बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र
अध्याय - 2
राष्ट्रीय आय एवं सम्बन्धित समाहार
(National Income and Related Aggregates)
राष्ट्रीय आय का तात्पर्य किसी देश की अर्थ व्यवस्था में किसी समयावधि में उत्पादित अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं के कुल मौद्रिक मूल्य से होता है। राष्ट्रीय आय की अवधारणा में तीन बातें विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण होती हैं। सर्वप्रथम तो यह कि राष्ट्रीय आय वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन का निरन्तर चलने वाला एक प्रवाह है और इसका आकलन किसी एक समय पर वस्तुओं के उपलब्ध स्टाक से नहीं बल्कि किसी समयावधि में उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं के प्रवाह से होता है जिसके कारण इस अवधारणा के साथ समयावधि भी जुड़ी रहती है. जो सामान्यतः एक वर्षा की अवधि होती है।
अर्थव्यवस्था के लिए स्थैतिक तथा व्यावहारिक दोनों दृष्टिकोणों से राष्ट्रीय आय का अत्यधिक महत्त्व होता है। इससे अनेक महत्त्वपूर्ण बातों की जानकारी प्राप्त होती है जिससे आर्थिक आयोजन तथा विकास के क्षेत्र में विशेष सहायता प्राप्त होती है। राष्ट्रीय आय ही वह अवधारणा है जो देश की अर्थ व्यवस्था का व्यापक चित्र प्रस्तुत करता है। वस्तुतः राष्ट्रीय आय जितनी अधिक या कम होती है अर्थ व्यवस्था का स्तर उतना ही ऊँचा अथवा निम्न होता है। प्रति व्यक्ति आय से किसी अर्थ व्यवस्था के लोगों के जीवन स्तर तथा उनके आर्थिक कल्याण की जानकारी प्राप्त होती है। राष्ट्रीय आय के आँकड़ों से ही अर्थ व्यवस्था की गतिविधियाँ, उनमें हो रहे परिवर्तनों तथा विकास के विषय में पता चलता है। विभिन्न देशों के आर्थिक कल्याण की तुलना के लिए भी राष्ट्रीय आय के आँकड़े महत्त्वपूर्ण होते हैं। राष्ट्रीय आय के संदर्भ में मार्शल तथा पीगू ने महत्त्वपूर्ण विचार व्यक्त किये हैं। मार्शल ने राष्ट्रीय आय में उस आय को भी सम्मिलित किया है जो विदेशों से अर्जित की जाती है और राष्ट्रीय आय की गणना के उत्पादन को आधार बनाया है जो कि एक वर्ण है परन्तु मार्शल के सिद्धान्त से गणना अत्यधिक कठिन होती है और इसमें दोहरी गणना की भी संभावना बनी रहती है साथ ही साथ इसमें सम्पूर्ण उत्पादन की गणना करना भी एक कठिन कार्य होता है। पीगू के अनुसार राष्ट्रीय आय समाज की वस्तुगत आय का वह भाग है जिसे मुद्रा में मापा जा सकता है तथा विदेशों से प्राप्त आय भी इसमें शामिल रहती हैं चूँकि पीगू की इस परिभाषा में राष्ट्रीय आय की गणना करने में उन्हीं वस्तुओं या सेवाओं को शामिल किया जाता है जिसकी आय मुद्रा में की जा सकती है, अतः यह परिभाषा मार्शल की परिभाषा से उपयुक्त प्रतीत होती और इससे दोहरी गणना से भी बचा जा सकता है। फिर भी इस परिभाषा की भी अपनी कमियाँ हैं। किसी देश का कुल राष्ट्रीय उत्पाद एक अर्थ की अवधि में चालू उत्पादन के आधार पर बाजार मूल्य पर उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं की आय होती है। जिसे मुद्रा में व्यक्त किया जा सकता है। जबकि कुल घरेलू उत्पाद कुल राष्ट्रीय उत्पाद में से आयात मूल्य को घटाने पर प्राप्त होता है। जिस अर्थ व्यवस्था में आयात एवं निर्यात नहीं होते वहाँ पर कुल घरेलू उत्पाद तथा कुल राष्ट्रीय उत्पाद में कोई अन्तर नहीं होता है। राष्ट्रीय आय में सार्वजनिक क्षेत्र तथा निजी क्षेत्र दोनों में अर्जित आय सम्मिलित रहती है जबकि निजी आय में केवल निजी आय ही सम्मिलित होती है। सरकारी क्षेत्र की आय इसमें सम्मिलित नहीं रहती है। इस अध्याय में राष्ट्रीय आय तथा उससे संबंधित विभिन्न समाहारों की विवेचना की गयी है।
