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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :215
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2700
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा

अध्याय 3 - विशेष आवश्यकता वाले बालक

(Children with Special Needs)


प्रश्न- विशेष बालकों से आपका क्या अभिप्राय है? विशेष बालकों की प्रकृति क्या है?

अथवा
विशेष बालकों का अर्थ और विशेषताएँ क्या हैं? सामान्य व विशेष बालकों में क्या अंतर है?
अथवा
विशेष बालकों की विशेषताओं की व्याख्या कीजिए।

उत्तर -

मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ हमने प्रत्येक क्षेत्र में उन्नति की है। शिक्षा का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रहा है। कुछ समय पूर्व तक हम किसी भी प्रकार से असमर्थ बालकों की शिक्षा पर ध्यान नहीं देते थे, लेकिन मनोविज्ञान ने शिक्षा के क्षेत्र को एक नई राह दी। आज अगर हम किसी भी क्षेत्र में नजर डालते हैं तो हमें प्रत्येक क्षेत्र में मनोविज्ञान का योगदान नजर आता है।

शिक्षा के प्रचार-प्रसार से पहले शारीरिक या मानसिक दोष वाले बालकों को बुरी नजर से देखा जाता था तथा इसे भगवान के कोप का फल समझा जाता था। लेकिन धीरे-धीरे लोगों की सोच में परिवर्तन आने लगा और हमने उन बालकों को भी समाज का अंग मानना शुरू कर दिया। आज सभी प्रकार के बच्चों की चाहे वे शारीरिक विकलांग हैं, अधिगम असमर्थ या भावनात्मक रूप से प्रस्तर हैं, को शिक्षा ग्रहण करने का समान अधिकार है। सरकार के साथ-साथ समाज के लोग भी इनकी शिक्षा को लेकर चिंतित हैं तथा प्रत्येक स्तर पर इनकी शिक्षा का प्रवर्तन करने की कोशिश जारी है, ताकि इस प्रकार के बच्चे भी शिक्षा ग्रहण कर सकें और वे भी समाज का अंग बन सकें।

नई शिक्षा नीति 1986 में इस प्रकार के बालकों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया है, ताकि वे किसी भी प्रकार के भेदभाव के बिना सामान्य रूप से शिक्षा ग्रहण कर सकें। प्रकृति के नियम के अनुसार कोई भी दो प्राणी एक जैसे नहीं होते। प्राणियों की शारीरिक बनावट एक जैसी लगती हो, लेकिन वास्तव में वे एक जैसे नहीं होते। इसी प्रकार से प्रत्येक बच्चा दूसरे से भिन्न लगता है, लेकिन वह दूसरे के समान नहीं होता।

प्रत्येक बालक में अपनी कुछ विशेषताएँ होती हैं, जो उसे दूसरे बालकों से भिन्न बनाती हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी सभी बालक एक समान नहीं होते। कुछ बालक अधिक बुद्धिमान होते हैं, तो कुछ विपरीत रूप से पिछड़े हुए होते हैं। कुछ बालक शारीरिक दृष्टि से पूर्णतः स्वस्थ हैं, तो कुछ अस्वस्थ। कुछ बालकों को सुनने की समस्या हो सकती है, तो कुछ अन्य को कुछ बालक बुद्धिमान होने के कारण आसानी से समाज में स्थापित नहीं कर पाते, तो कुछ समाज में अपने आपको स्थापित कर लेते हैं।

विशेष बालक कौन हैं? - प्रत्येक विद्यालय में सभी प्रकार के बालक समान नहीं होते हैं। कुछ ऐसे बालक भी होते हैं जिनकी अपनी कुछ विशेषताएँ होती हैं। ये विशेषताएँ शारीरिक, बौद्धिक, संवेगात्मक तथा सामाजिक हो सकती हैं। इस प्रकार के बालक सामान्य बालकों से अलग विशेषताएँ रखते हैं। उन्हें विशेष बालक कहा जाता है।

बालक वे हैं जो किसी एक या अनेक गुणों की दृष्टि से सामान्य बालकों से पर्याप्त मात्रा में भिन्न होते हैं। ऐसे बालकों की शिक्षा के लिए विशेष प्रवर्तन करना पड़ता है।

विशेष बालकों की परिभाषा

विभिन्न मनोवैज्ञानिकों व वैज्ञानिकों ने विशेष बालकों को इस प्रकार परिभाषित किया है—

क्रो एवं क्रो (1948) के अनुसार, "विशेष प्रकार या विशेष शब्द किसी ऐसे लक्षण या उस लक्षण को रखने वाले व्यक्ति पर लागू किया जाता है जबकि लक्षण को सामान्य रूप में प्रत्येक की सीमा इतनी अधिक होती है कि उसके कारण व्यक्ति अपने साथियों का विशेष ध्यान प्राप्त करता है और इससे उसके व्यवहार की अनुक्रियाएँ प्रभावित होती हैं।"

