलने वाले समान लक्षणों का वर्णन कीजिए।
  14. प्रश्न- परॉक्सीसोम किन कोशिकांगों के साथ मिलकर प्रकाशीय श्वसन (फोटोरेस्पिरेशन) की क्रिया सम्पन्न करता है? प्रकाशीय श्वसन के जैविक कार्यों की समीक्षा प्रस्तुत कीजिए।
  15. प्रश्न- केन्द्रक की संरचना का चित्र सहित वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- उपयुक्त आरेखों के साथ गुणसूत्र आकारिकी व परासंरचना का वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- “गुणसूत्रों की विशेष किस्में” विषय पर एक निबन्ध लिखिए।
  18. प्रश्न- न्यूक्लिक अम्ल क्या होते हैं? डी.एन.ए. की संरचना तथा प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- वाट्सन तथा क्रिक के द्वारा प्रस्तुत डी. एन. ए. की संरचना का वर्णन कीजिए तथा डी. एन. ए. के विभिन्न प्रकार बताइए।
  20. प्रश्न- राइबोन्यूक्लिक अम्लों की रचना का वर्णन कीजिए तथा इसके जैविक एवं जैव-रासायनिक महत्व पर प्रकाश डालिए।
  21. प्रश्न- मेसेल्सन एवं स्टेहल के उस प्रयोग का वर्णन कीजिए जो अर्द्ध-संरक्षी डी. एन. ए. पुनरावृत्ति को प्रदर्शित करता है।
  22. प्रश्न- जेनेटिक कोड पर टिप्पणी लिखिए।
  23. प्रश्न- गुणसूत्रों की रचना एवं प्रकार का वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- न्यूक्लिओसोम का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- सहलग्नता क्या है? उचित उदाहरण देते हुए इसके महत्त्व की चर्चा कीजिए।
  26. प्रश्न- क्रॉसिंग ओवर को उदाहरण सहित समझाइए तथा इसके महत्व पर प्रकाश डालिए।
  27. प्रश्न- सेण्ट्रोसोम की परिभाषा लिखिए।
  28. प्रश्न- क्रोमेटिन के प्रकारों को बताते हुए हेटेरोक्रोमेटिन को विस्तार से समझाइये।
  29. प्रश्न- किसी एक प्रायोगिक साक्ष्य द्वारा सिद्ध कीजिये कि डी.एन.ए. ही आनुवांशिक तत्व है।
  30. प्रश्न- गुणसूत्र पर पाये जाने वाले विभिन्न अभिरंजन और पट्टिका प्रतिमानों का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- B गुणसूत्र का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- डी.एन.ए. और आर.एन.ए. में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- RNA कौन-सा आनुवंशिक कार्य DNA की तरह पूरा करता है?
  34. प्रश्न- नीरेनबर्ग तथा एच.जी.खोराना के योगदान का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- क्या RNA का एक स्ट्रेण्ड दूसरा स्ट्रेण्ड संश्लेषित कर सकता है?
  36. प्रश्न- DNA की संरचना फॉस्फोरिक एसिड, पेन्टोज शर्करा तथा नत्रजन क्षार से होती है। इसके वस्तुतः आनुवंशिक तत्व कौन से हैं?
  37. प्रश्न- वाटसन एण्ड क्रिक पर टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- DNA की पुनरावृत्ति में सहायक एन्जाइमों का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- कोशिका चक्र से आप क्या समझते हैं? इण्टरफेज में पायी जाने वाली कोशिका चक्र की विभिन्न प्रावस्थाओं का वर्णन कीजिए।
  40. प्रश्न- समसूत्री कोशिका विभाजन का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए तथा समसूत्री के महत्व पर एक टिप्पणी लिखिए।
  41. प्रश्न- अर्धसूत्री कोशिका विभाजन का सविस्तार वर्णन कीजिए तथा इसके महत्व का उल्लेख कीजिए।
  42. प्रश्न- समसूत्री तथा अर्धसूत्री विभाजन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  43. प्रश्न- एक संकर संकरण क्या है? कम से कम दो उदाहरणों को बताइए।
  44. प्रश्न- स्वतन्त्र अपव्यूहन के नियम को समझाइए।
  45. प्रश्न- एक उपयुक्त उदाहरण देते हुए अपूर्ण प्रभाविकता पर एक टिप्पणी लिखिए।
  46. प्रश्न- जन्तुओं में लिंग निर्धारण की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए।
  47. प्रश्न- मानव में लिंग निर्धारण कैसे होता है?
  48. प्रश्न- लिंग निर्धारण में प्राकृतिक कारकों के प्रभाव का उदाहरण सहित विस्तृत वर्णन कीजिए।
  49. प्रश्न- वंशानुगत तथा आनुवंशिकी में अन्तर बताइए।
  50. प्रश्न- आनुवंशिकी का जनक किसको वस्तुतः कहा जाता है?
  51. प्रश्न- समप्रभाविता की वंशागति को समझाइए।
  52. प्रश्न- “समलक्षणी जीवों की जीनी संरचना भिन्न हो सकती है। यह कथन सही है अथवा गलत? क्यों?
  53. प्रश्न- ग्रीगर जॉन मेण्डल के योगदान को रेखांकित कीजिए।
  54. प्रश्न- कौन-सा कोशिका विभाजन गैमीट पैदा करता है?
  55. प्रश्न- स्यूडोडोमिनेंस पर टिप्पणी लिखिए।
  56. प्रश्न- टेस्ट क्रॉस एवं बैक क्रॉस में अन्तर बताइए।
  57. प्रश्न- टेस्ट क्रॉस तथा बैक क्रॉस को समझाइए।
  58. प्रश्न- मानव में बार बॉडी के महत्व को समझाइये।
  59. प्रश्न- लिंग प्रभावित वंशागति एवं लिंग सीमित वंशागति में अन्तर बताइए।
  60. प्रश्न- लिंग सहलग्न, लिंग प्रभावित और लिंग सीमाबद्धित लक्षणों के बीच सोदाहरण विभेदकीजिए।
  61. प्रश्न- मेरी एफ. लिओन की परिकल्पना समझाइए।
  62. प्रश्न- कारण स्पष्ट कीजिए कि नर मधुमक्खी में शुक्राणुओं का निर्माण समसूत्री विभाजन द्वारा क्यों होता है?
  63. प्रश्न- ZW टाइप लिंग निर्धारण पर टिप्पणी लिखिए।
  64. प्रश्न- पक्षियों में लिंग निर्धारण प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- स्तनधारी मादा की शुरूआती अवस्था में कौन-सा X क्रोमोसोम हेट्रोक्रोमेटाइज हो जाता है, माता का या पिता का?
  66. प्रश्न- मल्टीपिल ऐलीलिज्म पर एक निबन्ध लिखिए।
  67. प्रश्न- Rh-तत्व क्या है? इसके महत्व एवं वंशागति का वर्णन कीजिए।
  68. प्रश्न- जीन की अन्योन्य क्रिया से आप क्या समझते हैं? उदाहरणों की सहायता से जीन की अन्योन्य क्रिया की विधि का वर्णन कीजिए।
  69. प्रश्न- सहलग्नता क्या है? उचित उदाहरण देते हुए इसके महत्त्व की चर्चा कीजिए।
  70. प्रश्न- क्रॉसिंग ओवर को उदाहरण सहित समझाइए तथा इसके महत्व पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- एक स्त्री का रक्त समूह 'AB' व उसके बच्चे का रक्त समूह '0' है। कारण सहित स्पष्ट कीजिए कि उस बच्चे के पिता का रक्त समूह क्या होगा?
  72. प्रश्न- एक Rh + स्त्री, Rh पुरुष से शादी करती है। इनकी संतति में एरेथ्रोब्लास्टोसिस की क्या सम्भावना है?
  73. प्रश्न- लैंडस्टीनर के योगदान का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- रक्त समूह को समझाइए।
  75. प्रश्न- जिनोम को परिभाषित कीजिए।
  76. प्रश्न- 'गृह व्यवस्थापक जीन' या 'रचनात्मक जीन' के बारे में बताइये।
  77. प्रश्न- प्रभावी तथा एपीस्टेटिक जीन में क्या अन्तर है?
