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बी एड - एम एड >> वाणिज्य शिक्षण

वाणिज्य शिक्षण

रामपाल सिंह

पृथ्वी सिंह

प्रकाशक : अग्रवाल पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2532
आईएसबीएन :9788189994303

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बी.एड.-1 वाणिज्य शिक्षण हेतु पाठ्य पुस्तक


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वाणिज्य-विषय की पाठ्य-पुस्तक
(TEXT-BOOK OF COMMERCE)

परिवर्तित विचारधाराओं के अनुसार पाठ्य-पुस्तक उतनी महत्त्वपूर्ण नहीं समझी जाती है जितनी पिछले समय में समझी जाती रही है। आधुनिक विचारधारा से प्रभावित कुछ शिक्षाशास्त्री तो पाठ्य-पुस्तक के बिल्कुल विरोधी हैं। ये लोग विद्यालयों में किसी प्रकार की पाठ्य-पुस्तक प्रचलित न करने के पक्ष में हैं। अमेरिका में इस प्रकार की विचारधारा अधिक प्रचलित हुई है। पाठ्य-पुस्तक रहित विद्यालय स्थापित करने हेतु अमेरिका में अनेक प्रयोग हुए हैं किन्तु नवीन विचारधाराओं से प्रभावित शिक्षाविदों के लिए यह बात अत्यन्त दुर्भाग्य की निकली है कि अमेरिका में पाठ्य-पुस्तक रहित विद्यालय की स्थापना से सम्बन्धित हुए प्रयोगों का निष्कर्ष इन शिक्षाविदों की विचारधारा के विपरीत निकला। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि विद्यालय जीवन से पाठ्य-पुस्तक निकाली जा सकती है। विद्यालयों में पाठ्य-पुस्तकों की क्या आवश्यकता व स्थान है ? इस प्रकार का अन्तर ज्ञात करने की भी भारत एवं अन्य देशों ने बड़ी चेष्टाएँ की हैं और इन चेष्टाओं के फलस्वरूप यह निष्कर्ष निकाले गये कि पाठ्य-पुस्तक विद्यालय जीवन में बड़ा महत्त्व रखती है। विद्यालयों में पाठ्य-पुस्तक की आवश्यकता निम्न प्रकार से स्पष्ट की जा सकती है-