महत्वपूर्ण तथ्य
- राष्ट्रीय आय को राष्ट्रीय लाभांश, राष्ट्रीय उत्पाद, राष्ट्रीय व्यय के रूप में जाना जाता है। राष्ट्रीय आय से आशय किसी देश की अर्थव्यवस्था में किसी समयावधि (सामान्यतया एक वर्ष के दौरान) में उत्पादित एवं अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं के कुल मुद्रा मूल्य से है।
- राष्ट्रीय आय वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन का निरन्तर चलने वाला एक प्रवाह है। इसका तात्पर्य यह है कि किसी एक समय पर वस्तुओं के उपलब्ध स्टॉक से नहीं बल्कि किसी समय अवधि में उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह से है।
- राष्ट्रीय आय में सब प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं की बाजार कीमतें शामिल की जाती हैं चाहे वे किसी भी प्रकार की हों लेकिन एक वस्तु की कीमत को केवल एक बार ही गिना जाता है।
- राष्ट्रीय आय का संबंध वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह से है इसलिए इस अवधारणा के साथ समय की अवधि जुड़ी रहती है।
- राष्ट्रीय आय को राष्ट्रीय लाभांश, राष्ट्रीय उत्पाद, राष्ट्रीय व्यय के रूप में जाना जाता है।
- राष्ट्रीय आय से सम्बन्धित परिभाषायें मार्शल, पीगू फिशन ने दी है।
- मॉर्शल के अनुसार "किसी देश का श्रम तथा पूँजी उसके प्राकृतिक साधनों पर क्रियाशील होकर प्रति वर्ष भौतिक तथा अभौतिक वस्तुओं का एक योगफल पैदा करता है जिसमें सभी प्रकार की सेवायें सम्मिलित होती हैं। यही उस देश की वास्तविक शुद्ध वार्षिक आय या देश का राजस्व या राष्ट्रीय लाभांश है।"
- पीगू ने अपनी परिभाषा में राष्ट्रीय आय को मुद्रा के रूप में शामिल किया है, जो राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में शामिल किया जाता है।
- प्रो. फिशर अपनी परिभाषा में उपभोग को आधार मान कर राष्ट्रीय आय की परिभाषा दी है। मार्शल तथा फिशर दोनों ने अपनी परिभाषा का आधार उत्पादन को माना है।
- प्रो. साइमन कुजनेट्स के अनुसार — "राष्ट्रीय आय वस्तुओं और सेवाओं का शुद्ध उत्पादन है, जो एक वर्ष की अवधि में देश की उत्पादन प्रणाली में अन्तिम उपभोक्ता के हाथ पहुँचता है।" डर्नवर्श के अनुसार "बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद एवं लेखा वर्ष के दौरान एक देश के सकल घरेलू क्षेत्र में अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन का बाजार मूल्य परिभाषित किया जाता है।"
- राष्ट्रीय आय के आकड़ों से अर्थव्यवस्था की गतिविधियों उनमें हो रहे परिवर्तनों और विकास के विषय में पता चलता है।
- यदि किसी देश में लगातार कई वर्षों की राष्ट्रीय आय संबंधी सूचनाएँ उपलब्ध हों तो इस बात की आसानी से जानकारी हो सकती है कि उस अवधि में देश की आर्थिक स्थिति में क्या और कितना सुधार हुआ है तथा राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के बीच तालमेल बढ़ा है या असंतुलन की स्थिति और खराब हुई है।
- राष्ट्रीय आय के आंकड़ों से देश में आर्थिक कठिनाइयों एवं देश के विकास के मार्ग में उठने वाली कठिनाइयों का बहुत कुछ ज्ञान हो जाता है तथा इसी आधार पर अर्थव्यवस्था के सुधार के लिए कदम उठाये जाते हैं।
