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बीएससी सेमेस्टर-1 जन्तु विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2657
आईएसबीएन :0

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बीएससी सेमेस्टर-1 जन्तु विज्ञान

प्रश्न- गुणसूत्रीय विपथन पर एक निबन्ध लिखिए।

अथवा
गुणसूत्रीय विपथन का वर्णन कीजिए।
अथवा
डेफीशिएंसी, डुप्लीकेशन, इन्वर्जन एवं ट्रांसलोकेशन के आनुवांशिक प्रभावों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. गुणसूत्रों में संरचनात्मक परिवर्तन कैसे होते हैं?
2. जीन द्विगुणन को परिभाषित कीजिए। द्विगुणन के कारण ड्रोसोफिला में होने वाले आनुवंशकीय विन्यास को समझाइये |
3. स्थानान्तरण पर टिप्पणी लिखिए।
4. स्थिति प्रभाव (पोजीशन इफेक्ट) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर -

गुणसूत्री परिवर्तन
(Chromosomal Alterations)

गुणसूत्रों में जीनों की संख्या या जीनों के पुनर्विन्यास में जो परिवर्तन होते हैं, इनको गुणसूत्रों का संरचनात्मक परिवर्तन या गुणसूत्री विपथन कहते हैं। गुणसूत्रों में इस प्रकार के युग्मकजनन (gametogenesis) की प्रक्रिया के समय गुणसूत्र के खण्डों में टूटने, फटने, टूटे खण्डों के पुनर्मिलन या अन्य गुणसूत्रों के साथ जुड़ने के कारण उत्पन्न होते हैं। गुणसूत्री विपथन विकास सम्बन्धी परिवर्तन उत्पन्न करने तथा गुणसूत्रों एवं जीनों में नये सम्बन्ध स्थापित करने का कार्य करते हैं।

 

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विभिन्न प्रकार के गुणसूत्र विपथन

संरचनात्मक गुणसूत्री परिवर्तनों को निम्नलिखित चार समूहों में विभक्त किया गया है-

1. विलोपन या न्यूनता (Deletion or Deficiency)  - जीवों में अर्द्धसूत्री विभाजन के समय पेकीटीन प्रावस्था में समजात जोड़ी के गुणसूत्र दो या अधिक खण्डों में

टूट जाते हैं और विनिमय के समय समजात गुणसूत्रों में इन्हीं खण्डों के मध्य अदला-बदली होती है। विनिमय के समय कभी-कभी गुणसूत्रों के टूटे हुए खण्डों में से एक खण्ड गुणसूत्रों में पुनः जुड़ने की बजाय कोशिका के कोशिकाद्रव्य में घुलकर समाप्त या विलुप्त हो जाता है इसको विलोपन या न्यूनता या ह्रास कहते हैं। गुणसूत्रीय विलोपन या न्यूनता निम्न दो प्रकार की हो सकती है -

 

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गुणसूत्र के मध्य भाग का विलोपन

(i) अन्तस्थ विलोपन (Terminal Deletion) - इस प्रकार के विलोपन में गुणसूत्र के सिरे का एक खण्ड टूटकर विलोपित हो जाता है। इसमें विखण्डन केवल एक ही बिन्दु पर पाया जाता है।

(ii) अन्तर्वेशी विलोपन (Intercalary Deletion) - इस विलोपन में गुणसूत्र के मध्य से खण्ड टूटकर अलग हो जाता है। अतः इसमें गुणसूत्र दो स्थानों पर टूटता है। मध्य का खण्ड तो अलग हो जाता है तथा टूटे हुए दोनों सिरों के खण्ड पुनः जुड़कर नया गुणसूत्र बना लेते हैं। इस प्रकार के विलोपन ड्रोसोफिला एवं अन्य जन्तुओं में अधिकता से मिलते हैं, जबकि अन्तस्थ विलोपन केवल पौधों जैसे - मक्का में पाया जाता है।

