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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :215
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2700
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा

प्रश्न- बाल-अपराध के प्रमुख कारणों का विवरण कीजिए।

उत्तर -

बाल अपराध के प्रमुख कारण

बाल अपराध के सम्बन्ध में अनेक विद्वानों तथा मनोवैज्ञानिकों ने अनेक परीक्षण व विश्लेषण किए हैं जो इसे समझने के लिए उपयोगी हैं। हम बाल अपराध के कारणों को निम्नलिखित पाँच भागों में विभाजित कर सकते हैं-

वंशानुगत सम्बन्धी कारण

कुछ मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि अपराधवृत्ति वंशानुगत होती है। जो माता-पिता अपराधी होते हैं, उनके बालक भी अपराधी होते हैं। वंश परम्परा के प्रभाव से अपराध प्रवृत्ति पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में चलती जाती है।

गॉडर्ड, गोड्ज़े और इड्लर आदि मनोवैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में यह सिद्ध किया कि अपराध-वृत्ति बालकों में अपने माता-पिता से वंशानुगत द्वारा प्राप्त होती है। लैम्ब्रोसो के अनुसार - "आनुवंशिक लक्षण अपराध प्रवृत्तियों को प्रभावित करते हैं।"

शारीरिक कारण

हिर्शी तथा गोडर्ड के अनुसार अपराधियों के शारीरिक लक्षण बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। जिन बालकों के शरीर के किसी अंग में जन्म से ही कोई दोष पाया जाता है, वे बालक प्रायः अपराधी बन जाते हैं, जैसे— लंगड़ा होना, बहरा होना, एक हाथ या टाँग का न होना आदि।

इसके अतिरिक्त जिन बालकों और बालिकाओं के यौनांगों का विकास तीव्रता से होता है, वे अनेक प्रकार के यौन सम्बन्धी अपराध करने लगते हैं।

पर्यावरण सम्बन्धी कारण

बाल अपराध के पर्यावरण सम्बन्धी कारणों को दो भागों में बाँटा जा सकता है-

  1. पारिवारिक पर्यावरण
  2. परिवार के बाहर का पर्यावरण

पारिवारिक पर्यावरण

पारिवारिक पर्यावरण सम्बन्धी कारण निम्नलिखित हैं-

  1. विभाजित या टूटे परिवार-

    • विभाजित या टूटे परिवार का आशय ऐसे परिवारों से है, जहाँ पारिवारिक संरचना टूट चुकी हो, जैसे— तलाक, पुनर्विवाह, माता-पिता की मृत्यु, निरंतर अनबन आदि।
    • ऐसे परिवारों के बालकों पर किसी का नियंत्रण नहीं होता, जिससे वे बुरी संगति में पड़ जाते हैं और अपराध करने लगते हैं।
    • हीली और ब्रोनर ने 1000 अपराधी बालकों का अध्ययन किया और यह पाया कि इनमें से अधिकांश विभाजित या टूटे परिवारों के थे।
    • जॉनसन ने अपने अध्ययन में 52% अपराधी बालकों को विभाजित या टूटे परिवारों का पाया।
  2. अपराधिक परिवार

    • जिस परिवार के सदस्य अपराधी प्रवृत्ति के मिलते हैं, उसके बच्चों में भी अनैतिकता पाई जाती है।
    • यदि बालकों के माता-पिता, भाई-बहन, या परिवार के अन्य सदस्य चोर, जुआरी, शराबी और उचक्के होते हैं, तो बालक भी अपराधी बन जाते हैं।
    • इस प्रकार के बालक भविष्य में अपराध में संलिप्त पाए जाते हैं। कुछ बच्चे अपने माता-पिता को अपराध करते हुए देखकर भी स्वयं अपराध वृत्ति की ओर प्रवृत्त नहीं होते। मिस इलियट (Miss Elliot) ने स्टेलन फार्म की अपराधी लड़कियों का अध्ययन किया और यह पाया कि उनमें से 67 प्रतिशत लड़कियाँ अनेक प्रकार के अपराधी परिवारों से सम्बन्धित थीं।
  3. टूटते माँ-बाप- बालक को अपने सौतेले माता या अपने सौतेले पिता से वह प्यार नहीं मिल पाता जिसके लिए वह लालायित रहता है। प्यार की बात तो दूर, समय-समय पर उपेक्षा व प्रताड़ना मिलती है, उसके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है, जिसके फलस्वरूप बालक का परिवार के प्रति मोह भंग हो जाता है। परिवार में रहने के बजाय वह गलियों में भटकता है, उसमें संवेगात्मक तनाव बढ़ जाता है और वह अपराधी की ओर अग्रसर हो जाता है।

