बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोलसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था के ग्रामीण जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव की विवेचना कीजिए।
उत्तर -
वस्तुतः पंचायती राज के प्रभावों का मूल्यांकन करने की दृष्टि से अनेक विद्वानों के द्वारा समय-समय पर कई अनुसंधान किये गये। ऐसे अनुसन्धान प्रमुखतः सामाजिक संरचना और पंचायती राज से सम्बन्धित हैं। समाज वैज्ञानिकों ने सामाजिक संरचना के कुछ पहलुओं, जैसे जाति, नातेदारी, परिवार, गुट तथा वर्ग पर पंचायती राज संस्थाओं के प्रभाव का अध्ययन किया है।
(i) एम० एन० श्रीनिवास ने - अपने सर्वेक्षण के आधार पर बताया है कि पंचायती राज ने निम्न जातियों, विशेष रूप से हरिजनों का आत्म-सम्मान तथा शक्ति की एक नवीन अनुभूति प्रदान की है। रेजलॉफ (Ratzlaff) ने उत्तर प्रदेश के एक गाँव के अपने अध्ययन के आधार पर निष्कर्ष निकाला है कि पंचायतों के प्रारम्भ तथा इनके चुनावों के फलस्वरूप विभिन्न जातियों की शक्ति संरचना में परिवर्तन आया है।
(ii) उत्तर प्रदेश के एक जिले के अध्ययन के आधार पर एच० ए० गोल्ड ने स्पष्ट किया है कि आधुनिक राजनीतिक व्यवस्था को प्रारम्भ में सामाजिक स्तरीकरण की पुरानी व्यवस्था को काफी बदल दिया है और इस प्रकार सामाजिक गतिशीलता के नवीन प्रतिमानों के लिये एक आधार प्रस्तुत किया है।
(iii) विद्वानों ने ग्रामीण भारत में पंचायती राज के सन्दर्भ में नेतृत्व प्रतिमान का भी अध्ययन किया है। इस सम्बन्ध में अनेक अनुसंधान हुये हैं, जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण अनुसंधानों पर यहाँ संक्षिप्त में विचार किया जायेगा। उत्तर प्रदेश में किये गये अध्ययन के आधार पर रोबिन्स ने गाँव में नेताओं के लिये आवश्यक पूर्वापेक्षायें (Prerequisites) भिन्न-भिन्न हैं। हरजेन्द्र सिंह ने अपने अध्ययन के आधार पर पाया कि समाज के निम्न वर्गों से सम्बन्धित नेता अब भी अप्रभावी हैं तथा अनौपचारिक नेतृत्व अब भी प्रभावशाली हैं। पंचायतों से सम्बद्ध नेता परम्परागत नेताओं पर छाय गये हैं। इससे ग्रामों को बाहरी सम्पर्क के अधिक अवसर मिलने लगे हैं।
कमल कृष्ण ने - उत्तर प्रदेश में ग्रामीण नेतृत्व के अपने अध्ययन में पाया कि अधिकतर नेता उच्च जातियों से सम्बन्धित थे, यद्यपि उनकी सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि मध्यम वर्ग के बहुत निकट थी। आपने यह भी पाया कि एक के बाद दूसरे और तीसरे चुनावों में अशिक्षित नेताओं को हटाया गया और उनका स्थान धीरे-धीरे शिक्षित नेताओं ने लिया।
आन्द्रे बिताई ने - अपने अध्ययन के आधार पर बताया है कि आज राजनीतिक शक्ति गाँव में या गाँव के बाहर, भूमि के स्वामित्व के साथ उतनी निकट से सम्बन्धित नहीं है। यह कुछ सीमा तक जाति और वर्ग दोनों से स्वतन्त्र हैं। सम्भवतः इनमें से सर्वाधिक महत्वपूर्ण आधार संख्या का समर्थन (numerical support) है। संक्षेप में,
(iv) पंचायती राज ने ग्रामीण समस्याओं के समाधान में योगदान दिया है।
(v) पंचायती राज के फलस्वरूप अब ग्रामीण लोग अपनी समस्याओं के सम्बन्ध में अधिक बोलने, अपनी माँगों के सम्बन्ध में अधिक जोर देने लगे हैं और प्रशासन की कमियों तथा कार्यक्रमों की क्रियान्वयन सम्बन्धी उसकी असफलताओं के सम्बन्ध में अधिक आलोचना करने लगे हैं।
(vi) पंचायती राज के कारण जाति पंचायतों का महत्व घटा है।
(vii) पंचायती राज के फलस्वरूप गाँवों में शिक्षा का प्रसार हुआ है।
(viii) पंचायती राज के कारण ग्रामीणों को चिकित्सा एवं स्वास्थ्य की सुविधाएँ प्राप्त हुई हैं, और आवास की समुचित व्यवस्था भी की गयी है।