विलोपन के परिणाम (Results of Deletion or Deficiency) - समयुग्मजी विलोपन (homozygous deletion) वाले प्राणी, जीनों के दोनों ही समुच्चयों (sets) की अनुपस्थित के कारण जीवित नहीं रह पाते, जबकि ड्रोसोफिला में कुछ छोटे विलोपन समजात अवस्था में भी हानिकारक नहीं होते। विषमयुग्मजी (heterozygous) विलोपन वाले जन्तुओं में जीवन - शक्ति (vitality) का ह्रास पाया जाता है। अतः विलोपन सामान्यतः अप्रभावी उत्परिवर्तन के समान होते हैं।

 

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विषमयुग्मजी न्यूनता में गुणसूत्र युग्मन

विलोपन का महत्व (Significance of Deletion) - विलोपन द्वारा गुणसूत्रों में जीनों की स्थिति निर्धारित करने तथा गुणसूत्र मानचित्र तैयार करने में सहायता मिलती है।

2. द्विगुणन (Duplication) - किसी गुणसूत्र पर एक या एक से अधिक जीनों की दो बार पुनरावृत्ति को द्विगुणन कहते हैं अथवा गुणसूत्र में असमान जीन विनिमय के कारण होने वाली वृद्धि को द्विगुणन कहते हैं। इसके अन्तर्गत गुणसूत्र के एक भाग से अन्तर्वेशी जीनों का एक समूह निकलकर समाजात गुणसूत्र पर किसी भी स्थान पर जुड़ जाता है जो अग्र प्रकार का हो सकता है।

(i) टेण्डम द्विगुणन (Tendem Duplication) - इस प्रकार के द्विगुणन में गुणसूत्र में जुड़े हुए खण्ड में जीनों का अनुक्रम वास्तविक अनुक्रम के समान होता है तथा संकलित भाग वास्तविक गुणसूत्र के निकट सम्पर्क में होता है।

 

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गुणसूत्रों विभिन्न प्रकार के द्विगुणन

(ii) विस्थापित द्विगुणन (Displaced Duplication) - इस प्रकार के 'द्विगुणन में गुणसूत्र खण्ड गुणसूत्र की उसी भुजा में विस्थापित हो जाते हैं। इसमें जीनों का अनुक्रम पृथक् होता हैं।
(iii) कभी - कभी गुणसूत्र के खण्ड उसी गुणसूत्र की विभिन्न भुजाओं से जुड़ जाते हैं।
(iv) गुणसूत्र खण्ड किसी भी असमजात गुणसूत्र से जुड़ सकते हैं।
(v) प्रतिलोम टेण्डम द्विगुणन (Reverse Tendem Duplication) इस प्रकार के द्विगुणन में जीनों का अनुक्रम वास्तविक गुणसूत्र के अनुक्रम के ठीक विपरीत होता है।

उदाहरण - ब्रिजेज (Bridges) ने 1919 ई. में ड्रोसोफिला के X गुणसूत्र (bar gene B) द्विगुणन का प्रदर्शन किया। ड्रोसोफिला के नेत्रों के बार लक्षण (bar character) में ड्रोसोफिला के नेत्र सामान्य की अपेक्षा छोटे, कुछ लम्बे से या छड़नुमा हो जाते हैं। ड्रोसोफिला में यह फीनोटिपिक लक्षण गुणसूत्र के एक भाग के द्विगुणन के कारण होता है। ड्रोसोफिला की लार ग्रन्थियों में उपस्थित पॉलीटीन या बड़े आकार वाले गुणसूत्रों के अध्ययन से यह स्पष्ट किया जा सका कि ड्रोसोफिला में नेत्रों के बार लक्षण का मुख्य कारण X गुणसूत्र के 16A भाग का द्विगुणन है। बार नेत्र वाले ड्रोसोफिला (16A, 16A) असमान विनिमय के कारण अल्ट्राबार नेत्र वाले (16A, 16A, 16A) तथा सामान्य नेत्र वाले (16A) ड्रोसोफिला उत्पन्न करते हैं।

द्विगुणन के परिणाम (Results of Duplication) -  सूक्ष्मदर्शी द्वारा अध्ययन करने पर द्विगुणन में विलोपन के समान ही गुणसूत्रों के संयुग्मन पर फंदे या लूप के समान उभार दिखाई देते हैं। द्विगुणन प्राणियों में अधिकता में पाया जाता है तथा यह विलोपन की तरह हानिकारक नहीं होता। गुणसूत्रों में बैण्ड्स के विन्यास तथा पारस्परिक आकर्षण के कारण द्विगुणन को आसानी से पहचाना जा सकता है। द्विगुणन वाले प्राणियों में अनेक संरचनात्मक असमानताएँ पायी जाती हैं।