(1) टेक्स्ट बुक कमेटी ऑफ सेन्ट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एजूकेशन की रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान शिक्षा प्रणाली की पाठ्य-पुस्तक विहीन अवस्था की कल्पना ठीक वैसी ही है जैसे डेनमार्क के राजकुमार विहीन हेलमेट' की कल्पना करना है।
(2) छात्रों का मानसिक स्तर इतना ऊँचा नहीं होता है कि वे विद्यालय में पढ़ाई गयी विषय-वस्तु को एक ही बार में आत्मसात् कर सकें। उन्हें विषय-वस्तु को पुनः पढ़ना पड़ता है। उन्हें फिर कभी विषय-वस्तु को दोहराना पड़ता है। इन सब कार्यों के लिए पाठ्य-पुस्तक की आवश्यकता पड़ती है।
(3) शिक्षक तथा छात्रों दोनों का ही ज्ञान क्रमशः अव्यवस्थित एवं पर्याप्त होता है। शिक्षकों को ज्ञान को व्यवस्थित करने की आवश्यकता पड़ती है तथा छात्रों के ज्ञान को वर्धित करने की आवश्यकता पड़ती है। पाठ्य-पुस्तक से इन दोनों ही वर्गों को उनके कार्यों में सहायता मिलती है।
(4) पाठ्य-पुस्तक छात्रों की विषय-वस्तु को संकलित करने में सहायता करती हैं। दूसरे शब्दों में पाठ्य-पुस्तक एक ऐसी सहायक सामग्री है जो छात्रों के सम्मुख अत्यन्त व्यवस्थित रूप में विषय-वस्तु को प्रस्तुत करती है।
(5) माध्यमिक शिक्षा आयोग ने भी पाठ्य-पुस्तक के महत्त्व एवं आवश्यकता को स्वीकार किया है।
(6) परीक्षा के समय पुस्तक छात्रों की बड़ी सहायता करती है।
(7) भारत एक निर्धन देश है। यहाँ के अधिकांश विद्यालयों की आर्थिक दशा खराब है। उनके पुस्तकालय इस स्थिति में नहीं हैं कि वे एक ही विषय पर अनेक पुस्तकें रख सकें। इन विद्यालयों के लिए यही हितकर है कि पुस्तकालय में में पाठ्य-पुस्तकें रखें।
(8) शिक्षा में भाषण पद्धति की अपनी सीमाएँ हैं। जैसे भाषण का प्रभाव भाषणकर्ता पर पर्याप्त मात्रा में निर्भर करता है। छात्रों के दृष्टिकोण से भी भाषण पद्धति से केवल वे ही छात्र लाभान्वित हो सकते हैं जिनमें ध्यानमग्न होकर भाषण सुनने की क्षमता हो। पाठ्य-पुस्तक ऐसे छात्रों के लिए विशेष लाभप्रद होती है जो भाषण पद्धति से विशेष लाभ नहीं उठा सकते हैं।
(9) पाठ्य-पुस्तक विषय-वस्तु को अत्यन्त तार्किक ढंग से प्रस्तुत करती है। इससे विषय-वस्तु सरल तथा सुगम हो जाती है।
(10) पाठ्य-पुस्तक कक्षा शिक्षण के अनेक दोषों को दूर करती है। कक्षा शिक्षण प्रणाली के अन्तर्गत प्रत्येक छात्र पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान नहीं दिया जा सकता है। पाठ्य-पुस्तकों की सहायता से छात्र व्यक्तिगत रुचि के अनुसार अध्ययन कर सकते हैं।

पाठ्य-पुस्तक के उपयोग

(1) अन्वेषणात्मक अध्ययन हेतु-पाठ्य-पुस्तक को विषय-वस्तु से सम्बन्धित सामान्य सूचना प्राप्त करने के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है। अध्ययन को किसी इकाई के प्रारम्भ में प्रारमिभक सूचनाएँ प्राप्त करने में पाठ्य-पुस्तक का प्रयोग करना पड़ता है। पाठ्य-पुस्तक के द्वारा आधारभूत सामान्य सूचनाएँ प्रदान कर विषय-वस्तु की पृष्ठभूमि भी तैयार की जा सकती है। यदि पाठ्य-पुस्तक इस प्रकार प्रयोग की जाय तो इससे छात्रों को प्रमुख विचार ग्रहण करने में सुविधा रहती है।

यदि पाठ्य-पुस्तक का प्रयोग इस कार्य हेतु किया जाता है तो अध्यापक को निम्नांकित बातें ध्यान में रखनी चाहिए-
1. चित्र. चार्ट, मानचित्र, भाषण इत्यादि के द्वारा पुस्तक के आवश्यकीय अंग को पढ़ाने के लिए छात्र को तैयार कीजिए।
2. छात्रों को उन उद्देश्यों से अवगत करा दिया जाय जिसकी प्राप्ति हेतु छात्रों को अध्ययन करना है। 'अमुक विषय सामग्री याद कीजिए' कहना ठीक रहेगा, यह न कहा जाय कि 'अमुक पृष्ठ तक अध्ययन करो।'
3. छात्रों की शब्दावली सम्बन्धी कठिनाइयों को दूर कर दीजिए।
4. महत्त्वपूर्ण चित्रों, उदाहरणों, मानचित्रों, व्याख्याओं, स्पष्टीकरण आदि की तरफ छात्रों का ध्यान आकर्षित कर दें।
5. अनुगामक (Follow up) क्रियाएँ कीजिए।
6. जिनकी अध्ययन क्षमता अत्यन्त दुर्बल है. उनकी तरफ विशेष ध्यान दिया जाय एवं तीव्र बुद्धि बालकों की बड़ी पुस्तकें अतिरिक्त रूप से दी जायें।

