बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 8
उत्तर प्रौढावस्था
(Late Adulthood)
प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60) वर्ष में मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक समायोजन पर संक्षेप में प्रकाश डालिये।
उत्तर -
वयस्कावस्था में मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक समायोजन को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
1. प्रकृति (Physical Appearance ) - प्रौढ़ावस्था तक अधिकतर पुरुष - स्त्री अपनी शरीराकृति को स्वीकार कर लेते हैं एवं कई को अपना रंग, कद, मुखाकृति, वजन पसंद नहीं रहता है फिर भी वे समझ जाते हैं कि उसे छुपाना या सुधारना कठिन है। फलत: प्रौढ़ को विशेष आकुलता अपनी आकृति को सुधारने की होती है। फलस्वरूप भोजन, व्यायाम, योगा में रुचि बढ़ जाती है। 25 से 26 वर्ष की आयु में शरीर में रुचि कम हो जाती है परंतु भार में वृद्धि उनकी चिंता का एक विषय अवश्य रहता है। आहार में सावधानी न बरतने पर इक्कीस से उन्तीस के बीच भार बढ़ना शुरू हो जाता है । वयोवृद्धि के अन्य लक्षण, जैसे—ठोड़ी का लटक जाना, सफेद बाल, बाहर को पेट निकलना आदि भी समस्या का कारण हैं, जो कुसमायोजन को बढ़ाते हैं। अतः प्रौढ़ों की रुचि शरीर आकृति को सुधारने में बढ़ जाती है।
2. कपड़े (Clothes ) - किशोरावस्था के समान प्रौढ़ावस्था में स्त्री व पुरुष को अपने वस्त्रों- पोशाकों में अत्यधिक रुचि रहती है। इस प्रकार की रुचि विवाहित एवं अविवाहित स्त्री पुरुष में भी समान रूप से देखी जाती है। इस समय प्रौढ़ यह समझते हैं कि जीवन में किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए वस्त्र एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पुरुष वर्ग पोशाक को इसलिए महत्व देते हैं कि सामाजिक प्रतिष्ठा और आर्थिक सफलता प्राप्त करने में पोशाक की अहम् भूमिका है। पोशाक के प्रकार पर लोग व्यक्ति के बारे में राय बनाते हैं तथा वह कितना सफल है इसका अंदाजा लगाया जाता है। स्त्रियों के लिए कपड़े सामाजिक प्रतिष्ठा, आर्थिक स्थिति, पुरुषों को आकर्षित करने, सम्मान पाने, घर के बाहर काम करने की स्थिति में अपनी स्थिति स्पष्ट करने में मदद करते हैं। पुरुषों की पोशाक के बजाय स्त्रियों की पोशाकों में विविधता पाई जाती है। अत: स्त्रियों के लिए पोशाक उनके व्यक्तित्व को अभिव्यक्त करने वाला स्रोत है। स्त्रियाँ व्यक्तित्व की कमी को दूर करने के लिए विभिन्न वस्त्रों का उपयोग करती हैं।
प्रौढ़ समुदाय वस्त्रों का चुनाव कुछ आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए करते हैं। जैसे- शरीराकृति मुख व चेहरे को कपड़ों के चुनाव द्वारा सुधारना, पहचान बनाना, सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करना, वस्त्रों द्वारा स्वयं को छोटा दिखाना आदि।
वस्त्रों का प्रयोग कर अहं संप्रत्यय को बनाये रखने के लिए प्रौढ़ स्त्री-पुरुष फैशन को अपनाते हैं व इस पर अधिक खर्चा करने के लिए तैयार रहते हैं। अतः प्रौढ़ावस्था में वस्त्र सम्बन्धित रुचि में कोई कमी नहीं होती है तथा जीवन में सफलतम समायोजन तथा आकर्षक आकृति के लिए वे महंगे से महंगे वस्त्र पहनते हैं।
3. भौतिक वस्तुएँ (Material Possessions ) - प्रौढ़ों की भौतिक वस्तुओं तथा रुपये-पैसे में रुचि इस समय अपने शिखर पर पहुँच जाती है। रुपये कमाने की प्रबल इच्छा से अभिप्रेरित प्रौढ़ उस वस्तु को खरीदना चाहता है जिसकी कल्पना उसने किशोरावस्था में की थी या जिन्हें वह नहीं खरीद पाया था। स्त्रियाँ विवाह के बाद भी अक्सर नौकरी करती हैं जिससे वे मनपसंद चीजों को खरीद सकें क्योंकि आधुनिक युग में कपड़ा मकान सामाजिक प्रतिष्ठा के सूचक हैं। अतः व्यक्ति जीवन में जल्दी से जल्दी ऊपर उठने के लिए इन वस्तुओं को खरीदता है चाहे उसे कर्ज ही क्यों न लेना पड़े। सजा - सजाया घर नव प्रौढ़ों के लिए दूसरों की दृष्टि में प्रतिष्ठा प्राप्त कराता है।