द्विगुणन का महत्व (Significance of Duplication)

(i) नयी जातियों के विकास में द्विगुणन महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है, क्योंकि द्विगुणन के फलस्वरूप गुणसूत्रों में जीनों की संख्या में वृद्धि होती है।
(ii) अधिक जीनों की संख्या के कारण परिवर्तन की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं।
(iii) इन परिस्थितियों में घातक जीन भी लाभप्रद उत्परिवर्तन में उत्परिवर्तित हो जाते हैं।
(iv) द्विगुणन के फलस्वरूप विलोपन के प्रभाव को दूर किया जा सकता है।

3. स्थानान्तरण (Translocation) - स्थानान्तरण के अन्तर्गत असमजात (non- homologus) गुणसूत्रों के एक या एक से अधिक खण्ड टूटकर इस प्रकार जुड़ जाते हैं कि असमजात गुणसूत्रों के टूटे खण्डों का आदान-प्रदान एक गुणसूत्र से दूसरे गुणसूत्र में हो जाता है, जैसे ड्रोसोफिला के दूसरे और तीसरे गुणसूत्र के मध्य गुणसूत्रीय खण्डों के विनिमय को स्थानान्तरण कहते हैं।

स्थानान्तरण में जीनों का विलोपन या द्विगुणन नहीं होता, इसके अन्तर्गत केवल जीनों के विन्यास एवं स्थिति में परिवर्तन हो जाता है। इस प्रकार के विन्यास से प्राणियों के शारीरिक लक्षणों में कोई परिवर्तन नहीं होते हैं। स्थानान्तरण के फलस्वरूप जीनों के सहलग्न समूहों में परिवर्तन हो जाता है। इन नये बने समूहों को सरलता से पहचाना जा सकता है। चित्र में दिए गए उदाहरण में सहलग्न समूहों 1234 5 6 एवं 7 8 9 10 11 12 से स्थानान्तरण के फलस्वरूप 783456 एवं 129 10 11 12 सहलग्न समूह बनते हैं।

 

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स्थानान्तरित समयुग्मनज एवं विषमयुग्मनज में गुणसूत्र बनावट

स्थानान्तरण के परिणाम (Results of Translocation) - प्रायः यह देखा गया है कि कुछ पौधों में द्विगुणन अथवा विलोपन युक्त परागकण जीवित नहीं रहते, अतः स्थानान्तरण विषमयुग्मजी पौधे अर्द्धबन्ध्य (semisterile) होते हैं। परन्तु जन्तुओं में स्थानान्तरण विषमयुग्मजी अन्य प्रकार से व्यवहार करते हैं। जन्तुओं में इनसे बने चारों प्रकार के अपसामान्य अण्डाणु एवं शुक्राणु सामान्य दृष्टिगत होते हैं और निषेचन के फलस्वरूप युग्मनज बनाते हैं। परन्तु ये सभी युग्मनज जीवित नहीं रहते, अतः जन्तुओं में भी ये विषमयुग्मजी अर्द्धबन्ध्य होते हैं।

स्थानान्तरण का महत्व (Significance of Translocation) -

(i) पौधों की विभिन्न जातियों के विकास में स्थानान्तरण अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
(ii) ड्रोसोफिला, कुछ आर्थोपोड तथा कुछ पक्षियों एवं स्तनियों में गुणसूत्रों में सेण्ट्रोमियर भाग के समेकित न होने से गुणसूत्रों की संख्या में कमी हो जाती है।