  4. परिवार का दोषपूर्ण अनुशासन-परिवार का अत्यन्त कठोर या अत्यन्त मृदु अनुशासन अपराध को प्रेरित करने में सहायक होता है। अत्यन्त कठोर नियंत्रण से बालक की इच्छाएँ दबी रहती हैं, उसका व्यवहार अवांछनीय हो जाता है। माता-पिता की ओर विशेषकर कठोरता अथवा माता-पिता में किसी प्रकार का उग्र क्रोध बालकों को निष्क्रिय बना देता है।
  5. माता-पिता का गलत व्यवहार-माता-पिता का दोषपूर्ण व्यवहार बालकों के अपराधी वृत्ति को बढ़ावा देता है। यदि माता-पिता बालकों के साथ कठोर व्यवहार करते हैं, उनके साथ सहानुभूति नहीं रखते, कोई ध्यान नहीं देते, उनकी इच्छाओं का सम्मान नहीं करते हैं, सदैव आलोचना करते हैं, उन्हें डांटते और मारते-पीटते हैं, तो वह उदासीन और निराशावादी हो जाता है, उसमें अनेक ग्रंथियाँ बन जाती हैं, जो उसके अपराध करने के लिए प्रेरित करती हैं।

  6. बालकों को दो आँखों से देखना- जब माता-पिता अपने एक बालक को बहुत प्यार करते हैं, उसकी हर समस्या प्रशंसा करते हैं, उसकी हर इच्छा को पूरा करते हैं और दूसरे बालक की उपेक्षा करते हैं, हर समय उसकी निन्दा करते हैं और उसकी तुलना करते हैं, तो दोनों बालकों में ईर्ष्या और द्वेष की भावना पैदा हो जाती है। इससे दूसरा बालक असामाजिक व्यवहार करने लगता है और अपराध की ओर बढ़ने लगता है।

परिवार से बाहर का पर्यावरण

परिवार के अन्दर के साथ-साथ बाहर के पर्यावरण का भी बालकों के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। परिवार के बाहर के पर्यावरण में अनेक बुराइयाँ होती हैं, जो बालकों में अपराधी वृत्ति उत्पन्न करती हैं-

