बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोलसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- डिजिटल इमेज प्रक्रमण के तहत इमेज उच्चीकरण तकनीक की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
उत्तर -
(Image Enhancement Techniques)
रिमोट सेंसिंग तकनीक से बेहतर छवि हासिल करना प्रमुख उद्देश्य होता है, लेकिन कई बार इमेज स्पष्ट रूप से प्राप्त नही हो पाती है। ऐसे में उच्चीकरण तकनीक का प्रयोग करके उस इमेज को उपयोग में लाने लायक बनाया जाता है। इमेज उच्चीकरण किसी दृश्य में धरातलीय लक्षणों के मध्य दृश्य विभेदन को बढ़ाता है। इस तकनीक का उपयोग करने के पश्चात् निर्मित इमेज से सूचनाओं को एकत्र करने की क्षमता बढ़ती है। देखकर भी आँकड़ों का विश्लेषण किया जा सकता है। धरातलीय लक्षणों में भेद स्थापित करने को विपर्यास (Contrast ) कहते हैं।
विपर्यास - इमेज में प्रकाश पुंज अथवा ग्रेस्तर के मानों में भेद अथवा विषमता को दर्शाने के लिए विपर्यास का प्रयोग होता है। इसका अर्थ यह है कि विपर्यास किसी इमेज में अधिकतम तथा न्यूनतम प्रकाश गहनता का आनुपातिक सम्बन्ध है।
/ Maximum (अधिकतम गहनता)
विपर्यास (Contrast) C = --------------------------------------------
/ Minimum (न्यूनतम गहनता)
विपर्यास अनुपात के द्वारा किसी इमेज में विभिन्न लक्षणों में भेद स्थापित किया जा सकता है। अधिकतम विपर्यास मान इमेज के विश्लेषण में सरल और सहायक होते हैं।
विपर्यास कम होने के कारण (Reasons for Low Contrast) - उपग्रह आँकड़ों से सीधे निर्मित इमेज में प्रायः विपर्यास की कमी पाई जाती है। इमेज में विपर्यास कम होने के प्रमुख कारण निम्न प्रकार हैं-
(1) वायुमण्डलीय प्रकीर्णन द्वारा - वायुमण्डल में विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा के प्रकीर्णन. का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से संवेदक पर पड़ता है। प्रायः लघुतरंग दैर्ध्य भाग में इस प्रकार का प्रभाव स्पष्ट होता है।
(2) दृश्य द्वारा - कभी-कभी इमेज दृश्य में किसी लक्षण या वस्तु या उसके पृष्ठ भाग का विद्युत-चुम्बकीय विकिरण समान होता है। ऐसी दशा में दोनों में भेद स्थापित करना कठिन होता है। कम विपर्यास का दूसरा कारण सुदूर संवेदन प्रणाली है जो कभी-कभी सम्पूर्ण दृश्य में स्वतः ही कम विपर्यास अनुपात को दर्शाती है।
(3) स्पॉट विपर्यास - कई बार संवेदक प्रणालियों में इतनी क्षमता नहीं होती है कि वह किसी दृश्य के विपर्यास को पहचान या अंकित कर सके। इसी प्रकार कभी-कभी गलत अंकन विधियों के द्वारा भी किसी दृश्य में कम विपर्यास अंकित होता है जबकि स्वयं दृश्य अधिक इमेज लिये हुये होता है। किसी दृश्य में कम विपर्यास अनुपात को स्पॉट विपर्यास (Washed out) कहते हैं। इसमें सभी ग्रेमान एक तरह के होते हैं।
विपर्यास उच्चीकरण तकनीकियाँ - विपर्यास को बढ़ाने के लिए निम्न तकनीकों उपयोग किया गया है-
1. रेखीय विपर्यास पसरन - रेखीय विपर्यास पसरन मूल अन्तर्गामी ग्रे-मानों को बढ़ाने का कार्य करता है। विश्लेषणकर्ता इमेज हिस्टोग्राम का निरीक्षण करता है जो रेखीय पसरन समीकरण के उपयोग से निर्गतगामी इमेज के निर्माण में सहायक होती है। इस दौरान डिजिटल नम्बरों को आरेखीय प्रतिरूपों में वितरित किया जाता है। आरेखीय विपर्यास विधि में मूल इमेज तथा परिवर्तित इमेज के डिजिटल संख्याओं में रेखीय सम्बन्ध होते हैं।
2. हिस्टोग्राम - हिस्टोग्राम प्रसामान्यीकरण एकरेखीय विपर्यास उच्चीकरण तकनीक है जो अधिकांश प्रयोग की जाती है। मूल इमेज तथा परिवर्तित इमेज में अरेखीय सम्बन्ध होते हैं। इस विधि में मूल इमेज के हिस्टोग्राम में समान घनत्व दर्शाने के लिये ग्रेमानों को पुनर्वितरित किया जाता है। इमेज पिक्सल मानों को 0 से 255 की रेन्ज में वितरित किया जाता है जिन्हें निकटवर्ती ग्रेमानों के समूहों द्वारा प्राप्त किया जाता है। यह स्वतः ही इमेज के प्रकाशयुक्त व अंधकारयुक्त भाग में विपर्यास कम कर देता है। विपर्यास उच्चीकरण एल्गोरिथम का चुनाव, मूल हिस्टोग्राम की प्रकृति तथा दृश्य में निहित तत्वों पर निर्भर करता है।