(2) इकाई से सम्बन्धित तथ्य एकत्रित करने हेतु-जिस समय किसी इकाई के माध्यम से शिक्षण किया जा रहा है तो इससे सम्बन्धित अनेक उपयोगी सूचनाएँ प्राप्त करने के लिए पाठ्य-पुस्तक का प्रयोग किया जा सकता है। यदि पाठ्य-पुस्तक का इकाई से सम्बन्धित तथ्य एकत्रित करने हेतु प्रयोग किया जा रहा है तो अध्यापक को निम्नांकित बातों को ध्यान में रखना चाहिए-

1. सूचनाओं की उपयोगिता ज्ञात करने में छात्रों की सहायता की जाय । पुस्तक में इकाई से सम्बन्धित कौन-कौन सी उपयोगी सूचनाएँ हैं। इसका उत्तर प्राप्त करने में छात्रों में कठिनाइयाँ हो सकती हैं। अध्यापक को चाहिए कि वह इन कठिनाइयों को दूर करने की चेष्ट करें।
2. छात्रों को विषय-सूची, शब्दावली, नामावली. विषयावली इत्यादि का उपयोग करना सिखाया जाय।
3. पुस्तक में प्राप्त सूचनाओं की सत्यता को प्रमाणित करने हेतु अन्य साधनों से छात्रों को अवगत करा दिया जाय।
(3) मानचित्र, चार्ट, ग्राफ एवं चित्रों के अध्ययन हेतु-पुस्तकों में अनेक मानचित्र, चार्ट, ग्राफ एवं विभिन्न प्रकार के चित्र होते हैं। ये मानचित्र. चार्ट इत्यादि वाणिज्य-शिक्षण में सहायक सामग्री का कार्य करते हैं, अतः उनका प्रयोग उन सभी लाभपूर्ण कार्यों के लिए किया जा सकता है जिसके लिए सहायक सामग्री का प्रयोग किया जा सकता है। उनको प्रयोग करते समय अध्यापक को वे सभी बातें ध्यान में रखनी चाहिए जो सहायक सामग्री का प्रयोग करते समय रखी जाती हैं।
(4) सीखने का निष्कर्ष निकलाने हेतु-समस्त सीखी हुई विषय वस्तु को सार रूप में समझने के लिए भी पाट्य-पुस्तक का प्रयोग किया जा सकता है। पाठ्य-पुस्तक की सहायता से हम सीखे हुए सार को अत्यन्त व्यवस्थित, क्रमबद्ध तथा संगठित रूप में रख सकते हैं। इसके लिए अध्यापक को निम्नांकित बातों को ध्यान में रखना चाहिए-

1. पहले पढ़ी हुई विषय-वस्तु को सम्बन्धित वाद-विवाद करने के लिए छात्रों को तैयार किया जाय जिससे वे नवीन ज्ञान को प्राप्त करने के लिए प्रेरित हो सकें
2. शब्दावली सम्बन्धी कठिनाइयों को दूर कर दें।
3. मन्द गति से पढ़ने वालों की तरफ विशेष ध्यान रखा जाय।
4. अन्त में पूर्ण योजित वाद-विवाद की व्यवस्था की जाय।

अच्छी पाठ्य-पुस्तकों के गुण

पाठ्य-पुस्तक के अनेक लाभ तथा प्रयोग हैं। शिक्षण का यह सर्वोत्तम उपकरण है। यह शिक्षकों का साथी तथा छात्रों का ज्ञानदाता है। पाठ्य-पुस्तक की ये सभी विशेषताएँ समाप्त हो जाती हैं यदि पाठ्य-पुस्तक अच्छी न हो। इसके लिए आवश्यक है कि अच्छी पाठ्य-पुस्तक का ही प्रयोग किया जाय। अच्छी पाठ्य-पुस्तक में अग्रांकित विशेषताएं होती हैं-

(1) अच्छी पाठ्य-पुस्तक छात्रों में स्वतन्त्र पढ़ने के लिए रुचि जाग्रत करती है।
(2) अच्छी पाठ्य-पुस्तक में विषय-वस्तु का संगठन अत्यन्त मनोवैज्ञानिक विधि से तैयार किया जाता हैं।
(3) अच्छी पाठ्य-पुस्तक व्याख्या, स्पष्टीकरण, उदाहरणों आदि की सहायता से विषय को सरल बनाती है।
(4) अच्छी पाठ्य-पुस्तक में आवश्यक स्थलों पर मानचित्र, चार्ट, रेखाचित्र रेखाकृतियाँ इत्यादि होते हैं जो विषय-वस्तु को और भी अधिक रोचक बनाते हैं।
(5) अच्छी पाठ्य-पुस्तक की भाषा शैली में सरलता, सरसता तथा प्रवाहशीलत का प्रधान गुण होता है।
(6) अच्छी पाठ्य-पुस्तक का आकार अधिक सुविधाजनक होता है।
(7) अच्छी पाठ्य-पुस्तक विषय-वस्तु को छात्रों के मानसिक स्तर के अनुरूप करती है।
(8) अच्छी पाठ्य-पुस्तक चिन्तन करने हेतु नवीन विचार प्रस्तुत करती है।
(9) अच्छी पाठ्य-पुस्तक किसी की भावनाओं को आघात नहीं पहुँचाती है।
(10) अच्छी पाठ्य-पुस्तक उपयुक्त अध्यायों में विभक्त होती है और उसके अध्याय अनेक उपखण्डों में विभक्त होते हैं। अध्याय में विषय-वस्तु की व्याख्या हेतु आवश्यक पैराग्राफ होते हैं।
(11) अच्छी पाठ्य-पुस्तक में विषय सूची, शब्दावली तथा नियमावली होती है।
(12) अच्छी पाठ्य-पुस्तक की शैली में विशालता, पूर्णता तथा स्थूलता होती है।

पाठ्य-पुस्तक का चयन करते समय हमें पाठ्य-पुस्तक से सम्बन्धित निम्नांकित तथ्यों को देखना चाहिए-
(1) लेखक-सर्वप्रथम हमें पुस्तक के लेखक, उसकी योग्यता, अनुभव, स्थान तथा उसके दृष्टिकोण से अवगत होना चाहिए।
(2) प्रकाशन-पुस्तक के प्रकाशन से सम्बन्धित सूचनाएँ देखनी चाहिए। प्रकाशक कौन है? प्रकाशन तिथि क्या है?
(3) बाह्य रचना-पुस्तक की बाह्य रचना कैसी है? इसके लिए हमें उसके आकार, फार्मेट, अक्षरों की बनावट, मूल्य, शीर्षक, पृष्ठ-संख्या, जिल्द, कागज की किस्म आदि तथ्यों को देखना चाहिए।
(4) संगठन-पुस्तक में विषय-वस्तु के संगठित करने की विधि को भी देखना आवश्यक है। पाठ्य-पुस्तक की सामान्य योजना उसके अध्यायों का क्रम, सारांश आदि चीजें देखनी चाहिए।
(5) प्रस्तुतीकरण-देखना चाहिए कि पाठ्य-पुस्तक में विषय-वस्तु को किस रूप में प्रस्तुत किया गया है। प्रस्तुतीकरण का ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमें पुस्तक की भाषा शैली, शब्दावली, स्थूलता, आधुनिकता, स्पष्टता आदि को देखना चाहिए।
(6) सहायक सामग्री-पुस्तक में सीखने की सहायक सामग्री किस मात्रा में दी गई है? इसके लिए हमें आगे लिखी बातें देखनी चाहिए-
अ-उदाहरण उदाहरण कैसे हैं, वे कितने उपयुक्त हैं, उनमें उद्देश्यपूर्ति की कितनी क्षमता है, छात्रों को वे किस सीमा तक प्रभावित करते हैं।
आ-मानचित्रादि-कितने मानचित्र दिए गये हैं ? वे किस प्रकार के हैं ?
इ-अभ्यास प्रश्न-पुस्तक में अभ्यास हेतु प्रश्न दिए गए हैं अथवा नहीं।
ई-सन्दर्भ
उ-विषय सूची, शब्दावली आदि।