ऐसे बालकों के लिए शिक्षा की व्यवस्था विशेष रूप से करने की आवश्यकता पड़ती है। अध्यापक को उनकी पहचान, समाजगमन तथा शिक्षा की ओर विशेष ध्यान देना पड़ता है। विशेष बालक सामान्य बालकों से पर्याप्त रूप से भिन्न होते हैं। ऐसे बालक प्रायः सभी विद्यालयों में पर्याप्त मात्रा में मिल जाते हैं। उनके लिए विशेष कक्षाओं का आयोजन करना पड़ता है।

सेम्युअल ए. किर्क के अनुसार, "विशेष बालक वे बालक हैं जो सामान्य बालकों से शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक या संवेगात्मक विशेषताओं में भिन्न होते हैं और उसके गुणों को अधिकतम सीमा तक विकसित करने के लिए विशेष कार्यक्रम की प्रवृत्ति करनी पड़ती है।"

डॉल्फ़स क्रूनॉक के अनुसार, "एक विशेष बालक वह है जो शारीरिक, बुद्धिमानी और समाज के आधार पर सामान्य बालकों की अपेक्षा गुणों में अधिक विकसित हो तथा सामान्य शिक्षा कक्ष में शिक्षण के कार्यक्रम के माध्यम उसे विशेष प्रकार के व्यवहार की आवश्यकता हो।

हैवर्ट एवं फरानेस के अनुसार, "विशेष ऐसा व्यक्ति होता है जिसकी शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, इंद्रियों, मानसिकता की क्षमताएँ सामान्य से अत्यधिक अलगावमयी ऐसे गुण दुर्लभ होते हैं। ऐसी बालकती दुर्लभ क्षमताएँ उसकी बुद्धि पर कार्यों में अंतर भी हो सकता है। इस प्रकार के बालक 'प्रतिभाशाली बालक' के रूप में परिभाषित होते हैं। ऐसे बालक बड़ी आसानी से अन्य बालकों के बीच में पहचाने जा सकते हैं।"

टेलफर्ड और सॉरे के अनुसार, "विशेष बालक शब्दावली का प्रयोग उन बालकों के लिए करते हैं जो सामान्य बालकों से शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक या सामाजिक विशेषताओं में इतनी अधिक भिन्न होते हैं कि उन्हें अपनी क्षमता के अधिकतम विकास हेतु विशेष सामाजिक और शैक्षिक व्यवस्थाओं की आवश्यकता पड़ती है।"

स्चावार्ड के अनुसार, "जब हम किसी को 'विशेष' कह कर वर्णित करते हैं, हम व्यक्ति को 'सामान्य' या 'सामान्य' लोगों, जिन्हें हम एक या इससे अधिक लक्षणों के संबध में जानते हैं, से अलग रखते हैं।"

ई. वाल्टर बालिन के अनुसार, "प्राथमिक स्कूल के 1000 बालकों में से लगभग 500 बालकों में कुछ विशेषताएँ पाई जाती हैं। इसमें भी लगभग 50 अर्थात् 10% बालक शारीरिक या मानसिक हीनता से ग्रस्त दिखाई पड़ेंगे। अन्य बालक मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक या व्यक्तिगत समस्याओं के कारण विशेष होंगे। ये विशेष बालक इसी प्रकार के सामाजिक, आर्थिक पर्यावरण से आते हैं। इनके समाजोपयोग की विशेष समस्याएँ होती हैं और अध्यापक को उनका विशेष ध्यान से समाधान करना पड़ता है।

उपर्युक्त सभी परिभाषाएँ विशेष एवं सामान्य बालकों के बारे में हैं। अतः यह जानना आवश्यक हो जाता है कि सामान्य बालकों की क्या विशेषताएँ हैं तथा विशेष तथा सामान्य बालकों में क्या अंतर है।

सामान्य बालकों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  1. वे शारीरिक रूप से सुडौल एवं स्वस्थ होते हैं।
  2. मानसिक व शारीरिक बीमारियों से दूर होते हैं।
  3. उनका व्यवहार के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण होता है।
  4. वे स्नेह, सहयोग, दया, सहनशील, भाई-चारा आदि गुणों से परिपूर्ण होते हैं।
  5. उनकी शैक्षिक उपलब्धि उचित होती है।
  6. उनकी बुद्धि-लक्ष्य 90-110 के बीच की होती है।
  7. उनके भय, ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध आदि की भावना कम होती है।
  8. वे स्वयं को घर, विद्यालय तथा समाज में आसानी से समायोजित कर लेते हैं।
  9. उनका दृष्टिकोण आशावादी होता है तथा वे जीवन को उचित ढंग से जीते हैं।
  10. वे मध्यम सोच के होते हैं, बहुत अधिक महत्त्वाकांक्षा नहीं रखते हैं।
  11. वे संतुलित व व्यवहारिक ढंग से जीते हैं।
  12. वे साधा जीवन जीने में विश्वास रखते हैं।
  13. वे प्रायः संतोषी स्वभाव के होते हैं तथा समय व आवश्यकतानुसार स्वयं को समायोजित कर लेते हैं।

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