प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- वैदिककालीन श्रेणी संगठन पर प्रकाश डालिए।
अथवा
वैदिक कालीन आर्थिक जीवन में श्रेणियों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
वैदिक तथा उत्तर वैदिक युग में शिल्प और व्यापार के भली-भाँति विकसित हो जाने का एक महत्त्वपूर्ण परिणाम यह हुआ कि शिल्पी और व्यापारी लोग अपने संगठन बनाने और उन संगठनों के अनुशासन में रहने की आवश्यकता अनुभव करने लगे। इन विविध प्रकार के आर्थिक संगठनों के लिए प्राचीन समय में 'समूह' शब्द प्रयुक्त होता था। शिल्पियों के 'समूह' को 'श्रेणि' कहते थे, और व्यापारियों के 'समूह' को 'निगम' या 'पूरा' श्रेणियों और निगमों के अपने संगठन विद्यमान थे, जिनके मुख्यों को राज्य या जनपद की शासन-संस्थाओं में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था।
उत्तर वैदिक युग में ही विविध शिल्पों का अनुसरण करने वाले सर्वसाधारण जनता के व्यक्ति अपने संगठन बनाकर आर्थिक उत्पादन को तत्पर हो गये थे। यह स्वाभाविक भी था, क्योंकि शिल्पियों के लिए पूर्णतया स्वच्छन्द रूप से कार्य कर सकना सम्भव नहीं था। संगठित होकर ही वे अपने कार्य को सुचारू रूप से सम्पादित कर सकते थे। समाज के संगठन का विकास प्रदर्शित करते हुए बृहदारण्यक उपनिषद् में पहले ब्रह्म और क्षत्र के निर्माण का प्रतिपादन कर 'विश' के सम्बन्ध में यह लिखा है, कि क्योंकि अकेले ब्रह्म और क्षत्र से ही काम नहीं चल सकता था, अतः 'विश' की उत्पत्ति की गई। ये 'विशः' गणों में संगठित होकर ही अपने-अपने कार्य करते हैं। शंकराचार्य ने उपनिषद् के उस वाक्य पर टीका करते हुए लिखा है कि 'कार्य के साधन और धन उपार्जन के लिए 'विशः' को उत्पन्न किया गया। ये विशः कौन हैं? विश; 'गणप्रायः ' ही क्योंकि वे संहत होकर ही वित्त के उपार्जन में समर्थ होते हैं, अकेले अकेले नहीं। इसीलिए उनमें गणों की सत्ता होती है। इससे स्पष्ट है कि अत्यन्त प्राचीनकाल में भी सर्वसाधारण विशः या जनता के शिल्पियों और व्यापारियों आदि ने गणों या समूहों में संगठित होकर आर्थिक उत्पादन का कार्य प्रारम्भ कर दिया था।
यही कारण है, जो रामायण, महाभारत आदि प्राचीन ग्रन्थों में शिल्पियों की श्रेणियों और व्यापारियों के निगमों का अनेक स्थानों पर उल्लेख आया है। जब राम वनवास समाप्त कर अयोध्या वापस आये, तो उनके स्वागत के लिए 'श्रेणि-मुख्य' भी उपस्थित हुए। इस प्रसंग में श्रेणिमुख्यों के साथ नैगमों का भी उल्लेख किया गया है, जो स्पष्ट रूप से शिल्पियों और व्यापारियों के संगठनों के सूचक हैं। शान्तिपर्व में 'श्रेणिमुख्यों' का इस प्रसंग में उल्लेख किया गया है, कि राजा उनमें शत्रुओं द्वारा भेद नीति का प्रयोग न करने दे। अन्यत्र एक स्थान पर श्रेणिमुख्यों के अपजाप से अमात्यों की रक्षा करने का उपदेश दिया गया है। इन निर्देशों से सूचित होता है कि महाभारत के काल में शिल्पियों के गण भलीभाँति संगठित थे, और उनके 'मुख्यों' के अपजाप राजकीय कर्मचारियों को पथभ्रष्ट कर सकते थे। वन पर्व की एक कथा के अनुसार जब राजा दुर्योधन गन्धर्वों द्वारा परास्त हो गया, तो उसे अपनी राजधानी को वापस लौटने में इस कारण संकोच हुआ, क्योंकि 'ब्राह्मण और श्रेणिमुख्य' मुझे क्या कहेंगे, और मैं क्या उत्तर दूँगा।
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