कुछ सुझाव
अगर उन उद्देश्यों को प्राप्त करना है जिनके लिए पाठ्य-पुस्तकें लिखी जाती हैं तो यह आवश्यक है कि पाठ्य-पुस्तकों के स्तर में सुधार किया जाय। पाठ्य-पुस्तकों के के सुधार के लिए निम्नांकित कदम उठाये जा सकते हैं-
(1) पाठ्य-पुस्तकों के सुधार हेतु राष्ट्रीय स्तर पर एक उच्च सत्ताधारी पाठ्य-पुस्तक समिति का गठन किया जाय।
(2) पुस्तकें राष्ट्रीय स्तर पर लिखी जायें। राज्य स्तर पर लिखी गई पुस्तकों को प्रोत्साहित नहीं किया जाय।
(3) राज्य की तरफ से पाठ्य-पुस्तकों के फारमेट हेतु एक निश्चित स्तर निर्धारित कर दिया जाय।
(4) पाठ्य-पुस्तक में चित्रादि बनाने हेतु चित्रण कला का विकास किया जाय।
(5) पाठ्य-पुस्तकों को जल्दी से जल्दी बदलने की प्रवृत्ति को रोका जाय।
(6) एक विषय के लिए एक पुस्तक न बनाकर अच्छे स्तर की कई पुस्तकें बनाने की सिफारिश की जाय।
(7) लेखकों को पुस्तक लेखन का कार्य सरकार की अनुमति के बिना नहीं करना चाहिये। साथ ही सरकार लेखन का अधिकार योग्य एवं अनुभवी अध्यापकों को.ही दे ।
(8) पुस्तकें राष्ट्रीय भावनाओं से युक्त होनी चाहिये। वे किसी की भावनाओं को ठेस न पहुँचाएँ।
(9) प्रकाशक भी प्रकाशन का अधिकार राज्य सरकार से प्राप्त करें।
(10) सरकार को पुस्तकों के मूल्यों पर नियन्त्रण रखना चाहिये।
(11) सस्ती पुस्तकों को हतोत्साहित किया जाय।
(12) प्रकाशित होने से पूर्व पाण्डुलिपि का अध्ययन विद्वानों की एक विशिष्ट समिति द्वारा किया जाए और उनकी सिफारिशों के आधार पर ही वह पुस्तक प्रकाशित हो सके, ऐसी व्यवस्था की जाय।

वाणिज्य की पाठ्य-पुस्तक कैसी हो ?

वाणिज्य की पाठ्य-पुस्तक चुनते समय निम्नांकित बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए-
(1) पाठ्य-पुस्तक छात्रों की रुचि, स्तर, योग्यता व क्षमता के अनुसार होनी चाहिए।
(2) पुस्तक की बाह्य आकृति आकर्षक होनी चाहिए ताकि उसकी और छात्रों का अवधान अपने आप केन्द्रित हो।
(3) पाठ्य-पुस्तक में पाठ्य-वस्तु पाठ्यक्रम के अनुसार होनी चाहिये।
(4) पाठ्य-पुस्तक में उद्देश्य पूरकता होनी चाहिए तथा सन्दर्भो का भी उचित स्थान होना चाहिये।
(5) पुस्तक की छपाई साफ एव शुद्ध होनी चाहिये।
(6) पुस्तक में सैद्धान्तिक पक्ष के साथ व्यावहारिक पक्ष का भी उचित स्थान होना चाहिये।
(7) वाणिज्य के नियमों का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिये।
(8) पाठ्य-पुस्तक में आवश्यक चार्ट, चित्र, रेखाचित्र, आँकड़े व तालिकाएँ प्रस्तुत होनी चाहिये।
(9) पाठ्य-पुस्तक में छात्रों के अभ्यास कार्यों हेतु प्रश्नावलियाँ व निर्देश आदि दिये जाने चाहिये।
(10) पाठ्य-पुस्तक में सहायक पुस्तकों की भी सूची दी हुई होनी चाहिये।
(11) पुस्तक योग्य रीति में लिखी जानी चाहिये तथा उसमें मौलिकता का भी समावेश होना चाहिये।
(12) तकनीकी शब्दों की उचित व्याख्या होनी चाहिये।
(13) पाठ्य-पुस्तक छात्रों की तर्क-शक्ति, चिन्तन शक्ति, स्व-निर्णय शक्ति का विकास करने वाली होनी चाहिये।
(14) पाठ्य-पुस्तक छात्रों में स्वाध्ययन एवं आत्म-प्रकाशन की भावना का विकास करने वाली होनी चाहिये।
(15) पाठ्य-पुस्तक स्थानीय आवश्यकताओं की भी पूरक होनी चाहिये।
(16) पाठ्य-पुस्तक का मूल्य उचित होना चाहिये।

सन्दर्भ पुस्तकें

उच्च स्तर पर केवल पाठ्य-पुस्तकें ही महत्त्वपूर्ण नहीं होती हैं, बल्कि सन्दर्भ पुस्तकें भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण होती हैं। पाठ्य-पुस्तकों का अध्ययन करते समय कभी-कभी उनके परिपूरक स्वरूप सन्दर्भ पुस्तकें आवश्यक हो जाती हैं। सन्दर्भ पुस्तकें चूँकि सामान्यतः अधिक मूल्य की होती हैं अतः विद्यालय प्रशासन व सम्बन्धित अध्यापकों को चाहिए कि उन्हें विद्यालय पुस्तकालय में उचित मात्रा में मैंगवाए। ये सन्दर्भ पुस्तकें छात्र व अध्यापक दोनों के लिए लाभदायक होती हैं, इससे वे अपने विषय के ज्ञान को समृद्ध व आधुनिक बनाने में सहायता प्राप्त करते हैं, तथा छात्रों को इनसे उचित तथ्यात्मक जानकारी, आँकड़े व अन्य महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। अतः स्पष्ट है कि केवल मात्र पाठ्य-पुस्तकें छात्रों व अध्यापकों की ज्ञान पिपासा को तृप्त नहीं कर सकते हैं, इस कार्य में सन्दर्भ पुस्तकें महत्त्वपूर्ण रोल अदा करती हैं।

सन्दर्भ पुस्तकों के चयन हेतु आवश्यक बातें

सन्दर्भ पुस्तकों के चयन करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखा जाना चाहिये-
(1) सन्दर्भ पुस्तकों में तथ्य अधिक हो तथा प्रामाणिक होने चाहिये।
(2) सन्दर्भ पुस्तकों की भाषा सरल व स्पष्ट होनी चाहिये।
(3) सन्दर्भ पुस्तकें यथासम्भव कम मूल्य की होनी चाहिये।
(4) सन्दर्भ पुस्तकें छात्रों की रुचि व आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली होनी चाहिये।
(5) सन्दर्भ पुस्तकें मातृभाषा व अंग्रेजी दोनों में होनी चाहिये।

