बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 राजनीति विज्ञान बीए सेमेस्टर-2 राजनीति विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 राजनीति विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 9
सम्प्रभुता : अद्वैतवाद व बहुलवाद
(Sovereignty : Monism and Pluralism)
सम्प्रभुता का अर्थ है 'सर्वोच्च सत्ता'। व्युत्पत्ति की दृष्टि से सम्प्रभुता अंग्रेजी भाषा के 'Sover- eignty' शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है, जो लैटिन भाषा के 'Superanus' शब्द से व्युत्पन्न है। इसका अर्थ है सर्वोच्च शक्ति (Supreme Power)। Sovereignty शब्द की एक अन्य व्युत्पत्ति फ्रेन्च शब्द 'Soverain' से दिखाई देती है जिसका तात्पर्य उस सर्वोच्च शक्ति से है जिसके ऊपर अन्य कोई शक्ति नहीं है। सम्प्रभुता के कारण ही राज्य आंतरिक दृष्टि से सर्वोच्च एवं वाह्य दृष्टि से स्वतंत्र माना जाता है। सम्प्रभुता से ही राज्य को विधि निर्माण करने, उसका पालन कराने तथा दण्ड देने की शक्ति प्राप्त होती है। तात्पर्य यह है कि सम्प्रभुता ही राज्य का प्राण है। सम्प्रभुता के कारण ही राज्य अन्य समुदायों से भिन्न समझा जाता है। सम्प्रभुता शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग फ्रांसीसी विचारक बोंदा ने 1756 में अपनी कृति "Six book concering Republic" में किया। सम्प्रभुता आंतरिक दृष्टि से राज्य को सर्वोच्च बनाती है। इससे राज्य के अन्तर्गत आने वाले प्रत्येक व्यक्ति, समूह या समुदाय पर राज्य की सत्ता का विस्तार हो जाता है तथा राज्य सभी व्यक्तियों एवं समुदायों से उच्चतर सत्ता सिद्ध होता है। सम्प्रभुता ही राज्य को बाह्य दृष्टि से स्वतंत्र बनाती है। इसके अभाव में अन्य सभी तत्वों की उपस्थिति में भी वह एक उपनिवेश तो कहला सकता है किन्तु उसे राज्य नहीं कहा जा सकता। जैसे 15 अगस्त 1947 ई0 से पूर्व भारत एक राज्य नहीं था, वह केवल ब्रिटिश उपनिवेश था, यद्यपि उसमें अन्य तीनों तत्व उपस्थित थे। सम्प्रभुता के कारण ही राज्य विदेशों से सम्बंध स्थापित करने में पूर्ण सक्षम होता है अर्थात् कोई राज्य अन्य राज्य से मैत्री करेगा, युद्ध करेगा, तटस्थ नीति अपनायेगा, यह अधिकार उसे सम्प्रभुता देती है।
सम्प्रभुता के विषय में दो दृष्टिकोण मिलते हैं— प्रथम, एकलवादी दृष्टिकोण, जो राज्य की संप्रभुता को निरंकुश एवं सर्वोच्च मानता है। द्वितीय, बहुलवादी दृष्टिकोण जो सम्प्रभुता को मर्यादित एवं विभाज्य स्वीकार करता है। बहुलवादी दृष्टिकोण का आग्रह है कि राज्य के समतुल्य अन्य संघ भी है। मानव की सामाजिक प्रकृति अनेक संघों में व्यक्त होती है जो धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, व्यावसायिक एवं राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। इनमें कोई संघ नैतिक या व्यावहारिक रूप से अन्य संघों से श्रेष्ठ नहीं है। जॉन आस्टिन (1790-1859) इंग्लैण्ड का प्रसिद्ध विधिवेत्ता हुआ है। आस्टिन ने प्रभुसत्ता सम्बंधी अपने सिद्धान्त की व्याख्या ("Lectures on Jurisprudence") में की है। आधुनिक युग में कानूनी सम्प्रभुता की विस्तार से विवेचना करने में जान आस्टिन का प्रमुख स्थान है। 1832 में प्रकाशित अपनी पुस्तक में आस्टिन ने कानून की परिभाषा देते हुए कहा कि प्रत्येक कानून पूर्णतः उचित अर्थ में एक व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह की एक स्वतंत्र राजनीतिक समाज के सदस्य अथवा सदस्यों को दी हुई आज्ञा है जिसमें वह व्यक्ति या व्यक्ति समूह सम्प्रभु है। आस्टिन प्रभुसत्ता के सिद्धान्त को इस प्रकार स्पष्ट करता है— यदि एक निश्चित उच्च कोटि का व्यक्ति जो स्वयं अपने समान किसी दूसरे व्यक्ति की आज्ञा पालन का अभ्यस्त नहीं है और जिसके आदेशों का पालन निश्चित समाज के अधिकांश व्यक्ति स्वभावतः करते हो तो वह (व्यक्ति) समाज में सम्प्रभु है और वह समाज उस उच्च कोटि के व्यक्ति सहित एक राजनीतिक समाज (राज्य) है। 19वीं शताब्दी के शुरू में व्यक्तिवाद का जो दौर आया था, उसके तीव्र प्रतिक्रिया के रूप में केन्द्रीकृत एवं सर्वसत्तात्मक सम्प्रभुता सम्पन्न राज्य का जमकर विरोध किया गया, बहुलवाद का उदय इन्हीं प्रवृत्तियों के परिणामस्वरूप हुआ।
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- अध्याय -1 राजनीति विज्ञान : परिभाषा, प्रकृति एवं क्षेत्र
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 2 राजनीतिक विज्ञान की अध्ययन की विधियाँ
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 3 राजनीति विज्ञान का अन्य सामाजिक विज्ञानों से संबंध
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 4 राजनीतिक विज्ञान के अध्ययन के उपागम
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 5 आधुनिक दृष्टिकोण : व्यवहारवाद एवं उत्तर-व्यवहारवाद
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 6 आधुनिकतावाद एवं उत्तर-आधुनिकतावाद
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 7 राज्य : प्रकृति, तत्व एवं उत्पत्ति के सिद्धांत
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 8 राज्य के सिद्धान्त
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 9 सम्प्रभुता : अद्वैतवाद व बहुलवाद
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 10 कानून : परिभाषा, स्रोत एवं वर्गीकरण
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 11 दण्ड
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 12 स्वतंत्रता
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 13 समानता
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 14 न्याय
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 15 शक्ति, प्रभाव, सत्ता तथा वैधता या औचित्यपूर्णता
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 16 अधिकार एवं कर्त्तव्य
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 17 राजनीतिक संस्कृति, राजनीतिक सहभागिता, राजनीतिक विकास एवं राजनीतिक आधुनिकीकरण
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 18 उपनिवेशवाद एवं नव-उपनिवेशवाद
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 19 राष्ट्रवाद व सांस्कृतिक राष्ट्रवाद
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 20 वैश्वीकरण
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 21 मानवाधिकार
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 22 नारीवाद
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 23 संसदीय प्रणाली
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 24 राष्ट्रपति प्रणाली
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 25 संघीय एवं एकात्मक प्रणाली
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- अध्याय - 26 राजनीतिक दल
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- अध्याय - 27 दबाव समूह
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 28 सरकार के अंग : कार्यपालिका, विधायिका एवं न्यायपालिका
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 29 संविधान, संविधानवाद, लोकतन्त्र एवं अधिनायकवाद .
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 30 लोकमत एवं सामाजिक न्याय
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
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- अध्याय - 31 धर्मनिरपेक्षता एवं विकेन्द्रीकरण
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- उत्तरमाला
- अध्याय - 32 प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला