बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य
प्रश्न- कबीर वाणी के डिक्टेटर हैं। इस कथन के आलोक में कबीर की काव्यभाषा का विवेचन कीजिए।
उत्तर -
कबीर की भाषा के सम्बन्ध में हिन्दी आलोचकों के भिन्न-भिन्न मत है। बाबूराम सक्सेना कबीर की भाषा को अवधी मानते हैं। डॉ. रामकुमार वर्मा ने अनुसार उनकी भाषा भोजपुरी है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी उसे संध्या भाषा कहते हैं और कबीर ने स्वयं अपनी भाषा को पूर्वी भाषा कहा है :
बोली हमारी पूर्वी, हमैं लखै नहिं कोय।
हमको तो सोई लखै, धुर पूरब को होय॥
वस्तुतः कबीर की भाषा के सम्बन्ध में सबसे उपयुक्त विचार आचार्य शुक्ल का है जिन्होंने सधुक्कड़ी अर्थात् साधुओं की भाषा कहा है। मध्यकाल के संत और साधु घुमक्कड़ थे। अतः उनके उपदेशों में विभिन्न प्रदेशों की भाषा के शब्दों का मिश्रण रहता था। इसी मिश्रण के कारण अन्य विद्वानों ने उसे खिचड़ी भाषा या पंचमेल भाषा कहा है। कबीर की भाषा का अध्ययन करने पर स्पष्ट हो जाता है कि वह केवल उनके निवासस्थान पर बनारस या आस-पास की भाषा नहीं है। उनकी भाषा में पंजाबी (लूण, नाल, हाट) ब्रजभाषा, पूर्वी हिन्दी, खड़ी बोली, भोजपुरी और राजस्थानी (आंखड़िया, जीभणियाँ, पड़या) सभी के शब्द मिलते हैं। उसमें एक ओर संस्कृत के तत्सम और तद्भव शब्द हैं तो दूसरी ओर अरबी, फारसी और उर्दू . के शब्द भी। इस प्रकार सभी भाषाओं के शब्द होने के कारण उनकी भाषा को सधुक्कड़ी या खिचड़ी भाषा कहना ही सही है। इसके दो कारण हैं एक तो कबीर अनपढ़ थे और साधुओं का सत्संग करते थे और दूसरे उन्होंने अपनी कविता जनता के लिए लिखी थी।
कवि कविता में भावानुकूल भाषा का प्रयोग करते हैं। जहाँ भक्ति और प्रिय मिलन के चित्र हैं, वहाँ उनकी भाषा कोमल और मधुर है, अर्थात् उसमें माधुर्य गुण मिलता है।
जैसे :
"दुल्हिन गावहु मंगलाचार"
इसके विपरीत जहाँ उन्होंने धर्माडम्बर, ढोंग या सामाजिक कुरीतियों (छुआछूत शोषण) की निन्दा की है और जहाँ उनके मन में क्रोध या खीझ है, वहाँ उनकी भाषा में चुटीलापन और व्यंग्य है। इन स्थलों पर उनकी भाषा में ओज गुण आ गया है :
"केसन कहा बिगाड़िया जो मूड़े सौ बार
मन को काहे न मूड़िये जामै विषय विकार"
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर को वाणी का 'डिक्टेटर' कहा है:
"भाषा पर कबीर का जबरदस्त अधिकार था। जिस बात को उन्होंने जिस लय में प्रकट करना चाहा है उसे उसी रूप में भाषा के कहलवा लिया है। बन गया है तो सीधे-सीधे नहीं तो दरेरा देकर।"
भक्ति के आवेश में भी कभी-कभी वह ओजगुण सम्पन्न भाषा का प्रयोग करते हैं।
जैसे :
फाड़ फुटौला धज करौं कामलिया पहिराउं।
जिहि-जिहि भेषा हरि मिलें सोई-सोई भेष कराउं
जहाँ उनके मन में करुणा जागृत होती है, वहाँ उनकी भाषा में करुणार्द्रता आ गयी है। जैसे :
"निर्बल को न सताइये जाकी मोटी हाय
मुई खाल की सांस सौं लौह भस्म हो जाय।'
