बी एस-सी - एम एस-सी >> बीएससी सेमेस्टर-1 जन्तु विज्ञान बीएससी सेमेस्टर-1 जन्तु विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएससी सेमेस्टर-1 जन्तु विज्ञान
प्रश्न- असुगुणिता किसे कहते हैं? विभिन्न प्रकार की असुगुणिताओं का वर्णन कीजिए तथा इनकी उत्पत्ति के स्रोत बताइए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए।
(i) मोनोसोमी
(ii) नलीसोमी अथवा द्विन्यूनसूत्रता
(iii) ट्राइसोमी
(iv) असुगुणिता
2. गुणसूत्र में संख्यात्मक परिवर्तन पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर -
असुगुणिता या गुणसूत्रों में संख्यात्मक परिवर्तन
(Aneuploidy or Numerical Changes in Chromosomes)
कायिक गुणसूत्र संख्या (somatic chromosome number) में एक अथवा अनेक गुणसूत्रों की कमी या वृद्धि असुगुणिता (aneuploidy) कहलाती है तथा इसमें कभी भी सम्पूर्ण जीनोम (genome) की कमी अथवा वृद्धि नहीं पायी जाती हैं। असुगुणिता को 4 भागों में विभाजित किया जा सकता है -
1. मोनोसोमी (Monosomy) - कायिक गुणसूत्र संख्या में एक गुणसूत्र का कम होना मोनोसोमी (monosomy) कहलाता है जिसे 2n-1 द्वारा प्रदर्शित करते हैं। इनमें से किसी गुणसूत्र का समजात नहीं पाया जाता है। अतः समसूत्री विभाजन (meiosis) के समय यह गुणसूत्र अयुग्मित (unpaired) रहता है और यह यूनीवेलेण्ट (univalent) ही रह जाता है। इसमें प्रथम एनाफेज (anaphase I) के समय कुछ विशेषताएँ जैसे (i) यह एक ध्रुव की ओर चला जाता है, (ii) कभी-कभी यह ध्रुव पर न जाकर लुप्त हो जाता है, (iii) कभी-कभी समसूत्री विभाजन (mitosis) के गुणसूत्रों की तरह विभाजन करने लगता है जिसके फलस्वरूप इसका प्रत्येक अर्धगुणसूत्र (chromatid) विपरीत ध्रुव पर चला जाता है, अतः एकन्यूनसूत्री पौधों के 50% युग्मकों में n-1 गुणसूत्र पाये जाते हैं।
जीवधारियों में सम्पूर्ण एक गुणसूत्र की कमी के कारण बहुत हानिकारक कुप्रभाव पड़ता है अर्थात् केवल बहुगुणित (polyploid) जातियों में ही एकन्यूनसूत्री जीवित रहते हैं और द्विगुणित जातियों में इनका जीवन समाप्त हो जाता है। किन्तु द्विगुणित टमाटर में एकन्यूनसूत्री होते हैं। इसी प्रकार गेहूँ, जई तथा कपास में एक न्यूनसूत्री पाये जाते हैं।
2. द्विन्यूनसूत्रीता या नलीसोमी (Nullisomy) - कायिक गुणसूत्र संख्या में एक जोड़ी समजात गुणसूत्रों का कम होना द्विन्यूनसूत्रीता (nullisomy) कहलाता है। अतः द्विन्यूनसूत्रियों में.. गुणसूत्रों की संख्या 2n-1 पायी जाती है। इसका हानिकारक कुप्रभाव जीवधारियों पर पड़ता है। तम्बाकू, कपास की जातियों के बहुगुणित होने पर भी इस प्रभाव के कारण वह जीवित नहीं रह पाती हैं। किन्तु गेहूँ तथा जई के द्विन्यूनसूत्री जीवित रहते हैं। द्विन्यूनसूत्रियों में गुणसूत्री युग्मन सामान्य होता है तथा n - 1 प्रकार के द्विसंयोजी (bivalents) बनते हैं और इस प्रकार के सभी पौधों के युग्मकों में n - 1 प्रकार के गुणसूत्र पाये जाते हैं। अतः इस प्रकार के पौधों में स्वपरागण होता है तथा सभी उत्पपन्न संततियाँ द्विन्यूनसूत्री होती हैं।
3. एकाधिसूत्रता या ट्राइसोमी (Trisomy) - कायिक गुणसूत्र संख्या में एक गुणसूत्र की वृद्धि पर ट्राइसोमी (trisomy) कहलाता है जिसे 2n + 1 द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इसमें एक गुणसूत्र की तीन प्रतियाँ (copies) पायी जाती हैं। इसमें अर्द्धसूत्री विभाजन में तीनों समजात गुणसूत्र एक साथ मिलकर एक ट्राइवेलेण्ट (trivalent) का निर्माण करते हैं अथवा दो समजात गुणसूत्र मिलकर जोड़ा (pair) बनाते हैं जो बाईवेलेण्ट (bivalent) होता है तथा शेष अतिरिक्त समजात गुणसूत्र यूनीवेलेण्ट (univalent) के रूप में पाया जाता है। अर्धसूत्री विभाजन का प्रथम एनाफेज में ट्राइवेलेण्ट के दो गुणसूत्र यूनीवेलेण्ट एकन्यूनसूत्री एक ध्रुव पर तथा एक गुणसूत्र दूसरे ध्रुव पर पहुँच जाता है। यूनीवेलेण्ट एकन्यूनसूत्री के आयुग्मों की तरह रहता है जिसमें n +1 गुणसूत्र वाले युग्मकों की संख्या 50% से घट जाती है। यद्यपि एकाधिसूत्री जीवित रहते हैं किन्तु एक गुणसूत्र की अधिकता का कुप्रभाव जीवधारियों पर पड़ता है। टमाटर, मटर, जौ तथा बाजरा की द्विगुणित जातियों में एकाधिसूत्री पाये जाते हैं।