  1.  बुरी संगति-बुरी संगति के कारण बालक में अपराधी वृत्ति पैदा हो जाती है। बालक में चोरी करना, नशा करना, हिंस्र प्रवृत्ति विकसित होना आदि इसके परिणाम हैं। डॉ. हीली ने 1000 अपराधी बालकों का अध्ययन किया और यह पाया कि उनमें से 95% अपराधी बालकों की बुरी संगति थी।
  2.  अवकाश का दुरुपयोग-कुछ बालक अपने अवकाश के समय को सदुपयोग नहीं करते, वे अपराधी वृत्तियों में लग जाते हैं। वे जुआ खेलते हैं, इधर-उधर निरुद्देश्य घूमते हैं और सिनेमा देखने की आदत डाल लेते हैं।
  3.  खेल व मनोरंजन के साधनों की कमी- खेलों व मनोरंजन के साधनों की कमी भी बालकों को अपराधी बना सकती है। जिन बालकों के खेलने के लिए क्लब, पार्क और खेल के मैदान उपलब्ध नहीं होते, वे सड़कों पर खेलते हैं और बुरी आदतें सीखते हैं। वर्ट ने अपने अध्ययन में 35% अपराध सड़कों पर किये गये मिले।
  4. अविकल्प व्यवसाय— यदि बालक को इस प्रकार का व्यवसाय अपनाना पड़ता है, जिसमें उसकी रुचि नहीं है तो उसमें निराशा, हीनता की भावना और मानसिक संघर्ष बढ़ जाता है, जिसके परिणामस्वरूप वह अनेक प्रकार के अनैतिक कार्य करने लगता है तथा अपराधी बन जाता है।
  5. विद्यालय की दुष्परिण परिस्थितियाँ— यदि बालक को विद्यालय में अपनी रुचि एवं योग्यता के अनुसार पर्यावरण नहीं मिलता तो उसके लिये विद्यालय में ठहरना कठिन हो जाता है। विद्यालय की निम्नलिखित दुष्परिण परिस्थितियाँ बालकों के अपराधी बनाने में सहायक होती हैं—
  1. विद्यालय के पाठ्य-पाठ का कुव्यवस्थित होना।
  2. विद्यालय में मानवीय के साधनों का अभाव।
  3. दण्डनीय पाठ्यक्रम।
  4. अव्यवस्थित शिक्षण पद्धति।
  5. दण्डनीय परीक्षा प्रणाली।
  6. विद्यालय का कठोर अनुशासन।
  7. अध्यापकों और प्रशासकीयक के मध्य झगड़े।
  8. विद्यालय में सामुदायिक भावना की कमी।
  9. धार्मिक एवं यौन शिक्षा का अभाव।
  10. शिक्षकों का कठोर व्यवहार।

आर्थिक कारण

कुपुस्वामी के अनुसार— "अपराधी चरित्र का विकास करने में गरीबी एक अत्यंत महत्वपूर्ण कारक है।" अधिकतर अपराधी गरीब परिवारों के बालकों में पाये जाते हैं। चूँकि इन परिवार के बालकों को पेट-भर भोजन नहीं मिलता, जीवन की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति कठिनाई से होती है, उनके इच्छाएँ अपूर्ण रह जाती हैं, इसलिए इनका ध्यान अपराधमूलक कार्यों की ओर प्रवृत्त हो जाता है। इसके साथ मानसिक तनाव भी जुड़ जाता है, जो कि विकृत मस्तिष्क को बढ़ावा देता है। अध्ययन से ज्ञात होता है कि अधिकतर अपराधी ऐसे परिवारों में पाये जाते हैं, जहाँ गरीब परिवार रहते हैं। वर्ट ने बताया कि 19% अपराधी बहुत गरीब और 37% अपराधी गरीब परिवारों के होते हैं।

मनोवैज्ञानिक कारण

बाल अपराध के मनोवैज्ञानिक कारणों में चार कारण प्रमुख हैं—

  1. शारीरिक दुर्बलता
  2. मानसिक रोग
  3. व्यक्तित्व के लक्षण
  4. संवेदनात्मक अस्थिरता

इन सभी कारणों में संवेदनात्मक अस्थिरता सबसे महत्वपूर्ण कारण है। प्रेम और सहानुभूति का अभाव, संवेदनात्मक असुरक्षा, कठोर अनुशासन, हीनता की भावना, अत्यधिक प्रतिबन्ध, विद्रोह की प्रतिक्रिया, दंड का तीव्र भय, भावन-प्रक्रियाओं का निर्माण, उचित समय पर प्रशंसा, समानता और प्रोत्साहन का न मिलना, मानसिक आवश्यकताओं का पूर्ण न होना, अत्यधिक तिरस्कार होना आदि घटनाएँ बालक के व्यक्तित्व को असंतुलित बना देती हैं और वह अपराध वृत्ति की ओर झुक जाता है।

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