कई नव प्रौढ़ इस संबंध में दुखी या असंतोषी देखे जाते हैं। इसका कारण उनके मित्रो - पड़ोसियों के पास कई ऐसी भौतिक सुख की वस्तुएँ होना हैं जो उनके पास नहीं हैं। अतः विवाह - विच्छेद, परिवार में अभाव के कारण समायोजन न होना जैसी पारिवारिक समस्याएँ देखी जाती हैं, जिनका संबंध रुपये-पैसे से होता है। पूर्व प्रौढ़ावस्था में पैसों को खर्च करने की जानकारी न होने के कारण बहुधा उधार एवं किश्तों पर सामान लाने की प्रवृत्ति उत्पन्न हो जाती है अतः जीवन कर्ज में डूबा उन्हें लगता है। कर्ज अदा करने का भय उन्हें सदैव व्याकुल बनाता है।
आज का प्रौढ़ रातों-रात धनी हो जाना चाहता है। अतः अपराधिक प्रवृत्ति उनमें जन्म लेती है। चोरी करना, अत्याचारी बनना एक आम बात बन जाती है। प्रौढ़ लूट-पाट, चोरी करके समाज में स्थान एवं सम्मान पाना चाहते हैं जो कि समाज के लिए संतोषजनक हल नहीं माना जाता है।
4. धर्म (Religion ) - प्रौढ़ावस्था में धर्म संबंधी विवाह स्पष्ट हो जाते हैं व धर्म संबंधी संदेह प्रौढ़ दूर कर लेता है। प्रौढ़ इस समय जीवन दर्शन को जानने का प्रयास करता है। धर्म में रुचि इसी समय बाल्यकालीन धार्मिक रुचियों के समान रहती है। जीवन में इक्कीस से पच्चीस वर्ष की अवधि को अल्प- आस्था की अवधि कहा गया है। फिर भी बहुत कम प्रौढ़ धर्म या विश्वास को तिलांजलि देते हैं। माता-पिता की जिम्मेदारियाँ पुनः धर्म की ओर झुकाव ले आती हैं। परिवार की जीवन प्रणाली को बनाने में पालक धर्म का अनुकरण करने के लिये बालकों से कहते हैं।
5. रुचिकर सामाजिक क्रियाकलाप (Interesting Social Activities ) - प्रौढ़ावस्था को एक प्रकार से एकाकीपन का काल माना जाता है । पुरुष-स्त्री दोनों इस एकाकीपन के शिकार रहते हैं। आर्थिक कारण, जीवन-साथी का चयन न कर पाना, मनपसंद व्यवसाय अपनाने के कारण प्रौढ़ घर के अंदर या घर के बाहर खाली समय में स्वयं को निरर्थक (Worthless ) समझने लगते हैं। इस समय उनके किशोरावस्था के मित्र या तो व्यवसाय में व्यस्त हो जाते हैं अथवा विवाह की तैयारी में व्यस्त रहते हैं। फलतः जो मित्र वर्ग बातचीत के लिए हमेशा उपलब्ध रहता था तथा युवा प्रौढ़ जिस प्रकार के सामाजिक जीवन का आनंद लेते थे, वह अब उन्हें नहीं मिलता है एवं जब अपने समूह से मिलने की तीव्र इच्छा उनमें उत्पन्न होती है तब वे स्वयं को अकेला महसूस करते हैं। नव विवाहित प्रौढ़ भी कई बार स्वयं को अकेला पाता है।
हैविंग हर्स्ट (Having Hurst) के अनुसार - "प्रौढ़ावस्था में एकाकीपन का कारण आयु के अनुसार वर्गों में बँटा हुआ समाज और सामाजिक स्थिति के अनुसार वर्गों में बँटे हुए समाज के बीच के संक्रमणकाल में तुलनात्मक रूप से जीवन के अव्यवस्थित हो जाने के कारण होता है।" प्रौढ़ वर्ग इस समय स्कूल के मित्रों पर आश्रित नहीं रह पाते हैं, उसे प्रौढ़ों की दुनिया में अपना रास्ता स्वयं बनाना पड़ता है, स्वयं अपने दोस्त बनाने पड़ते हैं एवं समाज में स्वयं को अपने प्रयत्नों के द्वारा स्थापित करना पड़ता है।
प्रौढ़ जीवन में समायोजन के दौरान व्यक्ति स्वयं की सामाजिक गतिविधियों, कार्यकलापों में परिवर्तन करते हैं। उनके मित्र समूह में परिवर्तन सबसे पहले देखा जाता है। समूह की प्रतिक्रिया, सलाह या राय में उतार-चढ़ाव का कम विद्यमान रहता है। लोकप्रियता या भीड़ इकट्ठा करने की प्रवृत्ति में कमी आ जाती है। रुचि का केन्द्र व्यक्ति का घर बन जाता है जिसमें वह स्वयं को अत्यधिक व्यस्त पाता है। पारिवारिक सदस्यों से घनिष्ठता बढ़ती जाती है। व्यक्ति घर के बाहर के क्रियाकलापं में रुचि कम लेता है व घर के बाहर कम समय व्यतीत करने लगता है। यह कम उम्र से तीस वर्ष तक देखा जाता है। इसके बाद प्रौढ़ समाज में अपना समायोजन करने लगते हैं।