- विभिन्न देशों की राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय के आंकड़ों की तुलना करके यह जानकारी प्राप्त की जा सकती है कि कोई देश अन्य देशों की अपेक्षा आर्थिक दृष्टि से कितना आगे या पीछे है तथा एक दूसरे की विकास दर में कितना अन्तर है।
- जिन देशों में विकास के लिए आर्थिक नियोजन का सहारा लिया जाता है उनके लिए तो राष्ट्रीय आय संबंधी आंकड़ों का महत्त्व और भी अधिक होता है।
- आर्थिक योजना तैयार करने में योजनाकारों के अनेक महत्त्वपूर्ण बातों की ओर ध्यान देना होता है।
- किसी देश का कुल राष्ट्रीय उत्पाद एक वर्ष की अवधि में चालू उत्पादन के आधार पर, बाजार मूल्य पर, उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की माप है जिसे मुद्रा में व्यक्त किया जाता है।
- GDP की मापने की प्रमुख विधियाँ हैं, आय विधि, व्यय विधि तथा उत्पाद विधि है।
- साधन लागत पर GDP में कर्मचारियों की मजदूरी, परिचालन अधिशेष, स्वरोजगार में नियुक्ति के मिश्रित आय शामिल किया जाता है।
- व्यय में GDP के अन्तर्गत सेवाओं पर उपभोक्ता व्यय अचल पूँजी में निवेश, अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं पर सरकारी व्यय को शामिल किया जाता है।
- "सकल मूल्य बढ़ाव समस्त अर्थव्यवस्था का मूल्य बढ़ाव है। जिसमें मूल्य ह्रास शामिल है।" यह कथन सत्य है।
- GDP के आय विधि के अन्तर्गत वेतन तथा मजदूरी, किराया तथा ब्याज एवं लाभ को शामिल किया जाता है।
- GNP में अप्रवासी उत्पादकों की आय, वर्करों द्वारा प्राप्त आय विदेशों के अप्रवासियों द्वारा प्राप्त साधन आय को शामिल किया जाता है।
- प्रत्यक्ष कर में व्यक्तियों पर कर, निगमों पर कर तथा व्यवसायों पर कर को शामिल किया जाता है।
- परोक्ष कर में बिक्रीकर, उत्पाद शुल्क एवं सीमा शुल्क को शामिल किया जाता है।
- प्रयोज्य आय वह वास्तविक आय है, जो व्यक्तियों व परिवारों द्वारा उपभोग पर व्यय की जा सकती है।
- कुल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) = कुल राष्ट्रीय व्यय = कुल राष्ट्रीय आय।
- किसी देश में एक वर्ष की निश्चित अवधि में देश के अपने ही साधनों द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के कुल मौद्रिक मूल्य में घिसावट व्यय अथवा प्रतिस्थापन व्यय घटा देने पर जो शेष बचता है, वह सकल घरेलू उत्पाद कहलाता है।
- किसी देश द्वारा एक वर्ष की अवधि में उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं की इकाइयों का गुणा उनकी उस समय की प्रचलित कीमत से कर दिया जाता है तथा इससे उस शुद्ध माप को भी जोड़ा जाता हैं, जो विदेशों से प्राप्त होती है। इस क्रिया के फलस्वरूप प्राप्त होने वाला योग कुल राष्ट्रीय उत्पाद कहलाता है।
- बाजार में प्रचलित कीमतों में अप्रत्यक्ष करों का समावेश होता है।
- किसी देश की एक वर्ष की अवधि में उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का गुणा प्रचलित कीमत से करने पर जो भी प्राप्त होता है उसमें विदेशों से प्राप्त शुद्ध आय को घटा दिया जाता है तब जो प्राप्त है वह बाजार कीमत पर कुल घरेलू उत्पाद होता है।
- हस्तान्तरण भुगतान को एक पक्षीय भुगतान भी कहा जाता है।
- हस्तान्तरण भुगतान वह भुगतान होता है जो एक देश में नागरिकों द्वारा पेंशन, बेरोजगारी भत्ता सार्वजनिक ऋणों एवं इसी प्रकृति की अन्य मदों पर लिया जाता है। जो व्यक्ति इस भुगतान प्राप्त करते हैं उनके द्वारा इसके बदले में किसी कार्य अथवा वस्तुओं की पूर्ति करने की कोई गारन्टी नहीं दी जाती है।
- जब आय की गणना व्यय विधि से की जाती है तो उस समय अंतिम उपभोग व्यय का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है।
