बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा
प्रश्न- विशिष्ट बालकों के प्रकारों का वर्णन कीजिए। प्रत्येक प्रकार के विशिष्ट बालकों की विशेषताओं की व्याख्या कीजिए।
अथवा
समस्या बालक से आप क्या समझते हैं? उनके लिये किस प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए और क्यों?
उत्तर-
पिछड़े बालकों की विशेषताएँ
उत्तर के लिये कृपया दीर्घ उत्तरीय प्रश्न सं. 22 देखें।
समस्यात्मक बालक का अर्थ
कक्षा में अध्ययन करने वाले छात्रों में कुछ छात्रों का व्यवहार कक्षा में सहपाठियों के लिये, अध्यापक के लिये तथा विद्यालय प्रशासन के लिये समस्याएँ उत्पन्न कर देता है। इन छात्रों का व्यवहार सामान्य नहीं होता है। समस्याएँ उत्पन्न करने के कारण इन बालकों को समस्यात्मक बालक कहा जाता है। समस्यात्मक बालक उस बालक को कहते हैं, जिसके व्यवहार में कोई ऐसी असामान्य बात होती है, जिसके कारण उसका व्यवहार समस्यात्मक हो जाता है; जैसे— झूठ बोलना, चोरी करना, अभद्र तरीके से बात करना, शोर मचाना, बात-बात में झगड़ा, बार-बार प्रश्न पूछना, प्रश्न पूछने से पहले ही उत्तर दे देना, इत्यादि।
"समस्यात्मक बालक वे बालक होते हैं, जिनका व्यवहार या व्यक्तित्व का प्रगटीकरण उन बालकों का दमन करने के लिये किया जाता है जिनका व्यवहार या व्यक्तित्व किसी बात में गंभीर रूप से असामान्य होता है।"
समस्यात्मक बालकों के प्रकार- कुछ मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, समस्यात्मक बालक निम्न प्रकार के हो सकते हैं—
- अति कुशाग्र बुद्धि के बालक (Genius Children)
- असमय प्रौढ़ बालक (The Precocious Children)
- पिछड़े बालक (Backward Children)
- अपराधी बालक (Delinquent Children)
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समस्यात्मक बालकों की विशेषताएँ जिनमें से चोरी करने वाले, झूठ बोलने वाले, क्रोध करने वाले, एकांत में रहना पसंद करने वाले, अधिक मित्र बनाना पसंद करने वाले, आक्रामकता व्यवहार करने वाले, विद्यालय देर से आने वाले, विद्यालय बीज से भटककर भाग जाने वाले, विद्यालय न आने वाले, भविष्यत जीवन के प्रति रुचि न लेने वाले, गृह कार्य एवं अन्य कार्य न करने वाले, बार-बार प्रश्न पूछने वाले, आत्मग्लानि से ग्रस्त रहने वाले, कक्षा में सबसे कुशाग्र बुद्धि रखने वाले, अपनी उम्र से बड़ी व असामान्य व्यवहार करने वाले बालक।
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मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, अत्यधिक तीव्र बुद्धि के बालक माता-पिता, सहपाठियों तथा शिक्षकों के समक्ष प्रायः समस्या उत्पन्न करते रहते हैं।
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असमय प्रौढ़ हुये बालक अपनी प्रारंभिक अवस्था में बहुत तेज होते हैं जैसे वह बालक 8 या 10 वर्ष के होने से 10 या 12 वर्ष या उससे भी अधिक के बालकों की तरह व्यवहार करते हैं। किंतु धीरे-धीरे वह सामान्य अवस्था को प्राप्त कर लेते हैं।
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पिछड़े बालक भी समस्यात्मक बालक होते हैं किन्तु सभी ऐसे बालकों को समस्यात्मक बालक नहीं कह सकते हैं। शारीरिक व मानसिक कारण से पिछड़ापन व असमान्यताएँ नहीं होती हैं।
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अपराधी बालकों का व्यवहार असामान्य एवं विध्वंसक का होता है। प्रायः ऐसे बालक ही असामान्य एवं अनैतिक व्यवहार करते हैं। उपर्युक्त प्रकार के बालक समस्यात्मक प्रकार के बालकों की श्रेणी में आते हैं।
समस्यात्मक बालकों की शिक्षा की व्यवस्था
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इन बालकों की शिक्षा व्यवस्था नैतिकता व उत्तरदायित्व की भावना उत्पन्न करने वाली गतिविधियों को सम्मिलित करना चाहिए।
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समस्यात्मक बालकों में क्षमताओं की कोई कमी नहीं होती, बस अगर जरूरत होती है तो उनको सही दिशा देने की, जोकि शिक्षकों द्वारा ही संभव है।
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समस्यात्मक बालकों की शक्ति एवं ऊर्जा को किसी सही दिशा एवं सार्थक कार्य में लगाना चाहिए।
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समस्यात्मक बालकों को समय-समय पर अभिप्रेरित तथा पुरस्कृत करते रहना चाहिए। साथ ही उनकी गलतियों के लिये उन्हें कठोर दण्ड देने से बचाना चाहिए।
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समस्यात्मक बालक कक्षा तथा विद्यालय में अनुशासन भंग करते रहते हैं, इससे बचने के लिए उन्हें किसी रचनात्मक, सांस्कृतिक तथा खेल-कूद के कार्यक्रमों में आवश्यक भागीदारी बनाने के साथ-साथ उत्साहित भी किया जाना चाहिए।
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सामूहिक गतिविधियों में इन बालकों को सम्मिलित करके उनमें सहयोग की भावना को विकसित करना चाहिए।
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पाठ्यक्रम का स्वरूप लचीला होना चाहिए जिससे कि ये बालक अपनी रुचियों तथा क्षमताओं के आधार पर विषयों का चयन कर सकें।
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ध्यान योग, व्यायाम, आत्म-निर्भरता, आत्मविश्वास, रचनात्मक तथा अनुसंधान उत्पन्न करने के लिए योग, ध्यान तथा व्यायाम की व्यवस्था भी शिक्षा प्रक्रिया में सम्मिलित की जानी चाहिए।
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