6. सामाजिक क्रियाकलापों में भाग लेना (Social Participation ) - किशोरावस्था में सामाजिक क्रियाकलापों में हिस्सा लेना हमउम्र साथियों की दृष्टि में गौरव या प्रतिष्ठा को प्राप्त करना माना जाता है। प्रौढ़ावस्था में भी प्रौढ़ों की यही इच्छा देखी जाती है। उच्च वर्ग के प्रौढ़ निम्न वर्ग के प्रौढ़ों की तुलना में अधिक सामुदायिक संगठनों के सदस्य होते हैं तथा समाज में नेतृत्व ग्रहण करने की इच्छा करते हैं। दूसरों के यहाँ आना जाना, सत्कार, उपहार देकर वे सामुदायिक कार्यों में हिस्सा लेना चाहते हैं। उन्हें अपने रिश्तेदारों के यहाँ जाना ज्यादा पसंद नहीं रहता है व समाज के अन्य लोगों से मिलना-जुलना उन्हें ज्यादा अच्छा लगता है। मध्य प्रौढ़ावस्था में उपरोक्त व्यवहार में परिवर्तन देखा जाता है। अब प्रौढ़ परिवार, रिश्तेदार, संबंधियों से मेल-जोल बढ़ाते हैं तथा उनके घनिष्ठ मित्रों की संख्या अपेक्षाकृत कम होती जाती है। स्वागत-सत्कार परिवार के सदस्यों व संबंधियों का ज्यादा करते हैं तथा उनसे जुड़े रहने का प्रयास करते हैं।
7. दोस्त (Friends ) - प्रौढ़ावस्था में दोस्तों का चुनाव समान रुचि पर आधारित रहता है। सामाजिक जीवन में अपने कार्य के अनुसार समान रुचि रखने वालों के साथ उनकी मित्रता स्थापित होती है। प्रौढ़ों के मित्र एक ही सामाजिक-आर्थिक वर्ग के होते हैं और एक ही धर्म के मानने वाले होते हैं, जो लोकप्रिय होते हैं व एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं एवं कम लोकप्रिय प्रौढ़ आपस में दोस्ती कर लेते हैं। विवाह के बाद प्रौढ़ों के मित्र दो प्रकार के होते हैं- 1. अपने लिंग के मित्र, 2. परिवार के मित्र । विवाह के बाद मित्रता की शुरूआत अक्सर पति द्वारा की जाती है। कामकाजी महिलाओं के मित्र उनके लिंग के रहते हैं, जो विवाह के बाद भी बने रहते हैं।
इस समय सामाजिक समूह घनिष्ठ मित्रों तथा विश्वासपात्रों का छोटा-सा समूह रहता है, जिसमें पुराने मित्रों की संख्या ज्यादा रहती है। प्रौढ़ावस्था के दौरान मित्रों के दायरे के अंदर सामाजिक दूरी की मात्राएं एक-दूसरे से दूर हो सकती हैं। कई बार मित्रता में अस्थिरता का कारण इन दूरियों को माना जाता है। प्रौढ़ों की मुख्य रुचि पारिवारिक दायरे तक सीमित हो जाती है अत: मित्रता का उतना महत्व नहीं रहता । पैंतीस से पैंतालिस के बीच में पुरुष स्त्री मित्रों का दायरा निश्चित हो जाता है, क्योंकि इस समय तक उनकी रुचियों में स्थिरता आ जाती है। प्रौढ़ावस्था में लोकप्रियता का महत्व उत्तरोत्तर घटता जाता है। समाज द्वारा प्रौढ़ को अपनाये जाने या न जाने का असर काफी गहरा रहता है, जैसा कि किशोरावस्था में किशोर का। प्रौढ़ के व्यवहार में अधिक पूर्वाग्रह देखे जाते हैं तथा भेदभाव संबंधी व्यवहार भी इनमें अधिक रहता है, जबकि प्रौढ़ स्त्रियों में सहिष्णुता का भाव ज्यादा रहता है।
8. नेतृत्व (Leadership ) - नेतृत्व के स्थिरता संबंधी शोध से यह जानकारी प्राप्त की गई है कि जो एक बार नेता बन जाता है वह सदैव नेता बना रहता है। यह बात किशोर नेताओं के संबंध में बड़े प्रतिशत के रूप में सही पाई गई है। प्रौढ़ावस्था में नेतृत्व इच्छा रखने वाले प्रौढ़ आत्मविश्वासी व अनुभवी रहते हैं। प्रशासनिक कार्यों, उद्योगों में उच्च पद पर आसीन प्रौढ़ों को नेतृत्व की योग्यता का होना आवश्यक है जिससे वे आत्ममूल्यांकन, द्वेषभाव को चतुराई के साथ प्रकट करने की क्षमता तथा संवेगशील होने का गुण विकसित कर सकें। नेतृत्व वाले पदों को संभालने के लिए प्रौढ़ समुदाय प्रशिक्षण, शिक्षण व भ्रमण कर जानकारी प्राप्त करते
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