4. प्रतिलोमन (Inversion) - जब गुणसूत्र का कोई खण्ड (segment) अपने अक्ष पर 180° का कोण बनाकर घूम जाता है जिसके कारण उसके जीन विन्यास के क्रम में परिवर्तन आ जाते हैं, यह क्रिया प्रतिलोपन (inversion) कहलाती है। जैसे किसी गुणसूत्र में जीन का विन्यास a b c defg hi है जीन प्रतिलोमन के पश्चात् जिस गुणसूत्र की रचना होती है, उसमें जीन का विन्यास abgfed chi आता है। इसका तात्पर्य यह है कि गुणसूत्र का मध्य का खण्ड जिसमें जीन का विन्यास cdefg था वह 180° पर घूम गया तथा यह खण्ड अलग होने के बाद गुणसूत्र के दोनों खण्डों के मध्य जुड़ते समय इसके सिरे बदल गए और मध्य में जीन का क्रम बदलकर gfed c हो गया।

प्रतिलोमन दो प्रकार के होते हैं -

1. पैरासेण्ट्रिक प्रतिलोमन (Paracentric Inversion)- इसमें गुणसूत्र, सेण्ट्रोमियर के केवल एक ओर से दो स्थानों पर टूटकर प्रतिलोमन करते हैं। गुणसूत्र के प्रतिलोमन भाग में सेण्ट्रोमियर अनुपस्थित होता है।

2. पेरिसेण्ट्रिक प्रतिलोमन (Pericentric Inversion) - इस विधि में सेण्ट्रोमियर सहित गुणसूत्र के प्रतिलोमित भाग में सेण्ट्रोमियर उपस्थित रहता है।

 

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प्रतिलोमन का आरेखी प्रदर्शन

प्रतिलोमन के परिणाम (Results of Inversion) - (i) प्रतिलोमन में जीन की संख्या मे परिवर्तन नहीं होता है तथा इसका प्रभाव घातक नहीं होता है। प्रतिलोमन अर्द्धसूत्री विभाजन के समय गुणसूत्रों में पाया जाता है। प्रतिलोमन गुणसूत्र जोड़ी के दोनों गुणसूत्रों में भी हो सकता है या केवल एक ही गुणसूत्र में गुणसूत्र जोड़ी के दोनों गुणसूत्रों में अगर समान प्रतिलोमन पाया जाता है, तो अर्द्धसूत्री विभाजन के समय दोनों गुणसूत्रों का युग्मन एवं वितरण सामान्य होता है। जबकि विषमजात प्रतिलोमन में प्राणियों के दर्शरूप लक्षणों में कोई स्पष्ट भिन्नता नहीं पायी जाती, लेकिन युग्मक निर्माण के समय जब अर्द्धसूत्री विभाजन होता है तो प्रतिलोमन गुणसूत्र का सामान्य गुणसूत्र के साथ युग्मन सामान्य नहीं हो पाता जिसके कारण इनके बहुत से असामान्य विन्यास बनते हैं। पैरासेण्ट्रिक विषमयुग्मजी प्रतिलोमन भाग में यदि एक क्यिाज्मा बने तो इसके फलस्वरूप मेटा और ऐनाफेज प्रावस्था में एक ऐसेण्ट्रिक क्रोमैटिड बनता है, जिसमें सेण्ट्रोमियर होता है जो दो क्रोमैटिड्स को जोड़ता है, क्रोमैटिड ब्रिज कहलाता है। अतः अर्द्धसूत्री विभाजन के अन्त में पैरासेण्ट्रिक प्रतिलोमन के अन्तर्गत दो नॉनक्रॉस ओवर गुणसूत्र बनते हैं जिनमें एक ऐसेण्ट्रिक गुणसूत्र तथा दूसरा डाइसेण्ट्रिक गुणसूत्र नष्ट हो जाते हैं। अतः नॉनक्रॉस ओवर गुणसूत्रों वाले युग्मक जीवित व क्रियाशील होते हैं।

 

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पैरासेण्ट्रिक प्रतिलोमन विषमयुग्मनज में गुणसूत्र एवं क्रासिंग ओवर के उत्पाद

(ii) पेरिसेण्ट्रिक विषमयुग्मजी प्रतिलोमन में क्रॉसिंग ओवर के फलस्वरूप जिन गुणसूत्रों का निर्माण होता है, उनमें कुछ जीनों का द्विगुणन एवं कुछ जीनों का विलोपन हो जाता है। इसमें जिन युग्मकों में विलोपन वाले गुणसूत्र पहुँचते हैं, वे जीवित नहीं रहते, अतः विषमयुग्मजी प्रतिलोमन में पुनर्संयोजन की सम्भावना कम पायी जाती है। पेरीसेण्ट्रिक प्रतिलोमन के फलस्वरूप गूणसूत्रों की संरचना में परिवर्तन आ जाता है। प्रतिलोमन का आरखी प्रदर्शन

