बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य
प्रश्न- कबीर एक विद्रोही कवि हैं, क्यों? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
कबीर तत्कालीन समाज में विद्रोह का स्वर फूँकने का निरन्तर प्रयास करते रहे। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -
कबीरदास मध्यकाल के एक महान सन्त, समाज सुधारक, दार्शनिक तथा कवि हैं। उनका जीवन-वृत्त अनेक किंवदन्तियों से घिरा है। ब्राह्मण घर में जन्म लेने के बाद मुस्लिम जुलाहा दम्पत्ति ने उनका पालन-पोषण किया। लोई नाम की उनकी पत्नी थी तथा कमाल, कमाली, पुत्र व पुत्री का भी समय काशी में व्यतीत किया। लेकिन अन्त समय में वे काशी छोड़कर मगहर चले गये। उनके लिए काशी और मगहर में कोई अन्तर नहीं था। इस सन्दर्भ में उनका एक दोहा भी हैं -
जो कासी तन तजहि कबीरा, तो रामहि कौन निहोरा।
क्या कासी क्या मगहर, ऊसर हिरदै राम जो होई॥
1. क्रान्तिकारी युगदृष्टा - कबीरदास एक क्रान्तिकारी युगददृष्टा थे। उन्होंने तत्कालीन संकीर्ण, राजनीतिक, सामाजिक व धार्मिक वातावरण में नवीन सामाजिक सिद्धान्तों का श्रीगणेश करने का प्रयत्न किया। उन्होंने परम्पराओं का खण्डन करते हुए मध्यकालीन भारतीय समाज में नवीन क्रान्ति उत्पन्न की। उन्होंने सामाजिक विषमता को अन्याय घोषित किया और ज्ञान के द्वारा लोगों में सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक चेतना को जागृत किया। वे सच्चे जनवादी कवि थे और जनता की भावनाओं तथा आकांक्षाओं को भली प्रकार समझते थे। अतः उन्होंने जनभाषा का सहारा लेते हुए समाज की विसंगतियों पर प्रहार किया। तत्कालीन राजनैतिक सामाजिक और धार्मिक परिस्थितियों के कारण ही वे क्रान्तिकारी कवि बन सके।
2. कबीर पूर्व सामाजिक चेतना - जब हम कबीर पूर्वकाल के बारे में सोचते हैं तो हमें पता चलता है कि बौद्ध धर्म और जैन धर्म के काल में ही सामाजिक चेतना का विकास होने लगा। ब्राह्मण धर्म की वर्णव्यवस्था, आत्मवाद आस्तिकता आदि को चुनौती मिलने लगी। परन्तु शीघ्र ही ये धर्म विभाजन के शिकार बन गये। बौद्धों से प्रभावित होकर सिद्ध और नाथ साहित्य ने नई आचार संहिता बनाने का प्रयास किया। इन्होंने जहाँ एक ओर निर्गुण निराकार ब्रह्म की उपासना पर बल दिया, वहाँ दूसरी ओर आचरण के प्रति आग्रह को व्यक्त किया। यही नहीं इन कवियों ने जनभाषा की ठेठ शब्दावली में जनसाधारण को सम्बोधित किया। अन्य शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि सिद्धों व नाथों की कविता अभिजात्यवाद से मुक्ति की कविता है। यही परम्परा हमें कबीर में देखने को मिलती है। यह एक प्रामाणिक सत्य है कि कबीरदास सिद्धों व नाथों से अत्यधिक प्रभावित हुए हैं। समाज के प्रति उनकी गहरी चिन्ता थी और इस चिन्ता से मुक्त होने के लिए वे बड़ी ईमानदारी के साथ समाज की विसंगतियों का पर्दाफाश करते हैं। कबीरदास विद्वान होने का दावा नहीं करते, वे तो बड़ी विनम्रता के साथ कहते हैं कि उन्होंने मसि, कागद को छुआ तक नहीं और न ही हाथ में कलम पकड़ी है, उन्हें तो आंखों पर देखी पर विश्वास है। आचरण पक्ष में उनकी अटूट आस्था है। वे कहते हैं -
