बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोलसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- बिम्ब वर्गीकरण प्रक्रिया को विस्तार से समझाइए।
उत्तर -
(Image Classification Process)
बिम्ब वर्गीकरण प्रक्रिया विभिन्न क्रियाओं का एक ऐसा समूह है जिसे कई चरणों में पूर्ण किया जाता है। इस प्रक्रिया में निम्न चरणों से होकर गुजरना होता है-
1. आँकड़ों का चुनाव - बिम्ब वर्गीकरण की सर्वप्रथम प्रक्रिया में सुदूर संवेदन बिम्ब का चुनाव और बिम्ब वर्गीकरण की तैयारी करना होता है। इसके लिये सर्वप्रथम यह निर्धारित किया जाता है कि हमें किस वस्तु का वर्गीकरण करना है। यह धरातल पर फैली हुई आकृतियों जल, वनस्पति, मिट्टी, भूमि उपयोग इत्यादि के आवरण पर निर्भर करता है। आँकड़ों के चुनाव के दौरान संवेदक, तरंग दैर्ध्य तथा विभेदन पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
2. निरीक्षणात्मक एवं अनिरीक्षणात्मक वर्गीकरण - किसी आकृति स्थान को आवरण की विशेषताओं के आधार पर अलग-अलग समूहों में विभाजित करने के लिये निरीक्षणात्मक और अनिरीक्षणात्मक विधियाँ अपनाई जाती हैं।
निरीक्षणात्मक वर्गीकरण में कोई भी शोधकर्ता प्रशिक्षण के दौरान भू-आवरण को अलग-अलग समूहों में वर्गीकृत करता है। जैसे कि कृषि भूमि, वन - भूमि, बेकार भूमि या वन भूमि में अलग-अलग प्रजातियों के समूह इत्यादि। इसके पश्चात् बिम्ब को वर्गीकृत किया जाता है। इसे किसी बिम्ब का निरीक्षणात्मक वर्गीकरण भी कहते हैं। इस उपागम में सत्यापन वर्गीकरण से पूर्व में किया जाता है।
अनिरीक्षणात्मक वर्गीकरण में पिक्सल के आधार पर आकृति स्थान में कई समूह को स्पष्ट कर समूह एलगोरिथम का उपयोग किया जाता है जो स्वतः ही पिक्सल मानों के आधार पर सम्पूर्ण बिम्ब को अलग-अलग समूहों में वर्गीकृत कर देता है। तत्पश्चात् अलग-अलग समूहों का सत्यापन धरातल पर किया जाता है।
3. एलगोरिथम का चुनाव - जब किसी आकृति स्थान में एक बार स्पेक्ट्रल क्लास को स्पष्ट कर दिया जाता है तो संचालक या शोधकर्ता यह निश्चित करता है कि प्रत्येक वर्ग में कितने पिक्सल निर्धारित किये गये हैं। पिक्सल का निर्धारण अलग-अलग मापदण्डों के आधार पर किया जाता है।
4. वर्गीकरण करना - प्रशिक्षण डाटा और एलगोरिथम स्थापित करने के बाद ही वास्तविक वर्गीकरण किया जा सकता है। इसका अर्थ यह है कि डिजिटल मानों के आधार पर प्रतिबिम्ब में प्रत्येक मल्टी बैण्ड पिक्सलों को निर्दिष्ट करके अलग-अलग वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है।
5. परिणामों की वैधता - परिणामों की वैधता के लिए भूमि सत्यापन द्वारा इसकी उत्तमता की जाँच सन्दर्भ डाटा की तुलना करके की जाती है। कहने का अभिप्राय यह है कि कम्प्यूटर पर वर्गीकृत आँकड़ों की भू-धरातल पर जाकर जाँच की जाती है। इसके लिये प्रतिचयन विधि का उपयोग किया जाता है।
(Preparation for Image Classification)
बिम्ब वर्गीकरण की तैयारी करने के लिये मुख्यतः निम्न बिन्दुओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है-
(i) विषयक वर्ग - सुदूर संवेदन आँकड़ों को विषयक आँकड़ों में परिवर्तित करने की प्रक्रिया ही विषयक वर्ग कहलाती है। विषयक विशेषतायें जैसे कि भूमि आवरण भूमि उपयोग, मृदा के प्रकार, खनिज प्रकार इत्यादि हो सकती है जिन्हें विश्लेषण के उपयोग में लाया जा सकता है। इस प्रक्रिया में विश्लेषणकर्ता के द्वारा किसी दृश्य परावर्तित मानो की अपेक्षा विषयक विशेषताओं में अधिक रुचि ली जाती है।
बिम्ब वर्गीकरण प्रक्रिया के द्वारा वृहत आकार के आँकड़ों को कम करके संग्रह किया जा सकता है। इससे स्थान कम घिरता है। इस प्रकार बिम्ब वर्गीकरण की तैयार से पूर्व विषयक विशेषताओं का आकलन करना आवश्यक है।
(ii) डाटा का समय - वर्गीकरण करने से पूर्व यह ध्यान रखा जाता है कि जो आँकड़े या सूचनायें उपयोग में लाई जा रही हैं उनकी अवधि क्या है। यदि किसी भू-भाग के भूमि उपयोग प्रकारों का अध्ययन करना है तो किसी बिम्ब का समय ध्यान में रखकर कार्य प्रारम्भ किया जाता है। फसल वक्र बर्फ आवरण, वनस्पति आवरण इत्यादि उपयोगों में सुदूर संवेदन आँकड़ों का समय महत्वपूर्ण होता है। इसी प्रकार सूर्य का प्रदीपन कोण भी समय द्वारा निर्धारित होता है जो धरातल की वस्तुओं को प्रदीप्त करता है। कुछ दशाओं में मल्टी स्पेक्ट्रल डाटा सैट की आवश्यकता होती है जिसके द्वारा परिवर्तन संसूचन का अनुमान लगाया जाता है।
(iii) बैंड का चुनाव - उपरोक्त विधि से प्राप्त आँकड़ों का प्रयोग किसी स्पेक्ट्रल बैण्ड के माध्यम से किया जाता है। पूर्व उपलब्ध स्पेक्ट्रल बैंड में से किसी उपर्युक्त बैंड का चुनाव किया जाता है। इसके लिए लैण्डसेट - 5 TM के 7 बैंड में से कोई भी बैंड लिया जा सकता है जो आवश्यकता की पूर्ति करता है। ऐसी स्थिति में दो बैंड का डाटा लगभग समान होने पर सह-सम्बन्ध का प्रयोग किया जा सकता है। प्राकृतिक वनस्पति के विश्लेषण के लिये रक्त एवं हरे तरंग दैर्ध्य बैंडों को आपस में मिलाया जा सकता है। सह सम्बन्धित बैंड, वर्गीकरण के उद्देश्य की पूर्ति के लिये (Redundent) प्रचुर मात्रा में सूचनाओं को उपलब्ध कराते हैं।
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