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बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2759
आईएसबीएन :0

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बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- पर्यावरण जागरुकता और दीर्घकालीन विकास पर प्रकाश डालिए।

अथवा
दीर्घकालीन पर्यावरण की सम्भावना एवं रणनीति का वर्णन कीजिए।
अथवा
संवहनीय विकास क्या है? भारत में संवहनीय पर्यावरणीय विकास के लिए आप क्या सुझाव देंगे?

उत्तर- 

पर्यावरण जागरुकता और दीर्घकालीन विकास

संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 1994 को पर्यावरण चेतना का वर्ष भी कहा है। अन्य मुद्दों के अलावा पर्यावरण चेतना जागरुकता के जो प्रयास हुए थे उनकी आधारशिला इसके द्वारा 1993 में रियो में हुए अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण जागरुकता सम्मेलन में रखी गई थी। इस मायने में यह वर्ष रोमांचकारी रहा है। चमत्कारों से चकाचौंध हुआ यह पिछला वर्ष पर्यावरण के कई अनुसन्धानों की ओर बढ़ा है। पर्यावरण की देखभाल करके हम कैंसर जैसे घातक रोगों के निवारण के लिए ऐसा लाभप्रद वातावरण बना सकते हैं जो एक विशेष प्रकार के कैंसर निरोधक टीके के शोध में मानव कल्याण के लिए गुणकारी साबित हो सकता है। बढ़ते हुए रेगिस्तान, जिसकी रफ्तार संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रति वर्ष आधा किलोमीटर आँकी है, इसी के साथ घटते जंगल और वर्षा की कमी से इस पृथ्वी का सन्तुलन बिगड़ता जा रहा है।

विश्व अभियान में पर्यावरण चेतना का प्रयास संयुक्त राष्ट्र का खास हिस्सा रहेगा तथा इसी के चलते हुए अफ्रीका उप-महाद्वीप में विशेष वृक्षारोपण तथा अद्भुत जंगली जड़ी-बूटियों के संरक्षण तथा हिमालय के तराई भू-भाग में कुछ दुर्लभ जड़ी-बूटियों को बचाने के प्रयास भी हुए हैं। अफ्रीकी तथा एशियाई देशों में जंगलों की अन्धाधुन्ध कटाई को रोकने के लिए वहाँ की सरकारों के साथ मिलकर प्रयास किये जा रहे हैं।

भारत में पर्यावरण चेतना

इस वर्ष देश के पर्यावरण परिदृश्य पर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन, विरोध प्रदर्शन तथा समुद्र में तेल प्रदूषण रोकने के प्रयासों को भी तेजी मिलने की सम्भावना है। भारत में पिछले 20 वर्षों से अटकी हुई बाँध परियोजना को शीघ्र पूरा करने की योजना है।

भारत सरकान ने जंगली जीव अधिनियम बना रखा है और बाघ, हिरण तथा हाथियों इत्यादि को मारने की घटनाएँ बराबर कम हो रही हैं। बाघ परियोजना पूरी हुई है। इस सिलसिले में जिनेवा के (आई.यू.सी.एन.) इन्टरनेशनल यूनियन ऑफ नेचर एण्ड नेचुरल रिसोर्सेज के पर्यावरण और जीव विशेषज्ञों ने कहा है कि यदि इन जीवों को भारत समेत अन्य दक्षिण एशियाई देशों में बचाने के प्रयास न किये गये तो यह प्रजातियाँ तथा नस्लें खत्म हो सकती हैं।

ओजोन परत को नुकसान पहुँचाने वाले तत्त्वों के हटाने के 6 हजार करोड़ रुपये की मांट्रियल संधि में भारत के हिस्से को इस वर्ष पर्यावरण की दृष्टि से और ज्यादा चेतनायुक्त बनाया जाएगा ताकि लोगों द्वारा इस बचाव के कार्य को और तेज किया जा सके तथा ओजोन परत को बचाया जा सके।

आज पूरे विश्व की तुलना में अपने देश के जंगलों की कटाई इतनी तेजी से बढ़ी है जितनी संसार के किसी और भू-भाग पर नहीं हुई है। अब घटते हुए वनों की संख्या मात्र 14 प्रतिशत तक है, जबकि लैटिन अमरीका तथा अफ्रीका के देशों में यह 36 प्रतिशत तथा 28 प्रतिशत है। पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र द्वारा ब्राजील पृथ्वी सम्मेलन में उठाये गये मुद्दों की रोशनी में इस वर्ष की परिकल्पना अच्छी है। इस योजना के अन्तर्गत लकड़ी के प्रयोग को धीरे-धीरे बन्द करने का प्रस्ताव है । संयुक्त राष्ट्र विश्व विकास बैंक तथा संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रमों के अन्तर्गत पर्यावरणीय दृष्टि से वन लगाना, सफाई, तेल रिसाव, महानगरों में प्रदूषण तथा साफ पानी की परिकल्पना का जो सपना इस वर्ष में लिया गया है, काश वह कुछ हद तक पूरा हो सके।

सुदृढ़ मानव भविष्य के विकास के लिए रणनीति

एशियाई देशों में विकास के नाम पर चलने वाली छः प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाना होगा ये  हैं-

(i) लोगों को विस्थापित करने वाले और हरी धरती को भूरी बनाने वाले बड़े उद्योग।

(ii) हमारी संस्कृति की जननी नदियों की हत्या करने तथा पानी पर केन्द्रित अधिकार कायम करने वाले बड़े बाँधों का निर्माण।

(iii) धरती की चमड़ी उधेड़ कर उसके शरीर पर घाव करने वाला खनन कार्य।

(iv) जैविक विविधता और अन्ततोगत्वा गरीबों के खाद्य के आधार को नष्ट करने, नदियों को सुखाने तथा भूक्षरण की गति को तीव्र करने वाला वन विनाश।

(v) गहरे समुद्रों में मशीनों द्वारा मछली पकड़ना तथा भूमि पर झींगा मछली का पालन ।

(vi) मनुष्य देह को व्यापार की वस्तु बनाने और संस्कृति की हत्या करने वाला विलासितापूर्ण पर्यटन।

इन विनाशकारी प्रवृत्तियों के खिलाफ कई जन-आन्दोलन चल रहे हैं। लेकिन इन सारे प्रवाह को जो हमें प्रकृति से विकृति की ओर ले जा रहा है, मोड़ने के लिए पर्यावरणीय संरक्षण प्रवृत्ति की आवश्यकता है यही हम लोगों को, विशेष रूप से विकासशील देशों में प्रकृति से संस्कृति की ओर ले जाये।

1. पर्यावरण के प्रति प्रत्येक बालक में प्राथमिक शिक्षा से ही स्वचेतन की जागृति उत्पन्न हो जाये।

2. पर्यावरण शिक्षा को एक विषय के रूप में शुरू से ही शिक्षा का एक अंग बनाया जाये।

3. वन लगाने की या पेड़ लगाने की प्रवृत्ति उत्पन्न कर साथ ही वनों के महत्त्व को प्रचारित किया जाये। इसमें टी.वी., आकाशवाणी तथा सभी तरह के प्रचार माध्यमों का सहयोग लेना जरूरी है।

4. सीमित परिवार का नारा सन्तुलित पर्यावरण के साथ जोड़ा जाना चाहिए।

5. मनुष्य अपनी आवश्यकताओं व महत्त्वाकांक्षाओं को सीमित करे व कम से कम प्रकृति का दोहन करे व प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग भी कम से कम करे।

6. ऊर्जा के अपव्यय के रोके व गैर पारम्परिक ऊर्जा स्रोत जो कि ऊर्जा के अक्षय भण्डार हैं, जैसे सौर ऊर्जा का उपयोग करे। इससे पारम्परिक ऊर्जा की बचत होगी, साथ ही प्रदूषण भी कम होगा।

7. परमाणु परीक्षणों पर रोक लगाई जाये, क्योंकि इससे बड़े पैमाने पर पर्यावरण प्रदूषण होता है।

8. उद्योगों द्वारा निकलने वाले बहिस्रावी पदार्थों की व्यवस्था के लिए कानून को दृढ़ता से लागू करें।

9. वाहनों की संख्या को सीमित किया जाये व इनसे निकलने वाले धुएँ से होने वाले प्रदूषण से बचा जाना चाहिए।

10. विश्व में शांति के प्रयास किये जाएँ, क्योंकि युद्ध और हिंसा से दूर प्रदूषण से पर्यावरण को भारी खतरा पैदा हो रहा है। जैसे कुवैत - इराक व बहुराष्ट्रीय सेना के प्रदूषण व अन्य प्रदूषणों से जन-धन व पर्यावरण को भारी हानि हुई।

11. अधिक से अधिक पेड़ व वन लगाये जाएँ तो पर्यावरण में सुधार किया जा सकता है. तथा पर्यावरणीय असन्तुलन को रोका जा सकता है। इससे जहाँ प्रकृति का सौन्दर्यकरण होगा वहीं प्रदूषण व मृदा अपरदन की समस्या से भी मुक्ति मिलेगी। क्योंकि नंगी धरती पर बारिश का पानी जब सीधा गिरता है तो मृदा की ऊपरी परत को अपने साथ बहाकर नदियों में ले जाता है।

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