(ix) पंचायती राज का एक दुष्प्रभाव यह हुआ है कि इससे गाँवों में गुटबाजी और संघर्ष बढ़े हैं।
(x) ग्राम पंचायतों की स्थापना ने ग्रामीणों के उत्तरदायित्व की भावना को जगाने की दृष्टि से महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। राजस्थान के कुछ गाँवों के अध्ययन में पाया गया है कि पंचायती राज की स्थापना ने उन नवीन सामाजिक शक्तियों को प्रकट किया है जो अभी तक अप्रकट अवस्था में थीं और जिन्होंने ग्रामों की सामाजिक संरचना में बहुत से परिवर्तन लाने में योगदान दिया है।
(xi) पंचायती राज की स्थापना ने नवीन संस्तरणों (hierachies) को भी उत्पन्न किया है जिसके परिणामस्वरूप प्राचीन एवं नवीन दोनों संस्करणों में तनाव पाये जाते हैं जैसे अधिकारियों और अराजकीय लोगों के बीच। ये तनाव पंचायती राज संस्थाओं के सफल कार्य-संचालन में बाधक हैं।
स्पष्ट है कि पंचायती राज ने ग्रामीण सामाजिक संरचना में परिवर्तन लाने में सहयोग प्रदान किया है। इसी कारण अब लोग विकास कार्यों में भाग लेते हैं व विकास कार्यक्रमों के क्रियान्वयन से सम्बन्धित असफलताओं को उजागर करके आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाते हैं। अब राजनीतिक दल ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवेश कर रहे हैं।
वस्तुत; पंचायती राज के सम्बन्ध में लोगों की धारणाओं का पता लगाने के उद्देश्य से एल० के० सेन की देख-रेख में सामुदायिकता विकास के राष्ट्रीय संस्थान द्वारा सम्पूर्ण देश में से 365 गाँवों तथा 7,000 उत्तरदाताओं को निर्देशन के रूप में चुनकर अध्ययन किया गया। इस अध्ययन से ज्ञात हुआ कि पंचायती राज और पंचायतों के चुनाव हुये सदस्यों के प्रति ग्रामीणों की प्रवृत्ति अनुकूल है। ग्रामीण पुराने परम्परागत नेताओं तथा सरकारी अधिकारियों के बजाय इन चुने हुये नेताओं को अधिक पसन्द करते हैं। ये उत्तरदाता ग्रामीण क्षेत्रों में गुटवाद की समस्या से चिंतित नहीं हैं। पंचायती राज की स्थापना के पश्चात् सामुदायिक विकास कार्यक्रम का क्रियान्वयन अधिक अच्छे ढंग से हुआ है। यद्यपि पंचायती राज की प्रगति ग्रामीण क्षेत्रों में धीमी रही है, परन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं है कि इसने ग्रामीणों में विकास योजनाओं के प्रति उत्साह जागृत किया है, अपनी समस्याओं को हल करने की ओर उन्हें प्रवृत्त किया है, और लोकतन्त्र को ग्राम-स्तर पर पहुँचाने में योगदान दिया है।
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- प्रश्न- प्रदेश को परिभाषित कीजिए एवं उसके दो प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
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- प्रश्न- सामान्य एवं विशिष्ट प्रदेश से क्या आशय है?
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- प्रश्न- मध्य गंगा के मैदान के भौगोलिक प्रदेश पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- सतत् विकास के लक्ष्य कौन-कौन से हैं?
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- प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था के ग्रामीण जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव की विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- न्यूनतम आवश्यक उपागम की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के सम्मिलित कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के नगरीय क्षेत्रों के प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं?