बी एड - एम एड >> बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 4 सह-पाठ्यक्रमीय क्रियाएँ एवं मूल्यांकन
(Co-Curricular Activities and Evaluation)
प्रश्न- पर्यावरणीय शिक्षा को प्रभावी बनाने के लिए जन जागृति कार्यक्रमों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
पर्यावरणीय शिक्षा के प्रसार के लिए किए जा रहे कार्यों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
पर्यावरण जागरुकता या जन-जागृति कार्यक्रम
भारत सरकार के पर्यावरण विभाग ने 1982-83 में जन-जागृति कार्यक्रम प्रारम्भ किये हैं, इन्हें पारिस्थितिकी विकास शिविर, व्याख्यान, प्रशिक्षण कार्यक्रम, फिल्म प्रदर्शन, प्रदर्शनियाँ तथा कार्य गोष्ठियों के द्वारा आयोजन कर क्रियान्वित किया गया है। पर्यावरण से सम्बन्धित पर्यावरणीय जन-जागृति कार्यक्रम निम्नलिखित हैं-
1. पर्यावरणीय खेल - बालकों की अभिवृत्ति तथा विषय-वस्तु पर ध्यान केन्द्रित करने के लिये खेल एक अच्छा साधन है। खेल विशेषकर वैयक्तिक मूल्य, निर्णय तथा प्रवृत्ति निर्माण के विकास में सहायक एवं उपयोगी होते हैं। अतः खेल उन गुणों को बढ़ाता है, जिससे उनका व्यक्तित्व बनता है, लेकिन खेल को संगामी प्रवृत्ति के रूप में जोड़ा गया है और यह स्वीकार किया गया है कि इसके द्वारा शिक्षा का मानसिक बोझ बालक पर अधिक न पड़े। वर्तमान में इसे शिक्षा एवं विषय शिक्षण के रूप में शिक्षाशास्त्रियों ने जोड़कर शिक्षा को अत्यधिक महत्त्व वाला बना दिया है। खेल निम्नलिखित प्रकार से बालकों के लिये उपयोगी है-
(i) खेल स्वास्थ्य को अच्छा बनाते हैं तथा व्यक्ति में अधिक से अधिक प्रतिरोधक क्षमता को पैदा करते हैं।
(ii) इनसे मानसिक विकास होता है, इसी के द्वारा बालक सन्तुलन बनाकर अपनी काल्पनिक एवं तार्किक शक्ति का विकास करता है।
(iii) यह बालक में सामाजिक गुणों का विकास करता है, जिसमें आपसी अनुशासन, उत्तरदायित्व एवं दूसरों की सहायता जैसे गुणों में वृद्धि होती है।
(iv) यह बालकों के संवेगों में नियंत्रण की क्षमता पैदा करता है तथा लज्जाशीलता, कायरता एवं चिड़चिड़ेपन को दूर करता है।
(v) बालकों को खेलों के द्वारा रुचिकर सूचनाएँ मिलती हैं तथा बालक इन्हें सुगमता से सीख जाते हैं।
(vi) खेलों की गतिविधियों के द्वारा सूचना का विश्लेषण किया जाता है।
पर्यावरण के क्षेत्र में खेलों का प्रयोग पर्यावरण शिक्षा केन्द्र, अहमदाबाद (गुजरात) ने किया है, जो सम्भवतः प्रथम तथा मौलिक है। खेल द्वारा छात्रों को पर्यावरण संरक्षण, पर्यावरण सन्तुलन एवं प्राकृतिक विरासत की महत्ता जैसे कठिन प्रयत्नों को सहजता एवं आसानी से समझाने का प्रयत्न किया गया है। इसके विषय में उनके द्वारा एक प्रकाशन भी किया गया है, जिसमें पर्यावरणीय सिद्धान्तों को प्रतिपादित करने के लिये खेलों के सुझाव दिये गये हैं।
2. अभिनय - अभिनय छात्रों के द्वारा अभिनीत हो या अन्य किन्हीं अभिनेताओं द्वारा, उन्हें पर्यावरण अध्ययन शिक्षण की उद्योतन सामग्री के रूप में प्रभावी विधि से प्रयुक्त किया जा सकता है । ऐतिहासिक प्रकरणों तथा कठिन पर्यावरणीय अध्ययन के सम्प्रत्ययों को अभिनय के रूप में बोधगम्य एवं सुगम बनाया जा सकता है। छोटी कक्षाओं में इन्हें वार्तालाप या कथोपकथन के रूप में प्रसतुत करना अधिक उपयुक्त रहता है। पर्यावरण बचाओ या पर्यावरण का सुखद स्वरूप अभिनीत अभिनयशाला में कराया जा सकता है।
3. चल-चित्र या फिल्म - शैक्षिक दृष्टि से मनोरंजन के साथ-साथ चलचित्र शैक्षिक प्रक्रिया की पूर्ति का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। इसके माध्यम से अमनोरंजनात्मक वातावरण में कठिन से कठिन ज्ञान को बड़ी आसानी से एवं शीघ्रता से तथा स्थायी रूप से दिया जा सकता है। इसके माध्यम से दूरस्थ परिस्थितियों को भी उसी रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। आजकल बालकों में अच्छी आदतों के निर्माण तथा नैतिकता, चारित्रिक विकास और इसी प्रकार नागरिकता के गुणों से सम्बद्ध अनेक चलचित्र बनाये जाते हैं। उनका भी सफल उपयोग पर्यावरणीय अध्ययन के लिये किया जा सकता है, लेकिन इसके अध्यापन उद्देश्यों की पूर्ति के प्रसंग में उपयोग के समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि प्रदर्शित किया जा रहा चल-चित्र बालकों के ज्ञान में वृद्धि कर रहा है, केवल उसका मनोरंजन ही नहीं कर रहा है।
लोक संचार, नई दिल्ली द्वारा अनेक अभिनयात्मक फिल्म ऐसी तैयार की गयी हैं जो पर्यावरणीय बोध, उसके स्वरूप तथा संरक्षण द्वारा उसके रचनात्मक स्वरूप को स्पष्ट करती है।
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