बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाज बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाजसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाज
अध्याय 7 - समाज में नारी के प्रति प्रचलित रूढ़िवादी दृष्टिकोण, मीडिया और साहित्य
[Stereotypes about females prevalent in the Society, Media and Literature]
प्रश्न- महिलाओं के प्रति समाज में व्याप्त रूढ़िवादिता पर प्रकाश डालिए।
लघु उत्तरिय प्रश्न
- पारम्परिक रूप से लड़कियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है?
- आधुनिकता के बावजूद भी महिलाओं को क्या-क्या झेलना पड़ता है?
उत्तर-
प्राचीन समय से ही लड़कों की तुलना में लड़कियों, जिनमें किशोरियाँ भी शामिल हैं, की प्रतिष्ठा घर-परिवार में सबसे नीची रही है, खासकर उन समाजों में जहाँ लड़कियों के विवाह के परिवार को देखे जाते हैं और जहाँ लड़कियों का विवाह के बाद रहने वाले उनके पति का भोग दिया जाता है। हालिया अनुसंधान बताता है कि किशोरावस्था की लड़कियाँ सामाजिक भेदभाव के चलते विभिन्न प्रकार की हिंसा एवं उत्पीड़न सहने को आज भी विवश हैं। इन भेदभावों में शामिल हैं— यौन हिंसा, जबरदस्ती और कम उम्र में ही दिये जाने वाले विवाह, विद्यालय छोड़ना आदि। बच्चे जनने देने सख्ती से पालन किये जाने वाले विवाह और गर्भधारण का लड़कियों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है। इससे शिक्षा या नौकरी के अवसरों का लाभ लेने की लड़कियों की योग्यता बाधा पड़ सकती है। अनेक संस्कृतियों में बूढ़ियों और अविवाहित महिलाओं, विधवाओं और अपने पति द्वारा परित्यक्त की जा चुकी महिलाओं को समान प्रतिष्ठा नहीं मिल पाती क्योंकि वे उनके लिये बनाये गये विभिन्न पहचानों के खाँचों के लिये उपयुक्त सिद्ध नहीं हो पातीं।
नियंत्रण वाली महिलाओं के विरुद्ध की जाने वाली हिंसा अनेक तरीकों से प्रकट: उस हिंसा के समान हो सकती है जो सक्षम महिलाओं के विरुद्ध की जाती है यद्यपि नियंत्रित वाली महिलाओं दुर्व्यवहार के दूसरे स्वरूप के प्रति भी सुग्राही होती हैं। उदाहरण के लिये, सहायिकाओं या अनुकूलता इन महिलाओं से दूर रखने जाना; इन सहायिकाओं का उपयोग महिलाओं को शारीरिक क्षति पहुँचाने के लिये करना; आवश्यकता से अधिक या कम दवाईयाँ देना; सहायता प्रदान करने से मना करना या विलम्ब करना, उसकी मदद करते हुए उससे खराब व्यवहार करना, सहायता न करने की स्थिति में महिला पर लेकिन रूप से हमला करना; इस प्रकार अन्यान्य निगरानी के लिये महिला दुर्व्यवहार की जाने के लायक होती है, विवाह प्रस्तावों और लाभों पर नियंत्रण रखना, यदि वह कुछ करने में उसकी योग्यताओं के कम मानते हुए उसका संरक्षण देना; आदि-आदि।
ऐतिहासिक रूप से देखें, तो महिलाएँ सदैव कार्य करती रही हैं लेकिन फिर भी घर में उनके द्वारा किया गया कामकाज हमेशा से अदृश्य ही रहा है तथा उन्हें सदा से एक रूढ़िवादी दृष्टिकोण तथा भेदभाव का सामना करना पड़ा है। तीव्र औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप घर-परिवार के दायरे से बाहर जाकर किये गये कार्य को अधिक वरीयता दी गयी।
हालाँकि कामकाजी वर्ग की महिलाएँ अक्सर अपने घरेलू कार्यों को बेचकर पैसा कमाने के योग्य होती हैं, लेकिन तब भी घर लौटने पर इन महिलाओं को अपने परिवारों की देखभाल करने के लिए घर पर ही कामकाज करना होता है। एक मनोरोग के वरिष्ठ एक प्रोफेसर ने एक बार अपने अनुभव को साझा करते हुए बताया कि जब वे घर लौटते थे और अपनी माँ से पूछते थे कि माँ ने दिन-भर क्या किया, और इस पर माँ का जवाब हमेशा यही होता कि "कुछ नहीं किया।"
उन महिलाओं के लिए भी अपने घर-परिवार की देखभाल करना जरूरी होता है जो नौकरी पाने और विधिवत रूप से आत्मनिर्भर होने के लिए आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं। यह दोहरा काम उन्हें दोहरी "नौकरी" (घर पर भी, और वेतन के लिए बाहर भी) महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अलाकर्मक स्थिति में रख देती है। विभिन्न अध्ययनों ने कार्य में इस दोहरेपन की सामाजिक व्याख्याओं का विश्लेषण किया है और इस पर चर्चा की है कि कैसे लैंगिक विभाजन को पितृसत्ता और पूँजीवाद का सीधा परिणाम माना जाता है। यद्यपि अनेक मार्क्सवादी नारीवादियों का तर्क है कि पूँजीवादी बाजार में महिलाओं के काम की आवश्यकता को निरंतर करता है। लेकिन इस बात पर महत्वपूर्ण असहमति रही है कि क्या घरेलू कामकाज अतिरिक्त मूल्य में अपना योगदान देता है या नहीं। समाज की उपलब्धता और विचारधारा (शेल्टर एंड जॉन, 1996) से समाज में घरेलू श्रम की व्याख्याएँ रही हैं।
हालाँकि 'बुलाने वाले काम' करने के लिए महिलाएँ और पुरुष दोनों घर से बाहर जाते हैं, फिर भी महिलाओं को घर पर बिना भुगतान वाले अतिरिक्त काम को लगातार करना पड़ता है। आधुनिकता के बाद भी इस रूढ़िवादी विचारधारा में परिवर्तन अनिवार्य होता जा रहा है। महिलाओं की स्थिति को दरकिनार न बनाते हुए सभी को चाहिए कि उन्हें न्यायोचित सम्मान तथा स्नेह दिया जाए।
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