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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :215
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2700
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा

प्रश्न- विशेष बालकों की शिक्षा में परिवार के योगदान का उल्लेख कीजिए।

उत्तर-

वास्तव में माता-पिता बालकों के खुशहाल जीवन एवं सफलता के संरक्षक होते हैं। माता-पिता बालकों की शिक्षा में विशेष रूप से असमर्थ बालकों की शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शिक्षकों की भी माता-पिता की ओर से प्रेरणा तथा पुनर्बलन की आवश्यकता रहती है। शिक्षकों के विचार एवं शिक्षकों द्वारा माता-पिता इस रिश्ते में मार्गदर्शक बने रहते हैं। विद्यालय द्वारा बालक के शिक्षा सम्बन्धी कार्यक्रमों को सुविधाजनक ढंग से चलाने में सहायता हेतु निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक होता है।

  1. माता-पिता को ‘समावेशी’ के अर्थ से परिचित होना।
  2. बालक के प्रति न तो अति-संरक्षण और न ही अति अवहेलना की अनुभूति रखना।
  3. माता-पिता को बालकों को अन्य प्रति सामाजिक अपेक्षाओं को जानने तथा उन्हें उनकी भावी भूमिकाओं को सीखने के लिए तैयार करना।
  4. बालकों के साथ दिनचर्या के रूप में कुछ समय व्यतीत करना।
  5. विशेष बालकों की समस्या के सम्बन्ध में उनके प्रारंभिक विकास, तकलानी व्यवहार के प्रभावों एवं शिक्षकों के विषय में शिक्षकों से बातचीत करना।
  6. घर एवं अनुसासन किसी भी प्रकार से संघर्षात्मक न हो बल्कि यह बालकों द्वारा स्वयं पर लागू किए गए नियमों एवं प्रतिपादित होना चाहिए।
  7. बालकों को स्व-अनुशासन के संचारण को चयन करने में सहायता करना।
  8. माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बालकों को अनावश्यक रूप से उसके बालकों के साथ तुलना न करें।
  9. उन्हें चाहिए कि वे असमर्थ बालकों की देख-रेख तथा शिक्षा से जुड़े उपयुक्त कोर्स अथवा प्रशिक्षण सम्बन्धी कार्यशालाओं से लाभ उठायें।
  10. उन्हें चाहिए कि वे बालक की शिक्षा से सम्बन्धित वैकल्पिक शिक्षा योजना में सक्रिय भागीदारी का निर्वहन करें।
  11. असमर्थ बालक के कल्याण/शिक्षा तथा मूल्यांकन के लिए किए जा रहे प्रयासों के लिए माता-पिता अपनी लिखित स्वीकृति प्रदान करें।
  12. उन्हें चाहिए कि वे विद्यालय में होने वाली समितियों, बैठकों तथा सम्मेलनों में सक्रिय एवं सजग भागीदारी निभाएं।

समावेशी शिक्षा में परिवार का योगदान

समावेशी शिक्षण में माता-पिता के योगदान से होने वाले लाभों का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है—

  1. सततात्मक अभिप्रेरणा का निर्माण - परिवार का बालक में आत्मविश्वास विद्यालय में सामायोजन करने में बालक की सहायता करता है। तथा साथियों के प्रति विशेष रूप से एवं विद्यालय के प्रति सामान्य रूप से सकारात्मक अनुभूति विकसित करने में सहायता करता है।

  2. समाज-विरोधी व्यवहार में कमी - चुंकि माता-पिता बालकों की क्रियाओं में समानता रखते हैं। उनकी सभी क्रियाएं उनके ध्यान तथा सजग अवलोकन में रहती हैं, इसलिए बालकों के औसत-व्यसन, आक्रामक व्यवहार एवं आवारागर्दी आदि समाज-विरोधी व्यवहार में लिप्त होने की संभावना अत्यंत न्यून हो जाती है।

  3. अधिगम एवं अध्ययन में रुचि - जो माता-पिता अपने बच्चों के साथ समुचित समय अवलोकन की अनुभूति रखते हैं उनके बालक सीखने तथा अध्ययन क्रियाओं में अधिक रुचि रखते हैं।

  4. उच्चतर उपलब्धि - माता-पिता की बालकों के कार्यों में रुचि उन्हें शिक्षा में सफलता तथा बेहतर उपलब्धियाँ प्राप्त करने में सहायता करती हैं।

  5. बेहतर उपस्थिति - बालकों के कार्यों में माता-पिता की रुचि होने पर, स्कूल में उनकी बेहतर उपस्थिति के रूप में प्रदर्शित होती है। ऐसे बालकों में स्कूल से भागने की प्रवृत्ति कम होती है।

  6. गृह-कार्य पूरा करने में उच्च स्तर - ऐसे बालक माता-पिता की देख-रेख में भी उनकी सहायता से परिणामस्वरूप गृह-कार्य पूरा करने में उच्च स्तर प्रकट करते हैं।

  7. उच्च अभिप्रेरणा - यदि माता-पिता बालकों की पढ़ाई-लिखाई में आत्मीय रुचि दिखाते हैं, तो बालकों के प्रेरणा स्तर में पर्याप्त रूप से वृद्धि होती है।

  8. आवश्यकताओं का मूल्यांकन - माता-पिता द्वारा बालकों के विषय में वस्तुनिष्ठ सुनाचित प्रवेश करने के परिणामस्वरूप शिक्षकों तथा दूसरे विद्यार्थियों को उनकी आवश्यकताओं का मूल्यांकन करने में आसानी होती है।

  9. सम्बन्ध स्थापित करना - इससे माता-पिता को बालकों की कक्षा-विन्यास, उनकी पाठ्य-सामग्री, खिलौने, पुस्तकालय, स्वास्थ्य-साधन, खेल-साधन आदि अनेक नई संस्थाओं से परिचय होने तथा सम्बन्ध स्थापित करने के अवसर मिलते हैं।

  10. तकलानों में कमी होना - यदि माता-पिता बालकों से सम्बन्ध रखें, उन्हें सहयोग प्रदान करें तथा उन्हें प्रोत्साहित करें तो बालकों में अनेक हीनताओं को कम करने में सहायता मिलती है।

परिवार जीवन-विकास की प्रथम सामाजिक संस्था है तथा माता-पिता इसके प्रथम अधिकारी हैं व बालक के प्राकृतिक शिक्षक हैं। प्रत्येक बालक की अधिगम प्रक्रिया का प्रारम्भ परिवार से होता है। असमर्थ बालकों की शिक्षा एवं विकास के लिए माता-पिता की सतर्क भूमिका का महत्व और भी बढ़ जाता है। यदि वे घर में अनुकूलत: वातावरण प्रस्तुत करें जहाँ वे बालक अपनी क्षमताओं का यथोचित उपयोग करके शिक्षाबर्जन करें, सफल हो तथा एक सुखमय जीवन का प्रारम्भ कर सकें।

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