प्रतिलोमन का महत्व (Significance of Inversion) -

(i) पौधों और जन्तुओं दोनों में ही प्रतिलोमन पाया जाता है और दोनों के विकास में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
(ii) प्रतिलोमन क्रॉसिंग ओवर की उपस्थिति के लिए प्रमाण प्रस्तुत करता है तथा यह निर्धारित करता है कि क्रॉसिंग ओवर में केवल दो ही क्रोमैटिड भाग लेते हैं।
(iii) प्रतिलोमन के कारण क्रॉसिंग ओवर की सम्भावनाएँ कम हो जाती हैं तथा जीन का पुनर्संयोजन भी सीमित रह जाता है।

स्थिति प्रभाव (Position Effects) - गुणसूत्री परिवर्तन (chromosomal alteration) में उनके ऊपर स्थित जीन्स के विन्यास में परिवर्तन हो जाता है अर्थात् जीन्स की संख्या में परिवर्तन नहीं होते हैं। गुणसूत्र में जीन विन्यास में परिवर्तन हो जाने के कारण जीवधारियों में अनेक महत्वपूर्ण लक्षण दिखाई देते हैं जो उत्परिवर्तन (mutation) कहलाते हैं और यह क्रिया स्थिति प्रभाव दिखलाती है, अर्थात् गुणसूत्र पर जीन अलग-अलग स्थान पर स्थित होने पर भिन्न-भिन्न लक्षण निर्धारित कर सकता है। अनेक पौधों में जैसे धतूरा (Datura), मक्का (Maize) तथा ओइनोथैरा (Oenothera) में जीन्स की स्थिति के प्रभाव का अध्ययन किया गया है।