4. टेट्रासोमी (Tetrasomy) - इसमें कायिक गुणसूत्र संख्या के अतिरिक्त दो समजात गुणसूत्र (homologous chromosomes) अधिक पाये जाते हैं। अतः यह दशा टेट्रासोमी (tetrasomy) कहलाती है जो 2n + 2 द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इसमें एक गुणसूत्र की चार प्रतियाँ (copies) होती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार एक गुणसूत्र में उपस्थित होने की तुलना में गुणसूत्रों का एक जोड़ी उपस्थित होना अत्यधिक कुप्रभावी होता है जिससे हानि होती है। यही कारण है कि टेट्रासोमिक्स ट्राइसोमिक्स की तुलना में कमजोर होते हैं।
टेट्रासोमी में चार समजात गुणसूत्रों के एक साथ जोड़े बनने में एक क्वाड्रीवेलेण्ट (quadrivalent) का निर्माण होता है अथवा इन गुणसूत्रों के परस्पर युग्मन के फलस्वरूप एक ट्राइवेलेण्ट, एक यूनीवेलेण्ट तथा दो बाईवेलेण्ट का भी निर्माण हो सकता है। एनाफेज प्रथम में क्वाण्ड्रीवेलेण्ट ट्राइवेलेण्ट तथा यूनीवेलेण्ट में अनियमित विलगन (dijunction) होता है जिससे अधिकांश युग्मकों में केवल n गुणसूत्र पाये जाते हैं तथा अन्य गुणसूत्र n + 1 प्रकार के होते हैं।
असुगुणित बीज तुलना में छोटे होते हैं जिनमें बहुत कम अंकुरण हो पाता है। इसी प्रकार पराग नलिका काफी धीमी गति से वृद्धि करती है। इस प्रकार नर युग्मकों में पारगमन (transmission) बहुत कम होता है, इसके विपरीत मादा युग्मकों द्वारा असुगुणिता का पारागमन नर की अपेक्षा अधिक होता है।
असुगुणिता का उद्गम (Origin of Aneuploidy) - इसे निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा समझाया जा सकता है -
(i) प्रवृत्ति में स्वतः (spontaneously) n + 1 अथवा n - 1 युग्मकों (gametes) का निर्माण होता रहता है। n + 1 अथवा n 1 युग्मकों के n युग्मकों के साथ संयोग करने से 2n + 1 अथवा 2n - 1 प्रकार के युग्मनज का निर्माण हो सकता है।
(ii) त्रिगुणित (triploid) पौधों में अधिकतर युग्मक असुगुणित n+ 1 या n - 1 प्रकार के होते हैं जिनसे प्रायः असुगुणित सन्ततियाँ प्राप्त होती हैं।
(iii) अर्द्धसूत्री विभाजन (meiosis) के समय असनेप्टिक (asynaptic) पौधों में समजात गुणसूत्रों में युग्मन (pairing) नहीं पाया जाता है इसके विपरीत डिसिनेप्टिक (desynaptic) पौधों में युग्मन होता है। यह गुणसूत्र अपना युग्मन मेटाफेज तक पहुँचने से पूर्व ही समाप्त कर देते हैं जिसके कारण n + 1 तथा n - 1 के युग्मक बनते हैं जो उत्परिवर्तन प्रदर्शित करते हैं।
(iv) स्थानान्तरण वाले विषमयुग्नजों (heterozygotes) में क्वाड्रीवेलेण्ट के चारों गुणसूत्रों का विलगन 3: 1 में हो सकता है जिससे n + 1 तथा n 1 युग्मकों का निर्माण हो सकता है। जब यह युग्मक सामान्य n युग्मकों से संयोग करते हैं तो असुगुणित (aneuploid) पौधे बनते हैं।
(v) अधिकतर n + 1 प्रकार के युग्मक टेट्रासोमिक पौधों में पाये जाते हैं और इस प्रकार के पौधों का संकरण करने से ट्राइसोमिक 2n + 1 प्रकार के युग्मनज बनते हैं।
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- प्रश्न- जिआर्डिया के प्रजनन एवं संक्रमित रोगों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जिआर्डिया में प्रजनन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जिआर्डिया पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।