बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- पर्यावरणीय शिक्षा के पाठ्यक्रम को लागू करने में शिक्षकों की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पर्यावरणीय संरक्षण एवं सुधार के अभियान को व्यापक तौर पर चलाने के लिए पूरे समाज की जिम्मेदारी होती है। किन्तु शिक्षक समाज का एक महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व युक्त सदस्य है । पर्यावरणीय शिक्षा के पाठ्यक्रम को लागू करने तथा पर्यावरण संरक्षण के लक्ष्य की प्राप्ति में शिक्षक की भूमिका विशेष रूप में मानी गई है। शिक्षक का सम्बन्ध विभिन्न आयु वर्ग के छात्रों से होता है। एक पथ प्रदर्शक की भांति वह समाज की विविध समस्याओं से उन्हें अवगत कराकर उनका नवीन एवं सफल समाधान ढूँढ़ने हेतु छात्रों को प्रेरित कर सकता है। आज के समय में पर्यावरण प्रदूषण एक ज्वलन्त समस्या है जो प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप में पूरे विश्व को उसके भौतिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक स्वरूपों में विकृति लाकर प्रभावित कर रही है। आज समाज के बुद्धिजीवी वर्ग में शिक्षक इस समस्या विशेष के प्रति संवेदनशीलता विकसित करने के लिए विशेष भूमिका निभा सकता है। क्योंकि वह समाज की समस्याओं का विद्यालय जैसी प्रयोगशाला में अशोधन करने वाला एक संवेदनशील एवं जिम्मेदार नागरिक होता है। जो अपने छात्रों में अपने वातावरण या पर्यावरण, भौतिक, सामाजिक एवं मनौवैज्ञानिक के प्रति चेतना विकसित करने के लिए विविध कार्यक्रमों को आयोजन कर सकता है।
1. पर्यावरण जागरुकता या जन-जागृति कार्यक्रमों का आयोजन
2. पाठ्य सहगामी क्रियाओं का आयोजन
3. पर्यटन द्वारा शिक्षा - छात्रों को भ्रमण एवं पर्यटन के माध्यम से विशिष्ट स्थलों एवं आत्मविकृतियों तथा प्रदूषणों का दृष्टान्त प्रस्तुत कराकर शिक्षक विशेष भूमिका निभा सकता है। ऐसे स्थलों पर वह प्रदूषण द्वारा पड़े प्रभावों का निरीक्षण करने में अपने अनुभवों द्वारा छात्रों की सहायता कर सकता है। इसके अतिरिक्त शिक्षक पर्यावरण पाठ्यक्रम को लागू करने में छात्रों को प्राथमिक स्तर से ही स्वच्छता, स्वास्थ्य, व्यायाम, योग, प्राकृतिक संसाधनों का सीमित दोहन तथा अपशिष्ट निस्तारण के प्रति जागरुक करते रहना चाहिए । इस सृष्टि के पंचभूतों- क्षिति, जल, पावक, गगन एवं समीर के प्रति सद्भाव रखने तथा उनके प्रति शृद्धावनत होने के संस्कार यदि बालकों में प्रारम्भ से ही डाले जा सकें तो निश्चित ही पर्यावरण पाठ्यक्रम को सफलता के साथ सिखाने तथा सीखने के साथ-साथ पर्यावरण प्रदूषण से बचने तथा पर्यावरण को संरक्षित रखने में सफलता मिलेगी और हम ईश्वर की अति सुन्दर रचना इस सृष्टि तथा मानव के अस्तित्व को बचाने में सफल हो सकेंगे।
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