  78. प्रश्न- लीथल जीन्स पर टिप्पणी लिखिए।
  79. प्रश्न- पूरक जीन क्रिया को परिभाषित कीजिए।
  80. प्रश्न- गुणसूत्र पर पाये जाने वाले विभिन्न अभिरंजन और पट्टिका प्रतिमानों का वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- हेट्रोक्रोमेटिन और उसके लक्षण पर टिप्पणी लिखिए।
  82. प्रश्न- क्रासिंग ओवर उद्विकास की प्रक्रिया है। स्पष्ट कीजिए।
  83. प्रश्न- लिंकेज ग्रुप पर टिप्पणी लिखिए।
  84. प्रश्न- सामान्य मानव कैरियोटाइप का वर्णन कीजिए।
  85. प्रश्न- गुणसूत्रीय विपथन पर एक निबन्ध लिखिए।
  86. प्रश्न- असुगुणिता किसे कहते हैं? विभिन्न प्रकार की असुगुणिताओं का वर्णन कीजिए तथा इनकी उत्पत्ति के स्रोत बताइए।
  87. प्रश्न- लिंग सहलग्न वंशागति से आप क्या समझते हैं? मनुष्य या ड्रोसोफिला के सन्दर्भ में इस परिघटना का उदाहरणों सहित विवेचन कीजिए।
  88. प्रश्न- क्लाइनफिल्टर सिंड्रोम कार्यिकी अथवा गुणसूत्र के असामान्य स्थिति का परिणाम है। स्पष्ट कीजिए।
  89. प्रश्न- मंगोलिज्म या डाउन सिन्ड्रोम क्या है?
  90. प्रश्न- टर्नर सिन्ड्रोम उत्पन्न होने के कारण एवं उनके लक्षण लिखिए।
  91. प्रश्न- समक्षार उत्परिवर्तन पर टिप्पणी लिखिए।
  92. प्रश्न- अनुप्रस्थ विस्थापन पर टिप्पणी लिखिए।
  93. प्रश्न- पोजीशन एफेक्ट क्या है? उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
  94. प्रश्न- लिंग सहलग्नता प्रक्रिया को समसूत्री नर व समसूत्री मादा में स्पष्ट कीजिए।
  95. प्रश्न- वर्णान्ध व्यक्ति रेलवे ड्राइवर क्यों नहीं नियुक्त किये जाते हैं?
  96. प्रश्न- मानव वंशागति के अध्ययन में क्या मुख्य कठिनाइयाँ हैं?
  97. प्रश्न- संक्रामक जीनों से आप क्या समझते हैं?
  98. प्रश्न- वंशावली विश्लेषण पर टिप्पणी लिखिए।
  99. प्रश्न- लिंग सहलग्न वंशागति के प्रारूप का वर्णन कीजिए।
  100. प्रश्न- अफ्रीकी निद्रा रोगजनक परजीवी की संरचना एवं जीवन चक्र का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- वुचरेरिया बैन्क्रोफ्टाई के वितरण, स्वभाव, आवास तथा जीवन चक्र का वर्णन कीजिए।
  102. प्रश्न- जिआर्डिया पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
  103. प्रश्न- एण्टअमीबा हिस्टोलायटिका की संरचना, जीवन-चक्र, रोगजन्यता एवं नियंत्रण का वर्णन कीजिए।
  104. प्रश्न- अफ्रीकी निद्रा रोग क्या है? यह कैसे होता है? इसके संचरण एवं रोगजनन को समझाइए। इस रोग के नियंत्रण के उपाय बताइए।
  105. प्रश्न- फाइलेरिया क्या है? इसके रोगजनकता एवं लक्षणों तथा निदान का वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- जिआर्डिया के प्रजनन एवं संक्रमित रोगों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  107. प्रश्न- जिआर्डिया में प्रजनन पर टिप्पणी लिखिए।
  108. प्रश्न- जिआर्डिया पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

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