कबीर की कविता में रहस्यवादी उक्तियाँ भी पायीं जाती हैं। इन स्थलों पर वह निराकार और निर्गुण ब्रह्म को प्राप्त करने के लिए हठयोग की साधना या दाम्पत्य भाव से भक्ति करने की बात कहते हैं। ऐसे स्थलों पर सामान्य भाषा का प्रयोग नहीं हो सकता। अतः कबीर ने भी ऐसे स्थलों पर अलंकृत भाषा का प्रयोग किया है या उन्होंने प्रतीकों की सहायता से अपने सूक्ष्म गूढ़ और गंभीर भावों को व्यक्त किया है। ईश्वर को पति और स्वयं को पत्नी मानकर या आत्मा-परमात्मा के बीच दाम्पत्य सम्बन्ध बताकर उन्होंने रूपक, उपमा, अन्योक्ति, दृष्टांत आदि अलंकारों का प्रयोग किया है। जिस प्रकार संस्कृत कवि कालिदास अपनी उपमाओं के लिए प्रसिद्ध हैं, उसी प्रकार कबीर अपने रूपकों के लिए जाने जाते हैं। उनके अलंकारों की विशेषता यह है कि उन्होंने उपमान जन-जीवन से चुने हैं और सामान्य पाठक उनकी कविता को आसानी से समझ लेता है और रस ग्रहण में भी उसे सुविधा रहती है। जैसे :
"नैनन की करि कोठरी पुतली पलंग बिछाय
पलकनि की चिक डारि कै प्रियतम लिया रिझाय।'
रहस्यवादी पदों में उन्होंने प्रतीकों का प्रयोग किया है :
"काहे री नलिनी तू कुम्हलानी
तेरे ही नाल सरोवर पानी।'
कहीं-कहीं हठयोगियों की शब्दावली का प्रयोग भी है जैसे - इला, पिंगला, सुषुम्ना, गगन मंडल, गगन गुहा, मूलाधार चक, कुंडलिनी आदि। उनकी उलटबासियों में भी जिस भाषा का प्रयोग किया गया है वह सामान्य और सरल नहीं है, उनमें गूढ़ार्थ छिपा है :
"समंदर लागि आगि नदियाँ जलि कोइला भई
देख कबीरा जागि मंछी रुखा चढि गयीं।
वस्तुतः कबीर का काव्य तीन प्रकार का है 1 वह काव्य जिसमें उन्होंने सामाजिक कुरीतियों और धार्मिक रूढियों का विरोधकर जनता को सरल जीवन जीने और ईश्वर भक्ति के मार्ग पर चलने का संदेश दिया है। ऐसे स्थलों की भाषा कहीं सरल है और कहीं व्यंग्य और फटकार की तीखी चुभन वाली। 2. जहाँ उन्होंने गुरु के प्रति आदर भाव प्रकट किया है अथवा भगवान के प्रति आत्मनिवेदन या उनसे मिलने की तीव्र इच्छा व्यक्त की है, ऐसे स्थलों पर उनकी भाषा में अलंकारों और प्रतीकों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग मिलता है। इन स्थलों की भाषा काव्य-गुण सम्पन्न है। 3. भाषा का तीसरा रूप उनके रहस्यवादी पद, सखियाँ और उलटबसियों में मिलता है। इसमें हठयोग, सिद्धों और नाथों की शब्दावली का प्रयोग है और उसे सामान्य जन तो क्या विद्वान भी समझने में कठिनाई अनुभव करते हैं। कुल मिलाकर उनकी भाषा को सशक्त भाषा कहा जायेगा। उसमें प्रवाह भी है, संगीतमयता भी है, और संप्रेषणीयता भी है। एक आलोचक ने उनकी भाषा के संदर्भ में ठीक ही लिखा है :
"आज तक हिन्दी में ऐसा जबरदस्त व्यंग्य लेखक पैदा ही नहीं हुआ, उनकी साफ चोट करने वाली भाषा; बिना कहे ही सब कुछ कह देने वाली शैली अत्यन्त सादी है। उसमें कला की काट-छांट नहीं है, किन्तु अनुभूति का तीक्ष्ण गौरव विद्यमान है।'