प्रेरित गुणसूत्र परिवर्तन (Induced Chromosomal Alteration) - कई वैज्ञानिकों का विचार है कि कॉस्मिक (cosmic) किरणें (radiations), वातावरण एवं पोषण में पायी जाने वाली विभिन्नताओं के कारण गुणसूत्र परिवर्तन होता है। इस प्रकार का परिवर्तन आयनीकरण (ionizing) किरणों द्वारा तथा अनेक रासायनिक पदार्थों की सहायता से और अधिक किया जा सकता है। ऐसी कोशिकाओं से नए गुणसूत्र का निर्माण होता है। कुछ गुणसूत्री परिवर्तन उत्प्रेरक अधिक प्रभावशाली होते हैं। प्रायः परिवर्तन गुणसूत्र में अथवा क्रोमेटिड्स में होता है। क्रोमेटिड परिवर्तन से कोशिका विभाजन द्वारा क्रोमोसोमल परिवर्तन उत्पन्न होते हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- कोशा कला की सूक्ष्म संरचना जानने के लिए सिंगर और निकोल्सन की तरल मोजैक विचारधारा का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- कोशिका सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं? प्राणि कोशिका का नामांकित चित्र बनाइए तथा पाँच कोशिका उपांगों के मुख्य कार्यों का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- निम्नलिखित वैज्ञानिकों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (i) एन्टोनी वान ल्यूवेन हॉक (ii) श्लीडेन तथा श्वान्स
  4. प्रश्न- अन्तरकोशिकीय संचार या कोशिका कोशिका अन्तर्क्रिया पर टिप्पणी लिखिए।
  5. प्रश्न- कोशिका-एडहेसन का वर्णन कीजिए।
  6. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (i) माइक्रोट्यूब्ल्स (ii) माइक्रोफिलामेन्टस (iii) इन्टरमीडिएट फिलामेन्ट
  7. प्रश्न- माइटोकॉण्ड्रिया की संरचना व कार्यों का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम की संरचना तथा कार्यों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- राइबोसोम की संरचना एवं कार्यों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- परऑक्सीसोम पर टिप्पणी लिखिए।
  11. प्रश्न- वेंकटरमन रामाकृष्णन पर टिप्पणी लिखिए।
  12. प्रश्न- बाह्य प्रोटीन और समाकल प्रोटीन कोशिका कला की पारगम्यता को किस प्रकार प्रभावित करती हैं?
  13. प्रश्न- हरितलवक और माइटोकॉण्ड्रिया में मिलने वाले समान लक्षणों का वर्णन कीजिए।
  14. प्रश्न- परॉक्सीसोम किन कोशिकांगों के साथ मिलकर प्रकाशीय श्वसन (फोटोरेस्पिरेशन) की क्रिया सम्पन्न करता है? प्रकाशीय श्वसन के जैविक कार्यों की समीक्षा प्रस्तुत कीजिए।
  15. प्रश्न- केन्द्रक की संरचना का चित्र सहित वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- उपयुक्त आरेखों के साथ गुणसूत्र आकारिकी व परासंरचना का वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- “गुणसूत्रों की विशेष किस्में” विषय पर एक निबन्ध लिखिए।
  18. प्रश्न- न्यूक्लिक अम्ल क्या होते हैं? डी.एन.ए. की संरचना तथा प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- वाट्सन तथा क्रिक के द्वारा प्रस्तुत डी. एन. ए. की संरचना का वर्णन कीजिए तथा डी. एन. ए. के विभिन्न प्रकार बताइए।
  20. प्रश्न- राइबोन्यूक्लिक अम्लों की रचना का वर्णन कीजिए तथा इसके जैविक एवं जैव-रासायनिक महत्व पर प्रकाश डालिए।
  21. प्रश्न- मेसेल्सन एवं स्टेहल के उस प्रयोग का वर्णन कीजिए जो अर्द्ध-संरक्षी डी. एन. ए. पुनरावृत्ति को प्रदर्शित करता है।
  22. प्रश्न- जेनेटिक कोड पर टिप्पणी लिखिए।
  23. प्रश्न- गुणसूत्रों की रचना एवं प्रकार का वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- न्यूक्लिओसोम का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- सहलग्नता क्या है? उचित उदाहरण देते हुए इसके महत्त्व की चर्चा कीजिए।
  26. प्रश्न- क्रॉसिंग ओवर को उदाहरण सहित समझाइए तथा इसके महत्व पर प्रकाश डालिए।
  27. प्रश्न- सेण्ट्रोसोम की परिभाषा लिखिए।
