बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 राजनीति विज्ञान बीए सेमेस्टर-2 राजनीति विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 राजनीति विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
महत्त्वपूर्ण तथ्य
'सम्प्रभुता कानूनों का निर्माण करने तथा उन्हें लागू करने वाली प्रतिदिन क्रियाशील शक्ति है'- विल्सन
'सम्प्रभुता राज्य की सर्वोच्च शक्ति है— विलोबी
'राज्य की सम्प्रभुता अपने क्षेत्र में भीतर सभी व्यक्तियों एवं संघों को आदेश देती है, यह उनमें से किसी से आदेश नहीं लेती। इसकी इच्छा किसी प्रकार के वैधानिक सीमाओं के अधीन नहीं है।' ― लास्की
प्रभुसत्ता राज्य की ऐसी विशेषता है जिसके कारण वह कानून की दृष्टि से केवल अपनी इच्छा से बंधा होता है अन्य किसी भी इच्छा से नहीं। कोई अन्य शक्ति उसकी अपनी शक्ति को सीमित* नहीं कर सकती— गार्नर
'अपने मौलिक तथा एकमात्र स्पष्ट भाव में प्रभुसत्ता का आशय सर्वोच्च भाव से हैं'- केल्सन 'प्रभुसत्ता कानूनो का निर्माण कनेर तथा उन्हें लागू करने वाली प्रतिदिन क्रियाशील शक्ति है।' -विल्सन
ओपनहाइम — “प्रभुसत्ता कानूनो का निर्माण करने तथा उन्हें लागू करने वाली प्रतिदिन क्रियाशील शक्ति है। "
जैक्स - "प्रभुसत्ता वह सत्ता है जो अंतिम अर्थ में राज्य के प्रत्येक सदस्यों के कृत्यों को पूर्ण तौर से नियंत्रित करती है और जिसके विरुद्ध समाज का कोई सदस्य याचना नहीं कर सकता।”
रसेल - "प्रभुसत्ता राज्य के भीतर दृढ़तम तथा सर्वोच्च सत्ता है जो कानून या किसी वस्तु द्वारा सीमित नहीं क्योंकि तब यह नं तो दृढ़तम होगी न सर्वोच्च। "
बोदां- " संप्रभुता नागिरकों और प्रजाजनों पर वह सर्वोच्च शक्ति है जो विधि द्वारा नियंत्रित नहीं है।"
बर्गेस — “संप्रभुता राज्य के व्यक्तियों और समुदायों पर भौतिक निरंकुश और असीमित शक्ति है।”
ब्लैकस्टोन — "प्रभुसत्ता वह सर्वोच्च अनिवार्य और अनियंत्रित सत्ता है जिसके आश्रित बड़े-बड़े कानून होते हैं।"
रूसो – “सार्वजनिक संकल्प ही संप्रभु है।”
डिग्वी— “संप्रभुता राज्य की आदेशकारी शक्ति है। राज्य के रूप में संगठित यह राष्ट्र की इच्छा होती है। "
सम्प्रभुता वह अधिकार है जिसके द्वारा राज्य के क्षेत्र से सब व्यक्तियों को विधिक रूप से आदेश दिये जाते हैं।
प्रभुसत्ता एक पूर्ण और असीम शक्ति है। राज्य के बाहर भी अपने राज्य के संदर्भ में उसे सर्वोच्च माना जाता है।
संप्रभुता विधि द्वारा भी निलंबित नहीं है क्योंकि विधि संप्रभु की आज्ञा हैं- "हाब्स"
संप्रभुता का परंपरागत सिद्धान्त अन्तर्राष्ट्रीय कानून को नहीं मानता क्योंकि वह किसी प्रभुसत्ताधारी की इच्छा को व्यक्त नहीं करता।
प्रभुसत्ता उतनी ही स्थायी है जितना कि राजा सरकारों के बदलते रहने पर भी प्रभुसत्ता राज्य की भांति स्थायी होती है क्योंकि प्रभुसत्ता के अंत का अर्थ है राज्य का अंत।
संप्रभुता एक समग्र वस्तु है, इसे विभाजित करना इसे नष्ट करना है। राज्य में यह सर्वोच्च शक्ति है। हम अर्ध-वृत्ति या अर्द्ध प्रभुसत्ता की बात नहीं करते। — केल्हन
कानूनी संप्रभु के पीछे एक दूसरा सम्प्रभु विद्यमान है, जिसके सामने कानूनी संप्रभु को झुकना पड़ता है। ― डायसी
गिलक्राइस्ट के अनुसार — “राजनीतिक सम्प्रभुता किसी राज्य में उन प्रभावों का समग्र योग है जो कानून के पीछे होते हैं।
प्रभुसत्ता सदैव एक निश्चित व्यक्ति या व्यक्तियों में रहती है। अनिश्चित व्यक्ति या जनता को प्रभुसत्ताधारी नहीं कहा जा सकता।
राजसत्ता किसी सामान्य इच्छा अथवा लोकमत अथवा पररमात्मा में नहीं रहती है।
प्रभुसत्ता आंतरिक या बाहरी दोनों क्षेत्रों में असीमित और अनियंत्रित होती है।
यदि किसी समाज में प्रभुसत्ता नहीं है तो वह उसके बिना कदापि राज्य नहीं हो सकता। देश में कानून केवल प्रभुसत्ताधारी द्वारा ही बनवाया जा सकता है। लोकमत या विधानसभा को कानून बनाने का अधिकार नहीं।
राजसत्ता असीमित या निरंकुश होती है।
नागरिक समाज का विभाजन दो वर्गों में हो जाता है— एक शासक वर्ग, दूसरा शासित वर्ग। प्रभुसत्ता की शक्ति अविभाज्य होती है।
इसकी आज्ञा का पालन अधिकांश लोग स्वभावतः करते हैं। दोहरी प्रभुसत्ता के प्रतिपादक-टाकविले, स्वेटन, हेल्क हैं।
कानूनी अमर्यादित प्रभुसत्ता के प्रतिपादक लॉक, माण्टेस्क्यू हैं। लोकप्रिय, दार्शनिक प्रभुसत्ता के प्रतिपादक रूसो हैं।
कानूनी और राजनीतिक प्रभुसत्ता में अंतर नहीं है— सिजविक ' आंतरिक प्रभुसत्ता के जनक बोदां है।
नैतिक रूप से प्रभुसत्ता पर प्रतिबंध – बेन्थन और बोंदा
कानूनी प्रभुसत्ता तथा वास्तविक प्रभुसत्ता में अंतर नहीं है— आस्टिन
अन्तर्राष्ट्रीय कानून के जनक ह्यरुगो ब्रोसियस है।
अन्तर्राष्ट्रीय प्रभुसत्ता के समर्थक— हेलार्ड लास्की है। बहुलवाद शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग लास्की ने किया।
बहुलवादियों के अनुसार राज्य और समाज एक नहीं है।
गिरके तथा मेटलैण्ड जिन्हें बहुलवाद का जनक माना जाता है, ने राज्य की चरम प्रभुसत्ता को स्वीकार करते हुए राज्य की उच्चतर वैधानिक स्थिति को अस्वीकार किया है।
बहुलवादी अराजकतावादियों व श्रमाधिपत्यवादियों की भांति राज्य का सर्वथा अंत नहीं चाहते, न ही वे राज्य को इस तिमिंगल के रूप में स्वीकार करते हैं जिसकी संकल्पना हाब्स ने की थी क्योंकि वे सत्ता के केन्द्रीकरण के विरुद्ध है।
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- अध्याय -1 राजनीति विज्ञान : परिभाषा, प्रकृति एवं क्षेत्र
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 2 राजनीतिक विज्ञान की अध्ययन की विधियाँ
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 3 राजनीति विज्ञान का अन्य सामाजिक विज्ञानों से संबंध
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
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- अध्याय - 4 राजनीतिक विज्ञान के अध्ययन के उपागम
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- अध्याय - 5 आधुनिक दृष्टिकोण : व्यवहारवाद एवं उत्तर-व्यवहारवाद
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- अध्याय - 6 आधुनिकतावाद एवं उत्तर-आधुनिकतावाद
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- उत्तरमाला
- अध्याय - 7 राज्य : प्रकृति, तत्व एवं उत्पत्ति के सिद्धांत
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- उत्तरमाला
- अध्याय - 8 राज्य के सिद्धान्त
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- अध्याय - 9 सम्प्रभुता : अद्वैतवाद व बहुलवाद
- महत्त्वपूर्ण तथ्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 10 कानून : परिभाषा, स्रोत एवं वर्गीकरण
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- अध्याय - 11 दण्ड
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- अध्याय - 12 स्वतंत्रता
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- अध्याय - 13 समानता
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- अध्याय - 14 न्याय
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- अध्याय - 15 शक्ति, प्रभाव, सत्ता तथा वैधता या औचित्यपूर्णता
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- अध्याय - 16 अधिकार एवं कर्त्तव्य
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- अध्याय - 17 राजनीतिक संस्कृति, राजनीतिक सहभागिता, राजनीतिक विकास एवं राजनीतिक आधुनिकीकरण
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- अध्याय - 18 उपनिवेशवाद एवं नव-उपनिवेशवाद
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- अध्याय - 19 राष्ट्रवाद व सांस्कृतिक राष्ट्रवाद
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- अध्याय - 20 वैश्वीकरण
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- अध्याय - 21 मानवाधिकार
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- अध्याय - 22 नारीवाद
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- अध्याय - 24 राष्ट्रपति प्रणाली
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- अध्याय - 25 संघीय एवं एकात्मक प्रणाली
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- अध्याय - 26 राजनीतिक दल
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- अध्याय - 27 दबाव समूह
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- अध्याय - 28 सरकार के अंग : कार्यपालिका, विधायिका एवं न्यायपालिका
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- अध्याय - 29 संविधान, संविधानवाद, लोकतन्त्र एवं अधिनायकवाद .
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- अध्याय - 30 लोकमत एवं सामाजिक न्याय
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- अध्याय - 31 धर्मनिरपेक्षता एवं विकेन्द्रीकरण
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- अध्याय - 32 प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त
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