कबीर का काव्य मुक्तक काव्य है। भाव के अनुरूप उनकी शैली परिवर्तित होती चली गई है। उनकी शैली के मुख्य रूप तीन है :
1. खंडन शैली
2. उपदेशात्मक शैली
3 अनुभूतिव्यंजक शैली।
उनकी शैली में कोमलता और कठोरता दोनों है। उनकी भक्ति रचनाओं में साधक की दैन्य और कातरता है, समाज तथा धर्म-: -सुधार सम्बन्धी उक्तियों में अक्खड़पन तथा आक्रोश है तथा कुछ स्थलों पर माधुर्य तथा रसानुभूति कराने की क्षमता भी है।
सारांश रूप में कहा जा सकता है कि कबीर की भाषा में कविता की आवश्यकतानुसार अलंकारों का प्रयोग भी है। शब्दों के चारों प्रकार तत्सम तद्भव, देशज और विदेशी शब्द देखे जा सकते हैं। यानि कबीर की भाषा में वे सभी गुण हैं, जो सबल एवं समर्थ भाषा के लिए अनिवार्य हैं। भावों के अनुरूप शब्दों का प्रयोग करना कवि की अपनी विशिष्टता है। इन्हीं विशेषताओं के कारण वे भाषा के डिक्टेटर कहे जाते हैं।
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- प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गीतिकाव्य के प्रमुख तत्वों के आधार पर विद्यापति के गीतों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- "विद्यापति भक्त कवि हैं या श्रृंगारी" इस सम्बन्ध में प्रस्तुत विविध विचारों का परीक्षण करते हुए अपने पक्ष में मत प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति भक्त थे या शृंगारिक कवि थे?
- प्रश्न- विद्यापति को कवि के रूप में कौन-कौन सी उपाधि प्राप्त थी?
- प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि विद्यापति उच्चकोटि के भक्त कवि थे?
- प्रश्न- काव्य रूप की दृष्टि से विद्यापति की रचनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की काव्यभाषा का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (विद्यापति)
- प्रश्न- पृथ्वीराज रासो की प्रामाणिकता एवं अनुप्रामाणिकता पर तर्कसंगत विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो' के काव्य सौन्दर्य का सोदाहरण परिचय दीजिए।
- प्रश्न- 'कयमास वध' नामक समय का परिचय एवं कथावस्तु स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कयमास वध का मुख्य प्रतिपाद्य क्या है? अथवा कयमास वध का उद्देश्य प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
- प्रश्न- पृथ्वीराज रासो का 'समय' अथवा सर्ग अनुसार विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो की रस योजना का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- 'कयमास वध' के आधार पर पृथ्वीराज की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'कयमास वध' में किन वर्णनों के द्वारा कवि का दैव विश्वास प्रकट होता है?
- प्रश्न- कैमास करनाटी प्रसंग का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (चन्दबरदायी)
- प्रश्न- जीवन वृत्तान्त के सन्दर्भ में कबीर का व्यक्तित्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कबीर एक संघर्षशील कवि हैं। स्पष्ट कीजिए?
- प्रश्न- "समाज का पाखण्डपूर्ण रूढ़ियों का विरोध करते हुए कबीर के मीमांसा दर्शन के कर्मकाण्ड की प्रासंगिकता पर प्रहार किया है। इस कथन पर अपनी विवेचनापूर्ण विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- कबीर एक विद्रोही कवि हैं, क्यों? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कबीर की दार्शनिक विचारधारा पर एक तथ्यात्मक आलेख प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- कबीर वाणी के डिक्टेटर हैं। इस कथन के आलोक में कबीर की काव्यभाषा का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- कबीर के काव्य में माया सम्बन्धी विचार का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
- प्रश्न- "समाज की प्रत्येक बुराई का विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है।' विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "कबीर ने निर्गुण ब्रह्म की भक्ति पर बल दिया था।' स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कबीर की उलटबासियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- कबीर के धार्मिक विचारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कबीर)
- प्रश्न- हिन्दी प्रेमाख्यान काव्य-परम्परा में सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का स्थान निर्धारित कीजिए।
- प्रश्न- "वस्तु वर्णन की दृष्टि से मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत एक श्रेष्ठ काव्य है।' उक्त कथन का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- महाकाव्य के लक्षणों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि 'पद्मावत' एक महाकाव्य है।
- प्रश्न- "नागमती का विरह-वर्णन हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है।' इस कथन की तर्कसम्मत परीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'पद्मावत' एक प्रबन्ध काव्य है।' सिद्ध कीजिए।
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- प्रश्न- "जायसी ने अपने काव्य में प्रेम और विरह का व्यापक रूप में आध्यात्मिक वर्णन किया है।' स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'पद्मावत' में भारतीय और पारसीक प्रेम-पद्धतियों का सुन्दर समन्वय हुआ है।' टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- पद्मावत की रचना का महत् उद्देश्य क्या है?
- प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद को समझाइए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जायसी)
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- प्रश्न- सूरदास जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- 'भ्रमरगीत' में ज्ञान और योग का खंडन और भक्ति मार्ग का मंडन किया गया है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- "श्रृंगार रस का ऐसा उपालभ्य काव्य दूसरा नहीं है।' इस कथन के परिप्रेक्ष्य में सूरदास के भ्रमरगीत का परीक्षण कीजिए।
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- प्रश्न- अयोध्याकाण्ड' के आधार पर भरत के शील-सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
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- प्रश्न- रामचरितमानस इतना क्यों प्रसिद्ध है? कारणों सहित संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- मानस की चित्रकूट सभा को आध्यात्मिक घटना क्यों कहा गया है? समझाइए।
- प्रश्न- तुलसी ने रामायण का नाम 'रामचरितमानस' क्यों रखा?
- प्रश्न- 'तुलसी की भक्ति भावना में निर्गुण और सगुण का सामंजस्य निदर्शित हुआ है। इस उक्ति की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'मंगल करनि कलिमल हरनि, तुलसी कथा रघुनाथ की' उक्ति को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- तुलसी की लोकप्रियता के कारणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसीदास के गीतिकाव्य की कतिपय विशेषताओं का उल्लेख संक्षेप में कीजिए।
- प्रश्न- तुलसीदास की प्रमाणिक रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- तुलसी की काव्य भाषा पर संक्षेप में विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- 'रामचरितमानस में अयोध्याकाण्ड का महत्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- तुलसी की भक्ति का स्वरूप क्या था? अपना मत लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (तुलसीदास)
- प्रश्न- बिहारी की भक्ति भावना की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के जीवन व साहित्य का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- "बिहारी ने गागर में सागर भर दिया है।' इस कथन की सत्यता सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी बहुज्ञ थे। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के दोहों को नाविक का तीर कहा गया है, क्यों?
- प्रश्न- बिहारी के दोहों में मार्मिक प्रसंगों का चयन एवं दृश्यांकन की स्पष्टता स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के विषय-वैविध्य को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (बिहारी)
- प्रश्न- कविवर घनानन्द के जीवन परिचय का उल्लेख करते हुए उनके कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- घनानन्द की प्रेम व्यंजना पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के काव्य वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- घनानन्द का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द की काव्य रचनाओं पर प्रकाश डालते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- घनानन्द की भाषा शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के अनुसार प्रेम में जड़ और चेतन का ज्ञान किस प्रकार नहीं रहता है?
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (घनानन्द)