  28. प्रश्न- क्रोमेटिन के प्रकारों को बताते हुए हेटेरोक्रोमेटिन को विस्तार से समझाइये।
  29. प्रश्न- किसी एक प्रायोगिक साक्ष्य द्वारा सिद्ध कीजिये कि डी.एन.ए. ही आनुवांशिक तत्व है।
  30. प्रश्न- गुणसूत्र पर पाये जाने वाले विभिन्न अभिरंजन और पट्टिका प्रतिमानों का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- B गुणसूत्र का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- डी.एन.ए. और आर.एन.ए. में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- RNA कौन-सा आनुवंशिक कार्य DNA की तरह पूरा करता है?
  34. प्रश्न- नीरेनबर्ग तथा एच.जी.खोराना के योगदान का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- क्या RNA का एक स्ट्रेण्ड दूसरा स्ट्रेण्ड संश्लेषित कर सकता है?
  36. प्रश्न- DNA की संरचना फॉस्फोरिक एसिड, पेन्टोज शर्करा तथा नत्रजन क्षार से होती है। इसके वस्तुतः आनुवंशिक तत्व कौन से हैं?
  37. प्रश्न- वाटसन एण्ड क्रिक पर टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- DNA की पुनरावृत्ति में सहायक एन्जाइमों का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- कोशिका चक्र से आप क्या समझते हैं? इण्टरफेज में पायी जाने वाली कोशिका चक्र की विभिन्न प्रावस्थाओं का वर्णन कीजिए।
  40. प्रश्न- समसूत्री कोशिका विभाजन का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए तथा समसूत्री के महत्व पर एक टिप्पणी लिखिए।
  41. प्रश्न- अर्धसूत्री कोशिका विभाजन का सविस्तार वर्णन कीजिए तथा इसके महत्व का उल्लेख कीजिए।
  42. प्रश्न- समसूत्री तथा अर्धसूत्री विभाजन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  43. प्रश्न- एक संकर संकरण क्या है? कम से कम दो उदाहरणों को बताइए।
  44. प्रश्न- स्वतन्त्र अपव्यूहन के नियम को समझाइए।
  45. प्रश्न- एक उपयुक्त उदाहरण देते हुए अपूर्ण प्रभाविकता पर एक टिप्पणी लिखिए।
  46. प्रश्न- जन्तुओं में लिंग निर्धारण की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए।
  47. प्रश्न- मानव में लिंग निर्धारण कैसे होता है?
  48. प्रश्न- लिंग निर्धारण में प्राकृतिक कारकों के प्रभाव का उदाहरण सहित विस्तृत वर्णन कीजिए।
  49. प्रश्न- वंशानुगत तथा आनुवंशिकी में अन्तर बताइए।
  50. प्रश्न- आनुवंशिकी का जनक किसको वस्तुतः कहा जाता है?
  51. प्रश्न- समप्रभाविता की वंशागति को समझाइए।
  52. प्रश्न- “समलक्षणी जीवों की जीनी संरचना भिन्न हो सकती है। यह कथन सही है अथवा गलत? क्यों?
  53. प्रश्न- ग्रीगर जॉन मेण्डल के योगदान को रेखांकित कीजिए।
  54. प्रश्न- कौन-सा कोशिका विभाजन गैमीट पैदा करता है?
  55. प्रश्न- स्यूडोडोमिनेंस पर टिप्पणी लिखिए।
  56. प्रश्न- टेस्ट क्रॉस एवं बैक क्रॉस में अन्तर बताइए।
  57. प्रश्न- टेस्ट क्रॉस तथा बैक क्रॉस को समझाइए।
  58. प्रश्न- मानव में बार बॉडी के महत्व को समझाइये।
  59. प्रश्न- लिंग प्रभावित वंशागति एवं लिंग सीमित वंशागति में अन्तर बताइए।
  60. प्रश्न- लिंग सहलग्न, लिंग प्रभावित और लिंग सीमाबद्धित लक्षणों के बीच सोदाहरण विभेदकीजिए।
  61. प्रश्न- मेरी एफ. लिओन की परिकल्पना समझाइए।
  62. प्रश्न- कारण स्पष्ट कीजिए कि नर मधुमक्खी में शुक्राणुओं का निर्माण समसूत्री विभाजन द्वारा क्यों होता है?
  63. प्रश्न- ZW टाइप लिंग निर्धारण पर टिप्पणी लिखिए।
  64. प्रश्न- पक्षियों में लिंग निर्धारण प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- स्तनधारी मादा की शुरूआती अवस्था में कौन-सा X क्रोमोसोम हेट्रोक्रोमेटाइज हो जाता है, माता का या पिता का?
  66. प्रश्न- मल्टीपिल ऐलीलिज्म पर एक निबन्ध लिखिए।
  67. प्रश्न- Rh-तत्व क्या है? इसके महत्व एवं वंशागति का वर्णन कीजिए।
  68. प्रश्न- जीन की अन्योन्य क्रिया से आप क्या समझते हैं? उदाहरणों की सहायता से जीन की अन्योन्य क्रिया की विधि का वर्णन कीजिए।
