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बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2759
आईएसबीएन :0

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बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- पर्यावरणीय नीति की विवेचना कीजिए।

उत्तर- 

पर्यावरणीय नीति
(Environmental Ethics)

मानव का पर्यावरण से अविछिन्न सम्बन्ध है। अगर पर्यावरण के सन्तुलन में अधिक परिवर्तन आता है और निरन्तर दूषित होने के कारण उसका अधिक ह्रास होता है तो निश्चित ही अनेकानेक अन्य जीवधारियों के साथ साथ मनुष्य का अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा। बड़े-बड़े शहरों में प्रदूषण इतना बढ़ता जा रहा है कि वहाँ श्वसन के लिए साफ हवा, पीने के लिए शुद्ध जल और खाने के लिए शुद्ध-खाद्य पदार्थों का मिलना दुश्वार हो गया है। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रकाशित दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित बीस शहरों की सूची में भारत के तीन मेट्रोपोलिटिन शहर - दिल्ली, कोलकाता और मुम्बई के नाम प्रथम दस में ही आ जाते हैं। आजकल दिल्ली देश का सबसे अधिक प्रदूषित शहर बन गया है।

मनुष्य ने बिना पारिस्थितिकी के सन्तुलन की चिन्ता किये अपनी जरूरतों को पूरा करने व विलासी जीवन के उपक्रम जुटाने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का व्यापक दोहन किया है और उसे प्रदूषित किया है। इस विवेकहीन अभियान से उसने धरती, जल, वायु और आकाश किसी को नहीं बख्शा है। आज प्रदूषण पहाड़ों की चोटियों, समुद्रों की गहराइयों, धरती के कोनों कोनों तथा वायुमण्डल के ऊपर अन्तरिक्ष के विस्तार तक पहुँच गया है। इसका सीधा प्रभाव पारिस्थितिकी पर पड़ा है। प्रकृति में विभिन्न जीवन दायिनी क्रियाओं - प्रक्रियाओं के चक्र चलते रहते हैं, जिनका मूल प्रयोजन विभिन्न स्तरों पर जीवधारियों अर्थात् वनस्पतियों और प्राणियों को, अपनी गतिविधियों को संचालित करने के लिए ऊर्जा उपलब्ध कराना है। ऊर्जा का यह प्रवाह जीवों में खाद्य श्रृंखला पर आधारित है, परन्तु इसके लिए उन्हें वातावरण में पदार्थों के निरन्तर आदान-प्रदान पर निर्भर होना पड़ता है। यह सब अजैव घटकों के बीच विभिन्न भौतिक कारकों के माध्यम से पूरा हो जाता है। अगर प्रकृति में ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड इत्यादि के चक्र पूरे नहीं हों अथवा अपेक्षित स्तर के नहीं हों तो निश्चित ही जीव जगत का सन्तुलन डगमगा जायेगा । इसी तरह जैवमंडल के विभिन्न स्तरों की संरचना, परिमाण, विविधता तथा उनके बीच स्थापित सामंजस्य गड़बड़ हो जाएँ तो अजैव घटकों के बीच संचालित होने वाली प्रक्रियाओं तथा उनके चक्रों में भी विघ्न पड़ जायेगा और सभी पारिस्थितिकी में असन्तुलन के आसार नजर आने लगेंगे। अगर वृक्षों की अधिक कटाई होती है और नये वृक्षों द्वारा उनकी पूर्ति नहीं होती है तो सबसे पहले कार्बन डाइऑक्साइड और ऑक्सीजन के चक्र प्रभावित होंगे। उनका प्रभाव समस्त जैविक जगत पर पड़ेगा।

विकसित देशों में प्रदूषण से होने वाले खतरों के प्रति चिन्ता दूसरे विश्व-युद्ध के बाद से ही होने लगी थी किन्तु उसे रोकने के अन्तर्राष्ट्रीय प्रयास आठवें दशक के आरम्भ में हुए । जून 1972 में स्वीडन की राजधनी स्टॉकहोम में संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वाधान में मानव पर्यावरण पर प्रथम विश्व सम्मेलन हुआ। इसमें भारत ने सक्रिय रूप से भाग लिया था तथा तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने देश का प्रतिनिधित्व किया। उसी समय से ही हमारे देश में पर्यावरण संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। समय-समय पर आवश्यक नियम बनाये गये हैं। इसी दौरान हमारी राष्ट्रीय पर्यावरण नीति का भी निर्माण हुआ है। इसका मुख्य उद्देश्य यही है कि विकास के कार्यक्रमों को इस तरह नियोजित किया जाये कि उनसे पर्यावरण की अपूरणीय क्षति नहीं हो तथा विकास ऐसा हो, जिसका क्रम चलता रहे अर्थात् वह अनुरक्षणीय हो । हमारी राष्ट्रीय पर्यावरण नीति संयुक्त राष्ट्र संघ में परिलक्षित संपोषणीय विकास की विश्व नीति पर ही आधारित है। बढ़ती हुई जनसंख्या, विलास प्रवृत्ति तथा अनुशासनहीनता के अतिरिक्त पर्यावरण के समक्ष सबसे बड़ी समस्या विकास कार्यक्रमों के दौरान उत्पन्न दुष्प्रभावों के कारण आती है। ये दुष्प्रभाव कई प्रकार के होते हैं, जैसे - प्राकृतिक सम्पदा का बड़े पैमाने पर वन विनाश, अपशिष्ट उत्पादों व अवशिष्टों का गलत विसर्जन, अन्धाधुन्ध निर्माण, आवासीय गतिविधियों का फैलाव इत्यादि । इन दुष्प्रभावों से पर्यावरण को यथासम्भव बचाने की ओर सरकार का ध्यान चौथी पंचवर्षीय योजना के दौरान गया। इस समस्या की गहराई में जाने तथा पर्यावरण सुरक्षा और संरक्षण के प्रभावी उपाय सुझाने हेतु सन् 1972 में 'पर्यावरण समन्वय' पर एक कमेटी बनाई गई । विभिन्न विभागों के विकास सम्बन्धी कार्य एवं अन्य गतिविधियों के केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच बँटी हुई जिम्मेदारियों और अधिकार प्राप्ति ने काफी कठिनाइयाँ उपस्थिति कीं और आज भी कर रहे हैं। इन स्थितियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए केन्द्र में प्रधानमंत्री की देख-रेख में सन् 1980 में पर्यावरण विभाग की स्थापना की गई तथा 1985 में स्वतन्त्र मंत्रालय ही बना दिया। सन् 1972 से अब तक अनेक नियम बनाये जा चुके हैं तथा पर्यावरण संरक्षण हेतु सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएँ प्रयत्नशील हैं। सन् 1988 में नयी पर्यावरण नीति की घोषणा की गई, जिसके निम्नलिखित उद्देश्य हैं-

(i) पारिस्थितिक सन्तुलन का संरक्षण,
(ii) जैव विविधता का संरक्षण,
(iii) मृदा और जल प्रबन्धन,
(iv) पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए उत्पादकता में वृद्धि,
(v) ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्र की जनसंख्या की आवश्यकता पूर्ति,
(vi) वनीय उत्पादों का समुचित प्रयोग,
(vii) लकड़ी के विकल्पों की खोज,
(viii) उपरोक्त कार्यक्रमों में जन-सामान्य की सहभागिता सुनिश्चित करना।

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