3. घनत्व खण्डों का विभाजन - इस विधि के माध्यम से किसी इमेज के सतत् ग्रे-टोन को अलग-अलग घनत्व स्तरखण्डों में विभाजित किया जाता है। विभिन्न स्तरखण्डों को अलग-अलग रंगों में भी प्रसारित किया जा सकता है। यह तकनीक अतिसूक्ष्म ग्रे-मापक अन्तरों को महत्व देती है।
4. कोर उच्चीकरण - इमेज में दो श्रेणियों के मध्य के वसाव स्थिति को किनारा या कोर कहते हैं। विभिन्न लक्षणों की श्रेणियों में भेद स्थापित करने तथा सीमांकन करने के लिये किनारों की सूचनायें अति महत्वपूर्ण होती हैं। किनारा उच्चीकरण तकनीक को धारदार या स्पष्ट तकनीक भी कहते हैं। किनारों पर ग्रे-मानों की गहनता को उठाने के लिये उच्च मार्ग फिल्टर का उपयोग किया जाता है। कोर उच्चीकरण तकनीक धरातलीय विभेदून को बढ़ाने की क्षमता रखती है।
5. वानस्पतिक सूचकांक - धरातलीय लक्षणों में प्रकीर्णन एवं चमक में भिन्नता, धरातलीय ढाल, पहलू, छाया, सूर्य प्रकाश का परावर्तन कोण तथा उसकी गहनता आदि के कारण उत्पन्न होती हैं। चमक के कारण इमेजरी में सही आकलन नहीं हो पाता है। इस प्रकार के प्राकृतिक प्रभावों को कम करने के लिये आनुपातिक रूपान्तरण का उपयोग किया जाता है। आनुपातिक इमेज में एक स्पेक्ट्रल बैंड के मानों को दूसरे स्पेक्ट्रल बैंड के आनुपातिक मानों से विभाजित किया जाता है। इस तकनीक में किसी दृश्य के दो स्पेक्ट्रल इमेज में पिक्सल से पिक्सल को विभाजित किया जाता है। इसका अधिकतर उपयोग वनस्पति सूचकांक की गणना के लिये किया जाता है। बैंड आनुपातीकरण पर आधारित यह सूचकांक प्रासामान्यीकरण अन्तरीय वानस्पतिक सूचकांक कहलाती है। इस सूचकांक का उपयोग विस्तृत रूप में किसी दृश्य में वनस्पति के वितरण तथा प्रकारों के अध्ययन के लिये किया जाता है।
6. धरातलीय निश्यन्दन - सुदूर संवेदन इमेज की विशेषता धरातलीय आवृत्तियाँ हैं। यह प्रति इकाई दूरी के हिसाब से चमकीले मानों में कई परिवर्तन दर्शाती है। यदि किसी क्षेत्र के चमक मानों में आंशिक परिवर्तन है तो इसका अर्थ है कि यह निम्न आवृत्ति वाला क्षेत्र है। इसके विपरीत अधिक आवृत्ति वाले भाग में चमक मान दूरी पर नाटकीय ढंग से परिवर्तित होते हैं। इस प्रकार धरातलीय निस्यन्दन की सहायता से इन विसंगतियों को दूर किया जा सकता है।
धरातलीय निस्यन्दन - इमेज की आकृतियों को पहचानने में मदद करता है। इस माध्यम से विश्लेषणकर्ता के लिए इमेज में निहित वस्तुओं को आसानी से पहचाना जा सकता है। सुदूर संवेदक आँकड़ों की प्रक्रिया के लिये मुख्यतः निम्न प्रकार के फिल्टर का उपयोग किया गया है-
(1) मन्द मार्ग फिल्टर - इसका उपयोग आँकड़ों में निहित बेतरतीव अथवा सामान्य से उठे हुये भिन्न मानों को सामान्य करने के लिये किया जाता है। किसी दृश्य में कील की भाँति उठे हुये भिन्न आँकड़ों को शोर (Noise) कहते हैं। शोर मान अन्य सामान्य मानों की तुलना में अचानक परिवर्तित होते हैं जो कि अधिक धरातलीय मानों को दर्शाते हैं। प्रक्रिया के दौरान उच्च आकृतियों के मानों को बन्द कर दिया जाता है। इसी प्रक्रिया को मन्द मार्ग फिल्टर कहते हैं। मन्द मार्ग फिल्टर में धरातलीय विभेदन कम होता है परन्तु यह विश्लेषण के लिये उपयोगी है। इसमें 3x 3 पिक्सल की खिड़की का उपयोग किया जाता है। प्रत्येक पिक्सल के मान को औसत मान से परिकलन किया जाता है।
(2) उच्च प्रबल मार्ग फिल्टर (High Pass Filter ) - दिशात्मक फिल्टर का उपयोग किसी इमेज में विशिष्ट रेखीय प्रवृत्तियों को उच्च करने के लिये किया जाता है।
(3) अदिशात्मक फिल्टर (Non Directional Filter ) - लाप्लासियन एक अदिशात्मक फिल्टर है क्योंकि यह किसी भी दिशा में निहित रेखीय आकृतियों को उठाने में सहायक होती है। लाप्लासियन फिल्टर केन्द्र का मान अत्यधिक होता है। इसके प्रत्येक किनारों पर शून्य तथा केन्द्र के चारों ओर -1 होता है।
लाप्लेसियन केरनेल 3x 3 पिक्सल के आकार का होता है। इसके प्रत्येक पिक्सल को प्रतिस्थापित मानों से गुणा किया जाता है। तत्पश्चात् 9 ज्ञात मानों को जोड़ा जाता है। ज्ञात मान को केन्द्र के पिक्सल मान में जोड़ा जाता है। इसके परिणामस्वरूप जो मान ज्ञात होता है वही केन्द्रीय पिक्सल का मान होता है जो कि मूल डिजिटल नम्बर के स्थान पर रखा जाता है। (चित्र में देखें)।
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