पत्र-पत्रिकाएँ

वाणिज्य-शिक्षण में पत्र-पत्रिकाएँ भी बहुत महत्त्वपूर्ण होती हैं। वाणिज्य गत्यात्मक विषय है, वाणिज्य में समाज, राष्ट्र व अन्तर्राष्ट्रीय जगत की आर्थिक जानकारियाँ व वाणिज्यिक समस्याओं की जानकारी आवश्यक होती हैं और ये जानकारियाँ पाठ्य-पुस्तकें पूरी मात्रा में उपलब्ध नहीं करा सकती हैं, इनके लिये अनेकानेक पत्र व पत्रिकाओं का उपयोग आवश्यक होता है। पत्र-पत्रिकाएँ छात्रों व अध्यापकों को तथ्य व आँकडे युक्त जानकारियाँ प्रदान करते हैं। इनमें विषय के विद्वानों के विचार व लेख समय-समय पर प्रकाशित होते रहते हैं, जो कि विषय व तत्सम्बन्धी जानकारियों के लिए आवश्यक हैं। ये पत्र-पत्रिकाएँ छात्रों के व्यावहारिक ज्ञान में वृद्धि करते हैं, क्योंकि वे विभिन्न आर्थिक पहलुओं का स्पष्टीकरण करते हैं तथा उनसे सम्बन्धित औंकड़े प्रस्तुत करते हैं. ये राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय जगत का प्रामाणिक ज्ञान प्रस्तुत करते हैं। ये छात्रों का मानसिक विकास करते हैं जिनसे छात्रों की तर्क शक्ति, चिन्तन शक्ति व निर्णय शक्ति का विकास होता है।

पत्र-पत्रिकाओं का चयन करते समय ध्यान रखने योग्य आवश्यक बातें-
(1) पत्र-पत्रिकाओं का चयन छात्रों की आवश्यकतानुसार किया जाना चाहिये।
(2) पत्र-पत्रिकाओं की बाह्य आकृति आकर्षक होनी चाहिये।
(3) इनमें विषय सामग्री के साथ-साथ तथ्य व आँकड़े स्पष्ट ढंग से दिये हुए होने चाहिये।
(4) मूल्य का भी ध्यान रखा जाना चाहिये।
(5) विद्यालयों में राष्ट्रीय पत्रिकाओं के साथ-साथ ।
(6) कुछ विदेशी पत्रिकाएँ भी मंगाई जानी चाहिये ताकि अन्तर्राष्ट्रीय ज्ञान भी विकसित किया जा सके। प्रमुख पत्रिकाएँ इस प्रकार से हैं
(1) Indian Trade Journal.
(2) Eastern Economist.
(3) Commerce.
(4) Finance.

इनके अतिरिक्त वाणिज्य के छात्रों व अध्यापकों को निम्न प्रकाशना का अध्ययन विषय के गहन ज्ञान के लिए करना चाहिए-
(1) नगरपालिका व नगर निगमों के प्रकाशन ।
(2) विश्वविद्यालयों के प्रकाशन।
(3) रेल विभाग के प्रकाशन ।
(4) श्रम व उद्योग विभाग के प्रकाशन।
(5) डाक तार विभाग के प्रकाशन।

अभ्यास-प्रश्न

निबन्धात्मक प्रश्न

1. वाणिज्य शिक्षण के लिये पाठ्य-पुस्तक का क्या महत्त्व है ? स्पष्ट कीजिये।
2. वाणिज्य-पुस्तक की कतिपय विशेषताओं की चर्चा कीजिये।
3. वाणिज्य के छात्रों के लिये पाठ्य-पुस्तक का चयन करते समय शिक्षा के रूप में आप किन-किन तत्त्वों को ध्यान में रखेंगे? विवेचना कीजिये।
4. वाणिज्य शिक्षण के लिये सन्दर्भ पुस्तकों तथा अतिरिक्त साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिये

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

1. एक अच्छी वाणिज्य-पुस्तक के कोई पाँच गुण लिखिये।
2. वाणिज्य शिक्षण के लिये सन्दर्भ पुस्तकों का चयन करते समय किन्हीं पाँच ध्यायत्व बातों का उल्लेख कीजिये।
3. वाणिज्य शिक्षण के लिये उपयोगी किन्हीं पाँच पत्रिकाओं के नाम लिखिये।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. पाठ्य-पुस्तक विषय-वस्तु को अत्यन्त तार्किक ढंग से "........" करती हैं।
2. पाठ्य-पुस्तक शिक्षकों का साथी तथा छात्रों का है।
3. वाणिज्य .......विषय है।

उत्तर-1. प्रस्तुत। 2. ज्ञानदाता। 3. गत्यात्मक।

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