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पण्डित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय॥
3. एक यथार्थवादी एवं सजग कवि - कबीरदास में अदम्य आत्मविश्वास था। वे जिस जमीन पर खड़े थे, वह मजबूत थी, उसका मानवीय आधार ठोस था। जुलाहा वर्ग से आये इस विद्रोही कवि के पास न केवल ईमानदारी थी बल्कि निर्भयता की पूँजी भी थी। वे सजग यथार्थवादी कवि होने के कारण हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों को खरी-खोटी सुनाते हैं।
कबीर ने समाज में प्रचलित परम्परागत रूढ़ियों, विविध कर्मकाण्डों तथा पण्डे, मुल्लाओं के व्यक्तिगत दुर्गुणों की कठोर निन्दा की। परन्तु उनका लक्ष्य था आदर्श समाज की रक्षा करना। इसलिए वे आजीवन सामाजिक समस्याओं से जूझते रहे। सामाजिक प्रगति के लिए वे सदैव प्रयास करते रहे। उन्होंने निरपेक्ष सत्य की अभिव्यक्ति की। उनकी दृष्टि में कविता का लक्ष्य है मानवमात्र का कल्याण करना। इसलिए उन्होंने कहा भी है -
हरि जी यह विचारिया, साषी कहौ कबीर।
भौ सागर में जीव है, जो कोई पकड़े तीर॥
4. व्यक्ति और समाज का समन्वय - कबीर ने अपने देश और काल को सामने रखकर व्यष्टि और समष्टि की गहराइयों में प्रवेश करके जो अनुभूतियाँ प्रस्तुत की हैं, उन्हीं में व्यक्ति और समाज का 'अन्दर-बाहर' अभिव्यंजित हुआ है। वे समाज की खबर लेते समय व्यक्ति के अन्तर को भी खोजते रहे। उन्होंने व्यक्ति और समाज के हृदय और आचरण में समन्वय न देखकर जो विद्रोहपूर्ण व्यंग्य प्रहार किये हैं। वे एक ओर सामाजिक कमजोरियों को व्यक्त करते हैं, दूसरी ओर धार्मिक व्यक्तियों के दम्भ और छदम् की धज्जियाँ उड़ाकर व्यक्ति और समाज के प्रतिशोध का ही प्रयत्न करते हैं।
5. बाह्यचरों तथा आडम्बरों का विरोध - कबीर की समाज चेतना तत्कालीन समाज की जर्जर अवस्था देखकर अभिव्यक्ति के लिए तड़प उठी। उन्होंने एक-एक समस्त आडम्बर मूलक प्रवृत्तियों को उखाड़ फेंकने का प्रयास किया। कबीर के विचार से धर्मावलम्बियों के आडम्बर और बाध्याचार समाप्त हो जाये तो सारा समाज एक हो जाये। इन दोनों ही जातियों में धार्मिक आडम्बर और कर्मकाण्ड व्यापक रूप ले चुका था। अतः उन्होंने विभिन्न धार्मिक आडम्बरों की खिल्ली उड़ायी है। उन्होंने हिन्दुओं के उपवास करने, माला फेरने, तीर्थस्थान जाने तथा मूर्तिपूजा इत्यादि को पाखण्ड कहा। माला फेरने से परमात्मा मिलता तो रहट को भगवान क्यों नहीं मिल जाते? 'माला पहऱ्यां हरि मिले, तो अरहट के गलि देष। यदि तीर्थों में स्नान करने का महत्व है तो वहाँ के जल में निवास करने वाले मेढ़क क्यों नहीं मुक्त हो जाते? मूर्तिपूजा का भी कबीर ने खुलकर निंदा की है क्योंकि पत्थर की मूर्तियाँ तो जन्मभर उत्तर नहीं देती। हिन्दू जीवित पिता की सेवा नहीं करते किन्तु मृत्यु के बाद पिण्डदान कर देते हैं। यह ढोंग नहीं तो क्या है?' जीवित पित्र कूँ बोलें अपराध, मूवाँ पीछे देहि सराध इस प्रकार कबीर ने हिन्दुओं में प्रचलित समस्त रूढ़िगत धारणाओं और बाह्याचारों पर कुठाराघात किया है।
6. आदर्शवादी समाज की स्थापना का लक्ष्य - कबीरदास सामाजिक दीन-हीनता के कारण काफी दुःखी थे। सारा संसार हंसी-खुशी सोता था। लेकिन कबीरदास जाग जाग कर रोते थे। एक स्थल पर वे कहते भी है -
