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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 इतिहास - भारत में राष्ट्रवाद

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2786
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 इतिहास - भारत में राष्ट्रवाद - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- 1857 के विद्रोह के स्वरूप पर एक निबन्ध लिखिए। उनके परिणाम क्या रहे?

अथवा
1857 के विद्रोह की प्रकृति बताइए।

सम्बन्धित लघु / अति लघु उत्तरीय प्रश्न
1. 1857 के विद्रोह का स्वरूप क्या था?
अथवा
1857 के विद्रोह पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
2. "1857 का विद्रोह भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम था।" डॉ. एस. एन. सेन के मत के बारे में आपकी क्या नीति है? स्पष्ट कीजिए।
3. 1857 के विद्रोह के स्वरूप के बारे में डॉ. आर. सी. मजूमदार का क्या मत है?
4. 1857 के विद्रोह के क्या परिणाम हुए? संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर -

1857 के विद्रोह का स्वरूप

भारतीय इतिहास में सर्वाधिक विवादास्पद तथ्य यह है कि 1857 के विद्रोह का स्वरूप क्या था? ब्रिटिश इतिहासकारों के, मालेसन, लारेन्स आदि इसे मात्र सिपाही विद्रोह' मानते हैं, जिसे जनसमर्थन कतई न था। भारतीय इतिहासकार एस. एन. सेन व वीर सावरकर ने इसे प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम माना है। इसके स्वरूप व प्रकृति ने निम्न रूपों पर तर्क किए गए हैं -

(1) सैनिक विद्रोह - सर जॉन लारेन्स, के मालेसन, सीले के अनुसार यह विद्रोह मात्र सैनिक विद्रोह था जिसमें सैनिकों के द्वारा अंग्रेजों को अपदस्थ करने की योजना थी। इन विद्वानों के अनुसार कुछ भारतीय राज्य इसमें शामिल अवश्य हुए किन्तु उनके इसमें शामिल होने के कारण डलहौजी के द्वारा उनके राज्यक्षेत्र में किया गया हस्तक्षेप था। सरजान सीले से अनुसार, "यह एक पूर्णतया देशभक्ति रहित और स्वार्थी सैनिक विद्रोह था जिसमें न कोई नेतृत्व ही था और न ही इसे सर्वसाधारण का समर्थन प्राप्त था।' इनका मत सर्वमान्य नहीं है। यह सत्य है कि इसकी शुरूआत सैनिकों ने की थी किन्तु इसमें जनता की सहभागिता थी। सम्पूर्ण भारतीय सिपाही इसमें शामिल न थे. काफी बड़ी संख्या में भारतीय सिपाही कम्पनी के साथ रहे।

(2) ईसाई धर्म के विरुद्ध धर्म-युद्ध - एल० ई० आर० रीज के कथन से सहमत होना कि, श्श्यह धर्मान्धों का ईसाइयों के विरुद्ध धर्म-युद्ध। अत्यन्त कठिन है। विद्रोह के कारणों में धार्मिक कारण एक था किन्तु यह मात्र अपने धर्म की रक्षा के सन्दर्भ में ही था।' यह ईसाई और हिन्दू व मुसलमान धर्म के मानने वालों का युद्ध अवश्य था किन्तु यह धर्म-युद्ध नहीं था। दोनों गुटों ने युद्ध में अपने-अपने धर्म-ग्रन्थों का सहारा लेकर अपने अतिरेक को छिपाने के लिए सहारा लिया। अंग्रेजी सेना के साथ हिन्दू तथा मुसलमान दोनों ही धर्मों को मानने वाले थे। इस कारण इस विद्रोह को 'धर्म का संघर्ष' स्वीकार नहीं किया जा सकेगा।

(3) जातियों का युद्ध - कुछ इतिहासकारों ने इसे 'गोरी व काली जातियों का युद्ध' माना है। सम्पूर्ण श्वेत जाति अवश्य ही एक खेमे थी किन्तु काली जातियों का विभाजन था। अंग्रेज सेना में अनेक भारतीय नौकर और भारतीय सैनिक थे जो इस तथ्य को मानने से रोकते हैं। जे० जी० मीडले ने लिखा है कि, "वास्तव में कैम्प में प्रत्येक अंग्रेज के साथ बीस भारतीय थे।" दूसरी तरफ भारत में उस समय इतनी नृजातीय प्रबुद्धता नहीं थी जिसमें वे गोरी व कालीजातियों जैसी अवधारणा से परिचित होते।