  69. प्रश्न- सहलग्नता क्या है? उचित उदाहरण देते हुए इसके महत्त्व की चर्चा कीजिए।
  70. प्रश्न- क्रॉसिंग ओवर को उदाहरण सहित समझाइए तथा इसके महत्व पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- एक स्त्री का रक्त समूह 'AB' व उसके बच्चे का रक्त समूह '0' है। कारण सहित स्पष्ट कीजिए कि उस बच्चे के पिता का रक्त समूह क्या होगा?
  72. प्रश्न- एक Rh + स्त्री, Rh पुरुष से शादी करती है। इनकी संतति में एरेथ्रोब्लास्टोसिस की क्या सम्भावना है?
  73. प्रश्न- लैंडस्टीनर के योगदान का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- रक्त समूह को समझाइए।
  75. प्रश्न- जिनोम को परिभाषित कीजिए।
  76. प्रश्न- 'गृह व्यवस्थापक जीन' या 'रचनात्मक जीन' के बारे में बताइये।
  77. प्रश्न- प्रभावी तथा एपीस्टेटिक जीन में क्या अन्तर है?
  78. प्रश्न- लीथल जीन्स पर टिप्पणी लिखिए।
  79. प्रश्न- पूरक जीन क्रिया को परिभाषित कीजिए।
  80. प्रश्न- गुणसूत्र पर पाये जाने वाले विभिन्न अभिरंजन और पट्टिका प्रतिमानों का वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- हेट्रोक्रोमेटिन और उसके लक्षण पर टिप्पणी लिखिए।
  82. प्रश्न- क्रासिंग ओवर उद्विकास की प्रक्रिया है। स्पष्ट कीजिए।
  83. प्रश्न- लिंकेज ग्रुप पर टिप्पणी लिखिए।
  84. प्रश्न- सामान्य मानव कैरियोटाइप का वर्णन कीजिए।
  85. प्रश्न- गुणसूत्रीय विपथन पर एक निबन्ध लिखिए।
  86. प्रश्न- असुगुणिता किसे कहते हैं? विभिन्न प्रकार की असुगुणिताओं का वर्णन कीजिए तथा इनकी उत्पत्ति के स्रोत बताइए।
  87. प्रश्न- लिंग सहलग्न वंशागति से आप क्या समझते हैं? मनुष्य या ड्रोसोफिला के सन्दर्भ में इस परिघटना का उदाहरणों सहित विवेचन कीजिए।
  88. प्रश्न- क्लाइनफिल्टर सिंड्रोम कार्यिकी अथवा गुणसूत्र के असामान्य स्थिति का परिणाम है। स्पष्ट कीजिए।
  89. प्रश्न- मंगोलिज्म या डाउन सिन्ड्रोम क्या है?
  90. प्रश्न- टर्नर सिन्ड्रोम उत्पन्न होने के कारण एवं उनके लक्षण लिखिए।
  91. प्रश्न- समक्षार उत्परिवर्तन पर टिप्पणी लिखिए।
  92. प्रश्न- अनुप्रस्थ विस्थापन पर टिप्पणी लिखिए।
  93. प्रश्न- पोजीशन एफेक्ट क्या है? उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
  94. प्रश्न- लिंग सहलग्नता प्रक्रिया को समसूत्री नर व समसूत्री मादा में स्पष्ट कीजिए।
  95. प्रश्न- वर्णान्ध व्यक्ति रेलवे ड्राइवर क्यों नहीं नियुक्त किये जाते हैं?
  96. प्रश्न- मानव वंशागति के अध्ययन में क्या मुख्य कठिनाइयाँ हैं?
  97. प्रश्न- संक्रामक जीनों से आप क्या समझते हैं?
  98. प्रश्न- वंशावली विश्लेषण पर टिप्पणी लिखिए।
  99. प्रश्न- लिंग सहलग्न वंशागति के प्रारूप का वर्णन कीजिए।
  100. प्रश्न- अफ्रीकी निद्रा रोगजनक परजीवी की संरचना एवं जीवन चक्र का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- वुचरेरिया बैन्क्रोफ्टाई के वितरण, स्वभाव, आवास तथा जीवन चक्र का वर्णन कीजिए।
  102. प्रश्न- जिआर्डिया पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
  103. प्रश्न- एण्टअमीबा हिस्टोलायटिका की संरचना, जीवन-चक्र, रोगजन्यता एवं नियंत्रण का वर्णन कीजिए।
  104. प्रश्न- अफ्रीकी निद्रा रोग क्या है? यह कैसे होता है? इसके संचरण एवं रोगजनन को समझाइए। इस रोग के नियंत्रण के उपाय बताइए।
  105. प्रश्न- फाइलेरिया क्या है? इसके रोगजनकता एवं लक्षणों तथा निदान का वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- जिआर्डिया के प्रजनन एवं संक्रमित रोगों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  107. प्रश्न- जिआर्डिया में प्रजनन पर टिप्पणी लिखिए।
  108. प्रश्न- जिआर्डिया पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

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