सुखिया सब संसार है, खावै और सोवे।
दुखिया दास कबीर है, जागे और रोवे॥
उन्होंने अपने ज्ञान और चक्षुओं के द्वारा समाज के प्रत्येक वर्ग, धर्म और सम्प्रदाय को यहाँ तक कि समूची जाति को बाहर और भीतर से देखा था। उन्हें एक ऐसी दिव्य दृष्टि प्राप्त हुई, जिसके कारण वे अनुभव करने लगे कि सभी मनुष्यों में एक ही ईश्वर का वास है। वह घट घट में निवास करता है। एक स्थल पर वे कहते भी हैं -
एकमेक रमि रहया सबनि मे तो काहे भरमावौ।
उन्हें लगा राम रहीम एक ही है। इसीलिए उन्होंने हिन्दू, मुसलमानों दोनों के निर्गुण निराकार ईश्वर की भक्ति करने की सलाह दी। इस संदर्भ में उन्होंने कहा भी है -
एक ज्योति से सब जग उपज्या, को बामन को सूदा।
उनका विद्रोही समाज दर्शन बाह्य जीवन को नैतिक सदाचार की मर्यादा में बाँधने वाला, उनके मन का परिष्कार करने वाला और उसकी आत्मा को विश्वात्मा में लय करके उसके सच्चे मानव धर्म की ऊँचाई तक पहुँचाने वाला है। कबीर के विद्रोही विचारों ने तत्कालीन समाज को मर्यादा प्रदान की, तामासिकता को सात्विकता में बदलने की कोशिश की, मोहान्धता को ज्ञान पर प्रकाश दिखाया और दुराचरण को सदाचरण में परिवर्तित करने का प्रयास किया।
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- प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गीतिकाव्य के प्रमुख तत्वों के आधार पर विद्यापति के गीतों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- "विद्यापति भक्त कवि हैं या श्रृंगारी" इस सम्बन्ध में प्रस्तुत विविध विचारों का परीक्षण करते हुए अपने पक्ष में मत प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति भक्त थे या शृंगारिक कवि थे?
- प्रश्न- विद्यापति को कवि के रूप में कौन-कौन सी उपाधि प्राप्त थी?
- प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि विद्यापति उच्चकोटि के भक्त कवि थे?
- प्रश्न- काव्य रूप की दृष्टि से विद्यापति की रचनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की काव्यभाषा का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (विद्यापति)
- प्रश्न- पृथ्वीराज रासो की प्रामाणिकता एवं अनुप्रामाणिकता पर तर्कसंगत विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो' के काव्य सौन्दर्य का सोदाहरण परिचय दीजिए।
- प्रश्न- 'कयमास वध' नामक समय का परिचय एवं कथावस्तु स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
- प्रश्न- पृथ्वीराज रासो का 'समय' अथवा सर्ग अनुसार विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो की रस योजना का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- 'कयमास वध' के आधार पर पृथ्वीराज की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'कयमास वध' में किन वर्णनों के द्वारा कवि का दैव विश्वास प्रकट होता है?
- प्रश्न- कैमास करनाटी प्रसंग का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (चन्दबरदायी)
- प्रश्न- जीवन वृत्तान्त के सन्दर्भ में कबीर का व्यक्तित्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कबीर एक संघर्षशील कवि हैं। स्पष्ट कीजिए?
