बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक प्रबन्ध बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक प्रबन्धसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक प्रबन्ध - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 6 निर्णयन : अवधारणा एवं प्रक्रिया
(Decision Making: Concept and Process)
निर्णयन के बिना किसी संस्था, संगठन या विभाग के प्रबन्ध की कोई पहचान नहीं हो सकती । प्रबन्धक का मूल कार्य निर्णयन होता है। निर्णयन तथा प्रबन्धक में आपसी घनिष्ठ सम्बन्ध तथा अन्तरनिर्भरता होती है। यह प्रबन्ध का सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण कार्य है तथा वर्तमान में निर्णयन को प्रबन्धकों की कार्य निष्पादनशीलता का आधार माना जाने लगा है। निर्णयन का आशय किसी सम्मति अथवा कार्यवाही करने की कार्यवाही को तय करने से होता है। निर्णयन की विभिन्न अवधारणा जैसे- चयन अवधारणा, समस्या समाधान अवधारणा, वचनबद्धता अवधारणा, सर्वव्यापकता की अवधारणा आदि होती है। निर्णयन की सर्वव्यापकता के कारण ही इसे प्रबन्ध का समानार्थी भी माना जाता है। निर्णयन एक तर्कपूर्ण एवं विवेकशील क्रिया है, जो कि उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक होती है। यह सतत् गामी प्रक्रिया होती है जिसमें परिस्थिति तत्व, आर्थिक तत्व, सामाजिक वैधानिक तत्व, व्यावहारिक तत्व आदि समाहित रहते हैं। निर्णय लेने के लिये प्रबन्ध कों द्वारा कुछ निश्चित सिद्धान्तों का पालन किया जाता है। विभिन्न विद्वानों ने निर्णयन को विभिन्न रूपों जैसे- एकल तथा सामूहिक निर्णय, कार्यक्रमात्मक तथा अकार्यक्रमात्मक निर्णय आदि में बाँटा है। निर्णय लेना एक अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य है जिसे प्रबन्धन की आत्मा कहा जा सकता है। निर्णय लेने के लिये निश्चित प्रक्रिया को अपनाया जाता है तथा निर्णयन की तकनीकें भी अपनायी जाती हैं। निर्णय लेना एक विवेकपूर्ण प्रक्रिया है । सर्वश्रेष्ठ विकल्पों की खोज एवं चयन करने के स्थान पर ऐसे निर्णयों को स्वीकार करना जो कि अच्छे तो हैं किन्तु आदर्श नहीं, परिसीमित विवेकता कहलाता है। पूर्ण विवेकता एक काल्पनिक अवधारणा है किन्तु इसे प्राप्त करना असम्भव है। स्पष्ट लक्ष्यों के अभाव में पूर्ण विवेकता न तो स्थापित हो सकती है और न ही प्राप्त की जा सकती है।
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