(4) सभ्यता व बर्बरता का संघर्ष - टी० आर० होम्स, तथा उसके समर्थक इतिहासकार इस विद्रोह को इस रूप में देखते हैं, परन्तु इस तर्क में भी संकीर्ण जातिभेद की गन्ध आती है। विद्रोह के समय यदि भारतीयों ने अंग्रेजों के साथ बर्बरता का व्यवहार किया तो यह भी सत्य है कि अंग्रेजों ने भी उसी प्रकार का बर्बरता का व्यवहार भारतीयों के साथ किया और विद्रोह के बाद भी अनेक अंग्रेजों ने भारतीयों से बदले की माँग की। जनरल नील, हडसन, हैवलॉक आदि अंग्रेज सेनापतियों ने जो अमानुषिक व्यवहार नागरिकों के साथ किया था, वह सभ्यता की परिधि से बाहर है।-

(5) राष्ट्रीय विद्रोह - इंग्लैण्ड की संसद में विपक्ष के नेता बेंजामिन डिजरैली ने इसे 'राष्ट्रीय विद्रोह' की संज्ञा दी। उन्होंने इसे आकस्मिक नहीं माना और न ही वे इसे चर्बी वाले कारतूसों को इसका जिम्मेदार मानते हैं। वे साम्राज्य के विरोध एकत्र हुए अवसाद को इसका जिम्मेदार मानते हैं। अशोक मेहता ने अपनी पुस्तक 'महान विद्रोह' में यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि इस विद्रोह का स्वरूप राष्ट्रीय था। वीर सावरकर भी इसी मत के पक्षधर हैं।

(6) डा० एस० एन० सेन का मत  - डा. एस. एन. सेन ने विद्रोह के स्वरूप के सम्बन्ध में अपनी पुस्तक 1857 में अपना मत प्रकट किया है। उनके अनुसार 'रोटी-कमल' का प्रसार व विदेशों में राजदूत भेजना व विभिन्न राजाओं द्वारा परस्पर पत्र व्यवहार आदि करना यह सिद्ध नहीं करता कि इसकी कोई योजना थी। उस समय तक भारत मात्र एक भौगोलिक अभिव्यक्ति थी और उसमें राष्ट्रीयता का विकास नहीं हुआ था, जिससे प्रत्येक राजा व सामन्त के लिए राष्ट्र मात्र उसका ही राज्यक्षेत्र हुआ करता था। दूसरी तरफ कोई सर्वमान्य केन्द्रीय नेता भी नहीं था। बहादुर शाह जफर' भी इस विद्रोह से उतना ही अचंभित हुआ था जितना कि अंग्रेज। यद्यपि उन्होंने यह स्वीकार किया है कि इस विद्रोह का केन्द्र और विस्तार काफी बिखरा था। भारत के काफी संख्या में शक्तिशाली राज्य जैसे-हैदराबाद, जयपुर, ग्वालियर आदि अंग्रेजों के समर्थक बने रहे। इन सभी खामियों के बावजूद डा० सेन इसे मात्र सिपाही विद्रोह मानने को तैयार नहीं। उनके अनुसार यह राष्ट्रीयता के अभाव के बावजूद 'भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम' था। इस धारणा के पक्ष में फ्रॉस व अमेरिका की क्रान्तियों का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं जहाँ क्रान्ति का विस्तार अति सीमित होने के बावजूद प्रभावकारी रहा। वे मानते हैं कि यद्यपि अधिकांश भारतीयों ने इसमें भाग नहीं लिया किन्तु विदेशी शासन को समाप्त करने के लिए वे कम संख्या के बाद भी प्रयासरत थे। डा० एस० एन० सेन लिखते हैं, "विप्लव विद्रोह बन गया और उसने उस समय से राजनीतिक स्वरूप धारण कर लिया जबकि मेरठ के विद्रोही सैनिकों ने अपने को दिल्ली के बादशाह के अधीन कर दिया और भूमिपति कुलीनों तथा जनता के एक भाग ने उसमें सहयोग देने का निर्णय कर लिया, जो युद्ध धर्म की रक्षा के नाम से आरम्भ हुआ था, वह स्वतन्त्रता-युद्ध में जाकर समाप्त हुआ, क्योंकि इसमें लेशमात्र भी सन्देह नहीं कि विद्रोही विदेशी शासन से मुक्ति प्राप्त करके पुनः प्राचीन व्यवस्था को स्थापित करना चाहते थे जिसका वास्तविक प्रतिनिधित्व दिल्ली का बादशाह करता था।'

(7) डा० आर० सी० मजूमदार का मत - इनके अनुसार यह कतई भारतीय राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संघर्ष नहीं है। वे इसमें शामिल नेताओं को व्यक्तिगत भावना के कारण सम्बद्ध हुआस्वतन्त्रता संघर्ष नहीं है। वे इसमें शामिल नेताओं को व्यक्तिगत भावना के कारण सम्बद्ध हुआ मानते हैं। वे यह तो मानते हैं कि तत्कालीन स्थितियाँ ऐसी बन रही थीं कि विद्रोह हो सके किन्तु संगठन व योजना के अभाव पर वह ज्यादा जोर देते हैं। वे कारतूस प्रकरण को विद्रोह के लिए तात्कालिक कारण मानते हैं। भारत के द्वारा सामूहिक प्रयत्न न किए जाने पर वह खेद व्यक्त करते हैं। वे इसे आकस्मिक घटना मानते हैं जिसमें कारतूस प्रकरण का खास योगदान था। वे इसके तात्कालिक परिणाम के स्थान पर दीर्घकालिक परिणाम पर जोर देते हैं। उनका मानना है कि इस विद्रोह ने अपनी सफलता के स्थान पर अपनी असफलता से भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रभावित किया। 

1857 के विद्रोह के स्वरूप को लेकर कितने ही मत-मतान्तर क्यों न हों, यह कोई भी अस्वीकार नहीं कर सकता कि यह मूलतः साम्राज्यवाद के विरुद्ध एक अस्फुट प्रयत्न था। यद्यपि यह असफल रहा किन्तु इसने भारतीयों को आगे के लिए एक होने की सीख दी, जिससे भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का जन्म हुआ। यह 1857 के विद्रोह की ऊष्मा ही थी जिसने 90 वर्षों बाद देश को स्वतन्त्र कराया। यदि यह सफल हो भी जाता तो भविष्य की कोई अच्छी व्यवस्था के विचार के बिना इसके सफल होने की सम्भावना कम ही होती साथ ही एक आशंका यह भी थी कि बाद में भारत के लोगों को पुनः मध्यकालीन व्यवस्था निर्मूलन के लिए अभियान करना पड़ता।

1857 के विद्रोह के परिणाम

1857 का विद्रोह भारत के इतिहास में अनेकों प्रभावशाली परिणामों के कारण महत्वपूर्ण हैं। ये निम्नवत् हैं-

1. कम्पनी के शासन का अन्त हो गया और भारत का शासन ब्रिटिश क्राउन के अधीन हो गया। कम्पनी की सेना ब्रिटिश सरकार की सेना बन गई। अब भारत का गवर्नर जनरल दोहरी भूमिका में वायसराय भी कहलाने लगा। रानी विक्टोरिया ने अपने प्रसिद्ध घोषणापत्र में यह स्पष्ट किया कि अब देशी राज्यों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा। राज्य विस्तार पर रोक लगाई जाएगी। भारत में शासन नीति सम्बन्धी जवाबदेही के लिए एक 'भारत सचिव' की नियुक्ति की जाएगी जिसकी 15 सदस्यीय एक सलाह परिषद् होगी जिनमें से 8 सदस्य ब्रिटिश सरकार व शेष सदस्य कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स द्वारा नियुक्त किए जाएंगे। सरकार का भारतीय मामलों पर सीधा नियन्त्रण स्थापित हो गया।

2. अब भारत में ब्रिटेन ने देशी राज्यों के प्रति नीति में बदलाव करते हुए अधीनस्थ अलगाव की नीति के स्थान पर अधीनस्थ संघ की नीति का पालन किया। सामन्तवादी और प्रतिक्रियावादी तत्वों के प्रति ब्रिटिश सरकार अधिक सहृदय हो गया। सरकार को यह लगा कि भारत में साम्राज्य की सुरक्षा व सुदृढ़ता के लिए यह आवश्यक है।