- एक लेखा वर्ष में उपभोग के अतिरिक्त होने वाला उत्पादन पूँजी निर्माण कहलाता है।
- दादा भाई नौरोजी ने सर्वप्रथम 1876 में वित्रिय वर्ष 1867-68 के लिए राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय का अनुमान लगाया।
- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में राष्ट्रीय आय का अधिकृत अनुमान सर्वप्रथम 1948-49 के लिए भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय ने लगाया।
- सन् 1949 में प्रो. महालनोविस की अध्यक्षता में राष्ट्रीय आय समिति का गठन किया गया। राष्ट्रीय आय की गणना के लिए राष्ट्रीय आय समिति ने एक सर्वोच्च संस्था के गठन का सुझाव दिया था जिसके फलस्वरूप 1954 में केन्द्रीय साख्यिकीय संगठन की स्थापना हुई।
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- अध्याय - 1 समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय (Introduction to Macro Economics)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 2 राष्ट्रीय आय एवं सम्बन्धित समाहार (National Income and Related Aggregates)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 3 राष्ट्रीय आय लेखांकन एवं कुछ आधारभूत अवधारणाएँ (National Income Accounting and Some Basic Concepts)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 4 राष्ट्रीय आय मापन की विधियाँ (Methods of National Income Measurement)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 5 आय का चक्रीय प्रवाह (Circular Flow of Income)
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- उत्तरमाला
- अध्याय - 6 हरित लेखांकन (Green Accounting)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 7 रोजगार का प्रतिष्ठित सिद्धान्त (The Classical Theory of Employment)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 8 कीन्स का रोजगार सिद्धान्त (Keynesian Theory of Employment)
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- अध्याय - 9 उपभोग फलन (Consumption Function)
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- उत्तरमाला
- अध्याय - 10 विनियोग गुणक (Investment Multiplier)
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- उत्तरमाला
- अध्याय - 11 निवेश एवं निवेश फलन(Investment and Investment Function)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 12 बचत तथा निवेश साम्य (Saving and Investment Equilibrium)
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- अध्याय - 13 त्वरक सिद्धान्त (Principle of Accelerator)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 14 ब्याज का प्रतिष्ठित, नव-प्रतिष्ठित एवं कीन्सीयन सिद्धान्त (Classical, Neo-classical and Keynesian Theories of Interest)
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- अध्याय - 15 ब्याज का आधुनिक सिद्धान्त (IS-LM व्याख्या) Modern Theory of Interest (IS-LM Analysis )
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- अध्याय - 16 मुद्रास्फीति की अवधारणा एवं सिद्धान्त (Concept and Theory of Inflation)
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- उत्तरमाला
- अध्याय - 17 फिलिप वक्र (Philips Curve)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला