बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र
अध्याय - 13
त्वरक सिद्धान्त
(Principle of Accelerator)
सर्वप्रथम वर्ष 1909 में एक फ्रांसीसी अर्थशास्त्री अफ्तालियन द्वारा त्वरण की मूल धारणा को प्रस्तुत किया गया था जिसे वर्ष 1917 में प्रो. क्लार्क ने त्वरण. के सिद्धान्त के रूप में प्रयुक्त किया जबकि प्रो. सैम्यूलसन, प्रो. पीगू, प्रो. हैरो तथा राबर्टसन ने त्वरण सिद्धान्त को गणितीय रूप प्रदान किया। वास्तव में त्वरण की अवधारणा मूल रूप से इस बात पर निर्भर करती है कि यदि उपभोक्ता वस्तुओं की माँग बढ़ती है तो पूँजीगत वस्तुओं की माँग भी बढ़ेगी जिसके परिणामस्वरूप उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि होगी। त्वरण सिद्धान्त उपभोग वस्तुओं की माँग में वृद्धि अथवा कमी के परिणामस्वरूप पूँजीगत वस्तुओं के विनियोग में वृद्धि अथवा कमी की प्रक्रिया को स्पष्ट करती है। प्रो. कुरिहारा के अनुसार उपयोग व्यय के प्रारम्भिक परिवर्तन एवं प्रेरित विनियोग के बीच के अनुपात को त्वरण गुणांक कहते हैं। इसे सूत्र a = AI/ Ac से व्यक्त किया जा सकता है। त्वरण गुणांक स्थिर नहीं रहता बल्कि इसमें परिवर्तन होता रहता है जो पूँजी उत्पाद अनुपात पर निर्भर रहता है। प्रो. हिक्स ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा है कि त्वरक बढ़े हुए उत्पादन के लिए प्रेरित विनियोग का अनुपात है। प्रो. हिक्स के अनुसार त्वरक सदैव पूँजी अनुपात के बराबर होता है जिसे सूत्र a = AI/AY के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है, जहाँ पर a त्वरक, AI विनियोग में वृद्धि तथा AY उत्पादन में वृद्धि को दर्शित करता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि पूँजीगत वस्तुओं की माँग केवल उपभोक्ता वस्तुओं द्वारा ही निर्धारित नहीं होती बल्कि इस पर राष्ट्रीय उत्पादन का भी प्रभाव पड़ता है। उत्पादन में परिवर्तन होने पर पूँजीगत स्टाक भी परिवर्तित होगा यह परिवर्तन जितना कम होगा त्वरक उतना ही कम और अधिक होने पर अधिक होगा। त्वरण सिद्धान्त के अनेक निहितार्थ हैं। इसके अनुसार जब उपभोग माँग में कोई परिवर्तन नहीं होता तब विनियोग में कमी हो जाती है। उपभोग दर का परिवर्तन पूँजीगत वस्तुओं की व्युत्पन्न माँग में परिवर्तन उत्पन्न करता है। उपभोग वस्तुओं की माँग का परिवर्तन पूँजीगत वस्तुओं के विनियोग में अधिक अनुपात में परिवर्तन करता है। गुणक सिद्धान्त की अपेक्षा त्वरण का सिद्धान्त आय सृजन की व्याख्या अधिक स्पष्ट एवं वास्तविक ढंग से करता है। यह उपभोग में होने वाले परिवर्तन का विनियोग और आय प्रभाव दिखता है। पूँजीगत उद्योगों में जो उत्पादन परिवर्तन होते हैं वे आय तथा विनियोग को प्रभावित करते हैं- जिसकी व्याख्या त्वरण सिद्धान्त अधिक स्पष्टता से करता है। यद्यपि त्वरण सिद्धान्त की अपनी कुछ सीमायें हैं, फिर भी यह सिद्धान्त अनेक तत्वों में से एक प्रमुख तत्व है जो गुणक सिद्धान्त के साथ मिलकर विनियोग में होने वाले उच्चावचनों की व्याख्या करते हैं। त्वरण सिद्धान्त की अनेक उपयोगिता एवं महत्व के साथ-साथ इसकी अपनी अनेक सीमायें भी हैं जो उत्पादन क्षमता का पहले से ही अतिरेक होने, सार्वजनिक उद्योगों की स्थापना तथा माँग में अस्थायी वृद्धि की दशा में कार्यशील नहीं हो पाता।
महत्वपूर्ण तथ्य
- सर्वप्रथम 1909 में अफ्तालियन द्वारा त्वरण की मूल धारणा प्रस्तुत की।
- सन् 1917 में प्रो. क्लार्क ने त्वरण सिद्धान्त के रूप में प्रस्तुत किया।
- प्रो. सेमुल्यसन, प्रो. पीगू, प्रो. हैरोड व राबर्टसन द्वारा त्वरण सिद्धान्त को गणितीय रूप में प्रस्तुत किया।
- प्रो. कुरिहारा के अनुसार - "उपभोग व्यय के प्रारम्भिक परिवर्तन एवं प्रेरित विनियोग के बीच के अनुपात को त्वरण गुणांक कहते हैं।
- इसे इस प्रकार व्यक्त किया जाता है- = AM/AC
- प्रो. हिक्स कहते हैं कि "त्वरण बढ़े हुए उत्पादन के लिए प्रेरित विनियोग का अनुपात है, इन्होंने त्वरक को पूँजी उत्पाद अनुपात के बराबर बताया है।"
- प्रो. शपीरो ने स्पष्ट लिखा है कि "यद्यपि त्वरक सिद्धान्त स्पष्ट अपनी कुछ सीमाएँ हैं यह सिद्धान्त अनेक तत्वों में से एक प्रमुख तत्व है जो गुणक सिद्धान्त के साथ मिलाकर विनियोग में होने वाले उच्चावचनों की व्याख्या करते हैं।
- प्रो. कुरिहारा के अनुसार - "त्वरक गुणांक प्रेरित निवेश और उपभोग काल में प्रारम्भिक परिवर्तन के बीच का अनुपात है।”
- त्वरक तकनीकी कारकों पर आधारित है।
- त्वरक निवेश पर उपभोग के परिवर्तन के प्रभाव के प्रभाव को व्यक्त करता है। यह मशीनों के कार्यकाल पर निर्भर करता है।
- त्वरक की दशा में निवेश उपभोग पर आधारित है।
- इसका सूत्र — त्वरक = प्रेरित विनियोग में परिवर्तन। उपभोग से परिवर्तन।
- त्वरक उपभोग में होने वाले परिवर्तनों का विनियोग पर पड़ने वाले प्रभाव को दर्शाता है।
- त्वरक उपभोग में होने वाले परिवर्तनों के फलस्वरूप उन प्रभावों को व्यक्त करता है जो निवेश पर पड़ता है।
- निवेश को वित्तीय सिद्धान्त का प्रतिपादन ड्यूजनवरी ने किया।
- निवेश का नव क्लासिकीय सिद्धान्त का प्रतिपादन जोर्गनसन ने किया।
- y = E = C + I + G + (x - M )
- y = C+S+T
- C+S+T = C+I+G+(x-M)
- S+T = I + G + (x - M)
- S+T+M = I+G+x
- क्लासिकल का मत है कि मुद्रा मजदूरी सीधे और समानुपातिक तौर से वास्तविक मजदूरी से सम्बन्धित है।
- W = P × MP या W/P = MP
- राष्ट्रीय आय श्रमिकों की संख्या का बढ़ता हुआ फलन है
- 'Monetary Theory and Fiscol Policy' हैन्शन।
- त्वरक की आलोचना संसधन लोचदार नहीं, पूँजी उत्पादन अनुपात स्थिर नहीं, निष्क्रिय क्षमता को लेकर की जाती है।
- अतिगुणक निकाला जाता है। प्रेरित निवेश एवं प्रेरित उपभोग से।
- त्वरण सिद्धान्त में उत्पादन के साथ सकलं निवेश एवं शुद्ध निवेश का सम्बन्ध किया जाता है।
- त्वरण स्पष्ट करता है I = vΔy को
- हिक्स के अनुसार "निवेश के समय निर्धारण की व्याख्या के रूप में त्वरण नियम यथार्थ नहीं बल्कि असन्तोष जनक भी है।"
- हिक्स ने प्रारम्भिक निवेश प्रभाव मापने के लिए गुणक एवं त्वरण को मिला दिया।
- गुणक = 1 / MPS
- त्वरक गुणा होता है— = ΔΙ / AC
- त्वरक प्रेरित विनियोग से सम्बन्धित है।
- त्वरक की धारणा अवत्तालियन ने प्रस्तुत किया।
- महागुणक की धारणा जे. आर. हिक्स ने दिया।
- तुलनात्मक स्थैतिक गुणंक की धारणा कीन्स से सम्बन्धित है।
- त्वरक को a = kt/yt के रूप में जाना जाता है।
- गुणक एवं त्वरक दोनों एक दूसरे को प्रभावित करते हैं।
- प्रो. हेन्सन ने गुणक एवं त्वरक की सम्मिलित क्रिया को "Leverage Effect" कहा है। प्रो. हैरड, प्रो. सेम्युलसन तथा प्रो. हिक्स ने भी गुणक एवं त्वरक में संयुक्त प्रभाव की विवेचना की है।
- त्वरक उपभोग में होने वाले परिवर्तनों के फलस्वरूप उन प्रभावों को व्यक्त करता है जो निवेश पर पड़ते हैं।
- त्वरक का सूत्र है त्वरक प्रेरित विनियोग से परिवर्तन / उपभोग में परिवर्तन |
- अर्द्धविकसित देशों में पूँजीगत वस्तु उद्योगों के लिए वांछित तकनीकी ज्ञान तथा कुशल श्रम शक्ति का अभाव पाया जाता है इस कारण अल्पविकसित देशों में त्वरक कार्यशील नहीं हो पाता है। अर्द्धविकसित देशों को अपने पूँजीगत उद्योगों के विकास के लिए विदेशी सहायता एवं व्यापार पर निर्भर रहना पड़ता है दूसरे शब्दों में व्यापार की शर्तें अर्द्धविकसित देशों में प्रतिकूल रहती हैं।
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