3. भारतीय सेना के संगठन में फेरबदल किया गया। सेना में यूरोपीय लोगों का अनुपात बढ़ा दिया गया। सेना और तोप खाने में मुख्य पद केवल यूरोपियनों के लिए ही आरक्षित कर दिए गए। यूरोपीय रंगरूट भारतीय सैनिकों से श्रेष्ठ माने जाते थे क्योंकि उनकी निष्ठा पर संदेह नहीं था।

4. 1861 के अधिनियम द्वारा भारतीय तत्वों को भी शासन में शामिल करने की नीति का पालन किया गया, क्योंकि भारत में शासकों व शासितों के मध्य सम्पर्क की कमी से निर्वात की स्थिति बनती जा रही थी। इसीलिए विधायिका सम्बन्धी कार्यों में भारतीय लोगों को शामिल किया जाना शुरू किया गया।

5. अब भारत में एक नए युग का आरम्भ हुआ। प्रादेशिक विस्तार के स्थान पर आर्थिक शोषण का युग आरम्भ हुआ। अंग्रेजों के लिए सामन्तवादी युग का भय सदैव के लिए समाप्त हो गया और अंग्रेजी साम्राज्य के लिए नई चुनौती उस प्रगतिशील भारत से ही आई जो उन्नीसवीं शताब्दी के उदारवादी अंग्रेजों के द्वारा भारत में आई।

6. भारत में शिक्षा का विस्तार हुआ। भारतीय लोगों में प्रसार व संचार के माध्यमों के विस्तार और एकरूप शासन के कारण समान कष्टों से भारतीय शिक्षित जनमानस में जागरूकता आई। आर्थिक शोषण की प्रकृति को इन्हीं लोगों ने सबसे पहले जाना और इसे सबको समझाया। भारत में 1857 के बाद ही सामाजिक व बौद्धिक जागरण का युग आया। इस सबके लिए इस विद्रोह ने असफलता के साथ राष्ट्र सेवा की। भारत में शिक्षा के प्रसार में अंग्रेजी सरकार ने योगदान नहीं दिया इसके बावजूद यह हो सका।

7. विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने साम्प्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्रवाद आदि संकुचित प्रवृत्तियों को बढ़ावा दिया। 'फूट डालो और राज करो' उनकी नीति का प्रमुख आधार बन गया। इसी कारण हिन्दू और मुसलमानों तथा हिन्दू व सिखों में वैमनस्य डालने का प्रयत्न किया गया। यहाँ तक कि भारतीय सेना का संगठन भी जातीय व क्षेत्रीय आधार पर बाँटा गया। भारतीयों को लड़ाकू और युद्ध की क्षमता न रखने वाले समूहों में बाँटा गया तथा विभिन्न रेजीमेण्टों के नाम जाति व क्षेत्र के आधार पर रखे गए जैसे जाट रेजीमेण्ट, गोरखा रेजीमेण्ट, सिख रेजीमेण्ट व राजपूत रेजीमेण्ट आदि।

8. इस घटना की असफलता से हिन्दू व मुसलमानों के परस्पर सम्बन्ध भी खराब हुए व एक- दूसरे पर शक व घृणा करने लगे। अंग्रेजों ने इसका लाभ भी उठाया।

