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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :215
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2700
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा

प्रश्न- समावेशी शिक्षा एवं परिवार का उल्लेख कीजिए।

उत्तर -

समावेशी शिक्षा प्रदान करने में परिवार की भूमिका व उत्तरदायित्व महत्वपूर्ण है। सबसे बड़ा सत्य यह तथ्य है कि बालक कि प्रारम्भ की शिक्षा का उत्तरदायित्व पहले परिवार का ही निभाना होता है। ज्ञान व संज्ञान कोष में वृद्धि होने से और शारीरिक परिस्थितियों से सम्बंधित विद्यालयों की आवश्यकता होती है और परिवार ने बालकों की शिक्षा का कार्य द्वितीय को सौंप दिया। परन्तु विकलांग बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी परिवार की ही थी। परन्तु आज भी प्रारम्भिक शिक्षा की तरह सामान्य बालकों और विकलांग बालकों को देखभाल, भोजन वस्त्र पहनना, व्यवहार व अनुकरण करना आदि परिवार पर ही निर्भर करता है। बालक के सामाजिक गुणों के विकास में परिवार अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान देता है। हेरलॉक पर विचार करें तो उन्होंने कहा कि -

"परिवार को सामाजिक गुणों का पालन कहा जाता है।" रूसो ने तो माता-पिता को बालक का सर्वोत्तम शिक्षक बताया है, पेटरोलोजी ने घर को शिक्षा का सर्वोत्तम स्थान व बालकों का प्रथम, स्कूल बताया है। शिक्षा शास्त्री फ्रॉबेल के अनुसार माँ बालकों की आदर्श शिक्षिका है और परिवार द्वारा दी जाने वाली शिक्षा अत्यंत प्रभावशाली है। महात्मा गांधी जी ने भी छोटे बालकों के लिए माता-पिता को सर्वोत्तम समझा है।

इसी तथ्य का समर्थन करते हुए हेरलॉक तथा मेफ ने कहा है कि "जब परिवार अपने बालकों की शिक्षा में आवश्यक होते हैं तो विद्यालयों की उपलब्धि बढ़ती है, वे विद्यालय में अधिक नियमित रूप से शिक्षा में सक्रिय भूमिका निभाते हैं।"

बच्चों की शिक्षा के प्रति परिवार निम्न भूमिका निभाता है।

  • बच्चों के शारीरिक विकास में -
  • बच्चों के बौद्धिक विकास में -
  • बच्चों के नैतिक विकास में -
  • बच्चों के सामाजिक विकास में -
  • बच्चों के संज्ञानात्मक विकास में -
  • बच्चों के स्वास्थ्य आदतों निर्माण में -
  • बच्चों की व्यवसायिक रुचि उत्पन्न करने में -
  • औपचारिक शिक्षा में सहयोग के लिए -
  • भाषा के ज्ञान एवं विकास करने में परिवार का महत्वपूर्ण योगदान है।

जहाँ तक समावेशी शिक्षा में परिवार की भूमिका का प्रश्न है तो बाधिता ग्रस्त या असमर्थी बालक को उनकी क्षमता व आयु के अनुसार शिक्षा प्रदान की जा रही है या नहीं, उनके बच्चे विद्यालय में दी जाने वाली शिक्षा से लाभान्वित हो रहे हैं या नहीं। इन बालकों में कौशलों का विकास हो रहा है या नहीं, यह माता-पिता जानना चाहते हैं। वास्तव में माता-पिता बालकों के खुशहाल जीवन एवं सफलता के संरक्षक होते हैं। विशेष बालकों की शिक्षा के सन्दर्भ में अध्यापकों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसी अवस्था में माता-पिता का सहयोग अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इन बच्चों को माता-पिता की ओर से सहयोग, प्रेरणा एवं पुनर्बलन प्राप्त होता है। माता-पिता एवं अध्यापक को उनके बच्चों के लिए प्रोत्साहन देना चाहिए ताकि असमर्थ बालकों की क्षमताओं का विकास हो सके। विद्यालय द्वारा बालक की शिक्षा सम्बन्धी कार्यक्रमों को सुविधाजनक ढंग से चलाने के लिए परिवार को निम्न बिन्दुओं का ध्यान रखना आवश्यक होगा।

  • बालक की असमर्थता की शीघ्र पहचान की जाए।
  • असमर्थता की पहचान के आधार पर चिकित्सक, मनोचिकित्सक की सहायता लेना।
  • माता-पिता को सामजिक कार्यक्रमों से परिचित होना।
  • शिक्षा प्राप्त करने में बालकों की सहायता करना।
  • ऐसे बालकों की शिक्षा के लिए विद्यालय व अध्यापकों को सहायता प्रदान करना।
  • असमर्थ बालकों की शिक्षा में अन्य सुविधाओं की पूर्ति करना।
  • ऐसे बालकों के सर्वांगीण विकास के लिए प्रोत्साहन व स्नेह युक्त वातावरण प्रदान करना।
  • बालकों को रुचियों का पता लगाना और उनके अनुसार व्यवसायिक निर्देश प्रदान करना।
  • विभिन्न प्रकार के शैक्षिक कार्यक्रम व रोजगार चयन में सहायता करना।
  • इन बच्चों की योग्यताओं को स्वीकार करें।
  • इन बच्चों में जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण उत्पन्न करना।
  • इन बच्चों के गुण, कमियों व आवश्यकताओं का ज्ञान रखना।
  • शिक्षण निर्देशों में माता-पिता कुछ समय दें।
  • बालकों की क्षमता एवं योजना के अनुसार उनसे अपेक्षा रखना।
  • कक्षा शिक्षक, संसाधन शिक्षक व मनोचिकित्सक से सम्पर्क बनाए रखना।
  • बालक में सकारात्मक चिन्तन, अधिगम की चुनौतियों को स्वीकार करने तथा अनुभूति में विकास करना।
  • बालकों को शिक्षण एवं अधिगम कार्यों में कौशल प्राप्ति के लिए शिक्षकों को सहयोग देना।
  • बालकों की शैक्षिक उपलब्धियों में रुचि रखना।
  • ऐसे बालकों की शैक्षिक उपलब्धियों के लिए प्रोत्साहन, पुनर्बलन देना।
  • स्व-अनुशासन का विकास करना।
  • भविष्य में बालकों के विकास के लिए संसाधन जुटाने, जीवनमूल्यों के विकास करने में सहायता देना।
  • माता-पिता को चाहिए कि वे इनकी तुलना दूसरों से न करें।
  • बालकों में स्वयं प्रतिक्षण के सम्प्रेषण को सृजन करने में सहायता करना।
  • बालकों के प्रति नकारात्मक टिप्पणियां न करें।
  • व्यवसायिक शिक्षण योजना एवं कार्यक्रमों में सहायता दें।
  • इससे सम्बंधित सभा, बैठकों में भाग लें।

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