- प्रश्न- "समाज का पाखण्डपूर्ण रूढ़ियों का विरोध करते हुए कबीर के मीमांसा दर्शन के कर्मकाण्ड की प्रासंगिकता पर प्रहार किया है। इस कथन पर अपनी विवेचनापूर्ण विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- कबीर एक विद्रोही कवि हैं, क्यों? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कबीर की दार्शनिक विचारधारा पर एक तथ्यात्मक आलेख प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- कबीर वाणी के डिक्टेटर हैं। इस कथन के आलोक में कबीर की काव्यभाषा का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- कबीर के काव्य में माया सम्बन्धी विचार का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
- प्रश्न- "समाज की प्रत्येक बुराई का विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है।' विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "कबीर ने निर्गुण ब्रह्म की भक्ति पर बल दिया था।' स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कबीर की उलटबासियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- कबीर के धार्मिक विचारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कबीर)
- प्रश्न- हिन्दी प्रेमाख्यान काव्य-परम्परा में सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का स्थान निर्धारित कीजिए।
- प्रश्न- "वस्तु वर्णन की दृष्टि से मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत एक श्रेष्ठ काव्य है।' उक्त कथन का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- महाकाव्य के लक्षणों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि 'पद्मावत' एक महाकाव्य है।
- प्रश्न- "नागमती का विरह-वर्णन हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है।' इस कथन की तर्कसम्मत परीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'पद्मावत' एक प्रबन्ध काव्य है।' सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- पद्मावत में वर्णित संयोग श्रृंगार का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- "जायसी ने अपने काव्य में प्रेम और विरह का व्यापक रूप में आध्यात्मिक वर्णन किया है।' स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'पद्मावत' में भारतीय और पारसीक प्रेम-पद्धतियों का सुन्दर समन्वय हुआ है।' टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- पद्मावत की रचना का महत् उद्देश्य क्या है?
- प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद को समझाइए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जायसी)
- प्रश्न- 'सूरदास को शृंगार रस का सम्राट कहा जाता है।" कथन का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- सूरदास जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- 'भ्रमरगीत' में ज्ञान और योग का खंडन और भक्ति मार्ग का मंडन किया गया है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- "श्रृंगार रस का ऐसा उपालभ्य काव्य दूसरा नहीं है।' इस कथन के परिप्रेक्ष्य में सूरदास के भ्रमरगीत का परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- "सूर में जितनी सहृदयता और भावुकता है, उतनी ही चतुरता और वाग्विदग्धता भी है।' भ्रमरगीत के आधार पर इस कथन को प्रमाणित कीजिए।
- प्रश्न- सूर की मधुरा भक्ति पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
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- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (सूरदास)
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- प्रश्न- तुलसी के लोक नायकत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- अयोध्याकाण्ड' के आधार पर भरत के शील-सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- 'रामचरितमानस' एक धार्मिक ग्रन्थ है, क्यों? तर्क सम्मत उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- रामचरितमानस इतना क्यों प्रसिद्ध है? कारणों सहित संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- मानस की चित्रकूट सभा को आध्यात्मिक घटना क्यों कहा गया है? समझाइए।
- प्रश्न- तुलसी ने रामायण का नाम 'रामचरितमानस' क्यों रखा?
- प्रश्न- 'तुलसी की भक्ति भावना में निर्गुण और सगुण का सामंजस्य निदर्शित हुआ है। इस उक्ति की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'मंगल करनि कलिमल हरनि, तुलसी कथा रघुनाथ की' उक्ति को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- तुलसी की लोकप्रियता के कारणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसीदास के गीतिकाव्य की कतिपय विशेषताओं का उल्लेख संक्षेप में कीजिए।
- प्रश्न- तुलसीदास की प्रमाणिक रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- तुलसी की काव्य भाषा पर संक्षेप में विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- 'रामचरितमानस में अयोध्याकाण्ड का महत्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- तुलसी की भक्ति का स्वरूप क्या था? अपना मत लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (तुलसीदास)
- प्रश्न- बिहारी की भक्ति भावना की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के जीवन व साहित्य का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- "बिहारी ने गागर में सागर भर दिया है।' इस कथन की सत्यता सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी बहुज्ञ थे। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के दोहों को नाविक का तीर कहा गया है, क्यों?
- प्रश्न- बिहारी के दोहों में मार्मिक प्रसंगों का चयन एवं दृश्यांकन की स्पष्टता स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के विषय-वैविध्य को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (बिहारी)
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- प्रश्न- घनानन्द की प्रेम व्यंजना पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के काव्य वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- घनानन्द की काव्य रचनाओं पर प्रकाश डालते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- घनानन्द की भाषा शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के अनुसार प्रेम में जड़ और चेतन का ज्ञान किस प्रकार नहीं रहता है?
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (घनानन्द)