9. 1858 की घोषणा में जाति, धर्म, नस्ल के स्थान पर शिक्षा, योग्यता व ईमानदारी के आधार पर नौकरी देने का आश्वासन दिया गया। 1861 में इसी के आधार पर भारतीय सिविल सेवा अधिनियम बनाया गया जिसके अनुसार प्रत्येक वर्ष इन पदों पर नियुक्ति के लिए लंदन में एक परीक्षा प्रस्तावित की गई। किन्तु यह भारतीयों के लिए लाभदायक न बन सका और अंग्रेज इसका लाभ उठाते रहे। इसके बावजूद इस विधान से भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की शुरूआत ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- 1857 के विद्रोह के कारणों की समीक्षा कीजिए।
  2. प्रश्न- 1857 के विद्रोह के स्वरूप पर एक निबन्ध लिखिए। उनके परिणाम क्या रहे?
  3. प्रश्न- सन् 1857 ई. की क्रान्ति के प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
  4. प्रश्न- सन् 1857 ई. के विद्रोह का दमन करने में अंग्रेज किस प्रकार सफल हुए, वर्णन कीजिये?
  5. प्रश्न- सन् 1857 ई० की क्रान्ति के परिणामों की विवेचना कीजिये।
  6. प्रश्न- 1857 ई० के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की प्रमुख घटनाओं का वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- 1857 के विद्रोह की असफलता के क्या कारण थे?
  8. प्रश्न- 1857 के विद्रोह में प्रशासनिक और आर्थिक कारण कहाँ तक उत्तरदायी थे? स्पष्ट कीजिए।
  9. प्रश्न- 1857 ई० के विद्रोह के राजनीतिक एवं सामाजिक कारणों का वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- 1857 के विद्रोह ने राष्ट्रीय एकता को किस प्रकार पुष्ट किया?
  11. प्रश्न- बंगाल में 1857 की क्रान्ति की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- 1857 के विद्रोह के लिए लार्ड डलहौजी कहां तक उत्तरदायी था? स्पष्ट कीजिए।
  13. प्रश्न- सन् 1857 ई. के विद्रोह के राजनीतिक कारण बताइये।
  14. प्रश्न- सन् 1857 ई. की क्रान्ति के किन्हीं तीन आर्थिक कारणों का उल्लेख कीजिये।
  15. प्रश्न- सन् 1857 ई. की क्रान्ति में तात्याटोपे के योगदान का विवेचन कीजिये।
  16. प्रश्न- सन् 1857 ई. के महान विद्रोह में जमींदारों की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  17. प्रश्न- सन् 1857 ई. के विद्रोह के यथार्थ स्वरूप को संक्षिप्त में बताइये।
  18. प्रश्न- सन् 1857 ई. के झाँसी के विद्रोह का अंग्रेजों ने किस प्रकार दमन किया, वर्णन कीजिये?
  19. प्रश्न- सन् 1857 ई. के विप्लव में नाना साहब की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
  20. प्रश्न- प्रथम स्वाधीनता संग्राम के परिणामों एवं महत्व पर प्रकाश डालिए।
  21. प्रश्न- भारतीय राष्ट्रवाद के प्रारम्भिक चरण में जनजातीय विद्रोहों की भूमिका का परीक्षण कीजिए।
  22. प्रश्न- भारत में मध्यम वर्ग के उदय के कारणों पर प्रकाश डालिए। भारतीय राष्ट्रवाद के प्रसार में मध्यम वर्ग की क्या भूमिका रही?
  23. प्रश्न- भारत में कांग्रेस के पूर्ववर्ती संगठनों व इसके कार्यों पर प्रकाश डालिए।
  24. प्रश्न- भारत में क्रान्तिकारी राष्ट्रवाद के उदय में 'बंगाल विभाजन' की घटना का क्या योगदान रहा? भारत में क्रान्तिकारी आन्दोलन के प्रारम्भिक इतिहास का उल्लेख कीजिए।
  25. प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उदय की परिस्थितियों पर प्रकाश डालते हुए कांग्रेस की स्थापना के उद्देश्यों की विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के प्रारम्भिक वर्षों में कांग्रेस की नीतियाँ क्या थी? सविस्तार उल्लेख कीजिए।
  27. प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उग्रपंथियों के उदय के क्या कारण थे?
  28. प्रश्न- उग्रपंथियों द्वारा किन साधनों को अपनाया गया? सविस्तार समझाइए।
  29. प्रश्न- भारत में मध्यमवर्गीय चेतना के अग्रदूतों में किन महापुरुषों को माना जाता है? इनका भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन व राष्ट्रवाद में क्या योगदान रहा?
  30. प्रश्न- गदर पार्टी आन्दोलन (1915 ई.) पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में कांग्रेस के द्वारा घोषित किये गये उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- कांग्रेस सच्चे अर्थों में राष्ट्रीयता का प्रतिनिधित्व करती थी, स्पष्ट कीजिये।
  33. प्रश्न- जनजातियों में ब्रिटिश शासन के प्रति असन्तोष का सर्वप्रमुख कारण क्या था?
  34. प्रश्न- महात्मा गाँधी के प्रमुख विचारों पर प्रकाश डालते हुए उनके भारतीय राजनीति में पदार्पण को 'चम्पारण सत्याग्रह' के विशेष सन्दर्भ में उल्लिखित कीजिए।
  35. प्रश्न- राष्ट्रीय आन्दोलन में महात्मा गाँधी की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
  36. प्रश्न- असहयोग आन्दोलन के प्रारम्भ होने प्रमुख कारणों की सविस्तार विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रारम्भ कब और किस प्रकार हुआ? सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कार्यक्रम पर प्रकाश डालिए।
  38. प्रश्न- 'भारत छोड़ो आन्दोलन' के प्रारम्भ होने के प्रमुख कारणों की सविस्तार विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- राष्ट्रीय आन्दोलन में टैगोर की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
  40. प्रश्न- राष्ट्र एवं राष्ट्रवाद पर टैगोर तथा गाँधी जी के विचारों की तुलना कीजिए।
  41. प्रश्न- 1885 से 1905 के की भारतीय राष्ट्रवाद के विकास का पुनरावलोकन कीजिए।
  42. प्रश्न- महात्मा गाँधी द्वारा 'खिलाफत' जैसे धार्मिक आन्दोलन का समर्थन किन आधारों पर किया गया था?
  43. प्रश्न- 'बारडोली सत्याग्रह' पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  44. प्रश्न- गाँधी-इरविन समझौता (1931 ई.) पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- 'खेड़ा सत्याग्रह' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  46. प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उदारपंथी चरण के विषय में बताते हुए उदारवादियों की प्रमुख नीतियों का उल्लेख कीजिये।
  47. प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उदारपंथी चरण की सफलताओं एवं असफलताओं का उल्लेख कीजिए।
  48. प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उग्रपंथियों के उदय के क्या कारण थे?
  49. प्रश्न- उग्रपंथियों द्वारा पूर्ण स्वराज्य के लिए किन साधनों को अपनाया गया? सविस्तार समझाइए।
  50. प्रश्न- उग्रवादी तथा उदारवादी विचारधारा में अंतर बताइए।
  51. प्रश्न- बाल -गंगाधर तिलक के स्वराज और राज्य संबंधी विचारों का वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- प्रारम्भ में कांग्रेस के क्या उद्देश्य थे? इसकी प्रारम्भिक नीति को उदारवादी नीति क्यों कहा जाता है? इसका परित्याग करके उग्र राष्ट्रवाद की नीति क्यों अपनायी गयी?
  53. प्रश्न- उदारवादी युग में कांग्रेस के प्रति सरकार का दृष्टिकोण क्या था?
  54. प्रश्न- भारत में लॉर्ड कर्जन की प्रतिक्रियावादी नीतियों ने किस प्रकार उग्रपंथी आन्दोलन के उदय व विकास को प्रेरित किया?
  55. प्रश्न- उदारवादियों की सीमाएँ एवं दुर्बलताएँ संक्षेप में लिखिए।
  56. प्रश्न- उग्रवादी आन्दोलन का मूल्यांकन कीजिए।
  57. प्रश्न- भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के 'नरमपन्थियों' और 'गरमपन्थियों' में अन्तर लिखिए।
  58. प्रश्न- स्वदेशी आन्दोलन पर विस्तृत विवेचना कीजिए।
  59. प्रश्न- कांग्रेस के सूरत विभाजन पर प्रकाश डालिए।
  60. प्रश्न- अखिल भारतीय काँग्रेस (1907 ई.) में 'सूरत की फूट' के कारणों एवं परिस्थितियों का विवरण दीजिए।
  61. प्रश्न- कांग्रेस में 'सूरत फूट' की घटना पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- स्वदेशी आन्दोलन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  63. प्रश्न- कांग्रेस की स्थापना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  64. प्रश्न- स्वदेशी आन्दोलन की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- स्वदेशी विचार के विकास का वर्णन कीजिए।
  66. प्रश्न- स्वदेशी आन्दोलन के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- स्वराज्य पार्टी की स्थापना किन कारणों से हुई?
  68. प्रश्न- स्वराज्य पार्टी के पतन के प्रमुख कारणों को बताइए।
  69. प्रश्न- कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में कांग्रेस के द्वारा घोषित किये गये उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए।
  70. प्रश्न- कांग्रेस सच्चे अर्थों में राष्ट्रीयता का प्रतिनिधित्व करती थी, स्पष्ट कीजिये।
  71. प्रश्न- दाण्डी यात्रा का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  72. प्रश्न- मुस्लिम लीग की स्थापना एवं नीतियों पर प्रकाश डालिए।
  73. प्रश्न- मुस्लिम लीग साम्प्रदायिकता फैलाने के लिए कहाँ तक उत्तरदायी थी? स्पष्ट कीजिए।
  74. प्रश्न- साम्प्रदायिक राजनीति के उत्पत्ति में ब्रिट्रिश एवं मुस्लिम लीग की भूमिका की विवेचना कीजिये।
  75. प्रश्न- मुहम्मद अली जिन्ना द्वारा मुस्लिम लीग को किस प्रकार संगठित किया गया?
  76. प्रश्न- लाहौर प्रस्ताव' क्या था? भारत के विभाजन में इसकी क्या भूमिका रही?
  77. प्रश्न- मुहम्मद अली जिन्ना ने किस प्रकार भारत विभाजन की पृष्ठभूमि तैयार की?
  78. प्रश्न- मुस्लिम लीग के उद्देश्य बताइये। इसका भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम पर क्या प्रभाव पड़ा?
  79. प्रश्न- मुहम्मद अली जिन्ना के राजनीतिक विचारों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- मुस्लिम लीग तथा हिन्दू महासभा जैसे राजनैतिक दलों ने खिलाफत आन्दोलन का विरोध क्यों किया था?
  81. प्रश्न- प्रथम विश्व युद्ध के क्या कारण थे?
  82. प्रश्न- प्रथम विश्व युद्ध के क्या परिणाम हुए?
  83. प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन पर प्रथम विश्व युद्ध का क्या प्रभाव पड़ा, संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
  84. प्रश्न- प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान उत्पन्न हुए होमरूल आन्दोलन पर प्रकाश डालिए। इसकी क्या उपलब्धियाँ रहीं?
  85. प्रश्न- गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन क्यों प्रारम्भ किया? वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- लखनऊ समझौते के विषय में आप क्या जानते हैं? विस्तृत विवेचन कीजिए।
  87. प्रश्न- प्रथम विश्वयुद्ध का उत्तरदायित्व किस देश का था?
  88. प्रश्न- प्रथम विश्वयुद्ध में रोमानिया का क्या योगदान था?
  89. प्रश्न- 'लखनऊ समझौता, पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  90. प्रश्न- 'रॉलेक्ट एक्ट' पर संक्षित टिपणी कीजिए।
  91. प्रश्न- राष्ट्रीय जागृति के क्या कारण थे?
  92. प्रश्न- होमरूल आन्दोलन पर संक्षित टिपणी दीजिए।
  93. प्रश्न- भारतीय राष्ट्रवादी और प्रथम विश्वयुद्ध पर संक्षित टिपणी लिखिए।
  94. प्रश्न- अमेरिका के प्रथम विश्व युद्ध में शामिल होने के कारणों की व्याख्या कीजिए।
  95. प्रश्न- प्रथम विश्व युद्ध के बाद की गई किसी एक शान्ति सन्धि का विवरण दीजिए।
  96. प्रश्न- प्रथम विश्व युद्ध का पराजित होने वाले देशों पर क्या प्रभाव पड़ा?
  97. प्रश्न- प्रथम विश्व युद्ध का उत्तरदायित्व किस देश का था? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  98. प्रश्न- गदर पार्टी आन्दोलन (1915 ई.) पर संक्षित प्रकाश डालिए।
  99. प्रश्न- 1919 का रौलट अधिनियम क्या था?
  100. प्रश्न- असहयोग आन्दोलन के सिद्धान्त, कार्यक्रमों का संक्षित वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- श्रीमती ऐनी बेसेन्ट के कार्यों का मूल्यांकन व महत्व समझाइये |
  102. प्रश्न- थियोसोफिकल सोसायटी का उद्देश्य बताइये।

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